क्या ईरान कभी भारत का हिस्सा था? - kya eeraan kabhee bhaarat ka hissa tha?

यह फोटो ईरान के चाबहार पोर्ट की है। भारत और ईरान के बीच इस बंदरगाह को तैयार करने के लिए 2018 में समझौता हुआ था।-फाइल फोटो

  • ईरान ने कहा- भारत के साथ चाबहार पोर्ट तैयार करने के लिए सिर्फ दो समझौते हुए हैं, इनमें रेल प्रोजेक्ट शामिल नहीं है
  • ईरान और भारत ने 2018 में चाबहार बंदरगाह तैयार करने का समझौता किया था। यह बंदरगाह सीधा ओमान की खाड़ी से जुड़ता है। यह पोर्ट भारत और अफगानिस्तान को व्यापार के लिए वैकल्पिक रास्ता मुहैया कराता है। अमेरिका ने भारत को इस बंदरगाह के लिए हुए समझौतों को लेकर कुछ खास प्रतिबंधों में छूट दी है। इसे ग्वादर (पाक) की तुलना में भारत के रणनीतिक पोर्ट के तौर पर देखा जा रहा है। ग्वादर को बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट के तहत चीन विकसित कर रहा है।

    ईरान 1947 में एक स्वतंत्र संप्रभु राष्‍ट्र के रूप में पाकिस्तान को मान्‍यता देने वाले पहले राष्‍ट्रों में एक था। हालांकि, समय बीतने के साथ, और खास तौर से 1979 में ईरान में इस्लामी क्रांति के बाद, दोनों राष्‍ट्रों के बीच संबंधों में महत्वपूर्ण तनाव आया है। नए राजनेताओं के आगमन से पश्चिम एशिया में आए संकट को देखते हुए, पाकिस्तान और ईरान के बीच तनाव क्षेत्र की शांति और सुरक्षा के लिए खतरा पैदा कर सकता है।

     

    क्या ईरान कभी भारत का हिस्सा था? - kya eeraan kabhee bhaarat ka hissa tha?

    संबंधों का संक्षिप्‍त इतिहास

    आरंभ में पाकिस्तान और ईरान के बीच संबंध, आपसी समझ और भाईचारे पर आधारित था। भौगोलिक रूप से एक-दूसरे से जुड़े (लगभग 990 कि.मी. की साझी सीमा), पाकिस्‍तान और ईरान की सीमावर्ती क्षेत्रों में साझी मजबूत ऐतिहासिक, सामाजिक-आर्थिक, जातीय और सांस्कृतिक समानताएं हैं। मई 1949 में, प्रधानमंत्री लियाकत अली खान ने ईरान की अपनी पहली राजकीय यात्रा की, जबकि ईरान के शाह मार्च 1950 में पाकिस्तान की यात्रा करने वाले पहले विदेशीराष्‍ट्राध्‍यक्ष बने।ईरान ने मई 1950 में पाकिस्तान के साथ मैत्री संधि पर भी हस्ताक्षर किए। ईरान और पाकिस्तान 1955 में बगदाद संधि के सदस्य बने, जिसे बाद में केंद्रीय संधि संगठन (CENTO) के नाम से जाना गया। दोनों राष्‍ट्र 1964 में एक क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (RCD) नामक एक सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक संगठन बनाने के लिए तुर्की के साथ भी शामिल हुए। बाद में, 1985 में आरसीडी को ईसीओ (आर्थिक सहयोग संगठन) में परिवर्तित करके क्षेत्रीय एकीकरण को और मजबूत किया गया। यह कदम लंबे समय से चले आ रहे संबंधों को संस्थागत बनाने के लिए उठाया गया।ईसीओ के तहत कई द्विपक्षीय व्यापार समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए जो बीते वर्षों में इन दोनों देशों के बीच व्यापार की मात्रा बढ़ा सकते थे। हालांकि, लक्षित प्रगति कभी हासिल नहीं हुई और अलग-अलग राजनीतिक और आर्थिक मतभेदों के कारण हाशिए पर रही। ईरान ने कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान की स्थिति का खुलकर समर्थन किया। इसने 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान पाकिस्‍तान को बमवर्षक विमानों (90 एफ-86 मेक6 सेबरजेट विमान) सहित मानवीय सहायता भेजी।1971 की लड़ाई के दौरान भी, पाकिस्तान को ईरान से पूर्ण सैन्य और राजनयिक समर्थन मिला। यह भी बताया गया है कि 1971 के युद्ध के बाद बलूच विद्रोह को दबाने में पाकिस्तान को भौतिक रूप से समर्थन किया गया। ईरानी परमाणु कार्यक्रम विकसित करने में पाकिस्तानी परमाणु वैज्ञानिकों द्वारा प्रदान किया गया समर्थन भी अच्छी तरह से प्रलेखित है।2

