गांधीजी ने भारत छोड़ो आंदोलन कब प्रारंभ किया? - gaandheejee ne bhaarat chhodo aandolan kab praarambh kiya?

भारत को 15 अगस्त 1947 में आजादी मिली थी। आज आजादी के 74 साल पूरे हो गए हैं। 9 अगस्त को 'भारत छोड़ो आंदोलन दिवस' मनाया जाता है। इसे 'अंगस्त क्रांति' भी कहा जाता है। आओ जानते हैं इसी आंदोलन की खास बातें।


* 8 अगस्त 1947 को मुंबई अधिवेशन में 'भारत छोड़ो आंदोलन' का प्रास्ताव पारित हुआ।

* 9 अगस्त को पूरे देश में 'करो या मरो' ने नारे के साथ आंदोलन शुरु हुआ।

* यह आंदोलन 'अगस्त क्रांति के रूप में भी जाना जाता है।

* महात्मा गांधी ने प्रारंभ किया था अंग्रेजों के विरुद्ध यह आंदोलन।

* हजारों भारतीयों को जेल में डाल दिया गया था और सैंकड़ों लोग मारे गए थे।

* अंग्रेजों द्वारा भारत छोड़ने के संकेत देने के बाद यह आंदोलन स्थगित कर दिया गया।

1. कहते हैं कि क्रिप्स मिशन की विफलता के बाद महात्मा गांधी ने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध अपना तीसरा बड़ा आंदोलन छेड़ने का फैसला लिया था जिसके चलते ही 8 अगस्त 1942 को मुम्बई अधिवेशन में प्रस्ताव रखा गया और 9 अगस्त 1942 को आंदोलन प्रारंभ हुआ।

2. अमूमन 9 अगस्त को भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत मानी जाती है, परतु ये आंदोलन 8 अगस्‍त 1942 से आरंभ हुआ था। दरअसल, 8 अगस्‍त 1942 को बंबई के गोवालिया टैंक मैदान पर अखिल भारतीय कांग्रेस महासमिति ने वह प्रस्ताव पारित किया था, जिसे 'भारत छोड़ो' प्रस्ताव कहा गया. इसके बाद से ही ये आंदोलन व्‍यापक स्‍तर पर आरंभ किया हुआ।

3. यह भारत को ब्रिटिश शासन से तत्काल आजाद करवाने के लिए अंग्रेजों के विरुद्ध सविनय अवज्ञा आन्दोलन था। इस मौके पर महात्मा गाधी ने ऐतिहासिक ग्वालिया टैंक मैदान (अब अगस्त क्रांति मैदान) से देश को 'करो या मरो' का नारा दिया था।

4. महात्मा गांधी ने आंदोलन में अनुशासन बनाए रखने को कहा था परंतु जैसे ही इस आंदोलन की शुरूआत हुई, 9 अगस्त 1942 को दिन निकलने से पहले ही कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सभी सदस्य गिरफ्तार हो चुके थे और कांग्रेस को गैरकानूनी संस्था घोषित कर दिया गया था। यही नहीं अंग्रेजों ने गांधी जी को अहमदनगर किले में नजरबंद कर दिया।

5. महात्मा गांधी को नजरबंद किया जाने के समाचार ने देशभर में हड़ताल और तोड़फ़ोड़ की कार्रवाइयों शुरु हो गई। कहते हैं कि इस आंदोलन में करीब 940 लोग मारे गए थे और 1630 घायल हुए थे जबकि 60229 लोगों ने गिरफ्तारी दी थी।

6. आंदोलन के दौरान पश्चिम में सतारा और पूर्व में मेदिनीपुर जैसे कई जिलों में स्वतंत्र सरकार, प्रतिसरकार की स्थापना कर दी गई थी।

7. ब्रिटिश सरकार ने इस आंदोलन के प्रति काफी सख्त रुख अपनाया फिर भी इस विद्रोह को दबाने में ब्रिटिश सरकार को सालभर से ज्यादा समय लग गया।

8. इस आंदोलन ने 1943 के अंत तक भारत को संगठित कर दिया था। सभी धर्म औ जाति के लोग एक साथ अंग्रेजों के विरुद्ध खड़े हो गए थे।

9. 1943 में ही 10 फरवरी को महात्मा गांधी ने 21 दिन का उपवास शुरू किया था। उपवास के 13वें दिन गांधी जी हालत बेहद खराब होने लगी थी। अंग्रेजों द्वारा देश को स्वतंत्र किए जाने के संकेत के चलते गांधीजी ने आंदोलन को बंद कर दिया और अंग्रेजों ने कांग्रेसी नेताओं सहित लगभग 100,000 राजनैतिक बंदियों को रिहा कर दिया।

10. 'भारत छोड़ो आंदोलन' भारत का सबसे तीव्र और विशाल आंदोलन था जिसमें सभी लोगों की भागिदारी थी। इसी के चल‍ते अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा परंतु उन्होंने 1942 से 1947 के बीच हिन्दू मुस्लिम के बीच फूट डाल दी थी जिसके चलते भारत का विभाजन भी हुआ।

