2.विजन किसी व्यापारिक नगर से क्यों श्रेष्ठ है - 2.vijan kisee vyaapaarik nagar se kyon shreshth hai

 इकाई 1 प्रकृति और पर्यावरण

पाठ 1 चन्द्रगहना से लौटती बेर

  -केदारनाथ अग्रवाल 

2.विजन किसी व्यापारिक नगर से क्यों श्रेष्ठ है - 2.vijan kisee vyaapaarik nagar se kyon shreshth hai

सप्रसंग व्याख्या 

 देख आया चन्द्रगहना ! देखता हूँ दृश्य अब मैं मेड़ पर इस खेत की बैठा अकेला । एक बीते के बराबर यह हरा ठिंगना चना , बाँधे मुरैठा शीश पर छोटे गुलाबी फूल का , सज कर खड़ा है । पास ही मिल कर उगी है बीच में अलसी हठीली , देह की पतली , कमर की है लचीली , नील फूले फूल को सिर पर चढ़ाकर कह रही हैं , जो छुए यह , दूँ हृदय का दान उसको । 

संदर्भ - प्रस्तुत पद्यांश कवि केदारनाथ अग्रवाल द्वारा रचित काव्य “ चन्द्रगहना से लौटती बेर " से लिया गया है |

प्रसंग – इसमें चन्द्रगहना नामक स्थान से लौटते समय खेतों में उगी चना और अलसी की फसल का वर्णन किया है । 

व्याख्या - कवि कहते हैं - मैं चन्द्रगहना देखकर आया हूँ । खेत की मेड़ पर बैठकर अकेले में मैंने जो दृश्य देखा उसका वर्णन कर रहा हूँ । खेत में एक बालिश्त नाप के चने के पौधे उगे हैं ऐसा लगता है मानों उसके सिर पर गुलाबी फूल की पगड़ी सजी हुई दिख रही है । उसके पास अलसी के पतली कमर के पौधे उगे हैं । उन पर खिले नीले फूल ऐसे प्रतीत हो रहे हैं मानो जो उन्हें छुयेगा उस पर अपना हृदय न्यौछावर कर देंगे । 

विशेष - प्राकृतिक दृश्यों का मानवीकरण , छायावादी कविता , मानवीकरण अलंकार , मुक्त छंद ।

2.  और सरसों की न पूछो हो गयी सब से सयानी , हाथ पीले कर लिये हैं , ब्याह - मंडप में पधारी फाग गाता मास फागुन , आ गया है आज जैसे । देखता हूँ मैं स्वयंवर हो रहा है , प्रकृति का अनुराग - अंचल हिल रहा है इस विजन में , दूर व्यापारिक नगर से प्रेम की प्रिय भूमि उपजाऊ अधिक है ।

संदर्भ - प्रस्तुत पद्यांश कवि केदारनाथ अग्रवाल द्वारा रचित काव्य “ चन्द्रगहना से लौटती बेर " से लिया गया है |

प्रसंग - लौटते समय खेतों में उगी सरसों और फागुन मास का वर्णन किया है । 

व्याख्या - कवि कहते हैं कि खेत में सरसों की फसल तैयार हो गयी है । फागुन मास के पूर्व ही सरसों के पीले फूल ऐसे प्रतीत होते हैं मानो वयस्क होने के कारण उसके हाथ पीले हो गये हैं और विवाह के लिये तैयार है । फाग गाता हुआ फागुन मास ऐसा प्रतीत हो रहा है मानों प्रकृति का स्वयंवर हो रहा है । इससे प्रकृति का प्रेम रूपी आँचल हिल रहा है । इस निर्जन क्षेत्र की भूमि दूर के व्यापारी नगर की अपेक्षा अधिक उपजाऊ है । 

विशेष- प्रकृति का मानवीकरण , मानवीकरण अलंकार , छायावाद मुक्त छंद ।

 3 . और पैरों के तले है एक पोखर , उठ रहीं इसमें लहरियाँ , नील तल में जो उगी है घास भूरी ले रही वह भी लहरियाँ । एक चाँदी का बड़ा - सा गोल खम्भा आँख को है चकमकाता । हैं कई पत्थर किनारे पी रहे चुपचाप पानी , प्यास जाने कब बुझेगी ! चुप खड़ा बगुला डुबाए टाँग जल में , देखते ही मीन चंचल ध्यान - निद्रा त्यागता है , चट दबाकर चोंच में नीचे गले के डालता है ।

संदर्भ - प्रस्तुत पद्यांश कवि केदारनाथ अग्रवाल द्वारा रचित काव्य “ चन्द्रगहना से लौटती बेर " से लिया गया है |

प्रसंग- इसमें कवि ने गाँव के तालाब , वनस्पति और उस पर बैठे पक्षियों का वर्णन किया है ।

