लेखिका मृदुला गर्ग की बहन चित्रा के घर का नाम ‘गौरी’ था और बाहर का नाम चित्रा था। लेखिका मृदुला गर्ग की बहन चित्रा को घर पर ‘गौरी’ कहकर बुलाया जाता था और विद्यालय आदि में उसका नाम ‘चित्रा’ लिखा होता था। Show
संदर्भ : कुछ और जाने मृदुला गर्ग का जन्म 25 अक्टूबर 1938 में कलकत्ता में हुआ था | पिता का तबादला होने के कारण लगभग तीन वर्ष की आयु में वे दिल्ली आ गयीं जहाँ उनके अनुभव संसार को और भी विस्तार मिला | मृदुला जी का बचपन काफी शारीरिक पीड़ा में बीता और इसके कारण वे कई वर्षों तक स्कूल भी नहीं जा पायीं | घर पर ही रहकर वे अध्ययन करतीं और समय से सभी परीक्षाओं में उत्तीर्ण होतीं | उन्होंने दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स से एम्.ए . किया | तदोपरांत १९६० से १९६३ तक दिल्ली के इन्द्रप्रस्थ कॉलेज और जानकी देवी कॉलेज में बतौर प्राध्यापिका कार्यरत रहीं | इस दौरान उन्होंने सामाजिक और आर्थिक शोषण जैसे विषयों पर भी गहन अध्ययन किया | मृदुला जी को बचपन से ही साहित्य-पठन का शौक था | साहित्य-पठन से उनका लम्बा लगाव रहा | वे कहती हैं –
अध्ययन के अतिरिक्त मृदुला जी को अभिनय में भी विशेष रुचि थी | स्कूल के दिनों में उन्होंने अनेको नाटकों तथा वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया और कई इनाम भी जीते | अपने कॉलेज के दिनों में भी उन्होंने कई नाटकों में अभिनय किया |
मृदुला गर्ग का पारिवारिक जीवनमृदुला जी के व्यक्तित्व निर्माण में उनके माता-पिता का अतुलनीय योगदान था | उनकी माँ का उर्दू और बंग्ला जैसी भाषाओं में दखल था और वे गजब की साहित्य प्रेमी थीं | पिता की बौद्धिकता ने मृदुला जी में जहाँ आत्मविवेचन की प्रवृत्ति का निर्माण किया वहीं उनकी माँ के साहित्य प्रेम ने उन्हें साहित्य पठन के लिए प्रेरित किया | मातामृदुला जी अपनी माँ को एक आसाधारण स्त्री मानती हैं | उनकी माँ एक नितांत इमानदार महिला थी | रहस्यों को गुप्त रखने की महारथ और कभी भी झूठ न बोलने की आदत के कारण पारंपरिक किस्म की ससुराल में उनकी माँ का बहुत ही आदर और सम्मान था | मृदुला जी की माँ को खाना पकाना कभी भी अच्छा नहीं लगता था | चूँकि वे अक्सर बीमार रहतीं, अतः दस वर्ष की आयु से ही मृदुला जी की बहने उनकी सेवा-टहल में लगी रहती थीं | मृदुला जी की माँ मात्र दसवीं पास थीं , किन्तु अंग्रेजी, हिंदी और उर्दू का भी उन्हें अच्छा ज्ञान था और वे उससे सम्बंधित साहित्य भी खूब पढ़ा करती थीं | भाई को उर्दू पढ़ाने के लिए जब मौलवी साहब आते तो परदे के पीछे बैठ कर उन्होंने उर्दू सीखा | पिताउनके पिता का नाम श्री बी.पी. जैन था | वे बेहद ही प्रबुद्ध तथा मिलनसार प्रवृति के व्यक्ति थे | हालाँकि वे बेहद ही व्यस्त रहते, किन्तु जब बच्चे बीमार होते, तो उनकी देख-रेख का जिम्मा वही उठाते थे | उन्होंने लड़का अथवा लड़की के आधार पर कभी भी अपने बच्चों में कोई भी भेदभाव नहीं किया | मृदुला जी के पिता भी हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू और फ़ारसी के अच्छे जानकार थे | बुखार से पीड़ित अपनी बीमार बच्ची के हाथों मे ‘दोस्तोएवस्की’ देकर उसे पढ़ने के लिए प्रेरित करने का काम उनके जैसा एक दूरदर्शी वृत्ति का व्यक्ति ही कर सकता है | पैत्रिक पारिवारिक श्रृंखलापैत्रिक पारिवारिक श्रृंखला में माता-पिता के अतिरिक्त उनकी चार बहने और एक भाई भी हैं |
वैवाहिक जीवनमृदुला जी का विवाह सन् १९६३ में आनंद प्रकाश गर्ग के साथ परम्परागत तरीके से हुआ | यद्यपि स्त्रीयों की अपेक्षा उनके पुरुष मित्र अधिक थे किन्तु उन्हें कभी भी किसी के प्रति आकर्षण नहीं रहा | उन्हें अपने पुरुष सहपाठियों में अपरिपक्वता ही दिखाई देती थी | अतः प्रेमाकर्षण का सवाल ही पैदा नहीं हुआ | विवाहोपरांत उन्होंने अपनी नौकरी को छोड़ अपने पारिवारिक जीवन को ज्यादा तवज्जो दी | उनका व्यक्तिगत मत था कि ममता और पारिवारिक जीवन की कीमत पर स्त्री की नौकरी अर्थहीन है | विवाह के बाद वे दिल्ली छोड़ पहले बिहार स्थित