    तब भी, 1979 में ईरान में इस्लामी क्रांति के बाद संबंध तनावपूर्ण होने लगे। पाकिस्तानी निर्णयकर्ताओं ने ईरान को दुश्मन बनाने से खुद को रोका, जबकि यह सोवियत हस्तक्षेप के तहत अफगानिस्तान के लिए जिहादियों को प्रशिक्षण देने के लिए अमेरिका के साथ ही सऊदी अरब पर बेहद निर्भर रहा। सोवियत आक्रमण के दौरान, पाकिस्तान ने सुन्नी-पश्तून समूहों का समर्थन किया, जबकि ईरान ने शिया-ताजिक गुटों का समर्थन किया। जनरल जियाउल-हक के सैन्य शासन ने भी धार्मिक अतिवाद के उदय को देखा, जिससे पाकिस्तान में शिया और सुन्नियों के बीच दरार पैदा हुई। लाहौर में ईरानी राजनयिक श्री सादिक गंजी की हाई प्रोफाइल हत्या और 1990 के दशक की शुरुआत में पाकिस्तान आने वाले ईरानी वायु सेना के कैडेटों की निर्मम हत्या ने ईरान और पाकिस्तान के बीच समझ की खाई को और चौड़ा कर दिया।3

    पश्चिम एशिया में पनपने वाले संकट के इतिहास और प्रकृति पर ईरान की सुरक्षा की धारणा विकसित हुई है। इससे महसूस होने वाला खतरा पड़ोसी राष्‍ट्रों और महाशक्तियों से उत्पन्न होता है। इसने अपनी क्षेत्रीय अखंडता और पहचान की रक्षा के लिए जिस तरीके से अपनी विदेश नीति को ढाला और फिर से ढाला है, उस पर इसका प्रभाव पड़ा है। जबकि, पाकिस्तान की सुरक्षा धारणा स्‍वयं उसकी बनाई हुई पाक-अफगान नीति के साथ ही पिछले सात दशकों से भारत के साथ पोषित शत्रुता से बढ़ी। गैर-अरब राष्‍ट्र होने के नाते, इसे अपने भौगोलिक क्षेत्र की रक्षा करते हुए, अपनी इस्लामी पहचान को आगे बढ़ाना पड़ा। पाकिस्तान तालिबान का समर्थन करता रहा है और अब भी कर रहा है। दूसरी ओर, ईरान अहमद शाह मसूद के नेतृत्व में उत्तरी गठबंधन का समर्थन कर रहा था। अब यह तालिबान के सत्ता से बाहर होने के बाद राष्‍ट्रपति गनी और पूर्व राष्‍ट्रपति करजई के नेतृत्व वाली अफगानिस्तान सरकार का समर्थक है। 

    ईरान और पाकिस्तान के बीच एक और बड़ी अड़चन ईरान का सिस्तान और बलूचिस्तान प्रांत और पाकिस्तान में बलूचिस्तान प्रांत रहा है। दोनों राष्‍ट्रों द्वारा अपने-अपने प्रांतों में अस्थिरता, हिंसा और कुप्रशासन के विचित्र इतिहास पर ध्यान दिए बिना, कहा जा सकता है कि ईरानी प्रशासन के खिलाफ लड़ रहे कुछ आतंकवादी समूहों, जैसे जुंदुल्लाह, जैश-उल-अदल और हरकत अंसारी ईरान, ने पाकिस्तान के अस्थिर बलूचिस्तान प्रांत में शरण ली है। 2014 में, ईरान ने चेतावनी दी कि वह जैश-उल-अदल द्वारा अपहृत पांच ईरानी सीमा रक्षकों को वापस पाने के लिए पाकिस्तान में सेना भेजेगा। पाकिस्तान ने कहा था कि ऐसी कार्रवाई अंतर्राष्‍ट्रीय कानून का उल्लंघन होगी और उसने ईरानी सेनाओं को सीमा पार नहीं करने की चेतावनी दी। एक स्थानीय मौलवी द्वारा आकर स्थिति को हल करने पर ईरान ने सेना भेजने से परहेज किया। चार रक्षक कुछ महीने बाद रिहा कर दिए गए, लेकिन आतंकवादियों ने एक को मार दिया।4               

