माल्थस का जनसंख्या वृद्धि का सिद्धांत क्या था?

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जनसंख्या के विभिन्न सिद्धांत में जनसंख्या के विभिन्न पक्षों को समझने का प्रयास किया गया| जनसंख्या के लिए दिए विभिन्न सिद्धांतों में माल्थस का जनसंख्या सिद्धांत प्रारम्भिक और महत्वपूर्ण अवधारणा है| हम इस लेख में माल्थस के जनसंख्या सिद्धांत के बारे में बता रहे है| हम यहां Malthus’s population theory के आलोचनात्मक परीक्षण के साथ ही इसके संतुलन के संदर्भ में दिए गए नव माल्थसवाद के सिद्धांत को भी समझने का प्रयास करेंगें. Malthusian theory of population growth in hindi. The New Malthus argument in hindi.

माल्थस का जनसंख्या सिद्धांत – Malthusian theory of population growth in hindi.

माल्थस का जनसंख्या वृद्धि का सिद्धांत क्या था?

माल्थस ऐसे प्रथम सामाजिक अर्थशास्त्री थे जिन्होंने जनसंख्या का आर्थिक विश्लेषण (Economical Analysis) प्रारंभ किया| इससे पहले इसका अध्ययन एक सामाजिक कारक (Social Factor) के रूप में किया जाता था| उन्होंने यूरोप में बढ़ती हुई जनसंख्या की प्रवृत्तियों (Trends) के आधार पर संसाधन एवं जनसंख्या के अंतर्संबंधों (Relation) को महत्व देते हुए अपने सिद्धांत का प्रतिपादन “जनसंख्या के सिद्धांत’ (प्रिंसिपल ऑफ पॉपुलेशन – Principal of Population) (1779) नामक पुस्तक में किया|

माल्थस का जनसंख्या सिद्धांत (Malthusian theory of population) में मूलतः यह स्वीकार किया गया है कि संसाधनो की उपलब्धता (availability) जनसंख्या वृद्धि को प्रेरित करती है और यूरोप में औद्योगिक एवं नगरीय क्रांति के प्रारंभिक दशकों में जनसंख्या में तीव्र वृद्धि संसाधनों की उपलब्धता का ही परिणाम था|

माल्थस का जनसंख्या सिद्धांत में संसाधनों के अंतर्गत मुख्यतः खाद्यान्न को शामिल किया गया और यूरोपीय जनसंख्या प्रवृत्ति के आधार पर यह माना गया कि यदि किसी भी प्रदेश की जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित नहीं किया जाता है तब जनसंख्या में वृद्धि ज्यामितीय या गुणोत्तर अनुपात में होता है जबकि संसाधनों में वृद्धि अंकगणितीय अनुपात में होता है.

अर्थात जनसंख्या वृद्धि की दर की तुलना में संसाधनों में वृद्धि की दर हमेशा कम होती है. इसी कारण एक अंतराल के बाद संसाधनों की तुलना में जनसंख्या इतनी अधिक हो जाएगी की जनसंख्या के लिए संसाधनों का अभाव होगा और यही अवस्था जनाधिक्य (Over population) की होगी.

जनसंख्या में वृद्धि प्रत्येक 25 वर्ष में दोगुनी होती है और इस दर से वृद्धि की स्थिति में 200 वर्षों में जनसंख्या और संसाधन का अनुपात 256:9 होगा. अर्थात 200 वर्षों में जनसंख्या में 256 इकाई के वृद्धि होती है जबकि संसाधन में मात्र 9 इकाई की वृद्धि होती है. माल्थस के जनसंख्या सिद्धांत के अनुसार यह स्थिति ही जनसंख्या संबंधी समस्याओं का कारण है.

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माल्थस के पापुलेशन थ्योरी की अवस्थाएं

माल्थस के जनसंख्या सिद्धांत के अनुसार जनसंख्या एवं संसाधनों की अनुपात की तीन अवस्थाएं होती हैं

  1. जब संसाधन उपलब्ध जनसंख्या की तुलना में अधिक हो.
  2. जब संसाधन और जनसंख्या दोनों लगभग समान हो.
  3. जब संसाधन के तुलना में जनसंख्या अधिक हो.

