हल्दीघाटी के युद्ध में अकबर के सेनापति? - haldeeghaatee ke yuddh mein akabar ke senaapati?

इसे सुनेंरोकेंइस युद्ध में मुगल सेना का नेतृत्व मानसिंह और आसफ खां ने किया। युद्ध का आंखों देखा वर्णन बदायूं के अब्दुल कादिर बदायूनी ने किया। इस युद्ध को आसफ खां ने अप्रत्यक्ष रूप से जेहाद की संज्ञा दी।

बदायूंनी ने हल्दीघाटी युद्ध को क्या नाम दिया?

अब्दुल क़ादिर बदायूँनीपूरा नामअब्द-उल क़ादिर बदायूँनीअन्य नामबदायूँनीजन्म1540 ई.जन्म भूमिबदायूँ, उत्तर प्रदेश

हल्दीघाटी के युद्ध में मानसिंह के हाथी का क्या नाम था?

इसे सुनेंरोकेंबाद में जब गंभीर घायल होने पर राणा प्रताप जब हल्दीघाटी की युद्धभूमि से दूर चले गए, तब राजा मानसिंह ने उनके महलों में पहुँच कर प्रताप के प्रसिद्ध हाथियों में से एक हाथी रामप्रसाद को दूसरी लूट के सामान के साथ आगरा-दरबार भेजा।

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महाराणा प्रताप और अकबर की लड़ाई में कौन जीता था?

इसे सुनेंरोकेंराजस्थान के मध्यकालीन इतिहास का सबसे चर्चित हल्दीघाटी युद्ध मुगल सम्राट अकबर ने नहीं बल्कि महाराणा प्रताप ने जीता था. साल 1576 में हुए इस भीषण युद्ध में अकबर को नाको चने चबाने पड़े और आखिर जीत महाराणा प्रताप की हुई. यह दावा राजस्थान सरकार की ओर से किया गया है. इसके पीछे सरकार ने इतिहासकार डॉ.

प्रताप के सेनापति का क्या नाम था?

इसे सुनेंरोकेंउदयपुर. महाराणा प्रताप के बहादुर सेनापति हकीम खां सूर के बिना हल्दीघाटी युद्ध का उल्लेख अधूरा है। 18 जून, 1576 की सुबह जब दोनों सेनाएं टकराईं तो प्रताप की ओर से अकबर की सेना को सबसे पहला जवाब हकीम खां सूर के नेतृत्व वाली टुकड़ी ने ही दिया।

बहलोल खान की मृत्यु कैसे हुई थी?

इसे सुनेंरोकेंउनका खुद का वजन 110 किलो से अधिक था। ऐसा कहा जाता है कि हल्दीघाटी के युद्ध में, महाराणा प्रताप ने मुगल प्रतिद्वंद्वी बहलोल खान को दौड़ा दौड़ कर अपनी तलवार से उसको अपने घोड़े के साथ दो भागों में करके मार दिया था ।

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महाराजा मानसिंह के हाथी का नाम क्या था?

इसे सुनेंरोकेंमानसिंह के हाथी का नाम मर्दाना था।

महाराणा प्रताप और अकबर की हल्दीघाटी का युद्ध?

इसे सुनेंरोकेंहल्दीघाटी का युद्ध 18 जून 1576 को मेवाड़ के महाराणा प्रताप का समर्थन करने वाले घुड़सवारों और धनुर्धारियों और मुगल सम्राट अकबर की सेना के बीच लडा गया था जिसका नेतृत्व आमेर के राजा मान सिंह प्रथम ने किया था। इस युद्ध में महाराणा प्रताप को मुख्य रूप से भील जनजाति का सहयोग मिला ।

Battle Of Haldighati In Hindi: राजस्‍थान की एतिहासिक युद्ध हल्दीघाटी एक बार फिर से खबरों में है, अब इतिहास के पन्‍नों में यह बात पुरानी हो जाएगी कि इस युद्ध में महाराणा प्रताप की सेना को पीछे हटना पड़ा था। अब तक इतिहास में यही पढ़ाया जाता रहा है, लेकिन भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग ने इसे बदलने का फैसला लिया है। राजस्थान के राजसमंद जिले में स्थित स्मारक से वह पत्थर हटाया जाएगा, जिसमें लिखा था कि महाराणा प्रताप की सेना को हल्दी घाटी की जंग से पीछे हटना पड़ा था। हल्दीघाटी का युद्ध 18 जून, 1576 को मेवाड़ के राजपूत शासक महाराणा प्रताप और मुगल बादशाह अकबर के बीच लड़ा गया था। भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग ने युद्ध से जुड़े कुछ शिलालेख हटा लिए हैं। अब एएसआई इस युद्ध पर नया इतिहास लिख रहा है, जिसके पूरा होने पर नए शिलालेख लगाएगा, जिसपर पूरा इतिहास लिखा होगा।

