हेलो फ्रेंड्स आप और हम एक प्रश्न दिया हुआ लिखिए प्रश्न महाराज प्रकार से कौन सा पादप वर्ग जड़ तना पत्ती में विभाजित होता है इसके लिए राज्य में चारों ऑप्शन दिए गए हैं पहला ऑप्शन हमारे पास है थैलोफाइटा ब्रायोफाइटा टेरिडोफाइटा चौथा में दिया हुआ क्रांति के प्रश्न का उत्तर कौन सा होगा हम बात करें पादप वर्गिकी वर्ग जो है हमारे प्लांट इस को हम क्या कहेंगे पादप और कौन क्या कह सकते हैं जिसे हम बोलेंगे प्लांटी प्लांटी कि हमारा क्या है हमारा किंगडम है या जगत है इसमें सभी पादप पर स्टार्ट हो गए हैं मतलब कहने का यह है कि इसमें सारे पादप आपको मिलेगी नंबर वन से लेकर उच्च वर्ग तक के संपादक वर्ग जो है वह हमारा कैसे डिवाइड है सबसे पहले में क्या पाए जाते हैं सहवाग फिर क्या पाए जाते हैं चावल के बाद आते हमारे ब्रायोफाइटा ब्रायोफाइटा फिर आते हैं क्या टेरिडोफाइटा Show
क्या आते हैं टेरिडोफाइटा और फिर आते हैं हमारे जिम्नोस्पर्म जाते हैं जिम्नोस्पर्म और फिर आते हमारे एंजियोस्पर्म जो कि आज के सक्सेस लैंड प्लांट है क्या है एनजीओ इस पर जो कि हमारे सबसे विकसित पौधे हैं और आज जो सबसे ज्यादा पाए जाते हैं एनजीओ इस पर अब देख लेते हैं जो हमारे सवाल हैं इनकी संरचना कैसे होती है इनमें जो बॉडी होती है वह जड़ तना पत्ती में विभाजित नहीं होती है दूसरा मारा आता है ब्रायोफाइटा तो ब्रायोफाइटा में बॉडी देखिए जड़ तना पत्ती में आंखें डिवीजन तो स्टार्ट हो जाता है जड़ तना पत्ती में डिवीजन यहां से स्टार्ट हो गया है लेकिन एक बात या समझने की कोशिश करिए कि ब्रायोफाइटा में डिवीजन स्टार्ट हो गया है फिर से हम बोलें लेकिन इनमें ट्रू कहने का मतलब है सत्य जो तना जड़ पत्ती है यह क्यों नहीं होते हैं यह कैसे नहीं होते हैं सब से नहीं होते हैं तीनों ही चीज है कैसे पाई जाती हैं जड़ की जगह पर आए जॉइन होंगे क्या राय जॉइन होंगे ठीक हैं उन में कितने बाइट होते हैं सीता कैप्सूल होता है क्या-क्या होता है सीता और कैप्सूल क्या होता है 4G टावर कैप्सूल में डिवाइड होते तो इस तरह से इनका डिवीजन होता है कैप्सूल दवाई बताएं स्वामी के सत्संग में जड़ तना पत्ती / तो है लेकिन सत्य नहीं है हमारे प्रश्न यही पूछा जाएगा इसके ऐसा कौन सा वर्ग है जिसमें जड़ तना पत्ती में विभाजित होता है तो हम यह लगा सकते हैं कि ब्रायोफाइटा है स्टार्टिंग से हुआ लेकिन अगर प्रश्न में गाय ध्यान से सुनिए गा अगर जरा सा भी कह देता कि जिन सत्य जड़ तना पत्ती विकसित हो जाते हैं तो वह जाएगा हमारा क्या टेरिडोफाइटा अब हम इनकी बात करें ट्रेन में क्या होता है इनमें होता हमारा सत्या टू जड़ तना पत्ती पाए जाते हैं यह कैसे फर्स्ट सक्सेसफुल एंड प्लांट देखिए क्या फायदा ऐसे समझ सकते जैसे हमारे प्लांट कहां पर होते हैं मार्लेश्वर मतलब जो समुद्र के किनारे केला के पानी के पास ही होते हैं ठीक है तो यह तरह से देखेगा एमबीबीएस प्लांट किंगडम के वरीय टेरिडोफाइटा है यह सक्सेसफुल एंड प्लांट है या राम से स्थल पर उतरे ना पानी की कोई जरूरत नहीं होती ना आसपास सेन के पानी होता है ठीक है तो यह मारे यह सत्य है तो हमने यहां पर आपको कांसेप्ट क्लियर कर दिया है जरा सा भी कंफ्यूजन है जरूरत नहीं पहला में दिया हुआ है क्या थैलोफाइटा तो थैलोफाइटा में तो हमारे तीनों आ जाते हैं सवाल बेटा या जाएंगे जिनकी बॉडी कैलाश जैसी हो तो यह मारा होगा नहीं दूसरा में दिया वह ब्रायोफाइटा तो हमारे प्रश्न का उत्तर हो जाएगा मेरा बेटा तीसरा में दिया हुआ टेरिडोफाइटा टैडो फाइट होगा नहीं क्यों दुपट्टा में विकसित हो चुके हैं यहां पर तो संभल मंडल और पूरा वैस्कुलर सिस्टम पाया जाता है चौथा में दिया वह प्लांटी प्लांटी कम आयु वर्ग है यह देखिए यह प्लांटिंग पूरे वर्क कोई कहते हैं कोई भी नहीं होगा तो इस तरह से फर्स्ट थर्ड फोटो शुक्ला तो जाएंगे सेकंड ऑप्शन मेरे प्रश्न का उत्तर प्रश्न आपको समझ आया होगा थैंक यू
