जीरो का आविष्कार कब और कहां हुआ था? - jeero ka aavishkaar kab aur kahaan hua tha?

दोस्तों जीरो जिसके बिना गणित का क्षेत्र अधूरा है आज की इस पोस्ट में हम यही जानने वाले है की गणित के क्षेत्र में यह महान खोज यानि की ज़ीरो का आविष्कार किसने किया और कब किया गया?

दोस्तों आपको यह तो पता ही होगा की शुन्य यानि की जीरो का कितना महत्त्व है। जीरो का हमारे जीवन में कितना महत्त्व है? आज अगर हम जीरो के बिना गणित की कल्पना करे तो यह क्षेत्र हमे अधूरा सा प्रतीत होता है।

बहुत से लोगो को जिज्ञासा होती है की शुन्य के आविष्कार से पहले गणना कैसे होती थी या शुन्य का आविष्कार कब हुआ या शुन्य का अविष्कार किस देश में हुआ था? आदि बहुत से सवाल होते है तो अगर आपको भी इन सवालों के जवाब जानने की जिज्ञासा है।

तो इस पोस्ट को अंत तक ध्यानपूर्वक पूरा जरूर पढ़े क्योकि इस पोस्ट में हम आपको जीरो के इतिहास की पूरी जानकारी विस्तार से देने वाले है।

Contents

  • 1 Zero क्या है
  • 2 ज़ीरो का आविष्कार किसने किया था
    • 2.1 शुन्य की खोज कब हुई और कहा हुई?
    • 2.2 शुन्य का इतिहास (History of Zero in Hindi)
  • 3 आर्यभट्ट ने किसकी खोज की थी?
  • 4 FAQs
    • 4.1 शुन्य का अविष्कार किस देश में हुआ था?
    • 4.2 जीरो के आविष्कार से पहले गणना कैसे की जाती थी?

Zero क्या है

जीरो का आविष्कार कब और कहां हुआ था? - jeero ka aavishkaar kab aur kahaan hua tha?

जीरो जिसे शुन्य के नाम से भी जाना जाता है एक गणितीय अंक है या यह कह सकते है की यह एक सबसे छोटी संख्या है जो की नेगेटिव नहीं होती है।

वैसे तो जीरो को सबसे छोटी संख्या माना जाता है क्योकि जब तक यह संख्या किसी भी संख्या के आगे लगी हुयी है तब तक उस संख्या में मान में कोई बदलाव नहीं होता है। जीरो का खुद का कोई मान नहीं होता है।

लेकिन अगर जीरो को किसी भी संख्या के पीछे लगा दिया जाए तो उस सख्या का मान दस गुना बढ़ जाता है। चलिए एक उदाहरण के माध्यम से इसे समझते है।

जैसे अगर हम एक संख्या लेते है 8 और अगर हम इसके आगे जीरो लगते है तो यह 08 हो जाता है और इसके मान में कोई बदलाव नहीं होता है लेकिन इसी 8 से अगर पीछे 0 लगा दिया जाये तो यह 80 हो जाता है और 80 के पीछे एक और 0 लगा दे तो यह 800 हो जाता है।

तो इस प्रकार जीरो किसी भी संख्या के पीछे जुड़कर उसके मान में दस गुना वृद्वि कर देता है।

ज़ीरो का आविष्कार किसने किया था

जीरो के आविष्कार को गणितीय क्षेत्र में क्रांति लाने वाली खोज माना जाता है क्योकि अगर आज भी जीरो का आविष्कार नहीं हुआ होता तो शायद गणित वर्तमान में जितनी मुश्किल है उससे भी कई गुना ज्यादा मुश्किल होती।

जीरो के आविष्कार से पहले गणितज्ञों को गणित की किसी भी समस्या को हल करने में बहुत सी कठिनायों का सामना करना पड़ता था लेकिन शुन्य के खोज के पश्चात गणित में थोड़ी सरलता आयी है।

आपको बता दे शुन्य के आविष्कार का श्रेय ब्रह्मगुप्त को जाता है जो एक बहुत प्रसिद्व भारतीय गणितज्ञ थे। ब्रह्मगुप्त ने ही सबसे पहले शुन्य को सिद्धांतो सहित प्रस्तुत किया था।

ब्रह्मगुप्त से पहले भी शुन्य का प्रयोग किया गया था। आपको बता दे महान भारतीय गणितज्ञ और ज्योतिष आर्यभट्ट ने ब्रह्मगुप्त से पहले शुन्य का प्रयोग किया था और इसी कारण बहुत से लोग आर्यभट्ट को भी गणित के जनक के रूप में जानते है।

लेकिन चुकीं इन्होने शुन्य से सम्बंधित कोई भी सिद्धांत नहीं दिया था इस कारण इन्हे शुन्य के आविष्कार का मुख्य श्रेय नहीं दिया जाता है।

वर्तमान में हमे शुन्य की जो सटीक परिभाषा मिलती है या जिस शुन्य का हम गणितीय गणना करने में इस्तेमाल करते है उसमे कई गणितज्ञों का योगदान रहा है और शुन्य की खोज को लेकर कई मतभेद भी है।

शुन्य की खोज कब हुई और कहा हुई?