हालांकि एएसआई के इस कार्रवाई पर नई बहस फिर जारी हो गई है महाराणा प्रताप और अकबर के बीच लड़े गए इस युद्ध में जीत किसकी हुई थी।

शिलालेख में ऐसा क्या लिखा था
दरअसल, इन शिलालेखों पर लिखी जानकारी में अकबर के सामने मेवाड़ी सेना को कमजोर बताया गया है। साथ ही बताया जा रहा है कि राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद की किताबों में हल्दीघाटी की लड़ाई की तारीख 18 जून 1576 है जबकि पट्टिकाओं पर यह 21 जून 1576 लिखी गई है। ऐसे में गलत तथ्यों को बुनियाद मानते हुए इन शिलालेखों को हटाया गया है। वैसे राजपूत व लोक संगठन लंबे समय से इसकी मांग भी कर रहे थे।
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हल्दी घाटी की कहानी क्‍या है
राजपूतों व मुगलों के बीच हल्दी घाटी में हुई जीत-हार के बारे में बताने से पहले आपको जानना जरूरी है कि यह लड़ाई 18 जून 1576 को मेवाड़ के राणा महाराणा प्रताप की सेना और आमेर के महाराजा मानसिंह प्रथम के नेतृत्व में मुगल सम्राट अकबर की सेनाओं के बीच लड़ी गई थी। हल्दीघाटी असल में एक दर्रा है, अरावली पर्वत श्रृंखला से गुजरने वाला दर्रा, जो राजस्थान में उदयपुर से करीब 40 किमी दूर है, इस दर्रे की मिट्टी हल्दी की तरह पीली है, इसलिए प्रचलित नाम हल्दीघाटी पड़ा। यह‍ राजस्थान में राजसमंद और पाली जिलों को जोड़ता है। लड़ाई की शुरुआत उस वक्त से हुई जब अकबर राजपूत क्षेत्रों पर नियंत्रण हासिल करके अपने शासन क्षेत्र को बढ़ाने की योजना बना रहा था।

राजपूतों ने छोड़ साथ
दरअसलए हुआ ये था कि राजस्थान में महाराणा प्रताप के पिता उदय सिंह को छोड़कर लगभग सभी प्रमुख राजाओं ने मुगल वंश को स्वीकार कर लिया था और मेवाड़ के राजघरानों ने मुगलों के सामने घुटने नहीं टेके थे, ऐसे में अकबर ने राज्य विस्तार के लिए अक्टूबर 1567 में चित्तौड़गढ़ की घेराबंदी की। राजपूतों को मुगलों ने घेर लिया, इसके बाद उदय सिंह पद छोड़ने पर मजबूर हो गए और रक्षा की जिम्मेदारी मेड़ता के राजा जयमल को दी गई, जो युद्ध के दौरान मारे गए, फिर उदय सिंह 4 साल बाद अपनी मृत्यु तक अरावली के जंगलों में रहे।