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    मौजूदा गलतफहमियां और चुनौतियां

    दोनों राष्‍ट्रों के बीच संबंधों में वर्तमान चुनौतियां: ईरान और राष्‍ट्रपति ट्रम्प की यात्रा से उत्‍साहित ‘सऊदी सैन्‍य गठबंधन’ के बीच खुल्लमखुला अस्थिरता, पाकिस्‍तान की सऊदी गठबंधन (खास तौर पर आतंकवाद से लड़ने के लिए जनरल राहील शरीफ की अध्‍यक्षता में इस्‍लामिक सैन्‍य गठबंधन (IMAFT)) की सदस्‍यता, अफगानिस्तान में अस्थिरता और तालिबान का उदय, बलूचिस्तान विद्रोह और ईरान-पाकिस्तान सीमा विवाद पर होने की संभावना है।

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    रियाद शिखर सम्मेलन में अपने भाषण के दौरान राष्‍ट्रपति ट्रम्प ने स्पष्‍ट रूप से कहा कि “ईरान सीरिया, यमन और इराक के युद्धों में सशस्त्र समूहों को प्रशिक्षण देने के लिए जिम्मेदार था… जब तक ईरानी शासन शांति में साझेदार बनने के लिए तैयार नहीं है, विवेकी देशों को एक साथ मिलकर इसे अलग-थलग करना चाहिए... और उस दिन के लिए प्रार्थना करें जब ईरानी लोगों को न्यायपूर्ण और उचित सरकार हो, जिसके लिए वे सचमुच हकदार हैं।"5 सऊदी अरब के नए युवराज और संभवत: अगले शाह, प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान, ईरान पर अमेरिकी राष्‍ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के विचार से सहमत हैं।6अंतर्राष्‍ट्रीय शिखर सम्मेलन में राष्‍ट्रों द्वारा ऐसे प्रत्यक्ष रूप से लक्षित किए से पाकिस्तानी निर्णय निर्माताओं को परेशानी हुई, क्योंकि उन्होंने आज तक इस मुद्दे पर तटस्थ रुख बनाए रखने की कोशिश की है। सऊदी और अमेरिकी नेताओं ने स्पष्‍ट रूप से कहा कि आईएमएएफटी का मुख्य लक्ष्‍य क्षेत्र में ईरानी हितों का मुकाबला करना होगा। प्रधानमंत्री शरीफ को पाकिस्तानी नेशनल असेंबली में स्पष्‍ट करना पड़ा कि जनरल शरीफ निजी तौर पर7 पर आईएमएएफटी का नेतृत्व कर रहे थे, पाकिस्तान का प्रतिनिधित्व नहीं। उल्‍लेखनीय है कि पाकिस्तानी रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने पहले कहा था कि पाकिस्तान जनरल शरीफ को पदभार संभालने के लिए अनापत्ति प्रमाणपत्र (NOC)जारी करने पर सहमत हो गया है।8

