धनराज पिल्ले
धनराज पिल्ले (तमिल: தன்ராஜ் பிள்ளை) का (जन्म 16 जुलाई 1968) एक तमिल माता-पिता नागालिन्गम पिल्लै और अन्दालम्मा के चौथे पुत्र के रूप में हुआ। फील्ड हॉकी खिलाड़ी और भारतीय हॉकी टीम के पूर्व कप्तान हैं। इस समय वे भारतीय हॉकी टीम के प्रबंधक हैं। साथ ही, वे कंवर पाल सिंह गिल के निलंबन के पश्चात निर्मित भारतीय हॉकी फेडरेशन की अनौपचारिक (एडहॉक) समिति के सदस्य भी हैं।[1] निजी जीवन[संपादित करें]धनराज पिल्लै का जन्म महाराष्ट्र के खड़की में तमिल माता-पिता नागालिन्गम पिल्लै और अन्दालम्मा के चौथे पुत्र के रूप में हुआ। जब वे अविवाहित थे तब वे पोवाई में अकेले रहते थे जबकि उनके माता-पिता महाराष्ट्र के खड़की में रहते थे।[2] वे तमिल (मातृभाषा), हिंदी, मराठी और अंग्रेजी भाषाओं में धाराप्रवाह हैं। प्रारंभिक जीवन[संपादित करें]पिल्लै ने अपना युवाजीवन ऑर्ड्नन्स फैक्ट्री स्टाफ कॉलोनी में व्यतीत किया, जहां उनके पिता ग्राउंड्समैन (मैदान की देखभाल करने वाले) थे। उन्होंने अपने हुनर को अपने भाइयों और कॉलोनी के मित्रों के साथ ओएफके मैदान की नरम और धूल-भरी सतह पर टूटी हुई लकड़ियों तथा हॉकी की फेंकी हुई गेंदों के साथ खेलते हुए सीखा; वे महान फॉरवर्ड खिलाड़ी और अपने आदर्श मोहम्मद शाहिद की शैली की नकल करने की कोशिश करते थे। वे अपनी सफलता का सारा श्रेय अपनी माँ को देते हैं, जिन्होंने बेहद गरीब होने के बावजूद अपने पांचों बेटों को हॉकी खेलने के लिए प्रोत्साहित किया। धनराज अस्सी के दशक के मध्य में अपने बड़े भाई रमेश के पास मुंबई चले गए, जो मुंबई लीग में आरसीएफ के लिए खेलते थे। रमेश पहले से ही अंतरराष्ट्रीय मैचों में भारत के लिए खेल चुके थे और उनके मार्गदर्शन ने धनराज को एक द्रुत गति वाले बेहतरीन स्ट्राइकर के रूप में विकसित होने में मदद की. उसके बाद वे महिंद्रा एंड महिंद्रा में शामिल हो गए जहां उन्हें भारत के तत्कालीन कोच जोआकिम कारवालो के द्वारा प्रशिक्षण मिला.[1] शुरुआत[संपादित करें]अंतरराष्ट्रीय हॉकी में धनराज पिल्लै की शुरुआत 1989 में नई दिल्ली में आयोजित एल्विन एशिया कप में देश के प्रतिनिधित्व के साथ हुई.[3] अंतर्राष्ट्रीय करियर[संपादित करें]धनराज पिल्लै का करियर दिसंबर 1989 से अगस्त 2004 तक रहा और इस दौरान उन्होंने 339 अंतरराष्ट्रीय मैच खेले। भारतीय हॉकी संघ, किये गए गोलों का कोई भी आधिकारिक आंकड़ा नहीं रखता है। अतः, धनराज द्वारा किये गए अंतर्राष्ट्रीय गोलों की संख्या के विषय में कोई विश्वसनीय जानकारी मौजूद नहीं है। उनके अनुसार यह संख्या 170 से अधिक है, लेकिन एक प्रमुख हॉकी सांख्यिकीविद के अनुसार यह 120 के करीब है। वे एकमात्र ऐसे खिलाड़ी हैं जिसने चार ओलंपिक खेलों (1992, 1996, 2000 और 2004), चार विश्व कप (1990, 1994, 1998 और 2002), चार चैंपियंस ट्राफी (1995, 1996, 2002 और 2003) और चार एशियाई खेल (1990, 1994, 1998 और 2002) में भाग लिया है। भारत ने उनकी कप्तानी के तहत एशियाई खेल (1998) और एशिया कप (2003) में जीत हासिल की. उन्होंने बैंकाक एशियाई खेलों में सर्वाधिक गोल दागे थे और सिडनी में 1994 के विश्व कप के दौरान वर्ल्ड इलेवन में शामिल होने वाले एकमात्र भारतीय खिलाड़ी थे। क्लब हॉकी[संपादित करें]वे कई विदेशी क्लबों के लिए भी खेल चुके हैं, जैसे दी इंडियन जिमखाना (लंदन), एचसी ल्योन (फ़्रांस), बीएसएन एचसी एंड टेलीकोम मलेशिया एचसी (मलेशिया), अबाहनी लिमिटेड (ढाका) और एचटीसी स्टुटगार्ट किकर्स (जर्मनी). उन्होंने बैंकाक एशियाई खेलों में सर्वाधिक गोल दागे थे और सिडनी, ऑस्ट्रेलिया में 1994 के हॉकी विश्व कप के दौरान वर्ल्ड इलेवन में शामिल होने वाले एकमात्र