बीहड़ का निर्माण कैसे होता है? - beehad ka nirmaan kaise hota hai?

बीहड़ क्या है- बीहड़ गंगा के मैदान का दक्षिणी सीमा पर सर्वाधिक रूप से विस्तृत भाग हैं, नदियों के बहाव के चलते बड़ी मात्रा में भूमि के कटाव को बीहड़ कहा जाता हैं. चम्बल और सोन नदियों द्वारा सर्वाधिक बीहड़ क्षेत्र बनाया जाता हैं.  नदियों के कटे भाग को बीहड़ कहते हैं. राजस्थान में सर्वाधिक बीहड़ चम्बल नदी का हैं. चम्बल नदी सवाई माधोपुर करौली धौलपुर के क्षेत्र में बड़े स्तर पर भूमि का कटाव करते हुए गहरे गड्डे तथा अनुपयोगी भूमि बनाती हैं. चम्बल के बीहड़ को डाकुओं के बीहड़ के रूप में भी जाना जाता हैं इन्हें डाग और खादर भी कहते हैं. भूमि कटाव के क्षेत्रफल के लिहाज से राजस्थान में सर्वाधिक बीहड़ भूमि धौलपुर में हैं.

बीहड़ क्या है ?

बीहड़ का निर्माण कैसे होता है? - beehad ka nirmaan kaise hota hai?

इन चित्रों को देखकर आप बीहड़ के बारे में अनुमान लगा सकते हैं ये क्या होता है तथा कैसे बनता हैं. 2.19 लाख हैक्टेयर व सात जिलों में इनका फैलाव अधिक हैं. माना जाता हैं बीहड़ो की उत्पत्ति हिमालय के समय ही हुई थी. अनगिनत मिटटी के ये छोटे छोटे टीले वर्षा तथा जल के बहाव के अनुसार बदल जाते हैं.

चम्बल के बीहड़ क्षेत्र का विस्तार धौलपुर, करौली, सवाई माधोपुर, उत्तर प्रदेश में इटावा, मध्यप्रदेश में मुरैना, भिण्ड, श्योपुर इत्यादि जिलों में सर्वाधिक हैं. यह क्षेत्र चोर तथा डाकुओं के लिए सुरक्षित माना जाता हैं अधिकतर अपराधी यही आकर शरण लेते हैं. भूल भुलैया जैसी प्राकृतिक स्थिति के चलते यहाँ पुलिस भी राह भूल बैठती हैं.

सर्वाधिक बीहड़ भूमि वाला जिला

भारत देश में सबसे अधिक बीहड़ भूमि वाले जिले में राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों का नाम आता है। सबसे ज्यादा बीहड़ भूमि धौलपुर जिले में है। इसके पश्चात राजस्थान के करौली, सवाई माधोपुर जिले में भी अधिक बीहड़ भूमि है।

वही उत्तर प्रदेश के इटावा में भी बीहड़ भूमि है तथा मध्य प्रदेश राज्य के मुरैना, भिंड, शयोपुर इत्यादि में भी अधिक बीहड़ भूमि है। बीहड़ भूमि डाकू के छुपने के लिए सबसे सुरक्षित स्थान माना जाता है। हालांकि वर्तमान के समय में डाकुओं की संख्या तो कम हो गई है परंतु जो शातिर अपराधी हैं वह पुलिस से बचने के लिए बीहड़ भूमि में आकर के ही छुपते हैं।

क्योंकि यहां पर पुलिस भी आने से डरती है। इसलिए डाकुओं को बीहड़ में रुकना सुरक्षित लगता है। बीहड़ की रचना भूल भुलैया जैसी होती है। इसलिए पुलिस भी अक्सर यहां पर आने से बचती है।

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रात के समय में बीहड़ भूमि का नजारा बहुत ही डरावना होता है। बीहड़ भूमि में कुछ खूंखार डाकू भी हुए हैं। इनमें पान सिंह तोमर, निर्भय सिंह गुर्जर,रामबाबू गडरिया,सीमा परिहार, फूलन देवी जैसे डाकू के नाम लिए जाते हैं।

बीहड़ भूमि में दूर-दूर तक कोई भी नहीं दिखाई देता है। यहां पर खेती भी नहीं होती है। यहां पर इक्का-दुक्का लोग ही रहते हैं जो बीहड़ भूमि में रहने के आदी होते हैं।

FAQ: 

Q: बीहड़ किसे कहा जाता है?