    खाड़ी देशों (सऊदी अरब, संयुक्‍त अरब अमीरात, बहरीन और मिस्र के नेतृत्व में)"द्वारा “क्षेत्र में अस्थिरता पैदा करने के उद्देश्य से आतंकवादी और सांप्रदायिक समूहों की भीड़ को शरण देने के लिए"कतर पर नाकाबंदी, ईरान के साथ इसके संपर्क और यमन में ईरान समर्थित हौथी विद्रोही, पाकिस्तान के लिए एक और चुनौती बन गए हैं। सऊदी अरब के शाह अल सऊद द्वारा 12 जून को जेद्दा में मुलाकात के बाद प्रधानमंत्री शरीफ को या तो सऊदी गठबंधन या कतर के साथ मिलने का अल्‍टीमेटम देने के बाद भी, पाकिस्‍तान ने तटस्थता के कठिन रास्ते पर बने रहने का विकल्प चुना। प्रधानमंत्री शरीफ ने जारी संकट को टालने के लिए दोनों गुटों के बीच मध्यस्थता करने का विकल्प चुना। प्रधानमंत्री शरीफ के विदेश मामलों के सलाहकार सरताज अजीज द्वारा दिए गए बयानों के अनुसार, यमन संकट के दौरान पाकिस्तान 2015 में नेशनल असेंबली द्वारा लिए गए प्रस्ताव का पालन करेगा जिसमें कहा गया था कि पाकिस्तान को संघर्ष में तटस्थता बनाए रखनी चाहिए ताकि वह संकट को समाप्‍त करने के लिए स्‍वप्रेरित कूटनीतिक भूमिका निभाने में सक्षम हो सके”।9

    मौजूदा उलझनपाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत से उत्‍पन्‍न ईरान को लक्षित करने वाली आतंकवादी गतिविधि है। सुन्नी आतंकवादी समूहजैश-उल-अदल,ने अप्रैल 2017 में सीमा पार के हमले में 10 ईरानी सीमा गार्डों को मार डाला। अतीत में इसने, ईरानी सेना से संघर्ष किया, ईरान में नागरिकों और अर्धसैनिक बल कर्मियों को मार डाला और फरवरी 2014 में पांच ईरानी गार्डों केअपहरण में भी शामिल रहा। समूह ने अप्रैल 2015 में आठ ईरानी गार्डों की हत्या और अक्टूबर 2013 में 14 गार्डों पर हमले की जिम्मेदारी भी ली। हाल में हुई हत्या ने ईरानी सेना के प्रमुख मेजर जनरल मोहम्मद बकेरी को पाकिस्‍तान को य‍ह चेतावनी देने पर मजबूर किया कि यदि वह उन आतंकवादियों को सजा नहीं देताजिन्होंने 10 ईरानी सीमा गार्डों को लंबी दूरी की बंदूकों से पाकिस्‍तान के अंदर से गोली मारी थी, तो ईरान पाकिस्तान के अंदर सुरक्षित आतंकी ठिकानों पर हमला करने से नहीं हिचकेगा।10 ईरानी विदेश मंत्री जवाद जरीफ ने ईरानी सीमा गार्डों पर हमले में शामिल आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई करने और भविष्य में ऐसे हमले रोकने के लिए आवश्यक उपाय अपनाने के लिए पाकिस्‍तानी अधिकारियों पर दबाव बनाने के लिए4 मई को इस्‍लामाबाद की यात्रा की। श्री जवाद ज़रीफ़ ने प्रधानमंत्री शरीफ, आंतरिक मंत्री निसार अली खान, थल सेनाध्यक्ष जनरल क़मर जावेद बाजवा और राष्‍ट्रीय सुरक्षा सलाहकार लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) नासिर जंजुआ के साथ बैठकें कीं। इन बैठकों के दौरान, ईरानी विदेश मंत्री को आश्‍वासन दिया गया कि पाकिस्तान ईरान के साथ अपनी सीमा पर अतिरिक्‍त सैनिकों की तैनाती सहित, सीमा पार से होने वाले हमले रोकने के लिए, कदम उठाएगा। दोनों पक्षों ने बेहतर समन्वय, अधिकखुफिया साझाकरण और राजनीतिक, सैन्य और सुरक्षा स्तरों पर लगातार संवाद सुनिश्चित करने पर सहमति व्यक्‍त की।11

    मौजूदा ईरान पाकिस्‍तान सीमा चेक पोस्‍ट12

    ईरान और पाकिस्तान के दो आधार सीमा चेक पॉइंट, एक मिर्ज़ावेह(ईरान)-ताफ्तान(पाकिस्तान) क्षेत्र में और दूसरा पिशिन(ईरान)-मंड(पाकिस्तान) क्षेत्र में है। ताफ्तान सीमा चेक पोस्‍ट का विनियमन दोनों ओर से किया जाता है। पाकिस्तान ने 2016 में पोस्‍ट पर एक 'पाकिस्तान गेट' का निर्माण किया। पिशिन मंड सीमा क्षेत्र में सीमा चौकी के विनियमन और निर्माण के साथ ही रिमदान (ईरान) क्षेत्र में एक और सीमा चौकी बनाए जाने का प्रस्ताव था, जो पाकिस्‍तान में मकरान तटीय राजमार्ग के करीब है। इस क्षेत्र में अभी भी सड़क संपर्क नहीं है। सितंबर 2017 में ग्वादर में आयोजित होने वाले ईरान पाकिस्तान सीमा आयोग के 21वें सत्र में दो नए चेक पोस्टों के बारे में अपेक्षित चर्चा होनी है।13 3

