जातिवाद के पक्ष में इसके पोषकों का तर्क है की आधुनिक सभ्य समाज ,कार्य -कुशलता के लिए श्रम विभाजन को आवश्यक मानता है और चूँकि जाति प्रथा भी श्रम विभाजन का ही दूसरा रूप है , इसलिए इसमें कोई बुराई नहीं है | क्योंकि ये जाती प्रथा हमारे समाज की सबसे बड़ी रोग माना जाता है इसको कुछ पोषकों बहुत ज्यादा की आवश्यकता होनी चाहिए | जिससे की जल्द से जल्द इस प्रथा को समाप्त किया जाना चाहिए | इस कहानी के महान लेखक डॉ भीम राव आंबेडकर है जो की जाति प्रथा के लिए एक कानून लागु किया गया | Show Upvote(0) Downvote Comment View(2884) Related Topics => लेखक किस विडंबना की बात करते हैं ? विडंबना का स्वरूप क्या है ? जातिवाद के पुस्तक उसके पक्ष में क्या तर्क देते हैं?2. जातिवाद के पोषक उसके पक्ष मे क्या तर्क देते है ? उतर:- जातिवाद के पोषको का तर्क है कि आधुनिक सभ्य समाज कार्य कुशलता के लिए श्रम विभाजन आवश्यक मानता है और जाति प्रथा श्रम विभाजन का ही रूप है इसलिए इसमें कोई बुराई नहीं है।
जाति प्रथा के पोषक क्या तात्पर्य है?जातिवाद के पोषक अपनी मान्यता के समर्थन में यह कहते हैं कि आधुनिक सभ्य समाज में कार्यकुशलता लाने के लिए श्रम विभाजन आवश्यक है। जाति प्रथा इसी श्रम विभाजन का दूसरा रूप है अत: इसमें कोई बुराई नहीं है। 2. इस तर्क में यह बात आपत्तिजनक है कि यह जाति प्रथा श्रम विभाजन के साथ-साथ श्रमिक-विभाजन का भी रूप लिए हुए है।
जाति प्रथा भारत में बेरोजगारी का एक प्रमुख और प्रत्येक कारण कैसे बनी हुई है?किन्तु, भारतीय हिन्दू धर्म की जाति प्रथा व्यक्ति को पारंगत होने के बावजूद ऐसा पेशा चुनने की अनुमति नहीं देती है जो उसका पैतृक पेशा न हो। इस प्रकार पेशा परिवर्तन की अनुमति न देकर जाति प्रथा भारतीय समाज में बेरोजगारी का एक प्रमुख और प्रत्यक्ष कारण बनी हुई है।
जाति प्रथा के लेखक कौन है?
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