ANS: जो इलाके निर्जन होते हैं और जहां पर दूर-दूर तक इंसान नहीं होते हैं उसे बीहड़ कहा जाता है।

Q: भारत में सबसे अधिक बीहड़ भूमि वाला राज्य कौन सा है?

ANS: भारत में सबसे अधिक बीहड़ भूमि वाला राज्य राजस्थान और मध्य प्रदेश है।

Q: उत्तर प्रदेश का कौन सा जिला बीहड़ भूमि में आता है?

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प्राकृतिक स्थिति से छेड़छाड़ की वजह से चंबल नदी में गाद और बाढ़ का खतरा बढ़ने की आशंका है। 

भूमि हृास दुनिया के कई हिस्सों में एक गंभीर पर्यावरणीय चुनौती का रूप ले चुका है। घाटी, भूमि हृास का ही एक रूप है जो भूमि के अत्यधिक विच्छेदित भागों का निर्माण करती है। घाटी बनने का प्रमुख कारण पानी का तेज बहाव है जो मुख्य रूप से प्राकृतिक प्रक्रिया है, किंतु मनुष्य की गतिविधियों के कारण इसकी तीव्रता बढ़ सकती है। वैश्विक अनुमान के अनुसार कुल हृास क्षेत्र न्यूनतम 100 करोड़ हेक्टेयर से लेकर अधिकतम 6 अरब हेक्टेयर हो सकता है, जिसके स्थान संबंधी वितरण में भी इतना ही अंतर है। कृषि-आधारित देशों में भूमि हृास का विकास और कल्याण पर काफी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

भारत में पानी से मृदा का कटाव, भूमि हृास के सबसे महत्वपूर्ण कारणों में से एक है। केवल भारत में लगभग 3.61 करोड़ हेक्टेयर भूमि पानी द्वारा कटाव से प्रभावित है। इस श्रेणी में सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्र गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश हैं। मध्य भारत में चंबल घाटी देश के सबसे प्रभावित क्षेत्रों में से है। चंबल मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में कटाव से प्रभावित क्षेत्र है, जिसे आमतौर पर घाटी के रूप में जाना जाता है। चंबल यमुना नदी की एक महत्वपूर्ण सहायक नदी चंबल नदी के किनारे स्थित है। स्थानीय रूप से बीहड़ के नाम से प्रचलित चंबल घाटी भारत का सबसे निम्नीकृत भूखंड है। चंबल के बीहड़ में बड़े नाले और अत्यधिक विच्छेदित घाटी शामिल है। यह क्षेत्र अपने कमतर विकास और उच्च अपराध दर के लिए जाना जाता है। चंबल नदी घाटी का लगभग 4,800 वर्ग मीटर का क्षेत्र इस बीहड़ के अंतर्गत आता है जिसका विकास मुख्य रूप से चंबल नदी के दोनों किनारों पर हुआ है, जो इस इलाके की जीवन रेखा है। चंबल के किनारे पर घाटी का गठन काफी सघन है जिसका 5 से 6 किमी. का क्षेत्र गहरे नालों के जाल से बंटा हुआ है। कई छोटे और बड़े नाले अंतत: नदी में मिलकर नदी प्रणाली में गाद को काफी बढ़ा देते हैं। पानी के प्रवाह के कारण उत्पन्न गाद को इस घाटी प्रभावित क्षेत्र की एक प्रमुख संचालक शक्ति माना जाता है।

इस घनी आबादी वाले क्षेत्र की सामाजिक-आर्थिक संरचना काफी जटिल है। गांवों में रहने वाले 80 प्रतिशत से अधिक लोग मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर हैं। इस क्षेत्र में कोई बड़ा उद्योग नहीं है तथा जीवनयापन के अन्य विकल्प भी सीमित हैं। इसलिए, भूमि पर निर्भरता काफी अधिक है। भूमि के कटाव और नालों की संरचना, जो उनकी भूमि की उपलब्धता को और कम करती है, का सामना कर रहे क्षेत्र के किसान इससे निपटने के कई वैकल्पिक तरीके अपनाते आये हैं।