पादप वर्गिकी (Plant Taxonomy) के अन्तर्गत पृथ्वी पर मिलने वाले पौधों की पहचान तथा पारस्परिक समानताओं व असमानताओं के आधार पर उनका वर्गीकरण किया जाता है। विश्व में अब तक विभिन्न प्रकार के पौधों की लगभग 4.0 लाख जातियाँ ज्ञात है जिनमें से लगभग 70% जातियाँ पुष्पीय पौधों की है। इतिहास[संपादित करें]प्राचीनकाल में मनुष्य द्वारा पौधों का वर्गीकरण उनकी उपयोगिता जैसे भोजन के रूप में, रेशे प्रदान करने वाले, औषधि प्रदान करने वाले आदि के आधार पर किया गया था लेकिन बाद में पौधों को उनके आकारिकीय लक्षणों (morphological characters) जैसे पादप स्वभाव, बीजपत्रों की संख्या, पुष्पीय भागों की संरचना आदि के आधार पर किया जाने लगा। मनु ने पादपों की निम्नलिखित श्रेणियाँ बतायीं हैं-[2]
सुश्रुत (800-1000 ईसापूर्व) ने पुष्प-विन्यास के संरचना तथा उनके जीवनकाल के आधार पर पादपों को चार वर्गों में बाँटा है- (१) वनस्पति (२) वृक्ष (३) वीरुध (४) ओषधि तासां स्थावराश्चतुर्विधाः वनस्पतयो, वृक्षाः, वीरुधः, ओषधयः इति।तासु, अपुष्पाः फलवन्तो वनस्पतयः, पुष्पफलवन्तो वृक्षाः, प्रतानवत्यः स्तम्बिन्यश्च वीरुधः, फलपाकनिष्ठा ओषधय इति ॥ सुश्रुत सूत्र १/२॥ पुनः औषधीय पादपों को सुश्रुत ने ३७ गणों में विभक्त किया है। वर्तमान में पौधों के आकारिकीय लक्षणों के साथ-साथ भौगोलिक वितरण, शारीरिक लक्षणों (Anatomical characters), रासायनिक संगठन, आण्विक लक्षणों (molecular characters) आदि को भी वर्गिकी में प्रयुक्त किया जाता है। इस प्रकार पादप वर्गिकी के उपयुक्त आधारों के अनुसार निम्न प्रकार के बिन्दु स्पष्ट हो जाते है -
वर्गिकी शब्द का प्रयोग सबसे पहले फ्रेन्च वनस्पति शास्त्री ए. पी. डी. केण्डोले (A.P.De. Candolle) ने 1834 में अपनी पुस्तक “Theories elementaire de la botanique” (Theory of Elementary Botany) में किया तथा इसमें वर्गीकरण के सामान्य सिद्धान्तों के अध्ययन के बारे में बताया तथा पादप वर्गिकी को इस प्रकार परिभाषित किया- :“पादप वर्गिकी वनस्पति विज्ञान की वह शाखा है जिसके अन्तर्गत पौधों की पहचान, नामकरण एवं वर्गीकरण के बारे में अध्ययन किया जाता है। बाद में कैरोलस लिनीयस (Carolus Linnaeus) ने अपनी पुस्तक 'सिस्टेमा नेचुरी' (Systema Naturae) में वर्गीकरणीय विज्ञान (Systematics) शब्द का प्रयोग किया जो ग्रीक भाषा के शब्द Systema से लिया गया है जिसका अर्थ समूहबद्ध करना या साथ-साथ रखना है। अत: स्पष्ट है कि वर्गिकी के अन्तर्गत निम्न कार्य प्रमुखतः सम्पन्न किये जाते है -
वर्गिकी के सिद्धान्त[संपादित करें]अमेरिकन वर्गिकीविज्ञ (Taxonomist) एडवर्ड चार्ल्स बेसी (Edward Charles Bessey) ने आवृतबीजियों की जातिवृत्तीय (Phylogenetic) वर्गिकी (Taxonomy) में अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान दिया। पौधों में कौन सी स्थिति प्रगत (Advanced) तथा कौन सी आद्य (Primitive) है, इसके निर्धारण के लिये विभिन्न वर्गिकीविज्ञों (बेसी हचिन्सन आदि) द्वारा कुछ महत्वपूर्ण सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया गया है जिसके प्रमुख बिन्दु निम्नलिखित है - 1. विकास का क्रम ऊपरी (upwards) तथा नीचे की ओर (downwards) दोनों दिशाओं में होता है। 2. एक ही समय में पौधे के सभी अंगों में विकास समान गति से नहीं होता है। 3. किसी एक कुल या वंश में वृक्ष एवं क्षुप (trees and shrubs) पौधे शाकीय (herbaceous) एवं आरोही (Climbers) पौधों से अधिक आदिम (Primitive) है। 4. बहुवर्षी (Perennials) पादप, वार्षिक (annuals) पादपों से आद्य (primitive) हैं। 5. स्थलीय पादपों (terrestrial plants) से जलीय पादप (aquatic plants) विकसित हुए हैं तथा अधिपादप (epiphytes), मृतोपजीवी (saprophytes) और परजीवी (parasitic) पादप सबसे प्रगत (Advance) हैं। 6. द्विबीजपत्री पादप (dicotyledons), एकबीजपत्री पादपों (monocotyledons) से आद्य (primitive) है। 