भारतीय खिलाड़ी थे। अपने करियर के अंतिम दौर में धनराज प्रीमियर हॉकी लीग में दो सत्रों तक मराठा वारियर्स के लिए खेले। पुरस्कार[संपादित करें]वर्ष 1995 में उन्हें अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया 1998 1999 में केके बिरला फाउंडेशन पुरस्कार से नवाजा गया 1999-2000 में उन्हें भारत के सर्वोच्च खेल पुरस्कार [[राजीव गांधी खेल रत्न] जो वर्तमान में मेजर ध्यानचंद खेल रतन पुरस्कार हो गया है] से सम्मानित किया गया। वर्ष 2000 में उन्हें नागरिक सम्मान पद्म श्री प्रदान किया गया। छोटी कद-काठी और लहराते बालों वाले धनराज अपने युग के सबसे प्रतिभाशाली फॉरवर्ड खिलाड़ी रहे हैं जो विरोधियों के गढ़ में कहर बरपाने की क्षमता रखते थे। वे 2002 एशियाई खेलों की विजेता हॉकी टीम के सफल कप्तान थे।[4] कोलोन, जर्मनी में आयोजित 2002 चैंपियंस ट्रॉफी में उन्हें टूर्नामेंट का सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी पुरस्कार प्रदान किया गया। पिल्लै वर्तमान में मुंबई में एक हॉकी अकादमी शुरू करने की कोशिश कर रहे हैं। अपनी अकादमी हेतु धन जुटाने के लिए, वे एक अभियान का नेतृत्व कर रहे हैं जिसके तहत मुंबई में खाली प्रिंटर कार्ट्रिज एकत्र करके एक यूरोपीय रीसाइक्लिंग कंपनी को बेच दिया जाता है।[5] विवाद[संपादित करें]धनराज को अक्सर तेज-तर्रार के रूप में वर्णित किया जाता है और वे कई विवादों का हिस्सा रह चुके हैं। हॉकी प्रबंधन के खिलाफ वे कई बार अपना रोष प्रकट कर चुके हैं। बैंकाक एशियाई खेलों के बाद भारतीय टीम के लिए उनका चयन नहीं किया गया था। आधिकारिक कारण यह दिया गया कि धनराज और 6 अन्य वरिष्ठ खिलाड़ियों को विश्राम दिया गया है। लेकिन इसे काफी हद तक, अनुचित स्वागत और मैच फीस का भुगतान न किये जाने के कारण उनके द्वारा प्रबंधन के खिलाफ नाराजगी जाहिर करने के लिए एक प्रतिशोध के रूप में देखा गया। 1998 में पाकिस्तान के खिलाफ श्रृंखला से पहले उन्होंने विदेशी दौरों पर टीम को कम भत्ता दिए जाने का विरोध किया था।[6] खेल रत्न प्राप्त होने पर पिल्लै ने टिप्पणी की, "यह पुरस्कार कुछ कड़वी यादों को मिटाने में मदद करेगा."[7] मुंबई में एक हॉकी अकादमी शुरू करने की उनकी योजना अभी पूरी तरह से शुरु नहीं हो पाई है क्योंकि बॉम्बे हॉकी एसोसिएशन ने प्रशिक्षण के लिए अपनी एस्ट्रोटर्फ सुविधा का इस्तेमाल किये जाने की अनुमति प्रदान करने से मना कर दिया है।[8]
जीवनी[संपादित करें]"फोर्गिव मी अम्मा (मुझे माफ कर दो माँ)" नामक शीर्षक वाली एक जीवनी को जारी किया गया है। इस किताब को, लगभग तीन दशकों के उनके करियर पर नजर रखने वाले पत्रकार सन्दीप मिश्रा द्वारा लिखा गया है।[9] टिप्पणियां और संदर्भ[संपादित करें]
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
धनराज ने जूनियर राष्ट्रीय हॉकी कितने वर्ष की आयु में खेली?Answer: धनराज ने 17 उम्र में जूनियर राष्ट्रीय हॉकी खेली(1985) mein.
धनराज ने किस उम्र में जूनियर राष्ट्रीय हॉकी खेल और धनराज ने बनावटी घास पर सबसे पहले हॉकी कब खेली?मात्र 16 साल की उम्र में इन्होनें जूनियर राष्ट्रीय हॉकी सन् 1985 में मणिपुर में खेली। 1986 में इन्हें सीनियर टीम में डाल दिया गया । इन्होनें सबसे पहले कृत्रिम घास तब देखी जब ये 1988 में नेशनल्स में भाग लेने दिल्ली आए।
पहली जूनियर राष्ट्रीय हॉकी कहाँ खेली गई?पुणे मेंमणिपुर मेंमुंबई में मांगा अपने स्कूल में।
धनराज ने पहली बार हॉकी कब खेली?धनराज जब 16 वर्ष के थे, तब उन्होंने अपना पहला हॉकी मैच खेला। वह मैच जूनियर हॉकी था जो कि सन् 1989 में उन्होंने खेला था।
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