इन समस्याओं से निपटने के तरीकों में बांध की रूपरेखा बनाना, चैनलिंग, नालों का रास्ता बदलना, फसल उगाने के तरीकों में परिवर्तन तथा सबसे महत्वपूर्ण, भूमि को समतल बनाना शामिल है। भारी एवं आधुनिक मशीनरी की अधिकाधिक उपलब्धता के कारण हाल के वर्षों में भूमि को समतल करने के काम में   अत्यधिक बढ़ोतरी हुई है। हालांकि इस इलाके में सर्वेक्षण के दौरान, किसानों ने समतल की गई भूमि की गुणवत्ता एवं उत्पादकता के संबंध में निराशा प्रकट की। अपनी भूमि के एक हिस्से को समतल करने के लिए मशीनरी किराए पर लेने के चलते भारी कर्ज लेने वाले एक अधेड़ किसान ने बताया, “ज्यादातर मामलों में, समतल की गई भूमि अनुत्पादक हो जाती है तथा भूमि को समतल बनाये रखना एक महंगा काम है।”

बीहड़ का निर्माण कैसे होता है? - beehad ka nirmaan kaise hota hai?

पंपसेट वाले कुछ गांवों और कुछ संपन्न किसानों को छोड़कर, इस क्षेत्र में कृषि पूरी तरह से वर्षा पर आधारित है। समतल की गई सिंचित भूमि शुरुआती वर्षों में उत्पादक और फायदेमंद साबित होती है। परन्तु निकट भविष्य में ही समतल की गई भूमि पर लगातार सिंचाई से और कटाव शुरू हो जाता है क्योंकि खेतों के बीच में नालियां और छोटे गड्ढे बनने लगते हैं। समतल की गई भूमि की देखभाल करना बहुत श्रम–साध्य प्रक्रिया है क्योंकि इस भूमि को दोबारा भरकर, दबाकर, पुश्ते बनाकर तथा बाड़ लगाकर रखरखाव करने की निरंतर आवश्यकता होती है। यह ध्यान दिया गया है कि पिछले 40 वर्षों (1970 के दशक के मध्य से लेकर 2014 तक) के दौरान निचली चंबल घाटी में लगभग 600 वर्ग किमी. के क्षेत्र को समतल किया गया है। मिट्टी के टीलों को तोड़ने के लिए मशीनरी किराए पर लेने की लागत 800 रुपए प्रति घंटा है। भूमि की निकटता और वहां तक पहुंच जैसे कारणों के आधार पर समतल की जाने वाली भूमि का चुनाव किया जाता है। इस प्रकार बिना पूर्वनियोजन के समतल की गई भूमि पर रखरखाव की लागत बढ़ जाती है।

बीहड़ एकीकृत पारिस्थितिकी तंत्र का एक हिस्सा है। भूमि को समतल करने से न केवल पारिस्थितिकी नष्ट होती है बल्कि मिट्टी की ऊपरी परत भी ढीली हो जाती है जिसके कारण मिट्टी के कटाव का खतरा बढ़ जाता है तथा भूमि और नालियां बनने के लिए संवदेनशील हो जाती है। भूमि को समतल करने में तथा खेती शुरु करने में एक वर्ष का समय लगता है। अनियमित बारिश वाले वर्षों में हालात और भी खराब हो जाते हैं क्योंकि लगातार भारी बारिश होने से खेतों में बड़े पैमाने पर मिट्टी का कटाव शुरू हो जाता है। समतल की गई भूमि पर नालियों के बनने की प्रक्रिया और अतिक्रमण अधिक स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ता है। यदि ध्यान नहीं दिया गया तो थोड़े ही समय में बहुमूल्य अछूती भूमि भी नालियों के कटाव का शिकार बन जाएगी।

भूमि को समतल बनाने का प्रभाव क्षेत्र की सामाजिक-आर्थिक असमानता पर भी पड़ता है। भूमि को समतल बनाने की भारी भरकम लागत को देखते हुए यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि केवल वे लोग ही भूमि को समतल बनाकर उसे खेती योग्य बनाए रख सकते हैं जिनके पास पर्याप्त श्रम शक्ति है और धन है। प्रत्येक बारिश के बाद नालों के सिरों को दोबारा भरने और भूमि को समतल बनाए रखने के लिए निरंतर देखभाल और निगरानी की जरूरत है। घाटी की भूमि के एक बड़े हिस्से को हर वर्ष समतल किया जा रहा है तथा जंगल समेत साझा भूमि और चारागाहों की भूमि में गिरावट आ रही है। इस प्रकार बीहड़ को समतल करने से साझा भूमि के निजीकरण की संभावना पैदा हो गई है। यद्यपि छोटे किसान भी भूमि को समतल बनाते हैं, तथापि ग्रामीण किसानों के शक्ति संपन्न तबके ने इसका सबसे ज्यादा फायदा उठाया है।