7. सरल व आशाखित तना (की प्रवृति) आद्य (primitive) तथा शाखित तना प्रगत है। 8. पर्ण का पर्व-संधियों पर एकल एवं सर्पिलाकार व्यवस्थित होना (spiral arrangement), सम्मुख (opposite) व चक्रिक (cyclic) रूप से व्यवस्थित होने से अधिक आद्य (primitive) है। 9. सरल पर्ण (Simple leaves) आद्य (primitive) तथा संयुस्त पर्ण (compound leaves) प्रगत है। 10. चरलग्न पर्ण (persistent leaves) आद्य तथा पर्णपाती (decicuous) पर्ण प्रगत (advanced) है। 11. बहुतयी (Polymerous) पुष्प आद्य (primitive) है तथा अल्पतयी (oligomerous) पुष्प प्रगत (advanced) है। 12. द्विलिंगी पुष्प आद्य तथा एकलिंगी प्रगत है। 13. उभयलिंगाश्रयी (Monoecious) पादप आद्य तथा एकलिगाश्रयी (dioecious) पादप प्रगत है। 14. एकल पुष्प (solitary flowers) आद्य तथा पुष्पक्रम में (विन्यास) प्रगत है। 15. दलयुस्त पुष्प (flowers with petals) आद्य तथा दलविहीन (apetalous) या नक्ष्न पुष्प प्रगत है। 16. पृथकदलीय पुष्प (polypetalous flowers) आद्य तथा संयुस्त दलीय (gamopetalous) प्रगत है। 17. दल विन्यास के विकास का क्रम इस प्रकार है : व्यावर्तित (Twisted), कोरछादी (Imbricate), कोरस्पर्शी (Valvate)18. त्रिज्यासममित (actinomorphic) पुष्प आद्य तथा एकव्यास सममित (zygomorphic) पुष्प प्रगत है। 19. जायांगधर (hypogynous) पुष्प आद्य तथा जायांगोपरिक (epigynous) पुष्प सबसे प्रगत दशा है। 20. बहु-अण्डपता (polycarpy) आद्य तथा अल्प-अण्डपता (oligocarpy) प्रगत दशा है। 21. वियुस्ताण्डपता (apocarpous) आद्य तथा संयुस्ताण्डपता (syncarpous) प्रगत दशा है। 22. भ्रूणपोषी (endospermic) बीज आद्य एवं अभ्रूणपोषी (nonendospermic) बीज प्रगत है। 23. अधिक पुंकेसरों युस्त पुष्प आद्य तथा कम पुंकेसरों वाले प्रगत है। 24. पृथक पुंकेसरी (polystaminous) पुष्प आद्य तथा संयुस्त पुंकेसरी (synstaminous) पुष्प प्रगत है। डेविस (Davis, 1967) ने इनमें कुछ और लक्षणों को सम्मिलित किया है, जो निम्नलिखित हैं : 25. अननुपर्णी (exstipulate) पत्तियों की अपेक्षा अनुपर्णी (Stipulate) अधिक आद्य है तथा स्वतंत्र अनुपर्ण (Free stipules) सलांग अनुपर्ण की अपेक्षा आद्य है।26. द्विबीजपत्री पौधों में फायलोडिक (phyllodic) पर्ण, पटलीय पर्ण की अपेक्षा प्रगत है।27. तने, शाखाओं, पत्तियों एवं सहपत्रों का कंटीलापन या व्युत्पन्न (derived) अधिक आधु निक स्थिति है जो वातावरण के अनुकू लन के रूप में विकसित हुई है।28. प्रकीर्णन एवं वितरण की आद्य इकाई बीज है, लेकिन आगे चलकर चरम स्थिति में पुष्पक्रम अथवा टम्बल वीɬस (लुढकने वाले पौधों) में पूरा पौधा ही प्रकीर्णन की इकाई बन जाता है।29. पुष्प एवं पुष्पांगों की बहु रूपीयता, एकरूपीयता से विकसित है।कई एन्जियोस्पर्म्स कुलों में प्रगत एवं आद्य लक्षण दोनों ही पाये जाते है। लेबियेटी कुल में पुष्य का जायांगधर लक्षण आद्य है जबकि अन्य सभी लक्षण प्रगत माने जाते है। इसके पुष्पों में पृथक परिदल (perianth) एक आद्य लक्षण है। एक ही कुल में ऐसे आद्य एवं प्रगत लक्षणों की उपस्थिति उनकी स्थिति के बारे में कठिनाई प्रदर्शित करती है। वर्गीकरण की इकाइयाँपौधों की विस्तृत वर्गीकृत स्थिति का ज्ञान जिन इकाइयों द्वारा होता है, उन्हें वर्गीकरण की इकाई कहते है जैसे -[संपादित करें]1. जगत (Kingdom) 2. प्रभाग (Division) 3. उप प्रभाग (Sub-division) 4. संवर्ग (Class) 5. उपसंवर्ग (Sub-Class) 6. गण (Order) 7. उप गण (Sub-order) 8. कुल (Family) 9. उपकुल (Sub-Family) 10. ट्राइब (Tribe) 11. सब-ट्राइब (Sub-tribe) 12. वंश (Genus) 13. उप-वंश (Sub-genus) 14. जाति (species) - (sps.) 15. उप-जाति (Sub-species) - (ssp.) 16. किस्म (Variety) - (var.) 17. उप किस्म (subvariety) - (subvar.) 