जनपद विस्तार के लिए वे क्या-क्या तरीके अपनाते थे - janapad vistaar ke lie ve kya-kya tareeke apanaate the

जनपद और महाजनपद

जनपद वैदिक भारत के प्रमुख राज्य थे | 6ठी सदी BC तक लगभग 22 विभिन्न जनपद थे | उत्तर प्रदेश और बिहार के भागों में लोहे के विकास के साथ, जनपद ओर ज़्यादा ताकतवर हो गए और महाजनपद में तब्दील हो गए | 600 BC से 325 BC के दौरान भारत के उपमहाद्वीपों में इस तरह के 16 महाजनपद थे |

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जनपद वैदिक भारत के प्रमुख राज्य थे | 6ठी सदी BC तक लगभग 22 विभिन्न जनपद थे |

जनपद और महाजनपद से जुड़े प्रमुख बिन्दु निम्न हैं :

  • जनपद वैदिक भारत के प्रमुख राज्य थे |
  • आर्यन सबसे प्रभावशाली जाति थी और ये अपने आप को ‘जन’ कहते थे  | इसने एक नई परिभाषा दी ‘जनपद’ जिसमे जन का मतलब ‘लोग’ और पद का मतलब ‘चरण’ था |
  • उत्तर प्रदेश और बिहार के भागों में लोहे के विकास के साथ, जनपद ओर ज़्यादा ताकतवर हो गए और महा जनपद में तब्दील हो गए |
  • छठी सदी BCE में, महाजनपद या महान देश के विकास में वृद्धि हुई | 600 BC से 325 BC के दौरान  भारत के उपमहाद्वीपों में इस तरह के 16 महाजनपद थे | राज्य दो प्रकार के थे : एकतांत्रिक और गणतांत्रिक | मल्ला, वज्जि, कम्बोज और कुरु गणतांत्रिक राज्य थे जबकि मगध, कोशल, वत्स, अवन्ती, अंग, काशी, गांधार, शूरसेना, चेदि  और मत्स्य स्वभाव से एकतांत्रिक थे |

600 BC से  325 BC  के दौरान 16 महाजनपद थे जिनका उल्लेख आरंभिक बौद्ध साहित्य (अंगुत्तरा, निकाया, महावस्तु ) और जैन साहित्य (भगवती सुत्त )में किया गया है, वे 16 महाजनपद निम्न थे :

क्रम संख्यामहाजनपद का नामराजधानीस्थान
1. अंग चंपा बिहार में मुंगेर और भागलपुर के आधुनिक जिलों को शामिल करना
2. मगध पहले राजगृह, बाद में पाटलीपुत्र पटना और गया के आधुनिक जिलों और शाहबाद के कुछ हिस्सों को समाविष्ट किया
3. मल्ला कुशिनारा  और पावा में राजधानी होना देवरिया, बस्ती, गोरखपुर, और पूर्वी उत्तर प्रदेश में सिद्धार्थनगर के आधुनिक जिलों को समाविष्ट किया
4. वज्जि वैशाली बिहार में गंगा नदी के उत्तर में स्थित था
5. कोशल श्रावस्ति वर्तमान के फ़रीदाबाद, गोंडा, पूर्वी उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले को समाविष्ट किया
6. काशी वाराणसी वाराणसी (आधुनिक बनारस ) के आसपास के क्षेत्रों में  स्थित था
7. चेदि शुक्तिमति वर्तमान के बुंदेलखंड प्रांत को समाविष्ट किया
8. कुरु इंद्रप्रस्थ आधुनिक हरियाणा और दिल्ली को समाविष्ट किया
9. वत्स कौशांभी आधुनिक  ज़िले इलाहाबाद और मिर्ज़ापुर को समाविष्ट किया
10. पांचाल अहिछात्र (उत्तर पांचाल) और कंपिल्या (दक्षिण पांचाल) वर्तमान पश्चिमी उत्तर प्रदेश के क्षेत्रों से यमुना नदी के पूर्व से कोशल जनपद तक को समाविष्ट किया
11. मत्स्य विराटनगर राजस्थान में अलवर, भरतपुर और जयपुर के क्षेत्रों को समाविष्ट किया
12. शूरसेना मथुरा मथुरा के आसपास के क्षेत्रों को समाविष्ट किया
13. अवन्ती उज्जयिनी और महिष्मती पश्चिमी भारत को समाविष्ट किया
14. आष्मक पोटाना भारत के दक्षिणी हिस्से में नर्मदा और गोदावरी  नदियों के बीच स्थित था
15. कम्बोज आधुनिक कश्मीर के राजपुरा में राजधानी हिंदकुश (पाकिस्तान का आधुनिक हाज़रा ज़िला ) को समाविष्ट किया
16. गांधार तक्षिला पाकिस्तान के पश्चिमी भाग और पूर्वी अफ़्गानिस्तान को समाविष्ट किया

निष्कर्ष:

इन सभी में मगध, वत्स, अवन्ती और कोशल सबसे विशिष्ट थे | इन चारों में से मगध सबसे शक्तिशाली राज्य की तरह उभरा | मगध की जीत के कारण निम्न थे :

1) अच्छे लोहे की भारी उपलब्धता जिसका इस्तेमाल हथियार बनाने के लिए किया जाता था |

2) इसके स्थान का अच्छे और उपजाऊ गंगा के मैदान में होना |

3) हाथियों का सैन्य युद्ध में पड़ोसी देशों के खिलाफ इस्तेमाल करना |

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राजा, राज्य और गणराज्य

आप क्या सीखेंगे:

