कहानी में पात्रों के चरित्र-चित्रण का महत्वपूर्ण स्थान होता है। पात्रों का चरित्र-चित्रण करके ही कहानीकार कहानी को आगे बढ़ाता है। हर पात्र का अपना स्वभाव होता है। पात्रों का चरित्र-चित्रण पात्रों की अभिरुचियों के माध्यम से भी होता है। समाज में अलग-अलग प्रकार के लोगों की अपने स्वभाव के अनुसार अलग-अलग अभिरुचियाँ होती हैं, इन्हें ध्यान में रखकर ही कहानीकार पात्रों का चरित्र-चित्रण करता है। Show
चरित्र-चित्रण का सरल तरीका यह है कि लेखक पात्रों की विशेषताओं का बखान स्वयं करता है। जसै- श्री अनतं राम शर्मा बहुत परोपकारी व धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। इलाके के सभी लोग उनका सम्मान करते थे। पात्रों के काम के द्वारा भी उनका चरित्र-चित्रण स्वयं ही हो जाता है। उनके स्वभाव और स्वरूप का वर्णन किया जाता है। दूसरे पात्र के माध्यम से भी कई बार कहानीकार किसी अन्य पात्र का चरित्र-चित्रण करवाता है। विषयसूची
कहानी लेखन में चरित्र चित्रण की क्या भूमिका होती हैं?इसे सुनेंरोकेंचरित्र-चित्रण – पात्रों के माध्यम से एक ओर कथानक का आरम्भ, विकास और अन्त होता है, तो दूसरी ओर हम कहानी में इनसे आत्मीयता प्राप्त करते हैं। जहाँ तक पात्रों के चयन का सम्बन्ध है वे सर्वथा सजीव और स्वाभाविक होने चाहिए तथा पात्रों की अवतारणा कल्पना के धरातल से न होकर कहानीकार की आत्मानुभूति के धरातल से होनी चाहिये। चरित्र चित्रण कैसे करे?इसे सुनेंरोकेंकिसी नाटक, कथा आदि में आये पात्रों के सोच, कार्यपद्धति, आदि के बारे में सूचना देना उस पात्र का चरित्रचित्रण (Characterisation) कहलाता है। पात्रों का वर्णन करने के लिये उनके कार्यों, वक्तव्य, एवं विचारों आदि का सहारा लिया जाता है। पात्र के नज़रिए से कहानी लिखी जाती है। कहानी में चरमोत्कर्ष का क्या महत्व है स्पष्ट कीजिए? इसे सुनेंरोकें7 चरमोत्कर्ष (क्लाइमैक्स) – कथा के अनुसार कहानी चरमोत्कर्ष की ओर बढ़ती है। सर्वोत्तम यह है कि चरमोत्कर्ष पाठक को स्वयं सोचने के लिए प्रेरित करें तथा उसे लगे कि उसे स्वतंत्रता दी गई है। उसने जो निष्कर्ष निकाले हैं वह उसके सामने है। कहानी क्यों लिखी जाती है?इसे सुनेंरोकें(2) पहले कहानी शिक्षा और मनोरंजन के लिए लिखी जाती थी, आज इन दोनों के स्थान पर कौतूहल जगाने में जो कहानी सक्षम हो, वही सफल समझी जाती है। फिर भी, मनोरंजन आज भी साधारण पाठकों की माँग है। कौतूहल और मनोरंजन से अधिक हम कहानियों में मनुष्य की नयी संवेदनाओं की खोज करते हैं। कहानी लेखन में देश काल स्थान और परिवेश का क्या महत्व है?इसे सुनेंरोकेंकहानी में घटना, स्थान, पात्र, पात्रों की भाषा- वेशभूषा इत्यादि देश और काल के अनुसार ही की जाती है। कहानी जब दृश्य एंव श्रव्य माध्यम से समाज के सामने आती है तो उस देश, काल, परिस्थिति, भाषा-शैली, पहनावा तथा रहन-सहन से सभी परिचित हो जाते हैं। प्रश्न 5 कहानी लेखन में चरित्र चित्रण की क्या भूमिका होती है लिखिए? इसे सुनेंरोकेंकहानी का संचालन उसके पात्रों के द्वारा ही होता है तथा पात्रों के गुण-दोष को उनका ‘चरित्र चित्रण’ कहा जाता है। चरित्र चित्रण से विभिन्न चरित्रों में स्वाभाविकता उत्पन्न की जाती है। संवाद कहानी का प्रमुख अंग होते हैं। इनके द्वारा पात्रों के मानसिक अन्तर्द्वन्द एवं अन्य मनोभावों को प्रकट किया जाता है। कहानी में कथानक का क्या योगदान है?