जन्मेजय का नाग यज्ञ का साहित्यकार कौन है? - janmejay ka naag yagy ka saahityakaar kaun hai?

जनमेजय का नाग-यज्ञ पौराणिक पृष्ठभूमि पर लिखित जयशंकर प्रसाद का नाटक है, जिसका प्रकाशन सन् १९२६ ई॰ में भारती भंडार, इलाहाबाद से हुआ था।[1]

परिचय[संपादित करें]

'जन्मेजय का नाग-यज्ञ' नाटक के ३ अंकों और ३१ दृश्यों में धर्म, पाप, समता, प्रेम, जातीय अनुराग और विश्वमैत्री को अनेक बार व्याख्यायित किया गया है। पुरोहितवाद को युद्ध और हिंसा का कारण माना गया है। दक्षिणा के लालची को मनसा घृणित पशु कहती है। त्रिविक्रम बन्दर और बकरा नचाने को पौरोहित्य से बेहतर कर्म मानता है। बलिकर्म आदि हिंसक वृत्तियों को इसमें अधार्मिक कहा गया है। जातीय अपमान और पुरोहितवाद के कारण उत्पन्न जातीय युद्ध और उससे मुक्ति के उपाय का ही यह नाटक है। इस नाटक के सन्दर्भ में डॉ॰ सत्यप्रकाश मिश्र ने लिखा है :

" स्वाधीनता आंदोलन के उस दौर में इस प्रकार के नाटक व्यापक जनाधार का निर्माण करके राष्ट्रीयता की भावना को सुदृढ़ बनाने का कार्य करते हैं और साथ ही साथ गहरे स्तर पर जाकर सामाजिक संस्कार का निर्माण भी करते हैं। समता, न्याय और मानवमात्र का बंधुत्व मूल्य के स्तर पर इस नाटक का विषय है।"[2]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • जयशंकर प्रसाद

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. जयशंकर प्रसाद (विनिबंध), रमेशचन्द्र शाह, साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली, पुनर्मुद्रित संस्करण-२०१५, पृष्ठ-९३.
  2. प्रसाद के सम्पूर्ण नाटक एवं एकांकी, संपादन एवं भूमिका- डॉ॰ सत्यप्रकाश मिश्र, लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद, तृतीय संस्करण-२००८, पृष्ठ-xviii.

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

जन्मेजय का नाग यज्ञ नाटक के रचनाकार कौन है

Janmejaya's Nag Yagya ke rachnakar : जन्मेजय का नाग यज्ञ नाटक के रचना जयशंकर प्रसाद के द्वारा किया गया है।

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Publisher Description

जन्मेजय का नाग यज्ञ जयशंकर प्रसाद का एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक नाटक है। महाभारत में वर्णित खांडव प्रदेश को अर्जुन ने श्रीहीन कर दिया था, जिससे अनेकों जीव-जातियों का विनाश हो गया था। इन्हीं जीव-जातियों में एक नाग जाति थी, जिसने अपने सर्वनाश का बदला कुरु वंसजों से लेने की ठानी थी। कथा क्रम में कृष्ण ने इस नाग वंश के साथ वैवाहिक और मैत्री के सम्बंध स्थापित किये। लेकिन नागों की प्रतिशोध वृति खत्म नहीं हुई। अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित को इन्हीं नागों ने धोखे से मारा था। जिसके प्रतिउत्तर में परीक्षित पुत्र जन्मेजय ने इस नाग जाति को हमेशा के लिये खत्म करने का संकल्प किया। उस जमाने में अपने राजकीय वर्चस्व की प्रतिष्ठा के लिये राजा अश्वमेघ यज्ञ करते थे। जन्मेजय ने भी यहीं यज्ञ किया, जिसमें विघ्न डालने पर नागों के प्रमुखों का वध कर दिया गया। लेकिन मानवता की प्रतिष्ठा और निरंकुशता के संतुलन के लिये नाग जाति के साथ फिर से वैवाहिक और मैत्रीपूर्ण सम्बंध स्थापित किये गये। इसी घटना को आधार बना कर प्रसाद जी ने इस नाटक की रचना की है। प्रसाद जी की इतिहास-अन्वेषण दृष्टि यहाँ भी पूरे घटना-क्रम को साहित्यिक परिवेश में गढ़ती है। और इतिहास को एक नये दृष्टि से देखने के लिये प्रोत्साहित करती है।