  • जनपद
  • महाजनपद
  • टैक्स

जनपद

`जनपद’ शब्द दो शब्दों ‘जन’ और ‘पद’ से मिलकर बना है। इसका मतलब वह स्थान जहाँ लोगों ने अपने पैर रखे और बस गये। अश्वमेध यज्ञ सफलतापूर्वक करने के बाद एक राजा किसी जनपद का राजा बन जाता था। आपको शायद यह पता हो कि आज भी उत्तर प्रदेश में जिले को जनपद कहा जाता है।

जनपद का आकार बड़ा होता था, लेकिन यहाँ भी लोग झोपड़ियों में रहते थे और मवेशी पालते थे। जनपद के लोग कई फसल भी उगाते थे, जैसे कि चावल, दलहन, जौ, गन्ना, तिल और सरसों। पुरातत्वविदों ने जनपद वाले कई पुरास्थलों को खोज निकाला है, जैसे कि दिल्ली का पुराना किला, मेरठ के पास हस्तिनापुर और एटा के पास अतरंजीखेड़ा।

चित्रित धूसर पात्र: लोग अक्सर मिट्टी के बरतन इस्तेमाल करते थे। कुछ बरतन लाल थे तो कुछ धूसर रंगे के थे। कुछ धूसर बरतनों पर सुंदर चित्रकारी भी होती थी। ऐसे बरतन शायद खास मौकों पर इस्तेमाल किये जाते थे।


कब कहाँ कैसे आरंभिक मानव भोजन उत्पादन आरंभिक नगर किताबें कब्रें राज्य गणराज्य नये प्रश्न विचार सम्राट अशोक खुशहाल गांव शहर व्यापारी राजा तीर्थयात्री नये साम्राज्य इमारतें किताबें

महाजनपद

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कुछ जनपद लगभग 2500 वर्ष पहले आकार में बड़े हो गये, और जनपदों से अधिक महत्वपूर्ण हो गये। इन्हें महाजनपद कहा जाने लगा। महाजनपद के कुछ उदाहरण हैं मगध, कोसल, अंग, पांचाल, आदि।

किला: महाजनपद किसी न किसी राजा की राजधानी हुआ करती थी। ऐसे नगर अक्सर किले से घिरे होते थे। किले बनाने में ईंट, पत्थर और लकड़ी का इस्तेमाल होता था। किले का निर्माण शहर को दुश्मन से बचाने के लिए किया जाता था। किले को महाजनपद की संपन्नता का प्रदर्शन करने के लिए भी बनाया जाता था। साथ में यह भी होता था कि किसी किलेबंद शहर पर नियंत्रण रखना अधिक आसान हो जाता था।

सेना: राजा एक नियमित सेना रखने लगे थे। सैनिकों को नियमित रूप से वेतन मिलने लगा था।

सिक्के: भुगतान के लिए सिक्कों का इस्तेमाल होने लगा था। सिक्कों पर पंच (आघात) करके डिजाइन बनाये जाते थे। इसलिए इन सिक्कों को आहत सिक्का या पंच क्वायन कहा जाता है। इस तरह से इस काल में वस्तु विनिमय प्रणाली से मुद्रा विनिमय प्रणाली की शुरुआत हुई।


टैक्स:

महाजनपद के राजा को किला बनवाने और सेना रखने के लिए बहुत अधिक धन की जरूरत पड़ती थी। पहले के राजा अन्य राजाओं से मिले उपहारों से अपना काम चला लेते थे। लेकिन अब केवल उपहारों से काम चलाना संभव नहीं था। इसलिए राजाओं ने कर वसूलना शुरु कर दिया। टैक्स वसूलने के लिए कुछ लोगों को काम पर भी रखा जाने लगा। टैक्स वसूलने के तरीके नीचे दिये गये हैं:

  • टैक्स के सबसे बड़े स्रोत किसान थे। उपज का छठा भाग टैक्स के रूप में लिया जाता था। इसे ‘भाग’ कहते थे।
  • शिल्पकार को मुफ्त मजदूरी के रूप में कर देना होता था। उसे महीने में एक दिन बिना मेहनताना लिए राजा के लिए काम करना होता था।
  • गड़ेरिये को टैक्स के रूप में पशु या फिर उससे जुड़ा उत्पाद देना होता था। (दूध, दही, ऊन, आदि‌)
  • व्यापार में बेचे और खरीदे जाने वाली वस्तुओं पर भी टैक्स लगाया जाता था।
  • आखेटक और भोजन-संग्राहक को जंगल के उत्पादों के रूप में टैक्स देना होता था।

कृषि में बदलाव

कृषि में दो बड़े बदलाव हुए:

  1. हल में लोहे के फाल का चलन: अब हल में लकड़ी के फाल की जगह लोहे के फाल का इस्तेमाल होने लगा। इससे खेती लायक जमीन का आकार बढ़ाने में काफी मदद मिली। इससे पैदावर बढ़ने लगी।
  2. धान की रोपनी: आपने खेतों में या टेलिविजन पर धान की रोपनी होते हुए देखा होगा। पहले धान के बीजों को जमीन के छोटे टुकड़े पर बोया जाता है। जब छोटे-छोटे पौधे निकल आते हैं तो उन्हें उखाड़ कर बड़ी जमीन पर फिर से रोपा जाता है। ऐसा करने से दो पौधों के बीच समुचित जगह छोड़ने में आसानी होती है। इसे धान की रोपनी या रोपण कहते हैं। इससे चावल की पैदावार बढ़ाने में मदद मिलती है। लेकिन धान की रोपनी बड़ा ही मेहनत वाला काम है। इसके लिए दास, दासी और भूमिहीन मजदूरों को काम पर लगाया जाता था। भूमिहीन मजदूरों को कम्मकार कहते थे।

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