डालमिया नगर, बंगाल स्थित दुर्गापुर और फिर कर्णाटक स्थित बगालपुर जैसे छोटे कस्बों में सन् १९६३ से १९७१ तक रहीं | अपने परिवार और लेखन के बीच बखूबी सामंजस्य बिठाते हुए मृदुला जी ने अपना जीवन जिया है | संस्कार में मिले अपने गुणों पर तटस्थ रहते हुए कभी भी अपने आत्म-सम्मान के साथ समझौता नहीं किया | मृदुला गर्ग के दो पुत्र हैं ‘शशांक विक्रम’ और ‘आशीष विक्रम’ | उनके छोटे पुत्र आशीष विक्रम एक अभियंता के रूप में कार्यरत हैं | छोटी बहू का नाम ‘वन्दिता‘ और बड़ी बहू का नाम ‘अपर्णा’ है | छोटी बहू वन्दिता मृदुला जी की रचनाओं की प्रशंसक रही हैं | मृदुला गर्ग का पारिवारिक जीवन संघर्षमय किन्तु सुखद रहा है | पारिवारिक दायित्वों के कारण यदा-कदा उनके लेखकीय जीवन में अल्प-विराम आया, किन्तु उन्होंने अपने लेखकीय दायित्य और पारिवारिक जीवन को एक दूसरे पर पूर्णतया हावी नहीं होने दिया | लेखकीय जीवन का आरम्भमृदुला गर्ग के लेखकीय जीवन का आरम्भ लगभग १९७० में हुआ | उस समय वे 32 वर्ष की थीं | उनका प्रारम्भिक लेखन अर्थशास्त्र से जुड़ा था जो उन्हें भारतीय परिवेश के सन्दर्भ में तर्कसंगत नहीं लगा | अतः वे सृजनात्मक लेखन की ओर अग्रसर हुयीं | वे कहती हैं –
अपने सृजनात्मक लेखन के प्रारम्भिक दौर में मृदुला जी ने अंग्रेजी में कई कहानियों और कविताओं की रचना की | अंग्रेजी उनके लिए उद्देश्यपरक भाषा रही है | इस भाषा पर भी उनकी पकड़ बहुत ही अच्छी है और चाहतीं तो इस माध्यम से अपना लेखकीय सफ़र जारी रख सकती थीं | किन्तु बाद में उन्होंने महसूस किया कि भावना प्रधान दृश्यों को वे हिंदी भाषा में ज्यादा प्रभावी ढंग से व्यक्त कर सकती हैं | अतः उन्होंने हिंदी लेखन की ओर रूख किया | उन्होंने अपने सृजन यात्रा का आरम्भ कर्णाटक के बागलकोट से आरम्भ किया | उनकी पहली कहानी ‘रूकावट’ सन १९७१ में कमलेश्वर के संपादन में ‘सारिका’ में प्रकाशित हुयी | बाद में उनकी कहानी ‘हरी बिंदी’, ‘लिली आफ दी वैली’, ‘दूसरा चमत्कार’ भी ‘सारिका’ में प्रकाशित हुयी | १९७२ में प्रकाशित कहानी ‘कितनी कैदें’ को ‘कहानी’ पत्रिका द्वारा प्रथम पुरस्कार दिया गया | सन १९७४ में मृदुला गर्ग दिल्ली वापस आ गयीं और पूर्णतया साहित्य के सृजन का आरम्भ किया | इसी वर्ष उनका पहला उपन्यास ‘उसके हिस्से की धूप’ प्रकाशित हुआ | इस उपन्यास को मध्यप्रदेश साहित्य परिषद् द्वारा ‘महाराजा वीरसिंह पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया | मृदुला गर्ग की रचनाएँमृदुला जी ने अपने रचना कर्म से हिंदी साहित्य की लगभग सभी विधाओं को समृद्ध करने का कार्य किया है | उन्होंने उपन्यास, कहानी, नाटक , निबंध, संस्मरण आदि विधाओं में अपनी लेखनी चलायी है | उनके उपन्यास ‘चित्तकोबरा’ ने उन्हें एक विवादित लेखिका के रूप मे स्थापित किया | मृदुला गर्ग की रचनाओं को मोटे तौर पर तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है | (१) कथा-साहित्य | (कहानी, उपन्यास) , (२) कथेत्तर गद्य साहित्य (निबंध, नाटक, संस्मरण आदि ) (३) अनुदित साहित्य (हिंदी से अंग्रेजी और अंग्रेजी से हिंदी) मृदुला गर्ग का कथा-साहित्यमृदुला गर्ग के उपन्यास
कहानी संग्रह
पूर्व प्रकाशित कहानियों का संग्रह
मृदुला गर्ग का कथेत्तर गद्य साहित्यनाटक
लेख संग्रह तथा निबंध
व्यंग्य-लेख
संस्मरण
अनुदित साहित्य
मृदुला गर्ग की पुरष्कृत रचनायें
अन्य पुस्तकें
मृदुला गर्ग जी की कितनी बहनें थीं?कथा-साहित्य में विख्यात मंजुल भगत, मृदुला गर्ग और अचला बंसल तीनों सगी बहनें हैं।
मृदुला गर्ग की बड़ी बहन कौन थी?पहली लड़की, जिसके लिए मन्नत माँगी गई थी, वह मैं नहीं, मेरी बड़ी बहन, मंजुल भगत थी।
लेखिका के कितने भाई बहिन थे?लेखिका कुल पांच बहन और एक भाई थे। लेखिका का भाई राजीव पांच बहनों में सबसे छोटा था। लेखिका 'मृदुला गर्ग' पाँच बहनों में दूसरे नंबर की थी।
लेखिका की कुल कितनी बहने थी?Answer. Answer: लेखिका की चार बहने थी । लेखिका की बहनों के नाम -- मंजुल , गौरी , रेणु और अचला ।
|