अध्याय : 2. भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्राकयह वह स्थिति है जिसमें श्रमिक आवश्यकता से अधिक कार्य कर रहे है। Show Download Old Sample Papers For Class X & XII उत्तर. जब कोई शारीरिक व मानसिक रुप से स्वस्थ व्यक्ति कार्य करने को इच्छुक हो लेकिन उसे काम न मिले तो इसे खुली या प्रच्छन्न बेरोजगारी कहते हैं। प्रच्छन बेरोजगारी मौसमी बेरोजगारी 1.जब श्रमिक काम तो कर रहा होता है लेकिन उसकी क्षमता का पूरा उपयोग नहीं होता। 1. ये बेरोजगारी कृषि क्षेत्र में पायी जाती है। कृषि कार्य समाप्त होते ही लोग बेरोजगार हो जाते 2. इसे आंशिंक या अल्प बेरोजगारी भी कहते हैं 2. इसमें वर्ष के निश्चित समय पर बेरोजगार होते हैं। 3. इस बेरोजगारी में किसी विशेष आर्थिक क्रिया में उत्पादन हेतु आवश्यकता से अधिक मात्रा में श्रमिकों के लगे होने से है। 3. ये बेरोजगारी उन उद्योगों में कार्यरत् है जो पूरे वर्ष सामान्य वस्तुओं या सेवाओं का उत्पादन नहीं करते हैं। इसके अन्तर्गत श्रमिक काम करता है परन्तु यदि उसे इस काम से हटा दिया जाए तो उत्पादन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है अर्थात् कोई कमी नहीं आती है।, खुली बेरोजगारी और प्रच्छन्नं बेरोजगारी के बीच विभेद कीजिए।खुली बेरोजगारी उस स्थिति को संदर्भित करती है जब लोगों को अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए किसी भी तरह का काम नहीं मिलता है और वे पूरी तरह से निष्क्रिय रहते हैं। प्रच्छन्न बेरोजगारी-प्रच्छन्न बेरोजगारी उस स्थिति को संदर्भित करती है जब लोग स्पष्ट रूप से काम कर रहे होते हैं लेकिन उन सभी को पूरे दिन अपनी क्षमता से कम काम करने और थोड़ा कमाने के लिए मजबूर किया जाता है। बेरोज़गारी (Unemployment) या बेकारी किसी काम करने के लिए योग्य व उपलब्ध व्यक्ति की वह अवस्था होती है जिसमें उसकी न तो किसी कम्पनी या संस्थान के साथ और न ही अपने ही किसी व्यवसाय में नियुक्ति होती है। किसी देश, राज्य या अन्य क्षेत्र में पूरे श्रम करने वाले लोगों की आबादी में बेरोज़गारों का प्रतिशत उस स्थान का बेरोज़गारी दर (unemployment rate) कहलाता है। अगर वह लोग जो बालक, वृद्ध, रोगी या अन्य किसी अवस्था के कारण अनियोज्य (unemployable)- यानि रोज़गार के लिए अयोग्य - हों काम न करें तो उन्हें बेरोज़गार की श्रेणी में नहीं गिना जाता है और न ही उनकों बेरोज़गारी दर में सम्मिलित करा जाता है।[1][2][3] बेरोज़गारी का अस्तित्व श्रम की माँग और उसकी आपूर्ति के बीच स्थिर अनुपात पर निर्भर करता है। बेरोज़गारी के दो भेद हैं - असंतुलनात्मक (फ्रिक्शनल) तथा ऐच्छिक (वालंटरी)। ऐच्छिक बेरोजगारी का प्रभाव उस समय होता है जब मजदूर अपनी वास्तविक मजदूरी में कटौती को स्वीकार नहीं करता। समग्रत: बेरोजगारी श्रम की माँग और पूर्ति के बीच असंतुलित स्थिति का प्रतिफल है। प्रोफेसर जे. एम. कीन्स "अनैच्छिक बेरोजगारी" को भी बेरोजगारी का भेद मानते हैं। "अनैच्छिक बेरोजगारी" की परिभाषा करते हुए उन्होंने लिखा है - 'जब कोई व्यक्ति प्रचलित वास्तविक मजदूरी से कम वास्तविक मजदूरी पर कार्य करने के लिए तैयार हो जाता है, चाहे वह कम नकद मजदूरी स्वीकार करने के लिए तैयार न हो, तब इस अवस्था को अनैच्छिक बेरोजगारी कहते हैं।' यदि कोई व्यक्ति किसी उत्पादक व्यवसाय में कार्य