    ध्यान देने योग्‍य है कि, ईरानी विदेश मंत्री ज़रीफ़ की यात्रा के बाद, पंजगुर सीमा इलाके के पास सीमाओं पर दोनों ओर से रुक-रुककर सीमा पार की गोलाबारी (खास तौर पर ईरानी गार्डों की हाल ही में हत्या के बदले में) हुई है।1421 जून को, पाकिस्तानी वायु सेना के लड़ाकू विमान (जेएफ-17 थंडर) ने बलूचिस्तान के उसी पंजगुर इलाके में एक ईरानी अचिन्हित जासूस ड्रोन को मार गिराया, जिसके पाकिस्तान के इलाके में 3-4 किलोमीटर अंदर होने का आरोप था। पाकिस्तान विदेश मंत्रालय ने ड्रोन के बारे में ईरान को सूचित किया।15पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने स्पष्‍ट रूप से कहा कि ड्रोन हमले पाकिस्तानी संप्रभुता का उल्लंघन हैं और इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।16

    पाकिस्तान और ईरान ने मौजूदा गलतफहमियों और चुनौतियों की पार्श्‍वरेखा में आर्थिक संबंध बनाने की कोशिश की है। पाकिस्तान ईरान का आठवां सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। ईरान को पाकिस्तान के प्रमुख निर्यातों में चावल, मांस, कागज, वस्त्र और फल शामिल हैं। ईरान से पाकिस्तान के प्रमुख वस्तुओं के आयात में कार्बनिक रसायन, प्लास्टिक, खनिज, तेल, लोहा और इस्‍पात शामिल हैं।17 नेशनल असेंबली की विदेश मामलों की समिति के अध्यक्ष अवैस लेगारीजिन्होंने जनवरी 2017 में ईरान की यात्रा की, के अनुरोध परईरान ने पाकिस्‍तान से किन्नो (पंजाब इलाके में बड़े पैमाने पर उगाए जाने वाले एक खट्टे फल) के आयात पर लगा छह साल से लगा प्रतिबंध दो महीने के लिए हटाया।18दोनों देशों ने 2004 में एक अधिमान व्यापार समझौते पर, इसे मुक्‍त व्यापार समझौते में बदलने की उम्मीद से हस्ताक्षर किए हैं।19पाकिस्तान और ईरान ने 2021 तक दोनों देशों के बीच वार्षिक व्यापार की मात्रा बढ़ाकर 5 बिलियन डॉलर करने का लक्ष्य रखा, जिसकी घोषणा प्रधानमंत्री शरीफ ने 2016 में ईरानी राष्‍ट्रपति हसन रूहानी की इस्लामाबाद यात्रा के दौरान की। पाकिस्तान और ईरान के बीच व्यापार 2008-09 में 1.32 बिलियन डॉलर से घटकर 2010-11 में 432 मिलियन डॉलर रह गया।20वित्तीय वर्ष 2013 में ईरान को पाकिस्तान का निर्यात 69 मिलियन अमेरिकी डॉलर था जबकि शेष दुनिया से ईरान का आयात 54 बिलियन अमेरिकी डॉलर था जिसमें पाकिस्‍तान का हिस्‍सा कुल आयात का 0.2% रहा। इसके अलावा, पाक-ईरान व्यापार में वित्त वर्ष-2012 से वित्त वर्ष-2013तक करीब 26% की गंभीर गिरावट आई।21का सामना करना पड़ा। 2015-16 में पाकिस्तान का निर्यात 318 मिलियन डॉलर रहा।22हालांकि, विश्‍वास की बढ़ती कमी के चलते, ऐसे संबंध कोई लाभ उठाने में सक्षम नहीं रहे हैं। पश्चिमी प्रतिबंध जिनका ईरान-पाकिस्तान आर्थिक संबंधों पर हानिकारक प्रभाव पड़ा, हटा दिए जाने के बाद भी; दोनों राष्‍ट्रों के बीच व्यापार की मात्रा में बहुत सुधार नहीं हुआ, हालांकि संभावना कायम है। यही हाल पाइपलाइनों और गलियारों का हुआ जो दोनों राष्‍ट्रों के बीच संबंध बढ़ाने के लिए परिकल्पित किए गए थे, वे या तो छोड़ दिए गए या निष्क्रिय बने हुए हैं। ईरान पाकिस्तान गैस पाइपलाइन ऐसी ही एक परियोजना है जो असाधारण देरी और गलतफहमी के चलते अधूरी रह गई है। पाकिस्तानी हिस्सा (कुल 1,931 किलोमीटर लंबाई में, 1,150 किलोमीटर हिस्सा ईरान में और 781 किलोमीटर पाकिस्तान में है) अधूरा रह गया है क्योंकि यह बताया गया कि अंतर्राष्‍ट्रीय प्रतिबंधों ने इसके कार्यान्वयन को बाधित किया।

