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Techno Update हिटलर यहूदियों से इतना नफरत क्यों करता था ? कारण जानकर उड़ जाएंगे आपके होश
हिटलर को ज्यूस या यहूदी लोग क्यों नहीं पसंद थे इसके बहुत सारे कारण बताये जाते हैं। कुछ शायद इस में
से मनगढंत हों, कुछ अजीब पर जो सत्य था वो तो शायद सिर्फ हिटलर और उसके करीबी जानते होंगे। हम एक एक कर के देखते हैं की ये क्या कारण थे। पहली बात तो हमें ये समझनी होगी की सिर्फ हिटलर यहूदियों के विरुद्ध नहीं था। यूरोप में हिटलर के समय से पूर्व ही यहूदियों के विरुद्ध सोच ज़ोर पकड़ रहीं थीं। कहा जाता है की यहूदी अक्सर धार्मिक कारणों से भेदभाव और उत्पीड़न का शिकार होते थे। ईसाइयों द्वारा यहूदी विश्वास को एक उन्मूलन के रूप में देखा जाता था। यहूदियों को कभी-कभी धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर किया जाता था या उन्हें कुछ व्यवसायों का अभ्यास करने की अनुमति नहीं थी।यहां तक कि यहूदी जो ईसाई धर्म में परिवर्तित हो गए थे, उनको भी अलग ही माना जाता था। मुझसे बहुत लोग यह सवाल करते रहे हैं कि “हिटलर” यहूदियों से इतना नफरत क्युँ करता था ? मैंने इस पर शोध किया तो तथ्य देख कर हिल गया। एक बारगी तो लगा कि हिटलर सही था। पर बेगुनाहों की हत्या और हिंसा कभी भी उचित नहीं यह सोच कर हिटलर को ही बुरा माना क्युँकि किसी या कुछ इंसानों की के गलत कर्म पर उसके पूरे बेगुनाह समाज को सजा नहीं दी जा सकती। दरअसल , ऐतिहासिक तथ्य है कि 1930 के दशक में यहूदियों के धोखेबाज स्वभाव और आचरण से ही जर्मनी की जनसंख्या के एक बड़े हिस्से ने एक ऐसे समाज में रहने की रजामंदी जताई, जो यहुदियों के प्रति नफरत, जातीय श्रेष्ठता की अवधारणा और हिंसा पर आधारित थी और उसी सोच ने हिटलर को जर्मनी में प्रचंड बहुमत दिलाई। क्युँकि तब तक उनकी धारणा बन गयी कि उनके देश के यहूदी लोग हर उस चीज की नुमाइंदगी करते हैं, जो जर्मनों के खिलाफ है और इसलिए यहूदियों को खत्म कर दिया जाना चाहिए। यहूदियों के खिलाफ यह नफरत तब केवल हिटलर की नहीं बल्कि जर्मनी के सारे नान-यहूदी लोगों की थी। बल्कि ऐसी धारणा पूरे युरोप में बन चुकी थी। पर सवाल यह है कि यहूदियों ने जर्मनी में ऐसा क्या किया कि उनसे हर कोई उनके जेनोसाईड की हद तक नफरत करने लगा। “हिटलर” को ज्यूस या यहूदी लोग क्यों नहीं पसंद थे इसके बहुत सारे कारण बताये जाते हैं। पहली बात तो फिर यह समझ लीजिए कि उस समय सिर्फ “हिटलर” ही यहूदियों के विरुद्ध नहीं था बल्कि पूरा युरोप ही इनके विरुद्ध था। यूरोप में हिटलर के समय से पूर्व ही यहूदियों के विरुद्ध घृणा पैदा हो चुकी थी। और कहा जाता है की यहूदी अक्सर धार्मिक कारणों से भेदभाव और उत्पीड़न का भी शिकार होते थे। तो इसके भी तथ्यात्मक कारण हैं। दरअसल , ईसा मसीह के आख़िरी धर्मोपदेश के बाद उनकी मुखबिरी कर उन्हें गिरफ़्तार कराने वाला व्यक्ति उनका एक अनुयायी “यहूदी” ही था। ईसाइयों द्वारा यहूदियों को इसी कारण अविश्वास के रूप में देखा जाता था। यहूदियों को कभी-कभी धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर किया जाता था या उन्हें कुछ व्यवसायों को करने की अनुमति नहीं दी जाती थी। यहां तक कि यहूदी जो ईसाई धर्म में परिवर्तित हो गए थे, उनको भी अलग ही माना जाता था। हिटलर के नफरत का एक और कारण स्वयं हिटलर ने अपनी आत्मकथा में लिखा है की “जब वह विएना में चित्रकार थे, तब वह यहूदियों के विरुद्ध जाना शुरू किया क्युँकि उसे एक यहूदी वैश्या से एक संक्रमण रोग हुआ था।” मगर यहूदियों से हिटलर के नफरत की जड़ प्रथम विश्व युद्ध में ही छुपी थी। प्रथम विश्वयुद्ध 1918 में जर्मनी की हार उसके देश के यहूदी नागरिकों द्वारा धोखा देने के कारण हुई थी। यह इतिहास हिटलर के दिमाग में बैठ गयी थी। वैसे तो मनगढ़त बातें बहुत हैं मगर तथ्यात्मक रूप से यही बातें यहूदियों के प्रति हिटलर की नफरत को पैदा करती हैं। और 1920 में जब वह राजनीति में आया तो इनको देश का “किटाणु” कह कर जर्मन लोगों के मतों से सत्ता पाई और 1940 के दशक में 60 लाख यहूदियों का “होलोकाॅस्ट” करा दिया। दरअसल धोखा ही यहूदियों का चरित्र है। अरब इतिहास इनके धोखे से भरा पड़ा है। “ख़ैबर की जंग” मुस्लिम और यहूदियों के बीच यहूदियों के समझौता तोड़ने और बेईमानी करने के चलते ही हुई थी। यही नहीं यहूदियों ने अपने नबी “मूसा” की मौजूदगी में ही बार-बार उनके विश्वास को तोड़ा और हमेशा उन्हें शक की नज़र से ही देखा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मूसा लाल सागर को चीर कर उन्हें दूसरी और ले गए थे, जोकि एक असंभव सा काम था फ़िर भी मूसा पर उनका शक कभी कम नही हुआ। बाकी फिलिस्तीन द्वारा उन पर किए एहसान का बदला चुकाते और उनको धोखा देते हुए आप देख ही रहे हैं। अरबों पर उनकी नमाज़ और इबादत के वक़्त बम फेंक फेंककर वह अपनी इसी दास्तान और इंसानियत का वह 1945 से सुबूत दे रहा है। हिटलर ने कहा था “मैंने कुछ यहूदियों को इस लिए जीवित छोड़ दिया , ताकि दुनिया समझ सके कि मैंने उन्हें क्यों मारा” -M. Zahid आस्विज (Auschwitz II (Birkenau)) के 'हत्या शिविर' को जाने वाली रेल लाइन यहूदी नरसंहार, जिसे दुनियाभर में होलोकॉस्ट के नाम से जाना जाता है, द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान यूरोपी यहूदियों का नाज़ी जर्मनी द्वारा किया गया एक जाति-संहार था। नाज़ी जर्मनी और इसके सहयोगियों ने तक़रीबन साठ लाख यहूदियों की सुनियोजित तरीक़े से हत्या कर दी। परिचय[संपादित करें]1933 में अडोल्फ़ हिटलर जर्मनी की सत्ता में आया और उसने एक नस्लवादी साम्राज की स्थापना की, जिसमें यहूदियों को सब-ह्यूमन क़रार दिया गया और उन्हें इंसानी नस्ल का हिस्सा नहीं माना गया। 