कांग्रेस अधिवेशन भारतीयों के सबसे बड़े राजनीतिक दल 'भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस' द्वारा समय-समय पर आयोजित किये गए थे। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना 28 दिसम्बर, 1885 में की गई थी। इसका पहला अधिवेशन बम्बई (वर्तमान मुम्बई) में 'कलकत्ता हाईकोर्ट' के बैरिस्टर व्योमेशचन्द्र बनर्जी की अध्यक्षता में हुआ था। कहा जाता है कि वाइसरॉय लॉर्ड डफ़रिन (1884-1888) ने कांग्रेस की स्थापना का अप्रत्यक्ष रीति से समर्थन किया था। यह सही है कि एक अवकाश प्राप्त अंग्रेज़ अधिकारी एलन ऑक्टेवियन ह्यूम कांग्रेस का जन्मदाता था और 1912 में उसकी मृत्यु हो जाने पर कांग्रेस ने उसे अपना जन्मदाता और संस्थापक घोषित किया था। गोपालकृष्ण गोखले के अनुसार 1885 में ह्यूम के सिवा और कोई व्यक्ति कांग्रेस की स्थापना नहीं कर सकता था। परंतु वस्तु स्थिति यह प्रतीत होती है कि जैसा कि सी.वाई. चिंतामणि का मत है, राजनीतिक उद्देश्यों से राष्ट्रीय सम्मेलन का विचार कई व्यक्तियों के मन में उठा था और वह 1885 में चरितार्थ हुआ। Show अधिवेशनभारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 1885 से प्रारम्भ होने वाले और 1947 तक के अधिवेशन इस प्रकार हैं, जिससे उसका राष्ट्रीय एवं अखिल भारतीय रूप प्रकट होता है।
1932 के 'दिल्ली अधिवेशन' में मदन मोहन मालवीय को अध्यक्ष चुना गया था, परन्तु उनके कारावास में होने के कारण अमृत रणछोड़दास सेठ को कार्यकारी अध्यक्षता सौंपी गई। साथ ही एम.ए. अंसारी, एस.एस. कार्वाशर, राजेन्द्र प्रसाद, सरोजनी नायडू तथा अबुल कलाम आज़ाद भी कार्यकारी अध्यक्ष चुने गये। इसी प्रकार 1933 के अधिवेशन के अध्यक्ष भी मदन मोहन मालवीय चुने गये, परन्तु अब भी कारावास में उनके निरुद्ध होने के कारण श्रीमती नलिनी सेनगुप्ता को कार्यकारी अध्यक्ष चुना गया। कुछ महत्त्वपूर्ण अधिवेशन
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद अधिवेशनस्वाधीनता पाने के बाद 1948 ई. में कांग्रेस का अधिवेशन जयपुर में पट्टाभि सीतारामैया की अध्यक्षता में हुआ। 1950 ई. में नासिक में पुरुषोत्तम दास टंडन की अध्यक्षता में, 1951 ई. में नई दिल्ली में पंडित जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में, जिन्होंने हैदराबाद (1953) तथा कल्याणी अधिवेशनों की भी अध्यक्षता की। 1955 ई. में अवाड़ी में उच्छंगराय नवलराय ढेबर की अध्यक्षता में, जिन्होंने अमृतसर (1956 ई.) तथा गोहाटी (1958 ई.) अधिवेशनों की भी अध्यक्षता की। 1955 में नागपुर में श्रीमती इंदिरा गाँधी की अध्यक्षता में, 1960 ई. में बंगलोर में तथा 1961 ई. में गुजरात में नीलम संजीव रेड्डी की अध्यक्षता में, 1962 ई. में भुवनेश्वर में तथा 1963 ई. में पटना में दामोदरन संजीवैया की अध्यक्षता में तथा 1964 ई. में भुवनेश्वर में तथा 1965 ई. में दुर्गापुर में के. कामराज की अध्यक्षता में हुआ। अवाड़ी अधिवेशन (1955 ई.) में कांग्रेस ने देश में लोक तांत्रिक आधार पर समाजवादी राज्य की स्थापना की नीति स्वीकार की, जिसे उसने भुवनेश्वर अधिवेशन (1965 ई.) में दोहराया।
टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |