घर भर में उपेक्षित रहकर भी भक्तिन सौभाग्य शालिनी क्यों थी? - ghar bhar mein upekshit rahakar bhee bhaktin saubhaagy shaalinee kyon thee?

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
भक्तिन और मेरे बीच में सेवक स्वामी का संबंध है, यह काफी कठिन है, क्योंकि ऐसा कोई स्वामी नहीं हो सकता, जो अच्छा होने पर भी सेवक की अपनी सेवा से हटा न सके और ऐसा कोई सेवक भी नहीं सुना गया, जो स्वामी के चले जाने का आदेश पाकर अवज्ञा से हंस दे। भक्तिन को नौकर कहना उतना ही असंगत है, जितना अपने घर में बारी-बारी से आने-जाने वाले अंधेरे-उजाले और आंगन में फूलने वाले गुलाब और आम को सेवक मानना।
1. क्या कहना कठिन है?
2. भक्तिन और लेखिका के परस्पर संबंध को स्पष्ट कीजिए।
3. लेखिका द्वारा नौकरी से हटकर चले जाने का आदेश पाकर भक्तिन की क्या प्रतिक्रिया होती थी?
4. भक्तिन को नौकर कहना कितना असंगत है?


1. यह कहना कठिन है कि भक्तिन और लेखिका के बीच सेवक स्वामी का संबंध है।
2. भक्तिन लेखिका के घर में सेविका का कार्य करती थी लेकिन लेखिका के हृदय में उनके प्रति अपार श्रद्धा तथा प्रेमभाव था। वह उसे एक सेविका न मानकर अपने परिवार का सदस्य मानती थी। लेखिका उसके साथ कभी भी नौकर-मालिक जैसा व्यवहार नहीं करती थी।
3. लेखिका जब कभी परेशान होकर भक्तिन की नौकरी से हटकर चले जाने का आदेश दे देती थी तो उस आदेश को सुनकर भक्तिन हँस दिया करती थी। वह वहाँ से बिल्कुल भी नहीं हिलती थी।
4. भक्तिन को नौकर कहना उतना ही असंगत है जितना अपने घर में बारी-बारी से आने-जाने वाले अँधेरे-उजाले और आंगन में फूलने वाले गुलाब और आम को सेवक मानना।

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नीचे दिए गए विशिष्ट भाषा-प्रयोगों के उदाहरणों को ध्यान से पढ़िए और इनकी अर्थ-छवि स्पष्ट कीजिए-

(क) पहली कन्या के दो संस्करण और कर डाले।

(ख) खोटे सिक्कों की टकसाल जैसी पत्नी।

(ग) अस्पष्ट पुनरावृत्तियाँ और स्पष्ट सहानुभूतिपूर्ण।


(क) जिस प्रकार किसी पुस्तक का पहला संस्करण निकलता है और बाद में उसके वैसे ही अन्य संस्करण भी निकलते हैं, इसी प्रकार भक्तिन ने पहली कन्या को जन्म देने कै बाद वैसी ही दो कन्याएँ और पैदा कर दीं। ये सभी कन्याएँ रंग-रूप आकार में एक समान थीं।

(ख) ऐसी टकसाल जहाँ खोटे सिक्के ही ढलते हों। यहाँ इसका प्रयोग भक्तिन के संदर्भ में किया गया है। उसे खोटे सिक्के (बेटियाँ) ढालने (पैदा करने) वाली टकसाल (पत्नी-स्त्री) बताया गया है। बेटे पैदा करने वाली स्त्री को ऊँचा दर्जा प्राप्त होता है जबकि लड़कियाँ पैदा करने वाली स्त्री को तिरस्कार की दृष्टि से देखा जाता है।

(ग) भक्तिन (लछमिन) पिता की मृत्यु के काफी समय बाद अपने गाँव गई (क्योंकि उसे पिता की मृत्यु का पता ही नहीं चला) तो वहाँ की स्त्रियाँ अस्फुट स्वरों में कह रही थीं-हाय लछमिन अब आई-यह बात बार-बार दोहराई जा रही थी। वैसे वे स्त्रियाँ दिखाने के लिए उसे सहानुभूति दृष्टि से देख रही थीं।

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दो कन्या-रत्न पैदा करने पर भक्तिन पुत्र-महिमा में अंधी अपनी जिठानियों द्वारा घृणा व उपेक्षा का शिकार बनी। ऐसी घटनाओं से ही अक्सर यह धारणा चलती है कि स्त्री ही स्त्री की दुश्मन होती है । क्या इससे आप सहमत हैं?


जब भक्तिन दो कन्या-रत्न पैदा कर चुकी तब उसकी सास और जिठानियों ने ओठ बिचकाकर उसकी उपेक्षा की। भक्तिन उनकी उपेक्षा और घृणा का शिकार बन गई क्योंकि वह उनके समान पुत्र पैदा नहीं कर सकी थी। यद्यपि दोनों जिठानियों के काले-कलूटे पुत्र धूल उड़ाते फिरते थे, पर वे थे तो पुत्र और भक्तिन इनसे वंचित थी।

इस प्रकार की घटनाओं से यह धारणा बनती है कि स्त्री ही स्त्री की दुश्मन है। भक्तिन की दुश्मन उसकी जिठानियाँ (स्त्रियाँ) ही बन गईंखभक्तिन के पति ने उससे कुछ नहीं कहा। वह पत्नी को चाहता भी बहुत था। भक्तिन पति की उपेक्षा की शिकार नहीं बनी, बल्कि वह स्त्रियों की ही उपेक्षा का शिकार बनी। ही, हम इस बात से पूरी तरह सहमत है कि स्त्री ही स्त्री की दुश्मन होती है। नव विवाहिता को दहेज के लिए प्रताड़ित करने वाली भी स्त्रियाँ ही होती है।

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भक्तिन अपना वास्तविक नाम लोगों से क्यों छुपाती थी? भक्तिन को यह नाम किसने और क्यों दिया?


भक्तिन का वास्तविक नाम है-लछमिन अर्थात् लक्ष्मी। लक्ष्मी नाम समृद्धि का सूचक माना जाता है। भक्तिन को यह नाम विरोधाभासी प्रतीत होता है। भक्तिन बहुत समझदार है अत: वह अपना समृद्धि सूचक नाम किसी को बताना नहीं चाहती। उसने नौकरी माँगते समय लेखिका से भी अनुरोध किया था कि वह उसके वास्तविक नाम का उपयोग न करे। यही कारण था कि वह अपना वास्तविक नाम लोगों से छुपाती थी।

भक्तिन को यह नाम लेखिका ने ही दिया था। लेखिका ने उसकी कंठीमाला को देखकर यह नामकरण किया था। वह इस कवित्वहीन नाम को पाकर भी गद्गद् हो उठी थी।

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पाठ में आए लोकभाषा के इन संवादों को समझकर इन्हें खड़ी बोली हिंदी में डालकर प्रस्तुत कीजिए।

(क) ई कउन बड़ी बात आय।  रोटी बनाय जानित है, दाल संधि लेइत है, साग- भाजी छँउक सकित है, अउर बाकी का रहा।

(ख) हमारे मालकिन तौ रात-दिन कितबियन माँ गड़ी रहती हैं। अब हमहूँ पढ़ै लागव तो घर-गिरिस्ती कउन देखी-सुनी।

(ग) ऊ बिचरिउअ तौ रात-दिन काम माँ झुकी रहती हैं अउर तुम पचे घूमती-फिरती है। चली तनिक हाथ बटाय लेऊ।

(घ) तब ऊ कुच्छों करिहैं-धारिहैं ना-बस गली-गली गाउत-बजाउत फिरिहैं।

(ड.) तुम पचै का का बताई-यहै पचास बरिस से लग रहित हैं।

(च) हम कुकुरी बिलारी न होयँ, हमारे मन पुसारी तौ हम दूसरा के जाब नाहिं त तुम्हार पर्चे का छाती पै होरहा भूजब और राज करब समुझे रहौ।


(क) यह क्या बड़ी बात है। रोटी बनाना जानती हूँ, दाल पका लेती हूँ, साग-सब्जी छींक सकती हूँ और बाकी क्या रहा?