ग्रामीणों के साथ हमारी सामूहिक चर्चाओं के दौरान स्थानीय लोगों के जीवनयापन के साधन के रूप में बीहड़ के कई उपयोग सामने आए। यह प्राकृतिक स्थल बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह ईंधन की लकड़ी का प्रमुख स्रोत है जिनमें कीकर, बबूल, पारबती, केर आदि वृक्ष प्रमुख हैं। जंगली फल जैसे टेंटी और बेर आचार बनाने के लिए इकट्ठा किया जाता जिसका इस्तेमाल घरेलू उपभोग और आसपास के बाजारों में बेचने के लिए किया जाता है। इसके अलावा लोग हमेशा से घाटी की जमीन का इस्तेमाल अपने मवेशियों के लिए चारागाह के रूप में करते रहे हैं। ऐसी भूमि का अधिक्रमण करने से और उसे समतल बनाने से साझा भूमि निजी भूमि में बदल गई है तथा इसके परिणामस्वरूप सामान्य ग्रामीणों, विशेष रूप से सामाजिक रूप से पिछड़े वर्ग से संबंध रखने वाले ग्रामीणों की इस भूमि तक पहुंच को पूरी तरह से खत्म कर दिया गया है।

बीहड़ का निर्माण कैसे होता है? - beehad ka nirmaan kaise hota hai?

हमारे क्षेत्र सर्वेक्षण के दौरान, कई भूमिहीन लोगों ने बताया कि पहले वे अपने मवेशियों को चराने के लिए बीहड़ पर निर्भर थे, जो अब आसानी से उपलब्ध नहीं है। इस कारण मवेशियों की जनसंख्या कम हो गई है तथा वर्षा आधारित कृषि और मवेशियों के बीच का जैविक संबंध टूट गया है। कई भूमिहीन और सीमांत किसानों के लिए इसका मतलब पास के शहरों की ओर पलायन है जहां वे कामगार, घरेलू नौकर और फैक्टरी मजदूर के रूप में काम करने के लिए मजबूर हैं। बीहड़ का विनाश और बड़े किसानों तथा प्रभावशाली व्यक्तियों द्वारा इस पर कब्जा करने के लिंग संबंधी आयाम भी हैं। इस मुद्दे पर आधारित सामूहिक चर्चा के दौरान कई महिलाओं ने घास-फूस के इस्तेमाल से घर के अंदर होने वाले प्रदूषण के कारण स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं की शिकायत की थी। इसका प्रभाव बच्चों के स्वास्थ्य पर पड़ता है। बीहड़ से ईंधन की लकड़ी इकट्ठा करना दिन-ब-दिन मुश्किल होने के कारण पिछले कुछ वर्षों के दौरान घास-फूस का इस्तेमाल बढ़ा है, विशेषकर आर्थिक रूप से कमजोर घरों में।  ऐसे परिवर्तन स्थानीय अर्थव्यवस्था तथा समाज को और विघटन की ओर ले गए हैं जिसके कारण उत्पीड़न और अपराध के लंबे इतिहास वाले इस क्षेत्र में सामाजिक असमानता और मतभेदों में वृद्धि हुई है।

दूसरी ओर, प्राकृतिक आवास के नष्ट होने के कारण जंगली जानवर आमतौर पर खेतों में घुस आते हैं तथा खड़ी फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं। अनेक किसानों ने जंगली जानवरों द्वारा हो रहे नुकसान को न रोक पाने की अपनी व्यथा हमारे साथ बांटी। उनमें से कुछ ने अरहर की खेती करना ही छोड़ दिया है, जिसे उगाने में अधिक समय लगता और लंबे समय तक उसकी सुरक्षा करनी पड़ती है। कभी-कभी इस समस्या के कारण उन्हें जमीन खाली छोड़ने पर मजबूर होना पड़ता है।