करता है तो इसका यह अर्थ नहीं है कि वह बेकार नहीं है। ऐसे व्यक्तियों को पूर्णरूपेण रोजगार में लगा हुआ नहीं माना जाता जो आंशिक रूप से ही कार्य में लगे हैं अथवा उच्च कार्य की क्षमता रखते हुए भी निम्न प्रकार के लाभकारी व्यवसायों में कार्य करते हैं। बेकारी के निदान के प्रयास[संपादित करें]जापान में बेरोजगारी (१९५३ से २००९ तक) सन् 1919 ई. में अंतरराष्ट्रीय श्रमसम्मेलन के वाशिंगटन अधिवेशन ने बेरोजगारी अभिसमय (Unemployment convention) संबंधी एक प्रस्ताव स्वीकार किया था जिसमें कहा गया था कि केंद्रीय सत्ता के नियंत्रण में प्रत्येक देश में सरकारी कामदिलाऊ अभिकरण स्थापित किए जाए। सन् 1931 ई. में भारत राजकीय श्रम के आयोग (Royal Commission on Labour) ने बेरोजगारी की समस्या पर विचार किया और निष्कर्ष रूप में कहा कि बेरोजगारी की समस्या विकट रूप धारण कर चुकी है। यद्यपि भारत ने अंतर्राष्ट्रीय श्रमसंघ का "बेरोजगारी संबंधी" समझौता सन् 1921 ई. में स्वीकार कर लिया था परंतु इसके कार्यान्वयन में उसे दो दशक से भी अधिक का समय लग गया। सन् 1935 के गवर्नमेंट ऑफ इंडिया ऐक्ट में बेरोजगारी (बेरोजगारी) प्रांतीय विषय के रूप में ग्रहण की गई। परंतु द्वितीय महायुद्ध समाप्त होने के बाद युद्धरत तथा फैक्टरियों में काम करनेवाले कामगारों को फिर से काम पर लगाने की समस्या उठ खड़ी हुई। 1942-1944 में देश के विभिन्न भागों में कामदिलाऊ कार्यालय खोले गए परंतु कामदिलाऊ कार्यालयों की व्यवस्था के बारे में केंद्रीकरण तथा समन्वय का अनुभव किया गया। अत: एक पुनर्वास तथा नियोजन निदेशालय (Directorate of Resettlement and Employment) की स्थापना की गई है। हम ये रोक सकते हैं।
जैसे कि किसी काम के लिए दस लोगों की अवश्यकता है परन्तु उससे ज्यादा होते हैं ऐसे अवसर में यह होता है |जेसे एक खेत में 10 लोग काम पूरा कर सकते हैं लेकिन उस खेत में उसी काम को 15 लोग कर रहे है तो वे 5 लोग फालतू मे ही काम पर लगे हुए है ्तू खुली बेरोजगारी से आप क्या समझते हैं?खुली बेरोजगारी : उस स्थिति को कह्ते है जिसमे यद्यपि श्रमिक काम करने के लिये उत्सुक है और उसमें काम करने की आवश्यक योग्यता भी है तथापि उसे काम प्राप्त नही होता। वह पूरा समय बेकार रहता है। वह पूरी तरह से परिवार के कमाने वाले सदस्यों पर आश्रित होता है।
खुली बेरोजगारी व प्रच्छन्न बेरोजगारी में क्या अंतर है?खुली बेरोज़गारी एक ऐसी स्थिति है जिसमें एक व्यक्ति वर्तमान मजदूरी पर काम तो करना चाहता हैं परंतु उसे काम नहीं मिलता लेकिन प्रच्छन्न बेरोज़गारी एक ऐसी स्थिति थी जिसमें जितने व्यक्ति चाहिए उसके अधिक व्यक्ति काम पर लगे हुए हैं।
बेरोजगारी कितने प्रकार के होते हैं?बेरोज़गारी दो प्रकार की होती है । आंशिक बेरोज़गारी वह बेरोज़गारी है जिसमें वे व्यक्ति आते है जो पढें- लिखे है लेकिन उन्हें रोजगार नही मिल पा रहा है । पूर्ण समय बेरोज़गारी वह बेरोज़गारी है शुरू से ही बेरोज़गार हैं ।
छिपी बेरोजगारी से क्या आशा है?छिपी अथवा प्रच्छन्न बेरोजगारी का अर्थ है- किसी कार्य में आवश्यकता से अधिक व्यक्तियों का संलग्न होना। अर्थात्, यदि उस कार्य से कुछ व्यक्तियों को हटा दिया जाए तो भी कुल उत्पादकता पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।
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