18. फोर्मा (Forma) - (f.) 19. स्लोन (Clone) - (cl.) विभिन्न वर्गिकीय वर्ग (Taxonomic categories) के कुछ प्रमाणिक अनुलग्न (Suffix) नीचे दिये गये है : वर्ग (Class) -- अनुलग्न (Suffix) संवर्ग (Class) -- eae गण (Order) -- ales उप-गण (Sub-Order) -- ineae कुल (Family) -- aceae उप-कुल (Sub-family) -- oideae ट्राइब (Tribe) -- eae सब-ट्राइब (Sub-Tribe) -- inae वैसे इन प्रमाणिक अनुलग्नों के अपवाद भी है जिन्हें मान्यता प्राप्त है चूंकि ऐसे नाम काफी लंबी अवधि तक प्रयुस्त किये जाते रहे तथा नामकरण नियमों से पहले काफी लोकप्रिय थे। उदाहरण के लिये सभी गणों (orders) का अनुलग्न-ales है परन्तु कुछ गण जैसे (glumiflorae व tubiflorae में यह- ae है ; इसी प्रकार सभी कुलों का अनुलग्न- aceae है परन्तु कुछ कुल जैसे Palmae, Cruciferae, Leguminosae, Umbelliferae, Labiatae आदि में यह नहीं है, फिर भी नियमावली में इन नामों में छूट की व्यवस्था है। सभी वर्ग (Taxon) के नाम (कुल (Family) व इसकी नीचे की श्रेणी) को लेटिन भाषा में लिखना अनिवार्य है। सामान्यत: सभी वर्गकों की आधारभूत इकाई वंश (Genus) होती है तथा इसके अन्तर्गत आने वाली सभी कोटियों (Rank) को लिखते समय निम्न दो मुख्य सिद्धान्तों का पालन करना अनिवार्य है- 1. वंश, जाति तथा कोटियाँ हमेशा लेटिन भाषा में लिखी हों। 2. लेटिन भाषा में लिखे शब्दों को इटेलिक अक्षरों (Italic fonts) में दर्शाना आवश्यक है। हाथ से लिखने पर या टाइप करते समय अधोरेखांकित (underline) किया जाना चाहिए। पादप जगत (Plantae) में शैवाल (एल्गी), ब्रायोफाइट, टेरिडोफाइट, अनावृतबीजी तथा आवृतबीजी आते हैं। शैवाल या एलजी[संपादित करें]शैवाल के अंतर्गत लगभग 30,000 जातियाँ (species) हैं और इन्हें आठ मुख्य उपवर्गों में बाँटते हैं। उपवर्ग के स्थान में अब वैज्ञानिक इन्हें और ऊँचा स्थान देते हैं। शैवाल के उपवर्ग हैं : सायनोफाइटा (Cyanophyta), क्लोरोफाइटा (Chlorophyta), यूग्लीनोफाइटा (Euglenophyta), कैरोफाइटा (Charophyta), फियोफाइटा (Phaeophyta), रोडोफाइटा (Rhodophyta), क्राइसोफाइटा (Chrysophyta) और पाइरोफाइटा (Pyrrophyta)। उत्पत्ति के विचार से शैवाल बहुत ही निम्न कोटि के पादप हैं, जिनमें जड़, तना तथा पत्ती का निर्माण नहीं होता। इनमें क्लोरोफिल के रहने के कारण ये अपना आहार स्वयं बनाते हैं। शैवाल पृथ्वी के हर भूभाग में पाए जाते हैं। नदी, तालाब, झील तथा समुद्र के मुख्य पादप भी शैवाल के अंतर्गत ही आते हैं। इनके रंग भी कई प्रकार के हरे, नीले हरे, लाल, कत्थई, नारंगी इत्यादि होते हैं। इनक रूपरेखा सरल पर कई प्रकार की होती है, कुछ एककोशिका सदृश, सूक्ष्म अथवा बहुकोशिका का निवह (colony) या तंतुमय (filamentous) फोते से लेकर बहुत बड़े समुद्री पाम (sea palm) के आकार के होते हैं। शैवाल में जनन की गति बहुत तेज होती है और वर्षा ऋतु में थोड़े ही समय में सब तालाब इनकी अधिक संख्या से हरे रंग के हो जाते हैं। कुछ शैवाल जलीय जंतुओं के ऊपर या घोंघों के कवचों पर उग आते हैं। शैवाल में जनन कई रीतियों से होता है। अलैंगिक रीतियों में मुख्यत: या तो कोशिकाओं के टूटने से दो या तीन या अधिक नए पौधे बनते हैं, या कोशिका के जीवद्रव्य इकट्ठा होकर विभाजित होते हैं और चलबीजाणु (zoospores) बनाते हैं। यह कोशिका के बाहर निकलकर जल में तैरते हैं और समय पाकर नए पौधों को जन्म देते हैं। लैंगिक जनन भी अनेक प्रकार से होता है, जिसमें नर और मादा युग्मक (gametes) बनते हैं। इसके आपस में मिल जाने से युग्मनज (zygote) बनता है, जो समय पाकर कोशिकाविभाजन द्वारा नए पौधे उत्पन्न करता है। युग्मक अगर एक ही आकार और नाप के होते हैं, तो इसे समयुग्मन (Isogamy) कहते हैं। अगर आकार एक जैसा पर नाप अलग हो तो असमयुग्मन (Anisogamy) कहते हैं। अगर युग्मक बनने के अंग अलग अलग प्रकार के हों और युग्मक भी भिन्न हों, तो इन्हें विषम युग्मकता (Oogamy) कहते हैं। शैवाल के कुछ प्रमुख उपवर्ग इस प्रकार हैं : सायनोफाइटा (Cyonophyta) - ये नीले हरे अत्यंत निम्न कोटि के शैवाल होते हैं। इनकी लगभग 1,500 जातियाँ हैं, जो बहुत दूर दूर तक फैली हुई हैं। इनमें जनन हेतु एक प्रकार के बीजाणु (spore) बनते हैं। आजकल सायनोफाइटा या मिक्सोफाइटा में दो मुख्य गण (order) हैं : (1) कोकोगोनिऐलीज़ (Coccogoniales) और हॉर्मोगोनिएलीज़ (Hormogoniales)। प्रमुख पौधों के नाम इस प्रकार हैं, क्रूकॉकस (Chroococcus), ग्लीओकैप्सा (Gleoocapsa), ऑसीलैटोरिया (Oscillatoria), लिंगबिया (Lyngbya), साइटोनिमा (Scytonema), नॉस्टोक (Nostoc), ऐनाबीना (Anabaena) इत्यादि। क्लोरोफाइटा (Chlorophyta) या हरे शैवाल - इसकी लगभग 7,000 जातियाँ हर प्रकार के माध्यम में उगती हैं। ये तंतुवत संघजीवी (colonial), हेट्रॉट्रिकस (heterotrichous) या फिर एककोशिक रचनावाले (uniceleular) हो सकते हैं। जनन की सभी मुख्य रीतियाँ लैंगिक जनन, समयुग्मन इत्यादि तथा युग्माणु (zygospore), चलबीजाणु (Zoospore) पाए जाते हैं। यूग्लीनोफाइटा (Euglenophyta) - इसमें छोटे तैरनेवाले यूग्लीना (Euglena) इत्यादि को रखा जाता है, जो अपने शरीर के अग्र भाग में स्थित दो पतले कशाभिकाओं (flagella) की सहायता से जल में इधर उधर तैरते रहते हैं। इन्हें कुछ वैज्ञानिक जंतु मानते हैं पर ये वास्तव में पादप हैं, क्योंकि इनके शरीर में पर्णहरित होता है। कैरोफाइटा (Charophyta) - इसके अंतर्गत केरा (Chara) और नाइटेला (Nitella) जैसे पौधे हैं, जो काफी बड़े और शाखाओं से भरपूर होते हैं। इनमें जनन विषमयुग्मक (Oogomous) होता है और लैंगिक अंग प्यालिका (cupule) और न्यूकुला (nucula) होते हैं। फिओफाइटा (Phaeophyta) या कत्थई शैवाल - इसका रंग कत्थई होता है और लगभग सभी नमूने समुद्र में पाए जाते हैं। मुख्य उदाहरण हैं : कटलेरिया (Cutleria), फ्यूकस (Fucus), लैमिनेरिया (Laminaria) इत्यादि। रोडोफाइटा (Rhodophyta) या लाल शैवाल - यह शैवाल लाल रंग का होता है। इसके अंतर्गत लगभग 400 वंश (genus) और 2,500 जातियाँ हैं, जो अधिकांश समुद्र में उगती हैं। इन्हें सात गणों में बाँटा जाता है। लाल शैवाल द्वारा एक वस्तु एगार एगार (agar agar) बनती है, जिसका उपयोग मिठाई और पुडिंग बनाने तथा अनुसंधान कार्यों में अधिकतम होता है। इससे कई प्रकार की औषधियाँ भी बनती हैं। कुछ वैज्ञानिकों का मत है कि शैवाल द्वारा ही लाखों वर्ष पहले भूगर्भ में पेट्रोल का निर्माण हुआ होगा। ब्रायोफाइटा[संपादित करें]तीन वर्गों में बाँटा जाता है :
ऐसा सोचा जाता है कि ब्रायोफाइटा की उत्पत्ति हरे शैवाल से हुई होगी। हिपैटिसी[संपादित करें]इसमें लगभग 8,500 जातियाँ हैं, जो अधिकांश छाएदार नम स्थान पर उगती हैं। कुछ एक जातियाँ तो जल में ही रहती हैं, जैसे टिकासिया फ्लूइटंस और रियला विश्वनाथी। हिपैटिसी में ये तीन गण मान्य हैं : स्फीसेकॉर्पेलीज[संपादित करें]स्पीरोकॉर्पेलीज़ में तीन वंश हैं - स्फीरोकर्पस (Sphaerocarpus), जीओथैलस (Geothallus) और रिएला (Riella)। पहले दो में लैंगिक अंग एक प्रकार के छत्र से घिरे रहते हैं और रिएला में वह अंग घिरा नहीं रहता। रिएला की एक ही जाति रिएला विश्वनाथी भारत में काशी के पास चकिया नगर में पाई गई है। इसके अतिरिक्त रिएला इंडिका अविभाजित भारत के लाहौर नगर के पास पाया गया था। मारकेनटिएलींज़ (Marchantiales)[संपादित करें]यह सबसे प्रमुख गण है और इसमें 32 वंश और 400 जातियाँ पाई जाती हैं, जिन्हें छह कुलों में रखा जाता है। इनमें जनन लैंगिक और अलैंगिक दोनों होते हैं। रिकसियेसी कुल में तीन वंश हैं। दूसरा कुल है कारसीनिएसी। टारजीओनिएसी का टारजीओनिया पौधा सारे संसार में पाया जाता है। इस गण का सबसे मुख्य कुल है मारकेनटिएसी, जिसमें 23 वश हैं। इनमें मारकेनटिया मुख्य है। जंगरमैनिएलीज़ (Jungermaniales)[संपादित करें]इन्हें पत्तीदार लीवरवर्ट भी कहते हैं। ये जलवाले स्थानों पर अधिक उगते हैं। इनमें 190 वंश तथा लगभग 8,000 जातियाँ हैं। इनके प्रमुख वंश हैं रिकार्डिया (Riccardia), फॉसॉम्ब्रोनिया (Fossombronia), फ्रूलानिया (Frullania) तथा