माल्थस का जनसंख्या वृद्धि का सिद्धांत क्या था?

प्रथम एवं दूसरी अवस्था में जनसंख्या संबंधी समस्याओं की पहचान नहीं हो पाती लेकिन तीसरी अवस्था के साथ जनसंख्या वृद्धि एक भयावह चुनौती (Frightening challenge) के रूप में सामने आती है.

माल्थस के जनसंख्या सिद्धांत की तीसरी अवस्था में खाद्यान्न संकट वृहद स्तर पर उत्पन्न होता है और जनसंख्या के लिए खाद्यान्न पोषाहार (Food nutrition) की समस्या प्रबल हो जाती है. संसाधनों पर अधिक दबाव की स्थिति में भुखमरी, महामारी, युद्ध और प्राकृतिक आपदा की स्थिति उत्पन्न होने से जनसंख्या में मृत्यु के द्वारा कमी आती है. अर्थात जनसंख्या का नियंत्रण हो जाती है और पहली अवस्था में वापस आ जाती है.

जनसंख्या नियंत्रण के इन कारणों को माल्थस ने अपने सिद्धांत में सकारात्मक उपाय कहा. उनके अनुसार इस प्रक्रिया से होने वाली जनसंख्या नियंत्रण स्थाई नहीं होगी और पुनः जनसंख्या वृद्धि की प्रवृत्तियां पूर्ववत बनी रहेगी.

जनसंख्या की इस अवस्था को प्राप्त करने से पूर्व बचाव के उपाय किए जा सकते हैं क्योंकि यह अवस्थाएं तभी उत्पन्न होती हैं जब जनसंख्या वृद्धि को स्वतंत्र रूप से छोड़ दिया जाता है.

यदि इस पर नियंत्रण के प्रभावी उपाय किए जाएं तब जनाधिक्य की स्थिति उत्पन्न नहीं होगी, जनसंख्या विस्फोट की स्थिति नहीं होगी. इसके लिए माल्थस ने निवारक उपाय बताया, जिसमें ब्रह्मचर्य का पालन, आत्म संयम, देर से विवाह और विवाह के बाद भी आत्म संयम जैसे नैतिक उपायों पर बल दिया.

उनके अनुसार यदि निवारक उपाय अपनाएं जाए तब जनसंख्या विस्फोट की स्थिति उत्पन्न नहीं होगी और सकारात्मक उपाय की आवश्यकता नहीं होगी|

इस तरह माल्थस का जनसंख्या सिद्धांत ( Malthusian theory of population growth) जनसंख्या एवं संसाधन के अंतर संबंधों की व्याख्या सामाजिक आर्थिक दृष्टिकोण से करता है और इसी कारण प्रारंभिक वर्षों में इसे व्यापक समर्थन प्राप्त हुआ. विशेषकर यूरोपीय जनसंख्या वृद्धि की प्रवृत्तियों को माल्थस के सिद्धांत के अनुरूप माना गया लेकिन शीघ्र ही विविध कारणों से इसकी आलोचना भी की जाने लगी.

माल्थस का जनसंख्या सिद्धांत का आलोचनात्मक परीक्षण

माल्थस का जनसंख्या वृद्धि का सिद्धांत क्या था?

माल्थस के सिद्धांत का मुख्य आधार संसाधन और जनसंख्या का अंतर्संबंध था जिसे समझने में माल्थस सक्षम नहीं हुए. उन्होंने माना कि संसाधन की उपलब्धता जनसंख्या वृद्धि को प्रेरित करती है लेकिन विश्व की जनसंख्या संबंधी अध्ययनों से यह तथ्य स्पष्ट होता है कि संसाधन की सकारात्मक स्थिति प्रति व्यक्ति आय का उच्च स्तर तथा उच्च जीवन स्तर जनसंख्या को हतोत्साहित करती है. वर्तमान में भी उच्च आय वर्ग में जन्म दर का स्तर कम है.

संसाधनों के अंतर्गत खाद्यान्न को ही शामिल करना संसाधन को अत्यंत संकुचित नजरिए से देखना है क्योंकि संसाधन एक वृहद अवधारणा है.