अत्याधुनिक मशीनरी की उपलब्धता और सड़क संपर्क में सुधार होने के साथ ही इस क्षेत्र में भूमि को समतल करने के काम में और तेजी आई है। भूमि को समतल करने के लिए मशीनरी किराए पर देना शक्ति संपन्न स्थानीय लोगों के लिए कारोबार करने के अवसर के रूप में सामने आया है। अतिशय भूमि का औद्योगीकरण के लिए इस्तेमाल की योजना है। इस क्षेत्र की संवेदनशील पारिस्थितिकी के लिए इनके दीर्घकालीन प्रभावों के चलते ऐसी योजनाओं की सावधानीपूर्वक जांच करने की जरूरत है। ऐसे स्थान पर जहां प्राकृतिक प्रक्रियाएं अब भी सक्रिय हैं, उद्योग, गौशाला आदि की योजना बनाना उचित नहीं होगा। भू-आकृति विज्ञान के संदर्भ में, यह क्षेत्र अब भी संतुलन की स्थिति में नहीं है, यह अब भी  भूगर्भीय अपरदन की प्रक्रियाओं के नियंत्रण में है।

मृदा अपरदन के प्रभाव को कम-से-कम करने के लिए संवेदनशील पारिस्थितिकी वाले इस क्षेत्र के लिए संरक्षण और विकास की अधिक वैज्ञानिक, सुव्यवस्थित और संवेदनशील योजना बनाने की आवश्यकता है। इस क्षेत्र में कोई भी अन्य निर्माणगत गतिविधि मिट्टी के अधिक नुकसान का कारण बनेगी तथा नदी में बड़ी मात्रा में गाद इकट्ठा हो जाएगी जिसके कारण नदी के पूरे पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव पड़ता है। इससे नि:संदेह आगे और बाढ़ आएगी। भूमि को समतल करने के अल्पकालिक लाभ से बड़ा नुकसान हो सकता है, जिसे पलटा नहीं जा सकता। नुकसान होने के बाद उसकी चिंता करने से बेहतर है कि इसे रोका जाए। बीहड़ को समतल करने से पारिस्थितिकीय प्रभाव न केवल ऐसी अद्भुत प्राकृतिक छटा को हानि पहुंचाएगा; बल्कि इससे सामाजिक सौहार्द पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा, मतभेद बढ़ेंगे और इससे गरीबों पर पलायन का संकट खड़ा हो जाएगा। अतः संवेदनशील पारिस्थितिकी के प्रति सर्वांगीण दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है। चंबल घाटी के प्रति आर्थिक लाभ की संकीर्ण सोच सही नहीं होगी। पैसे से प्रकृति की कीमत नहीं आंकी जा सकती।

(लेखक जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली में सहायक प्रोफेसर हैं)

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बीहड़ भूमि क्या होती है?

बीहड़ क्या है- बीहड़ गंगा के मैदान का दक्षिणी सीमा पर सर्वाधिक रूप से विस्तृत भाग हैं, नदियों के बहाव के चलते बड़ी मात्रा में भूमि के कटाव को बीहड़ कहा जाता हैं. चम्बल और सोन नदियों द्वारा सर्वाधिक बीहड़ क्षेत्र बनाया जाता हैं. नदियों के कटे भाग को बीहड़ कहते हैं. राजस्थान में सर्वाधिक बीहड़ चम्बल नदी का हैं.

कौन सी नदी बीहड़ का निर्माण करती है?

Detailed Solution. विकल्प 2 सही उत्तर है: चंबल नदी के बेसिन में आमतौर पर बीहड़ पाए जाते हैं। बीहड़ प्रवाह द्वारा शीर्ष काटने के द्वारा बनाई जाने वाली नदी-संबंधी स्थालाकृति हैं।

राजस्थान में सर्वाधिक बीहड़ भूमि कौन से जिले में है?

अधिकतम बीहड़ भूमि धौलपुर में पाई जाती है।

राजस्थान में चंबल नदी की कुल लंबाई कितनी है?

चम्बल के अपवाह क्षेत्र में चित्तौड़, कोटा, बूँदी, सवाई माधौपुर, करौली, धौलपुर इत्यादि इलाके शामिल हैं। तथा सवाई माधोपुर, करौली व धौलपुर से गुजरती हुई राजस्थान व मध्यप्रदेश की सीमा बनाते हुए चलती है जो कि 252 किलोमीटर की है।