पोरेला (Porella)। ब्रियेलिज़ गण में सिर्फ दो वंश कैलोब्रियम (Calobryum) और हैप्लोमिट्रियम (Haplomitrium) रखे जाते हैं। ऐंथोसिरोटी (Anthocerotae)[संपादित करें]इस उपवर्ग में एक गण ऐंथोसिरोटेलीज़ है, जिसमें पाँच या छह वंश पाए जाते हैं। प्रमुख वंश ऐंथोसिरॉस (Anthoceros) और नोटोथिलस (Notothylas) हैं। इनमें युग्मकजनक (gametocyte), जो पौधे का मुख्य अंग होता है, पृथ्वी पर चपटा उगता है और इसमें बीजाणु-उद्भिद (sporophyte) सीधा ऊपर निकलता है। इनमें पुंधानी और स्त्रीधानी थैलस (thallus) के अंदर ही बनते हैं। पुंधानी नीचे पतली और ऊपर गदा या गुब्बारे की तरह फूली होती हैं। मससाई (Musci)[संपादित करें]इस वर्ग में मॉस पादप आते हैं, जिन्हें तीन उपवर्गों में रखा जाता है। ये हैं:
पहले उपवर्ग के स्फ़ैग्नम (sphagnum) ठंडे देशों की झीलों में उगते हैं तथा एक प्रकार का "दलदल" बनाते हैं। ये मरने पर भी सड़ते नहीं और सैकड़ों हजारों वर्षों तक झील में पड़े रहते हैं, जिससे झील दलदली बन जाती है। दूसरे उपवर्ग का ऐंड्रिया (Andrea) एक छोटा वंश है, जो गहरे कत्थई रंग का होता है। यह काफी सर्द पहाड़ों की चोटी पर उगते हैं। यूब्रेयेलीज़ या वास्तविक मॉस (True moss), में लगभग 650 वंश हैं जिनकी लगभग 14,000 जातियाँ संसार भर में मिलती हैं। इनके मध्यभाग में तने की तरह एक बीच का भाग होता है, जिसमें पत्तियों की तरह के आकार निकले रहते हैं। चूँकि यह युग्मोद्भिद (gametophytic) आकार है, इसलिये इसे पत्ती या तना कहना उचित नहीं हैं। हाँ, उससे मिलते जुलते भाग कहे जा सकते हैं। पौधों के ऊपरी हिस्से पर या तो पुंधानी और सहसूत्र (paraphysis) या स्त्रीधानी और सहसूत्र, लगे होते हैं। टेरिडोफाइटा[संपादित करें]इनकी उत्पत्ति करीब 35 करोड़ वर्ष पूर्व हुई होगी, ऐसा अधिकतर वैज्ञानिकों का कहना हैं। प्रथम टेरिडोफाइट पादप साइलोटेलिज़ (Psilotales) समूह के हैं। इनकी उत्पत्ति के तीन चार करोड़ वर्ष बाद तीन प्रकार के टेरिडोफाइटा इस पृथ्वी पर और उत्पन्न हुए - लाइकोपीडिएलीज़, हार्सटेलीज़ और फर्न। तीनों अलग अलग ढंग से पैदा हुए होंगे। टेरिडोफाइटा मुख्यत: चार भागों में विभाजित किए जाते हैं : साइलोफाइटा (Psilophyta), लेपिडोफाइटा (Lepidophyta), कैलेमोफाइटा (Calamophyta) और टेरोफाइटा (Pterophyta)। साइलोफाइटा[संपादित करें]ये बहुत ही पुराने हैं तथा अन्य सभी संवहनी पादपों से जड़रहित होने के कारण भिन्न हैं। इनका संवहनी ऊतक सबसे सरल, ठोस रंभ (Protostele) होता है। इस भाग में दो गण हैं : (1) साइलोफाइटेलीज, जिसके मुख्य पौधे राइनिया (Rhynia) साइलोफाइटान (Psilophyton), ज़ॉस्टेरोफिलम (Zosterophyllum), ऐस्टेरोक्सिलॉन (Asteroxylon) इत्यादि हैं। ये सबके सब जीवाश्म हैं, अर्थात् इनमें से कोई भी आजकल नहीं पाए जाते है। करोड़ों वर्ष पूर्व ये इस पृथ्वी पर थे। अब केवल इनके अवशेष ही मिलते हैं। लेपिडोफाइटा[संपादित करें]इसके अंतर्गत आनेवाले पौधों को साधारणतया लाइकोपॉड कहते हैं। इनके शरीर में तने, पत्तियाँ और जड़ सभी बनती हैं। पत्तियाँ छोटी होती हैं, जिन्हें माइक्रोफिलस (microphyllous) कहते हैं। इस भाग में चार गण हैं :
कैलेमोफाइटा[संपादित करें]ये बहुत पुराने पौधे हैं जिनका एक वंश एक्वीसीटम (Equisetum) अभी भी उगता है। इस वर्ग में पत्तियाँ अत्यंत छोटी होती थीं। इन्हें हार्सटेल (Horsetails), या घोड़े की दुम की आकारवाला, कहा जाता है। इसमें जनन के लिये बीजाणुधानियाँ (sporangia) "फोर" पर लगी होती थीं तथा उनका एक समूह साथ होता था। ऐसा ही एक्वीसीटम में होता है, जिसे शंकु (Strobites) कहते हैं। यह अन्य टेरिडोफाइटों में नहीं होता। इसमें दो गण हैं : (1) हाइनिऐलीज़ (Hyeniales), जिसके मुख्य पौधे हाइनिया (Heyenia) तथा कैलेमोफाइटन (Calamophyton) हैं। (2) स्फीनोफिलेलीज़ दूसरा वृहत् गण है। इसके मुख्य उदाहरण हैं स्फीनोफिलम (Sphenophyllum), कैलेमाइटीज़ (Calamites) तथा