    यदि मौजूदा हालात पर पाकिस्तानी निर्णय निर्माताओं द्वारा कूटनीतिक रूप से नियंत्रण नहीं किया जाता, तो मौजूदा गलतफहमी उनके लिए बहुत चुनौतीपूर्ण हो सकती है। बलूचिस्तान विद्रोह पहले ही अस्थिर सीमा क्षेत्र में हिंसा को बढ़ा सकता है जो एक छोटे या बड़े सीमा संघर्ष में तब्‍दील होकर मौजूदा यथास्थिति को जटिल बना सकता है। पाकिस्तान में जातीयता, भाषा, धार्मिक संप्रदायवाद और आर्थिक असमानताओं के आधार पर गहरी दरारों से व्यापक रुकावटें पैदा होंगी और घरेलू राजनीतिक प्रणाली के निष्‍पादन के साथ ही इसकी बाहरी नीतियों के अनुपालन को बाधित करेंगी। अफगानिस्तान में शांति प्रक्रिया को कमजोर करना, बढ़ता धार्मिक हिंसक अतिवाद और पाकिस्तान, अफगानिस्तान और ईरान के बीच सीमाओं की प्रकृति भविष्य के लिए एक चुनौती बनी रहेगी। ईरान और पाकिस्तान की चिंताओं और हितों का नए क्षेत्रीय और अंतर्राष्‍ट्रीय माहौल से गहरा संबंध है। नई समस्याओं के साथ ही नए अवसर मिलनसारिता के विभिन्न नए चरणों में अपने संबंधों की शुरूआत करेंगे, या अपने द्विपक्षीय और बहुपक्षीय संबंधों को प्रभावित करते हुए चुनौतियों का सामना करेंगे। यह अब दोनों देशों पर निर्भर करता है कि वे दोनों पक्षों की बेहतरी और समृद्धि के लिए कौन सा रास्ता खोज निकालते हैं।

    ईरान भारत से कब अलग हुआ था?

    1934- आज ही के दिन पहलवी राजा ने फारस का नाम ईरान घोषित कर दिया था। साल 550 से फारस पर राजा कुरोश का राज था। कुरोश ने अपना शासन मिस्र, अफगानिस्तान और बुखारा से फारस की खाड़ी तक फैलाया।

    ईरान पहले कौन सा देश था?

    ईरान का प्राचीन नाम फ़ारस था

    ईरान में इस्लाम से पहले कौन सा धर्म था?

    इस्लाम से पहले ईरान पारसी धर्म का केंद्र था. पैग़म्बर ज़रथुष्ट्र ईरान में ही हुए थे. पारसी धर्म के दौर और उससे पहले भी ईरान ने इंसानी सभ्यता के विकास में बहुत अहम रोल निभाया है.

    ईरान मुस्लिम देश कैसे बना?

    सातवीं सदी में ईरान में इस्लाम आया। इससे पहले ईरान में जरदोश्त के धर्म के अनुयायी रहते थे। ईरान शिया इस्लाम का केन्द्र माना जाता है। कुछ लोगों ने इस्लाम कबूल करने से मना कर दिया तो उन्हें यातनाएँ दी गई।