व्याख्या - कवि कहते हैं कि चन्द्रगहना गाँव की तलहटी में एक तालाब है । तालाब में उठने वाली लहरों के साथ उसमें उगी घास भी लहरा रही है । जल का स्वच्छ तल चाँदी के खम्भे के समान दिखाई दे रहा है । किनारे के पत्थर पानी पीते हुए प्रतीत हो रहे हैं । उसी जल में अपने पैर रखकर बगुला ध्यान लगाये खड़ा है किन्तु मछली की आहट पाते ही ध्यान भंग कर तुरन्त उसे निगल जाता है । 

विशेष - तालाब को चाँदी के खम्भे की भाँति देखना , उत्प्रेक्षा अलंकार , मुक्त छंद कविता ।

4 . एक काले माथे वाली चतुर चिड़िया श्वेत पंखों के झपाटे मार फौरन टूट पड़ती है भरे जल के हृदय पर , एक उजली चटुल मछली चोंच पीली में दबाकर दूर उड़ती है गगन में ! औ यहीं से भूमि ऊँची है जहाँ से रेल की पटरी गई है । ट्रेन का टाइम नहीं है ।

संदर्भ - प्रस्तुत पद्यांश कवि केदारनाथ अग्रवाल द्वारा रचित काव्य “ चन्द्रगहना से लौटती बेर " से लिया गया है |

प्रसंग - इसमें में कवि ने पोखर और उस पर उड़ते पक्षी , अन्दर पायी जाने वाली मछली का वर्णन किया है ।

 व्याख्या - कवि कहते हैं कि एक काले सिर वाली चतुर चिड़िया सफेद पंख फैलाकर झपटकर तालाब की मछली को पकड़कर दूर आकाश में उड़ जाती है । इसी तालाब के पास ऊँची - नीची असमतल भूमि है जहाँ से रेल की पटरी गुजरती है किन्तु जब कवि वहाँ थे तब रेल के जाने का समय नहीं था ।

 विशेष - प्राकृतिक दृश्यों का वर्णन , मुक्त छंद कविता ।

5. मैं यहाँ स्वच्छन्द हूँ, जाना नहीं है । चित्रकूट की अनगढ़ चौड़ी कम ऊँची - ऊँची पहाड़ियाँ दूर दिशाओं तक फैली हैं । बाँझ भूमि पर इधर - उधर रींवा के पेड़ काँटेदार कुरूप खड़े हैं । 

संदर्भ - प्रस्तुत पद्यांश कवि केदारनाथ अग्रवाल द्वारा रचित काव्य “ चन्द्रगहना से लौटती बेर " से लिया गया है |

प्रसंग - प्रकृति का वर्णन करते हुए कवि लिखते हैं ।

 व्याख्या- मैं यहाँ स्वच्छन्द होकर घूम - फिर रहा हूँ । मुझे जाना कहीं नहीं है । चित्रकूट के आस - पास प्राकृतिक रूप से बनी ऊँची - नीची पहाड़ियाँ फैली हैं । दूर - दूर तक इनका विस्तार है । बंजर भूमि पर इधर - उधर बबूल जैसे ही काँटेदार पौधे जिनका कोई विशेष रूप नहीं होता वे फैले हुए है ।

विशेष- पहाड़ी भागों के प्राकृतिक दृश्यों का वर्णन , मुक्त छंद

6. सुन पड़ता है मीठा - मीठा रस टपकाता सुग्गे का स्वर टें टेंटें टें ; सुन पड़ता है वनस्थली का हृदय चीरता , उठता - गिरता , सारस का स्वर टिरटों - टिरटों ; मन होता है उड़ जाऊँ मैं पर फैलाए सारस के संग जहाँ जुगुल जोड़ी रहती है हरे खेत में , सच्चे प्रेम कहानी सुन लूँ चुप्पे - चुप्पे ।

संदर्भ - प्रस्तुत पद्यांश कवि केदारनाथ अग्रवाल द्वारा रचित काव्य “ चन्द्रगहना से लौटती बेर " से लिया गया है |

प्रसंग - वन प्रदेश एवं पक्षियों का वर्णन किया गया है । 

व्याख्या - कवि कहते हैं कि इसी बंजर भूमि पर उगे पेड़ों पर तोते का टें - टें का स्वर सुनाई देता है । जिसमें मिठास भरी है । वनों में नीरवता को भंग करता सारस का टिरंटों टिरंटों का स्वर सुनाई देता है । कवि कहते हैं कि मेरा मन करता है कि मैं भी इन सारस पक्षियों के साथ पंख फैलाकर उड़ जाऊँ और हरे-भरे खेत में जहाँ इनकी जोड़ी रहती है वहाँ जाकर चुप-चाप इनकी प्रेम कहानी सुन लूँ।

विशेष- वनस्थली में पक्षियों की वाणी का वर्णन, प्राकृतिक दृश्यों का वर्णन,छंद-मुक्त कविता।

अभ्यास - प्रश्न

 पाठ से

 प्रश्न 1. अलसी के मनोभावों का वर्णन कीजिए ।  

उत्तर - अलसी के पौधे पतले होने के कारण देह पतली , कमर लचीली कहा गया है । अलसी मेढ़ पर कहीं भी उग जाती है इसलिए उसे अलसी हठीली कहा गया है । अन्य पौधों के साथ उगती है इसलिए मिलकर उगी है ऐसी भावना व्यक्त की गई है ।

प्रश्न 2. विजन किसी व्यापारिक नगर से क्यों श्रेष्ठ है ? 