एक्वीसीटम। टीरोफाइटा[संपादित करें]इसके सभी अंग काफी विकसित होते हैं, संवहनी सिलिंडर (vascular cylinder) बहुत प्रकार के होते हैं। इनमें पर्ण अंतराल (leaf gap) भी होता है। पत्तियाँ बड़ी बड़ी होती हैं तथा कुछ में इन्हीं पर बीजाणुधानियाँ लगी होती हैं। इन्हें तीन उपवर्गों में बाँटते हैं- प्राइमोफिलिसीज़ (Primofilices)[संपादित करें]इस उपवर्ग में तीन गण (1) प्रोटोप्टेरिडेलीज़ (Protopteridales), (2) सीनॉप्टेरिडेलीज़ (Coenopteridales) और (3) आर्किॲपटेरिडेलीज़ (Archaeopteridales) हैं, जिनमें पारस्परिक संबंध का ठीक ठीक पता नहीं है। जाइगॉप्टेरिस (Zygopteris), ईटाप्टेरिस (Etapteris) तथा आरकिआप्टेरिस (Archaeopteris) मुख्य उदाहरण हैं। यूस्पोरैंजिएटी (Eusporangiatae)[संपादित करें]जिसमें बीजाणुधानियों के एक विशेष स्थान पर बीजाणुपर्ण (sporophyll) लगे होते हैं, या एक विशेष प्रकार के आकार में होते हैं, जिसे स्पाइक (spike) कहते हैं, उदाहरण ऑफिओग्लॉसम (Ophioglossum), बॉट्रिकियम (Botrychium), मैरैटिया (Marattia) इत्यादि हैं। लेप्टोस्पोरैंजिएटी[संपादित करें]जो अन्य सभी फर्न से भिन्न हैं, क्योंकि इन बीजाणुधानियों के चारों ओर एक "जैकेट फर्नों स्तर" होता है और बीजाणु की संख्या निश्चित रहती है। इसका फिलिकेलीज़ गण बहुत ही बृहत् है। इस उपवर्ग को निम्नलिखित कुलों में विभाजित करते हैं- (1) आस्मंडेसी, (2) राईज़िएसी, (3) ग्लाइकीनिएसी, (4) मेटोनिएसी, (5) डिप्टैरिडेसी,(6) हाइमिनोफिलेसी, (7) सायथियेसी (8) डिक्सोनिएसी, (9) पालीपोडिएसी तथा (10) पारकेरिएसीइन सब कुलों में अनेक प्रकार के फ़र्न है। ग्लाइकीनिया में शाखाओं का विभाजन द्विभाजी (dichotomous) होता है। हाइमिनोफिलम को फिल्मी फर्न कहते हैं, क्योंकि यह बहुत ही पतले और सुंदर होते हैं। सायेथिया तो ऐसा फर्न है, जो ताड़ के पेड़ की तरह बड़ा और सीधा उगता है। इस प्रकार के फर्न बहुत ही कम हैं। डिक्सोनिया भी इसी प्रकार बहुत बड़ा होता है। पालीपोडिएसी कुल में लगभग 5,000 जातियाँ हैं और साधारण फर्न इसी कुल के हैं। टेरिस (Pteris), टेरीडियम (Pteridium), नेफ्रोलिपिस (Nephrolepis) इत्यादि इसके कुछ उदाहरण हैं। दूसरा गण है मारसीलिएलीज़, जिसका चरपतिया (Marsilea) बहुत ही विस्तृत और हर जगह मिलनेवाला पौधा है। तीसरा गण सैलवीनिएलीज है, जिसके पौधे पानी में तैरते रहते हैं, जैसे सैलवीनिया (Salvinia) और ऐज़ोला (Azolla) हैं। ऐज़ोला के कारण ही तालाबों में ऊपर सतह पर लाल काई जैसा तैरता रहता है। इन पौधों के शरीर में हवा भरी रहती है, जिससे ये आसानी से जल के ऊपर ही रहते हैं। इनके अंदर एक प्रकार का नीलाहरा शैवाल ऐनाबीना (Anabaena) रहता है। अनावृतबीजी पौधे (Gymnosperm)[संपादित करें]संवहनी पौधों में फूलवाले पौधों को, जिनके बीज नंगे होते हैं, अनावृतबीजी कहते हैं। इसके पौधे मुख्यत: दो प्रकार के होते हैं। एक तो साइकस की तरह मोटे तनेवाले होते हैं, जिनके सिरे पर एक झुंड में लंबी पत्तियाँ निकलती हैं और मध्य में विशेष प्रकार की पत्तियाँ होती हैं। इनमें से जिनमें परागकण बनते हैं उन्हें लघुबीजाणुपर्ण (Microsporophyll) तथा जिनपर नंगे बीजाणु लगे होते हैं उन्हें गुरुबीजाणुपर्ण (Megasporophyll) कहते हैं। इस समूह को सिकाडोफिटा (Cycadophyta) कहते हैं और इनमें तीन मुख्य गण हैं :
पहले दो गण जीवाश्म हैं। इनके सभी पौधे विलुप्त हो चुके हैं। इनके बहुत से अवशेष पत्थरों के रूप में राजमहल पहाड़ियों में मिलते हैं। मुख्य उदाहरण है लिजिनाप्टेरिस (Lyginopteris), मेडुलोज़ा (Medullosa) तथा विलियम्सोनिया (Williamsonia)। तीसरे गण सिकाडेलीज़ के बहुत से पौधे विलुप्त हैं और नौ वंश अब भी जीवित हैं। प्रमुख पौधों के नाम हैं, साइकैस (Cycas), ज़ेमिया (Zamia), एनसेफैलोर्टस (Encephalortos), स्टैनजीरिया (Stangeria) इत्यादि। अनावृतबीजी पौधों का दूसरा मुख्य प्रकार है कोनिफरोफाइटा (Coniferophyta), जिसमें पौधे बहुत ही बड़े और ऊँचे होते हैं। संसार का सबसे बड़ा और सबसे ऊँचा पौधा सिक्वॉय (Sequoia) भी इसी में आता है। इसमें चार मुख्य गण हैं :