1939 में जर्मनी द्वारा विश्व युद्ध भड़काने के बाद हिटलर ने यहूदियों को जड़ से मिटाने के लिए अपने "अंतिम हल" को अमल में लाना शुरू किया। उसके सैनिक यहूदियों को कुछ ख़ास इलाक़ों में ठूंसने लगे। उनसे काम करवाने, उन्हें एक जगह इकट्ठा करने और मार डालने के लिए विशेष शिविर स्थापित किए गए, जिनमें सबसे कुख्यात था ऑस्चविट्ज। यहूदियों को इन शिविरों में लाया जाता और वहां बंद कमरों में ज़हरीली गैस छोड़कर उन्हें मार डाला जाता। जिन्हें काम करने के काबिल नहीं समझा जाता, उन्हें मौत के घाट उतार दिया जाता, जबकि बाकी बचे यहूदियों में से ज्यादातर भूख और बीमारी से दम तोड़ देते। युद्ध के बाद सामने आए दस्तावेजों से पता चलता है कि हिटलर का मकसद दुनिया से एक-एक यहूदी को खत्म कर देना था। युद्ध के छह साल के दौरान नाजियों ने तकरीबन 60 लाख यहूदियों की हत्या कर दी, जिनमें 15 लाख बच्चे थे। यहूदियों को जड़ से मिटाने के अपने मकसद को हिटलर ने इतने प्रभावी ढंग से अंजाम दिया कि दुनिया की एक तिहाई यहूदी आबादी खत्म हो गई। यह नरसंहार संख्या, प्रबंधन और क्रियान्वयन के लिहाज से विलक्षण था। इसके तहत एक समुदाय के लोग जहां भी मिले, वे मारे जाने लगे, सिर्फ इसलिए कि वे यहूदी पैदा हुए थे। इन कारणों के चलते ही इसे अपनी तरह का नाम दिया गया-होलोकॉस्ट। नाजियों ने यहूदियों की हत्या क्यों की ?[संपादित करें]इस सवाल के कई जवाब पेश किए जाते रहे हैं : धार्मिक, ऐतिहासिक, दार्शनिक, मनोवैज्ञानिक और मार्क्सवादी। लेकिन कोई भी एक जवाब कभी संतोषजनक नहीं हो सकता। ऐतिहासिक जवाब कुछ इस तरह है- 1930 के दशक में जर्मन जनसंख्या के एक बड़े हिस्से ने एक ऐसे समाज में रहने की रजामंदी जताई, जो नफरत, जातीय श्रेष्ठता की अवधारणा और हिंसा पर आधारित थी। वे जिस व्यवस्था से बंधे थे, उसकी केंद्रीय धारणा यह थी कि यहूदी लोग हर उस चीज की नुमाइंदगी करते हैं, जो जर्मनों के खिलाफ है और इसलिए यहूदियों को खत्म कर दिया जाना चाहिए। यह धारणा दुनिया को देखने के एक नस्ली नजरिए से भी जुड़ी थी, जो जर्मनों को मास्टर रेस का हिस्सा मानती थी और यहूदियों को विनाशकारी भौतिक गुणों वाले एंटी रेस का। जब यहूदियों का भौगोलिक रूप से खात्मा संभव नहीं हो सका, तब उन्होंने सबसे कट्टर रास्ता अख्तियार किया, जो था- अंतिम हल। क्या होलोकॉस्ट अपनी तरह की एक मात्र घटना है ?[संपादित करें]इतिहास में इस तरह की और भी घटनाएं मिलती हैं, लेकिन होलोकॉस्ट की कुछ बातें उसे विलक्षण बनाती हैं। नाजी जर्मनी के अलावा भी कई सरकारों ने कैंप सिस्टम और टेक्नॉलजी का सहारा लिया और इतिहास के ज्यादातर हिस्से में यहूदियों का कत्ल किया जाता रहा। लेकिन दो मुख्य वजहों से होलोकॉस्ट को सबसे अलग कहा जा सकता है। 1. दूसरे समूहों के प्रति अपनी नीतियों से अलग नाजियों ने हर यहूदी को मारने का बीड़ा उठाया। इसके लिए उन्होंने उम्र, लिंग, आस्था या काम की परवाह नहीं की। उन्होंने इस मकसद को अंजाम देने के लिए खास तौर पर एक आधुनिक नौकरशाही का इस्तेमाल किया। 