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8 अगस्त 1942 को बंबई के ग्वालिया टैंक मैदान पर अखिल भारतीय कांग्रेस महासमिति ने प्रस्ताव पारित किया था जिसे भारत छोड़ो प्रस्ताव कहा गया।

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]।  महात्मा गांधी ने 8 अगस्त 1942 को मुंबई से भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की थी। यह आंदोलन अगस्त क्रांति के रूप में जाना जाता है। यह प्रदर्शन शांतिपूर्ण ढंग से किया गया। यह आंदोलन देश भर में तेजी से बढ़ा। अंग्रेजों ने करीब 14 हजार भारतीयों को जेल में डाल दिया। आमतौर पर 9 अगस्त को भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत मानी जाती है। लेकिन ये आंदोलन 8 अगस्त 1942 से आरंभ हुआ था। 8 अगस्त 1942 को बंबई के ग्वालिया टैंक मैदान पर अखिल भारतीय कांग्रेस महासमिति ने प्रस्ताव पारित किया था जिसे 'भारत छोड़ो' प्रस्ताव कहा गया।

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भारत छोड़ो आंदोलन का रोचक प्रसंग

भारत छोड़ो आंदोलन के आगाज को जानने से पहले अंग्रेजी सत्ता के खिलाफ जनभावना को कुछ यूं समझा जा सकता है। तत्कालीन संयुक्त प्रांत (उत्तर प्रदेश) के पूर्वी हिस्से के जिले आजमगढ़ में निबलेट जिलाधिकारी थे। वो अपने जिले के एक थाने मधुबन का जिक्र करते हुए कहते हैं कि आंदोलन में कोई बड़े कद का नेता नहीं शामिल था। करीब एक हजार लोगों की भीड़ ने थाने को घेर रखा था। सभी लोगों के हाथों में मशालें और तलवारें थीं। जब उसको एक स्थानीय अधिकारी ने जानकारी दी वो मौके के लिए रवाना हुआ। मशालों और तलवारों को देखकर वो भयभीत हुआ। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात ये थी कि भीड़ की तरफ से ये आवाज गई कि वो लोग किसी ब्रिटानी अधिकारी को नुकसान नहीं पहुंचाएंगे। वो लोग चाहते हैं कि गांधी बाबा(महात्मा गांधी) की अपील पर ध्यान दें और जितना जल्दी हो सके भारत को आजाद कर दें। 

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हिल गई अंग्रेजी हुकूमत

भारत छोड़ो आंदोलन के शुरू होते ही गांधी, नेहरू, पटेल, आजाद समेत कई बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। अंग्रेजी हुकूमत इतना डर गई थी कि उसने एक भी नेता को नहीं बख्शाा। दरअसल अंग्रेजों की सोच ये थी कि बड़े नेताओं की गिरफ्तारी से आंदोलन ठंडा पढ़ जाएगा। देश के अलग अलग हिस्सों में राष्ट्रीय सरकारों का गठन हुआ। यूपी का बलिया, महाराष्ट्र का सतारा और अविभाजित बंगाल का हजारा भारत छोड़ो आंदोलन के महत्वपूर्ण केंद्र थे। बलिया में जहां चित्तु पांडे की अगुवाई में राष्ट्रीय सरकार का गठन किया गया। वहीं सतारा की सरकार लंबे समय तक चलती रही। 

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क्यों खास था ये आंदोलन

महात्मा गांधी के नेतृत्व में शुरु हुआ यह आंदोलन सोची-समझी रणनीति का हिस्साा था। इस आंदोलन की खास बात ये थी कि इसमें पूरा देश शामिल हुआ। ये ऐसा आंदोलन था जिसने ब्रिटिश हुकूमत की जड़ें हिलाकर रख दी थीं। ग्वालिया टैंक मैदान से गांधीजी ने कहा कि वो एक मंत्र देना चाहते हैं जिसे आप सभी लोग अपने दिल में उतार लें और वो वो मंत्र था करो या मरो था। बाद में ग्वालिया टैंक मैदान को अगस्त क्रांति मैदान के नाम से जाना जाने लगा।

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लोगों ने खुद अपना नेतृत्व किया

लेकिन आंदोलन के असर को इस तरह से समझा जा सकता है कि बड़े नेताओं की गिरफ्तारी के बाद जनता ने आंदोलन की बागडोर अपने हाथों में ले ली। हालांकि ये अंहिसक आंदोलन था पर आंदोलन में रेलवे स्टेंशनों, सरकारी भवनों आदि को निशाना बनाया गया। ब्रिटिश सरकार ने हिंसा के लिए कांग्रेस और गांधी जी को उत्तरदायी ठहराया। लेकिन पर लोग अहिंसक तौर पर भी आंदोलन करते रहे। पूरे देश में ऐसा माहौल बन गया कि भारत छोड़ो आंदोलन अब तक का सबसे विशाल आंदोलन साबित हुआ। भारत छोड़ो आंदोलन का असर ये हुआ कि अंग्रेजों को लगने लगा कि अब उनका सूरज अस्त होने वाला है। पांच साल बाद 15 अगस्त 1947 को वो दिन आया जब अंग्रजों का प्रतीक यूनियन जैक इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया है। 

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Edited By: Sanjay Pokhriyal