अब सभी कॉरडेआइटेलीज़ जीवाश्म हैं और इनके बड़े बड़े तनों के पत्थर अब भी मिलते हैं। ज़िगोएलीज़ के सभी सदस्य विलुप्त हो चुके हैं। सिर्फ एक ही जाति अभी जीवित है, जिसका नाम जिंगोबाइलोबा (Ginkgobiloba), या मेडेन हेयर ट्री, है। यह चीन में पाया जाता है तथा भारत में इसके इने गिने पौधे वनस्पति वाटिकाओं में लगाए जाते हैं। यह अत्यंत सुंदर पत्तीवाला पेड़ है, जो लगभग 30 से 40 फुट ऊँचाई तक जाता है। कोनिफरेलीज़ गण में तो कई कुल हैं और सैकड़ों जातियाँ होती हैं। इनके पेड़, जैसे सिक्वॉय, चीड़, देवदार, भाऊ के पेड़ बहुत बड़े और ऊँचे होते हैं। चीड़ तथा देवदार के जंगल सारे हिमालय पर भरे पड़े हैं। चीड़ से चिलगोजा जैसा पौष्टिक फल निकलता है, देवदार तथा चीड़ की लकड़ी से लुगदी और कागज बनते हैं। इनमें बीज एक प्रकार के झुंड में होते हैं, जिन्हें स्ट्रबिलस या "कोन" कहते हैं। पत्तियाँ अधिकांश नुकीली तथा कड़ी होती हैं। ये पेड़ ठंडे देश तथा पहाड़ पर बहुतायत से उगते हैं। इनमें बहुधा तारपीन के तेल जैसा पदार्थ रहता है। उत्पत्ति और जटिलता के विचार से तो ये आवृतबीजी (Angiosperm) पौधों से छोटे हैं, पर आकार तथा बनावट में ये सबसे बढ़ चढ़कर होते है। चौथे गण निटेलीज़ में सिर्फ तीन ही वंश आजकल पाए जाते हैं - (1) नीटम (Gnetum), (2) एफीड्रा (Ephedra) और (3) वेलविचिया (Welwitschia)।पहले दो तो भारत में मिलते हैं और तीसरा वेलविचिया मिराबिलिस (Welwitschia mirabilis)। सिर्फ पश्चिमी अफ्रीका के समुद्रतट पर मिलता है। एफीड्रा सूखे स्थान का पौधा है, जिसमें पत्तियाँ अत्यंत सूक्ष्म होती हैं। इनसे एफीड्रीन नामक दवा बनती है। आजकल वैज्ञानिक इन तीनों वंशों को अलग अलग गणों में रखते हैं। इन सभी के अतिरिक्त कुछ जीवाश्मों के नए गण समूह भी बनाए गए हैं, जैसे राजमहल पहाड़ का पेंटोक्सिली (Pentoxylae) और रूस का वॉजनोस्कियेलीज़ (Vojnowskyales) इत्यादि। आवृतबीजी पौधे (Angiosperms)[संपादित करें]आवृतबीजी पौधों में बीज बंद रहते हैं और इस प्रकार यह अनावृतबीजी से भिन्न हैं। इनमें जड़, तना, पत्ती तथा फूल भी होते हैं। आवृतबीजी पौधों में दो वर्ग हैं :
पहले के अंतर्गत आनेवाले पौधों में बीज के अंदर दो दाल रहती हैं और दूसरे में बीज के अंदर एक ही दाल होती है। द्विबीजपत्री के उदाहरण, चना, मटर, आम, सरसों इत्यादि हैं और एकबीजपत्री में गेहूँ, जौ, बाँस, ताड़, खजूर, प्याज हैं। बीजपत्र की संख्या के अतिरिक्त और भी कई तरह से ये दोनों भिन्न हैं जैसे जड़ और तने के अंदर तथा बाहर की बनावट, पत्ती और पुष्प की रचना, सभी भिन्न हैं। द्विबीजपत्री की लगभग 2,00,000 जातियों को 250 से अधिक कुलों में रखा जाता है। आवृतबीजीय पादप में अलग अलग प्रकार के कार्य के लिये विभिन्न अंग हैं, जैसे जल तथा लवण सोखने के लिये पृथ्वी के नीचे जड़ें होती हैं। ये पौधों को ठीक से स्थिर रखने के लिये मिट्टी को जकड़े रहती हैं। हवा में सीधा खड़ा रहने के लिये तना मजबूत और शाखासहित रहता है। यह आहार बनाने के लिये पत्तियों को जन्म देता है और जनन हेतु पुष्प बनाता है। पुष्प में पराग तथा बीजाणु बनते हैं। सन्दर्भ[संपादित करें]
कौन सा पादप वर्ग जड़ तना तथा पत्ती में विभाजित होता है?थैलोफाइटा ब्रायोफाइटा टेरीडोफाइटा प्लांटी ।
जड़ों और पत्तियों के बीच जोड़ने वाला भाग क्या है?पौधे में तना जड़, पत्तियों तथा फूलों के बीच की कड़ी है।
पौधों को कितने समूह में विभाजित किया गया है?पौधों को पांच समूहों में बांटा गया है- थैलोफाइट्स, ब्रायोफाइट्स, टेरिडोफाइट्स, जिम्नोस्पर्म और एंजियोस्पर्म।
पति का वह भाग जो तने से जुड़ा रहता है क्या कहलाता है?पत्ती का वह भाग जिसके द्वारा वह तने से जुड़ी होती है, पर्णवृत कहलाता है।
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