महाराणा प्रताप ने संभाली कमान
उदय सिंह की मृत्यु के बाद, उनके पुत्र महाराणा प्रताप ने मेवाड़ की कमान संभाली। फिर से अकबर ने कई बार बात की लेकिन प्रताप ने मुगलों की नहीं मानी और अकबर ने प्रताप से युद्ध का फैसला किया। इतिहासकार रिमा हूजा ने बताया कि हल्दीघाटी के युद्ध में राजपूतों के संख्या बल का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है, लेकिन मेवाड़ की सेना, अकबर की सेना के सामने काफी छोटी थी। इसके बाद युद्ध में मेवाड़ की सेना को काफी नुकसान भी हुआ।
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महाराणा प्रताप का जीवन
चित्तौड़ का कुम्भलगढ़ किला, यहां कटारगढ़ के बादल महल में विक्रमी संवत 1596 के जेठ महीने के दिन महाराणा प्रताप का जन्म हुआ। ग्रेगोरियन कैलेंडर के हिसाब से यह तारीख़ थी 6 मई 1540। महाराणा प्रताप उदय सिंह के सबसे बड़े बेटे थे, उनकी मां का नाम जैवंता बाई था। पहले बेटे के जन्म के बाद ही उदय सिंह और जैवंता बाई से विमुख हो गए। वे अपनी सबसे छोटी रानी धीरबाई भटियाणी को सबसे ज्यादा पसंद करते थे, लिहाजा आगे चलकर उन्होंने महाराणा प्रताप के बजाय धीरबाई के बेटे जगमाल सिंह को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। हालांकि महाराणा प्रताप के कौशल को देखते हुए अधिकतर सिसोदिया सुल्तान उन्हें ही गद्दी के योग्य मानते थे। जब 28 फरवरी 1572 को उदय सिंह का निधन हो गया, तब राजवंशों की परंपरा के अनुसार राजा के सबसे बड़े बेटे सुरक्षा कारणों से अपने पिता के अंतिम संस्कार में भाग नहीं लेते थे। महाराणा प्रताप भी अपने पिता के अंतिम संस्कार में नहीं गए, लेकिन उस अंतिम संस्कार से उदय सिंह का एक और पुत्र नदारद था।

धीरबाई का बेटा जगमाल सिंह ग्वालियर के राम सिंह और महाराणा प्रताप के नाना अखेराज सोनगरा को पता चला कि जगमाल महल में हैं और उनके अभिषेक की तैयारी चल रही है। दोनों राजमहल पहुंचे और जगमाल को गद्दी से हटा दिया। जिसके बाद महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक कराया गया। महाराणा प्रताप के सत्ता संभालने के चार साल बाद मुगल और राजपूत आमने-सामने आए। अकबर दिल्ली से चलकर अजमेर आया, उसने महाराणा प्रताप के खिलाफ युद्ध लड़ने के लिए मान सिंह के नेतृत्व में एक बड़ी सेना गोगुंदा की तरफ रवाना की। इस सेना ने राजसमंद के मोलेला में अपना डेरा डाला। दूसरी तरफ महाराणा प्रताप के नेतृत्व में मेवाड़ की सेना लोशिंग में डेरा डाले हुए थी।

किसकी हुई थी जीत
अब युद्ध में जीत किसकी हुई, इसके पीछे कई तथ्य हैं। वहीं, दोनों पक्षों का मानना है कि उनकी ही जीत हुई। इतिहासकारों के अनुसार कहा गया है कि मेवाड़ ने भी जीत का दावा किया था, क्योंकि कोई आत्मसमर्पण नहीं हुआ था, वहीं, मुगलों ने भी जीत का दावा किया क्योंकि वो अंत समय तक मैदान में थे। इसलिए ज्‍यादातर इतिहासकार इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि प्रताप की सेना हल्दीघाटी की लड़ाई से कभी पीछे नहीं हटी और इसका मतलब है युद्ध प्रताप ने जीता था। इसके अलावा कई ऐसे इतिहासकार हैं, जो दोनों तरफ से अलग अलग तर्क रखते हैं, ऐसे में साफ तौर पर किसी की जीत बताना सही नहीं है और हर पक्ष अपनी जीत का गुणगान करता है।

हल्दीघाटी के युद्ध में अकबर के सेनापति कौन थे?

Detailed Solution. हल्दीघाटी का युद्ध 1576 ई . में लड़ा गया था। मान सिंह अकबर का सेनापति था।

हल्दीघाटी में अकबर की कितनी सेना थी?

सेना की ताकत मेवाड़ी परंपरा और कविताओं के अनुसार राणा की सेना की संख्या 20000 थी, जिन्हें मान सिंह की 80,000-मजबूत सेना के खिलाफ खड़ा किया गया था।

हल्दीघाटी के युद्ध में अकबर ने किसको पराजित किया था?

साल 1576 में हुए इस भीषण युद्ध में अकबर को नाको चने चबाने पड़े और आखिर जीत महाराणा प्रताप की हुई.

महाराणा प्रताप की हरावल सेना में कौन कौन थे?

Solution : प्रताप के हरावल सेना का नेतृत्व करने वाले मुस्लिम सेनापति हकीम खां सूरी ने इतनी भीषण शुरुआत की थी कि मुगल सेना को सात किलोमीटर पीछे तक मुगल कैम्प (वर्तमान में टेरोकोटा के लिए प्रसिद्ध मोलेला गांव) तक धकेल दिया गया।