माल्थस के सिद्धांत में बताए गए निवारक उपाय नैतिक हो सकते हैं लेकिन इसे अधिक व्यावहारिक नहीं कहा जा सकता है. सकारात्मक उपाय अर्थात विविध कारणों से मृत्यु जैसी घटना विश्व में अब तक कहीं भी देखी नहीं गई और ना ही जनसंख्या विस्फोट के देशों में इस प्रक्रिया द्वारा जनसंख्या पर नियंत्रण देखा गया है. ऐसे में जनसंख्या नियंत्रण के दोनों उपायों को नकार दिया गया.

विश्व के किसी भी देश में जनसंख्या में ज्यामितीय अनुपात में और संसाधन में अंकगणितीय अनुपात में वृद्धि नहीं देखी गई और ना ही प्रत्येक 25 वर्ष में किसी देश की जनसंख्या दोगुनी हुई है. यह प्रवृत्तियां यूरोपीय देशों में भी कभी नहीं पाई गई. भारत एवं चीन जैसे विकासशील और जनसंख्या विस्फोट से प्रभावित देशों में भी यह वृद्धि नहीं हुई. ऐसे में माल्थस का सिद्धांत की जनसंख्या एवं संसाधन वृद्धि संबंधी अवधारणा को अस्वीकृत कर दिया गया.

यूरोपीय देशों में जहां के लिए यह सिद्धांत दिया गया था वहां जनसंख्या विस्फोट की स्थिति के बावजूद कृषि क्रांति, औद्योगिक क्रांति और तकनीकी क्रांति द्वारा संसाधनों की उपलब्धता में तीव्र वृद्धि हुई. ऐसे में संसाधन के अभाव तथा संबंधित सकारात्मक उपाय यूरोप में कभी भी व्यवहार में लागू नहीं हुआ. अतः माल्थस का जनसंख्या सिद्धांत उन्हीं देशों में अस्वीकृत हो गया जहां के लिए यह दिया गया था. हालाँकि समय-समय पर यह सिद्धांत नए रूप में सामने आता रहा और इसी कारण इसकी प्रासंगिकता बनी रही| इसमें नव माल्थसवाद की अवधारणा और विकास की सीमा की अवधारणा का प्रमुख योगदान है|

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नव माल्थसवाद का सिद्धांत – The New Malthus argument in hindi.

माल्थस का जनसंख्या वृद्धि का सिद्धांत क्या था?

हालांकि वैश्विक स्तर पर एक समय के बाद माल्थसवाद के सिद्धांत को अस्वीकृत कर दिया गया लेकिन समय-समय पर यह सिद्धांत नए रूप में सामने आता रहा और इसी कारण इसकी प्रासंगिकता बनी रही. इसमें नव माल्थसवाद की अवधारणा और विकास की सीमा की अवधारणा का प्रमुख योगदान है.

बीसवीं सदी के प्रारंभ में आसवर्ग ने माल्थसवाद की जनसंख्या संबंधी सिद्धांत अथवा विचारधारा को विश्व की बढ़ती हुई जनसंख्या के संदर्भ में समझाने का प्रयास किया. जिस तरह से विश्व की जनसंख्या में तीव्र वृद्धि हो रही है ऐसे में संसाधनों के ऊपर दबाव में वृद्धि से संसाधनों के अभाव की समस्या उत्पन्न हो रही है और यदि जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण नहीं किया गया तो कई क्षेत्रों से और कई प्रकार के संसाधन समाप्त हो जाएंगे. ऐसे में माल्थस द्वारा निर्धारित तीसरी अवस्था उत्पन्न हो सकती है. यह विचारधारा ही नव माल्थसवाद (The New Malthus argument) के रूप में जाना जाता है.

1970 के दशक में ऊर्जा संकट और कई विकासशील एवं अल्पविकसित देशों के आर्थिक स्थिति का कमजोर होना इस तथ्य और नव माल्थसवाद को और भी अधिक प्रमाणित करता है.