2. नाजी नेतृत्व का कहना था कि दुनिया से यहूदियों को मिटाना जर्मन लोगों और पूरी इंसानियत के लिए फायदेमंद होगा। हालांकि असल में यहूदियों की ओर से उन्हें कोई खतरा नहीं था। ऐन फ्रैंक[संपादित करें]ऐनेलिज मेरी -ऐन फ्रैंक- का जन्म 12 जून 1929 को जर्मनी के फ्रैंकफर्ट में हुआ था। साल 1933 में, जब नाजी सत्ता में आए, चार साल की उम्र में उसे सपरिवार जर्मनी छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा। वे लोग नीदरलैंड के ऐम्सटर्डम पहुंचे। लेकिन 1940 में वहां नाजियों का कब्जा शुरू होने के साथ ही वे फंस गए। वहां भी जब यहूदी लोगों पर अत्याचार बढ़ने लगा, तब जुलाई 1942 में इस परिवार ने ऐन के पिता के दफ्तर की इमारत में स्थित गुप्त कमरों में शरण ली और वहीं रहने लगा। करीब दो साल बाद उनके साथ विश्वासघात हुआ और वे गिरफ्तार कर लिए गए। अन्य यहूदियों की तरह उन्हें भी यातना शिविरों में भेज दिया गया। गिरफ्तारी के सात महीने बाद ऐन की टाइफायड की वजह से हबर्जन-बेल्शन कंसनट्रेशन शिविर में मौत हो गई। एक हफ्ते पहले ही ऐन की बहन ने दम तोड़ा था। परिवार में सिर्फ ऐन के पिता जीवित बचे, जो युद्ध खत्म होने के बाद ऐम्सटर्डम लौटे। उन्हें वहां ऐन की एक डायरी सुरक्षित मिल गई, जिसे उसने छुप-छुपकर बिताई गई जिंदगी के दौरान लिखा था। काफी प्रयासों के बाद पिता ने यह डायरी 1947 में प्रकाशित करवाई। इस डायरी का डच से अनुवाद हुआ और 1952 में यह -द डायरी ऑफ अ यंग गर्ल-शीर्षक से अंग्रेजी में प्रकाशित की गई। यह डायरी ऐन को उसके 13 वें जन्मदिन पर मिली थी। इसमें उसने 12 जून 1942 से 1 अगस्त 1944 के बीच का अपने जीवन का घटनाक्रम बयां किया था। इस डायरी का कम से कम 67 भाषाओं में अनुवाद हुआ और यह दुनिया की सबसे ज्यादा पढ़ी जाने वाली किताब बन गई। यह डायरी कई नाटकों और फिल्मों की बुनियाद बनी। ऐन फ्रैंक को उसकी लेखनी की गुणवत्ता और होलोकॉस्ट की सबसे मशहूर और चर्चित पीड़तों में से एक के रूप में जाना जाता है। वह उन 10 लाख यहूदी बच्चों में से थी, जिन्हें होलोकॉस्ट में अपने बचपन, परिवार और जिंदगी से हाथ धोना पड़ा। बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
हिटलर भारत से नफरत क्यों करता था?अडॉल्फ हिटलर का मानना था कि 'आर्य' नॉर्डिक लोग लगभग 1,500 साल पहले उत्तर दिशा से भारत आए थे, और आर्यों ने स्थानीय 'अनार्यों' के साथ घुलने-मिलने का 'अपराध' किया था, जिससे पृथ्वी पर दूसरे सभी नस्लों से श्रेष्ठ होने के गुणों को उन्होंने खो दिया.
यहूदी और इस्लाम में क्या अंतर है?यहूदी धर्म या यूदावाद (Judaism) विश्व के प्राचीनतम धर्मों में से है, तथा दुनिया का प्रथम एकेश्वरवादी धर्म माना जाता है। इस्राइल और हिब्रू भाषियों का राजधर्म है। इस धर्म में ईश्वर और उसके नबी यानि पैग़म्बर की मान्यता प्रधान है।
यहूदियों के बारे में नाजियों की विचारधारा क्या थी?नाजियों ने एक नस्लवादी विचारधारा को जन्म दिया कि यहूदी निचले स्तर की नस्ल से संबंधित थे और इस प्रकार वे अवांछित थे। (घ) नाजियों ने प्रारंभ से उनके स्कूल के दिनों में ही बच्चों के दिमागों में भी यहूदियों के प्रति नफरत भर दी। जो अध्यापक यहूदी थे उन्हें बर्खास्त कर दिया गया और यहूदी बच्चों को स्कूलों से।
यहूदी धर्म कितना पुराना है?बाद में, यानी 1948 में यहूदियों के लिए अलग देश इसराइल की स्थापना हुई.
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