(ख) हमारी मालकिन तो रात-दिन किताबों में गड़ी (डूबी) रहती हैं। अब यदि हम भी पढ़ने लगे तो घर-गृहस्थी कौन देखेगा-सुनेगा।

(ग) वह बेचारी तो रात-दिन काम में झुकी (लगी) रहती है और तुम घूमती-फिरती हो। चलो, तनिक हाथ बँटा लें।

(घ) तब वह कुछ भी करता-धरता नहीं, बस गली-गली में गाता-बजाता फिरता है।

(ड.) तुम लोगों का मैं क्या बताऊँ-यह पचास वर्ष से साथ रहता है।

(च) हम कुतिया-बिल्ली नहीं हैं। यदि हमारा मन ने चाहा तो हम दूसरे के यहाँ जाएँगे नहीं तो मैं तुम लोगों की छाती पर चने भूनूँगी और राज करूँगी-यह समझ लेना।

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भक्तिन अच्छी है, यह कहना कठिन होगा, क्योंकि उसमें दुर्गुणों का अभाव नहीं लेखिका ने ऐसा क्यों कहा होगा?


लेखिका को भक्तिन अच्छी लगती है अत: वह उसके दुर्गुणों की ओर विशेष ध्यान नहीं देती। वह यह मानती है कि भक्तिन में भी दुर्गुण हैं उसके व्यक्तित्व में दुर्गुणों का अभाव होने के बारे में वह निश्चित तौर पर नहीं कह सकती। वह सत्यवादी हरिश्चंद्र नहीं बन सकती। वह रुपए-पैसों को मटकी में सँभाल कर रख देती है। वह लेखिका को प्रसन्न रखने के लिए बात को इधर-उधर घुमाकर बताती है। इसे आप झूठ कह सकते हैं। इतना झूठ और चोरी तो धर्मराज महाराज में भी होगा। भक्तिन सभी बातों और कामों को अपनी सुविधा के अनुसार ढालकर करती है। इसी कारण लेखिका ने कहा है कि यह कहना कठिन है कि भक्तिन अच्छी है क्योंकि उसमें दुर्गुणों का आभाव नहीं है।

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घर भर में उपेक्षित रहकर भी भक्तिन सौभाग्यशालिनी क्यों थी?

क्यों ? ( क ) उसकी जिठानियां अपने पतियों द्वारा धमाधम पीटी जाती थी । ( ख ) उसका पति उसे कभी डांटता भी नहीं था ( ग ) उसको घर का काम करने में आनंद आता था ( घ ) वह अलगौझा कर खुश थी

भक्ति के संदर्भ में हनुमान जी का उल्लेख क्यों हुआ है?

उत्तर: भक्तिन के संदर्भ में हनुमान जी का उल्लेख इसलिए हुआ है क्योंकि भक्तिन लेखिका महादेवी वर्मा की सेवा उसी नि:स्वार्थ भाव से करती थी, जिस तरह हनुमान जी श्री राम की सेवा नि:स्वार्थ भाव से किया करते थे।

प्रश्न 4 भक्तिन अपना वास्तविक नाम लोगों से क्यों छुपाती थी भक्तिन को यह नाम किसने दिया होगा?

उत्तर: भक्तिन का असली नाम लछमिन था जिसका अर्थ लक्ष्मी है जो समृद्धि और संपन्नता का प्रतीक माना जाता है। बात का ज्ञान है की उसके नाम तथा परिस्थिति के बीच का विरोधभास उसे समाज में बस उपहास का पात्र बनता है। समाज से उसे उपहास के अतिरिक्त और कुछ प्राप्त नहीं होगा। इसलिए वह लोगों से अपना असली नाम छिपाती थी

भक्तिन महादेवी द्वारा इधर उधर रखे पैसों को कहाँ रखती थी?

भक्तिन, महादेवी के जीवन पर छा जाने वाली एक ऐसी सेविका है जिसे लेखिका नहीं खोना चाहती। प्रश्न 10- भक्तिन के चरित्र की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। प्रश्न 11-भक्तिन के दुर्गुणों का उल्लेख करें। वह घर में इधर-उधर पड़े रुपये-पैसे को भंडार घर की मटकी में छुपा देती है और अपने इस कार्य को चोरी नहीं मानती।