शुन्य के आविष्कार को लेकर कोई भी सटीक जानकारी नहीं दी जा सकती है क्योकि शुन्य के आविष्कार से पहले भी कई प्रतीकों का इस्तेमाल किया जाता था।

लेकिन सं 628 ईस्वी में ब्रह्मगुप्त ने सही सटीक सिद्धांतो के साथ शुन्य का इस्तेमाल किया था इसी इसी समय को गणित की खोज का समय कहाँ जा सकता है लेकिन इससे पहले भी आर्यभट्ट ने शुन्य का प्रयोग किया था।

अगर बात करे जीरो का आविष्कार किस देश में हुआ तो आपको बता दे इस खोज का मुख्य श्रेयकर्ता हमारा भारत देश है क्योकि भारत में ही शुन्य का आविष्कार हुआ है।

शुन्य का इतिहास (History of Zero in Hindi)

अगर जीरो के इतिहास की बात की जाए तो आपको बता दे शुन्य का इतिहास काफी पुराना है। आविष्कार से कई वर्षो पहले से ही शुन्य का इस्तेमाल किया जा रहा है।

भारत के कई पुराने मंदिरो और पुरातत्वों में या कई ग्रंथो में इसका प्रयोग देखा जा सकता है और इसी कारण इसके आविष्कार के सटीक समय को बताना काफी मुश्किल है लेकिन यह जरूर कहाँ जा सकता है की जीरो का आविष्कार भारत की ही देन है।

ब्रह्मगुप्त द्वारा शुन्य का अविष्कार करने से पहले शुन्य को मात्र एक स्थानधारक के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। पहले के समय गणना सभी जगह की जाती थी लेकिन सभी के प्रतिक अलग अलग थे लेकिन ब्रह्मगुप्त द्वारा जीरो का सटीक सिद्धांत देने के बाद इसका उपयोग बढ़ने लगा और यह गणित का एक मुख्य हिस्सा बन गया।

जीरो को कई नामो से जाना जाता है, भारत में जीरो को शुन्य के नाम से जाना जाता है जो की एक संस्कृत शब्द है। जीरो का इस्तेमाल भारत देश से ही शुरू हुआ और बाद में धीरे धीरे पुरे देश में विकसित हो गया।

आर्यभट्ट ने किसकी खोज की थी?

बहुत से लोग जीरो का खोजकर्ता या आविष्कारक आर्यभट्ट को मानते है तो चलिए जानते है आर्यभट्ट का शुन्य के आविष्कार में कितना योगदान रहा है?

आर्यभट्ट ने शुन्य की अवधारणा दी थी उनका मानना था की एक ऐसा अंक होना चाहिए जो दस अंको के प्रतीक के रूप में दस का प्रतिनिधित्व कर सके और एकम अंको में शुन्य जिसका कोई मान नहीं हो को प्रदर्शित कर सके।

आसान भाषा में समझे तो उन्होंने अवधारणा की थी की कोई ऐसा अंक हो जो किसी भी संख्या के आगे जुड़े तो उसके मान में कोई बदलाव नहीं हो लेकिन अगर वह किसी संख्या के पीछे लग जाए तो उसके मान में दस गुना बढ़ोतरी कर दे।

आपको बता दे शुन्य के आविष्कार का श्रेय ब्रहगुप्त और आर्यभट्ट के अलावा एक और गणितज्ञ श्रीधराचार्य को जाता है इन्होने आठवीं शताब्दी में शुन्य के गुण स्पष्ट किये थे।

FAQs

शुन्य का अविष्कार किस देश में हुआ था?

शुन्य का आविष्कार हमारे भारत देश में हुआ था।

जीरो के आविष्कार से पहले गणना कैसे की जाती थी?

जीरो के आविष्कार से पहले जीरो को एक स्थानधारक के रूप में इस्तेमाल किया जाता था क्योंकि इसके बारे में कोई सटीक सिद्धांत नहीं दिए गए थे।

Conclusion –

उम्मीद करते है आपको हमारी यह पोस्ट ज़ीरो का आविष्कार किसने किया जरूर पसंद आयी होगी और इस पोस्ट में साझा की गयी जानकारी आपके लिए उपयोगी रही होगी। अगर आपको इस पोस्ट से सम्बंधित किसी भी प्रकार का कोई Doubts है तो हमे कमेंट करके जरूर बताये और पोस्ट को सोशल मीडिया में माध्यम से शेयर जरूर करें।