जनमेजय का नागयज्ञ के लेखक/रचयिता

जनमेजय का नागयज्ञ (Janamejay Ka Naagayagy) के लेखक/रचयिता (Lekhak/Rachayitha) "जयशंकर प्रसाद" (Jaishankar Prasad) हैं।

Janamejay Ka Naagayagy (Lekhak/Rachayitha)

नीचे दी गई तालिका में जनमेजय का नागयज्ञ के लेखक/रचयिता को लेखक तथा रचना के रूप में अलग-अलग लिखा गया है। जनमेजय का नागयज्ञ के लेखक/रचयिता की सूची निम्न है:-

रचना/रचनालेखक/रचयिता
जनमेजय का नागयज्ञ जयशंकर प्रसाद
Janamejay Ka Naagayagy Jaishankar Prasad

जनमेजय का नागयज्ञ किस विधा की रचना है?

जनमेजय का नागयज्ञ (Janamejay Ka Naagayagy) की विधा का प्रकार "रचना" (Rachna) है।

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जनमेजय का नागयज्ञ के लेखक/नाटककार/रचयिता

जनमेजय का नागयज्ञ (Janamejay Ka Naagayagy) के लेखक/नाटककार/रचयिता (Lekhak/Natakkar/Rachayitha) "जयशंकर प्रसाद" (Jaishankar Prasad) हैं।

Janamejay Ka Naagayagy (Lekhak/Natakkar/Rachayitha)

नीचे दी गई तालिका में जनमेजय का नागयज्ञ के लेखक/नाटककार/रचयिता को लेखक/नाटककार तथा नाटक के रूप में अलग-अलग लिखा गया है। जनमेजय का नागयज्ञ के लेखक/नाटककार/रचयिता की सूची निम्न है:-

रचना/नाटकलेखक/नाटककार/रचयिता
जनमेजय का नागयज्ञ जयशंकर प्रसाद
Janamejay Ka Naagayagy Jaishankar Prasad

जनमेजय का नागयज्ञ किस विधा की रचना है?

जनमेजय का नागयज्ञ (Janamejay Ka Naagayagy) की विधा का प्रकार "नाटक" (Natak) है।

आशा है कि आप "जनमेजय का नागयज्ञ नामक नाटक के लेखक/नाटककार/रचयिता कौन?" के उत्तर से संतुष्ट हैं। यदि आपको जनमेजय का नागयज्ञ के लेखक/नाटककार/रचयिता के बारे में में कोई गलती मिली हो त उसे कमेन्ट के माध्यम से हमें अवगत अवश्य कराएं।

जन्मेजय का नाग यज्ञ नाटक के रचनाकार कौन हैं?

जनमेजय का नाग-यज्ञ पौराणिक पृष्ठभूमि पर लिखित जयशंकर प्रसाद का नाटक है, जिसका प्रकाशन सन् १९२६ ई॰ में भारती भंडार, इलाहाबाद से हुआ था।

महाभारत की कथा जनमेजय के यज्ञ तक कैसे आई?

महाभारत के संदर्भ में सम्राट जनमेजय अपने पिता परीक्षित की मृत्यु के पश्चात् हस्तिनापुर की राजगद्दी पर विराजमान हुये। पौराणिक कथा के अनुसार परीक्षित पाण्डु के एकमात्र वंशज थे। उनको श्रंगी ऋषि ने शाप दिया था कि वह सर्पदंश से मृत्यु को प्राप्त होंगे। ऐसा ही हुआ और सर्पराज तक्षक के ही कारण यह सम्भव हुआ।