उत्तर- विजन - निर्जन है ,शांत है। वहाँ की भूमि प्रेम पूर्वक वनस्पति उगाती हैं इसलिए वह व्यापारी नगर से श्रेष्ठ है ।

प्रश्न 3. काले माथे वाली चिड़िया किस तरह से मछली पकड़ती है ? 

उत्तर- काले माथे वाली चिड़िया पोखर के ऊपर पंख फैलाकर उड़ती रहती है । पंखों के झपाटे मारकर मछली पकड़ लेती है ।

प्रश्न 4. कोयल का प्रसिद्ध है ?

उत्तर- कुहकना ।

 प्रश्न 5. “ बाँधे मुरैठा शीश पर ” इस पंक्ति के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है ? 

उत्तर- चने के पौधों पर खिले हुए चने के फूल ऐसे प्रतीत होते हैं जैसे सिर पर पगड़ी बाँधी है । चने के खेतों का वर्णन इस पंक्ति में कवि ने किया है ।

 प्रश्न 6. “ देखता हूँ मैं स्वयंवर हो रहा है , प्रकृति का अनुराग अंचल हिल रहा है । " इन पंक्तियों में प्रकृति के किस दृश्य की ओर संकेत किया गया है ?

उत्तर- माघ के महीने में तैयार होने वाली सरसों की फसल का वर्णन कवि ने किया है । इसके माध्यम से प्रकृति में तेजी से होने वाला परिवर्तन तथा बढ़ते ग्रीष्म का वर्णन किया है ।

प्रश्न 7. प्रेम की प्रिय भूमि को अधिक उपजाऊ क्यों बताया गया है ? 

उत्तर- प्रेम की प्रिय भूमि निर्जन है । वनस्पति कीअधिकता है। जल की निरंतर प्राप्ति होती रहती है इसलिए कवि ने प्रेम की प्रिय भूमि को अधिक उपजाऊ बताया है।

प्रश्न 8. निम्नांकित पंक्तियों के भावार्थ लिखिए 

(क) -एक चाँदी का बड़ा - सा गोल खंभा आँख को है चकमकाता ।

उत्तर- तालाब के स्वच्छ जल को चाँदी का बड़ा - सा गोल खम्भा माना है । जल स्वच्छ होने के कारण चमकदार भी दिखाई देता है । 

( ख ) सुन पड़ता है 

वनस्थली का हृदय चीरता

 उठता - गिरता 

सारस का स्वर ।

उत्तर- वनस्थली निर्जन होने के कारण सारस का स्वर ऐसा प्रतीत होता है मानों वनस्थली के हृदय को चीर कर गूँज रहा हो । 

प्रश्न 9. चने के पौधे की ऊँचाई कितनी है ? 

उत्तर- एक बित्ते के बराबर । 

प्रश्न 10. चने की सिर पर किस रंग की पगड़ी है ? 

उत्तर- गुलाबी रंग की ।

पाठ से आगे 

प्रश्न 1. अपने आस - पास के किसी प्राकृतिक स्थल का वर्णन कीजिए , जिसके दृश्य आपको इस पाठ को पढ़ते समय याद आ जाते हैं ।

उत्तर- जगदलपुर , कांकेर घाटी घूमते समय इस प्रकार का दृश्य याद आता है । घनी वनस्पति , पहाड़ी , झरने , पक्षियों का कलरव , प्रकृति का अद्भुत दृश्य सभी मन को लुभाते हैं । 

प्रश्न 2. एक कोलाहल भरे , घनी आबादी वाले नगर तथा शांत ग्रामीण अंचल की तुलना कीजिए और बताइए कि दोनों में कौन - कौन - सी बातें आपको पसंद हैं और कौन - कौन सी नापसंद । अपनी पसंदगी और नापसंदगी का कारण भी लिखते हुए इसे एक तालिका के माध्यम से दर्शाइए । 

 उत्तर- कोलाहल भरे घनी आबादी वाले नगर की तुलना में ग्रामीण अंचल अच्छा लगता है । कोलाहल से दूर , प्रकृति के समीप , पर्यावरण की शुद्धता पसंद आती है । शहरी शोर , प्रदूषण , भाग - दौड़ अच्छी नहीं लगती ।