क्लब ऑफ रोम के वैज्ञानिकों ने “विकास की सीमा” नामक पुस्तक लिखी जो एक विचारधारा के रूप में स्थापित हुआ. इसमें विश्व की बढ़ती हुई जनसंख्या को एक चुनौती माना गया और समस्या के रूप में देखा गया. इसके अनुसार पृथ्वी एक अंतरिक्ष यान की तरह है जिस पर निश्चित मात्रा में रसद पानी या संसाधन उपलब्ध है और यदि इस पर आवश्यकता से अधिक लोग सवार हो जाएंगे तब यह कम समय में समाप्त हो जाएगा ऐसे में जनसंख्या पर नियंत्रण आवश्यक है.

उपरोक्त आधारों पर वर्तमान में भी जनसंख्या संबंधी विभिन्न अवधारणा के बावजूद जनसंख्या वृद्धि को आर्थिक सामाजिक विकास के समक्ष एक चुनौती के रूप में देखा जाता है. भारत चीन जैसे देशों में तीव्र आर्थिक विकास के बावजूद सामाजिक आर्थिक सूचकांक का पिछड़ा होना कहीं ना कहीं जनसंख्या की अधिकता और जनसंख्या प्रबंधन के अभाव से भी संबंधित है. यह नव माल्थसवाद की तरह है|

स्पष्ट है कि माल्थस का जनसंख्या सिद्धांत अपने मौलिक रूप में भले ही लागू ना होता हो लेकिन जनसंख्या वृद्धि संसाधनों पर दबाव डालती है इसे अस्वीकार नहीं किया जा सकता. इसी संदर्भ में क्लार्क महोदय ने कहा कि माल्थस के सिद्धांत के जितनी भी आलोचना की जाए यह उतना ही अधिक प्रमाणिक होता जाता है.

हम आशा करते है कि इस लेख ने आपको मानव भूगोल में मॉडल सिद्धांत एवं नियम के अंतर्गत माल्थस का जनसंख्या सिद्धांत और नव माल्थसवाद (The New Malthus argument) की अवधारणा को समझने में सहायता की| Malthusian theory of population growth in hindi. आपको भूगोल में द्वैदता एवं द्वैतवाद के बारे में भी पढना पंसद हो सकता है|

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माल्थस की जनसंख्या वृद्धि का सिद्धांत क्या है?

माल्थस का जनसंख्या सिद्धांत माल्थस के अनुसार, 'जनसंख्या दोगुनी रफ्तार (1, 2, 4, 8, 16, 32) से बढ़ती है, जबकि संसाधनों में सामान्य गति (1, 2, 3, 4, 5) से ही वृद्धि होती है। परिणामतः प्रत्येक 25 वर्ष बाद जनसंख्या दोगुनी हो जाती है

माल्या का जनसंख्या वृद्धि सिद्धांत क्या है?

इनके अनुसार, संसाधन की उपलब्धता जनसंख्या में वृद्धि करता है। यदि किसी भी देश में जनसंख्या नियंत्रण के प्रभावी उपाय नहीं किए जाते हैं, तो जनसंख्या में संसाधन की तुलना में अत्यंत तीव्र गति से वृद्धि होती जाती है, और ऐसे में जनसंख्या सकारात्मक उपायों के द्वारा अंततः नियंत्रित हो जाती है।

माल्थस ने जनसंख्या सिद्धांत कब प्रस्तुत किया?

थॉमस राबर्ट माल्थस (1766-1834) एक ब्रिटिश इतिहासकार एवं अर्थशास्त्री थे। इन्होने सर्वप्रथम 1798 में जनसंख्या के सिद्धांत पर एक निबंध ”प्रिंसिपल ऑफ़ पापुलेशन ”(Principle of Population) प्रकाशित किया

माल्थस के जनसंख्या के नियंत्रण के कितने उपाय बताएं?

यदि इस पर नियंत्रण के प्रभावी उपाय किए जाएं तब जनाधिक्य की स्थिति उत्पन्न नहीं होगी, जनसंख्या विस्फोट की स्थिति नहीं होगी. इसके लिए माल्थस ने निवारक उपाय बताया, जिसमें ब्रह्मचर्य का पालन, आत्म संयम, देर से विवाह और विवाह के बाद भी आत्म संयम जैसे नैतिक उपायों पर बल दिया.