इसे सुनेंरोकें”किसी साहित्यिक कृति (उपन्यास, नाटक, कहानी अथवा कविता) की ऐसी योजना, घटनाओं के पैटर्न अथवा मुख्य कथा को कथानक कहते हैं जिसका निर्माण उद्दिश्ट प्रसंगों की सहेतुक संयोजित शृंखला (स्तरक्रम) के क्रमिक उद्घाटन से किया गया हो।” चित्रण मतलब क्या है?इसे सुनेंरोकेंचित्र में रंग भरने का भाव। किसी घटना,भाव,वस्तु,व्यक्ति, आदि का विशद तथा सजीव रूप से शब्दों में किया जानेवाला वर्णन।
कहानी के तत्व -कथानक, पात्र एवं चरित्र चित्रण,कथोपकथन,वातावरण,भाषा-शैली उद्देश्यकहानी के तत्व का अर्थ , कहानी के तत्वों का उल्लेख कीजिएमूल्यांकन की दृष्टि से कहानी के कुछ तत्व निर्धारित किये गये हैं। समीक्षकों ने कथा साहित्य के रूप में उपन्यास और कहानी को एक समान मानकर मापदण्ड की एक ही पद्धति अपनाई है, और उपन्यास की भाँति कहानी के भी छः तत्व माने हैं: 1 कथानक- कथानक का अर्थ
कथानक का उदाहरण
2 पात्र एवं चरित्र चित्रण
पात्र एवं चरित्र चित्रण का उदाहरण
3 कथोपकथन
कथोपकथन का उदाहरण
4 वातावरण
5 भाषा-शैली
6 उद्देश्य
कथाकार और समीक्षक 'बटरोही' ने कहानी के केवल दो तत्व बताए
बहुत बार कहानीकार के अलावा कहानी में कोई दूसरा पात्र नहीं होता। इस विधा के दो निम्नलिखित रचना-तत्व हैं :
'कथा- तत्व' से आशय
'संरचना - तत्व'
कहानी में पात्रों के चरित्र चित्रण का क्या स्थान है?देशकाल, स्थान और परिवेश के बाद कथानक के पात्रों पर विचार करना चाहिए। हर पात्र का अपना स्वरूप, स्वभाव और उद्देश्य होता है । कहानी में वह विकसित भी होता है या अपना स्वरूप भी बदलता है । कहानीकार के सामने पात्रों का स्वरूप जितना स्पष्ट होगा उतनी ही आसानी उसे पात्रों का चरित्र-चित्रण करने और उसके संवाद लिखने में होगी ।
नाटक में चरित्र चित्रण का क्या स्थान है?Jwh2y3h3j32hj 2 Wj2j2h rk3j3 na r E Eyuej3र}} किसी नाटक, कथा आदि में आये पात्रों के सोच, कार्यपद्धति, आदि के बारे में सूचना देना उस पात्र का चरित्रचित्रण (Characterisation) कहलाता है। पात्रों का वर्णन करने के लिये उनके कार्यों, वक्तव्य, एवं विचारों आदि का सहारा लिया जाता है।
कहानी में चरित्र चित्रण का क्या महत्व है?2 पात्र एवं चरित्र चित्रण
कथानक को पात्र ही गति देता है अन्यथा कथानक निरर्थक हो जाता है। कहानीकार कथानक के मुख्य भाव को पात्रों के माध्यम से ही प्रस्तुत करता है। कहानी में मुख्य रूप से तीन प्रकार के पात्र होते हैं मुख्य पात्र, सहायक पात्र एंव गौण पात्र।
कहानी लेखन में चरित्र चित्रण की क्या भूमिका होती है लिखिए अंक 03?चरित्र-चित्रण –
पात्रों के माध्यम से एक ओर कथानक का आरम्भ, विकास और अन्त होता है, तो दूसरी ओर हम कहानी में इनसे आत्मीयता प्राप्त करते हैं। जहाँ तक पात्रों के चयन का सम्बन्ध है वे सर्वथा सजीव और स्वाभाविक होने चाहिए तथा पात्रों की अवतारणा कल्पना के धरातल से न होकर कहानीकार की आत्मानुभूति के धरातल से होनी चाहिये।
|