30 मार्च, 1942 को सर स्टेफोर्ड क्रिप्स(Sir Stafford
Crips)ने यह संकेत दिया था, कि यदि भारतीय नेताओं से बातचीत असफल हो गयी तो, ब्रिटिश सरकार भारतीय गितिरोध को दूर करने के लिए कोई बातचीत नहीं करेगी। चूँकि क्रिप्स मिशन अब असफल हो चुका था, अतः
भारतीयों के समक्ष स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए आंदोलन करने के अतिरिक्त और कोई विकल्प नहीं था। इसलिए कांग्रेस को विवश होकर भारत छोङो आंदोलन चलाना पङा। किन्तु केवल क्रिप्स मिशन की असफलता ही इस आंदोलन का मूल कारण नहीं था। गांधीजी सरकार के समक्ष झुकने की निति के विरुद्ध थे। वे प्रत्यक्ष कार्यवाही के पक्ष में थे, चाहे इसका युद्ध पर कितना ही बुरा असर क्यों न पङे। अतः
14 जुलाई 1942 को वर्धा में कांग्रेस का कार्यसमिति ने भारत छोङो प्रस्ताव पारित किया। भारत छोङो प्रस्ताव( bhaarat chhodo prastaav )इस प्रस्ताव में कहा गया कि यदि अंग्रेज भारत से अपना नियंत्रण हटा लें तो भारतीय जनता विदेशी आक्रांताओं का सामना करने के लिए हर प्रकार से योगदान करने को तैयार है। इस प्रस्ताव का अंतिम निर्णय 7 व 8 अगस्त, 1942 को बंबई में कांग्रेस की महासमिति में किया गया। कांग्रेस महासमिति ने 8 अगस्त, 1942 को भारत छोङो आंदोलन प्रस्ताव कुछ संशोधनों के साथ स्वीकार कर लिया। इस अंतिम प्रस्ताव में कहा गया, भारत में ब्रिटिश शासन का तुरंत अंत होना चाहिये। पराधीन भारत ब्रिटिश साम्राज्यवाद का चिह्न बना हुआ है, किन्तु स्वतंत्रता प्राप्ति युद्ध के रूप में बदल सकती है। अतः कांग्रेस भारत से ब्रिटिश सत्ता के हट जाने की माँग दोहराती है। यह माँग न मानी जाने पर यह समिति गांधीजी के नेतृत्व में अहिंसात्मक संघर्ष चलाने की अनुमति प्रदान करती है तथा भारतीयों से अपील करती है, कि इसका आधार अहिंसा हो । इस प्रस्ताव में यह भी कहा गया कि सरकारी दमन नीति के कारण यदि गाँधीजी का नेतृत्व उपलब्ध न रहे तो प्रत्येक व्यक्ति अपना नेता स्वयं होगा। सरकार की दमन नीतिगाँधीजी ने बातचीत करने के लिए गवर्नर-जनरल को एक पत्र लिखा और उसके उत्तर की प्रतीक्षा में थे। गाँधीजी ने अमेरिकी राष्ट्रपति रूजवेल्ट तथा चीन के राष्ट्राध्यक्ष च्यांग काई शेक को भी जो पत्र लिखा था, उसमें उन्होंने कहा था कि वे कोई कदम जल्दी में नहीं उठाना चाहते । उन्होंने यह भी लिखा था, कि वे भारत की स्वतंत्रता के लिए इंग्लैण्ड पर दबाव डालें। किन्तु लार्ड लिनलिथगो भारत में बढते हुए असंतोष से भलीभाँति परिचित था।वह जानता था कि यदि इस बार आंदोलन हुआ तो वह सबसे अधिक भयंकर होगा। अतः वह आंदोलन आरंभ होने से पूर्व ही उसे कुचल देना चाहता था।कांग्रेस महासमिति की बैठक भारत छोङो प्रस्ताव स्वीकृत करने के बाद 8 अगस्त,1942 को अर्द्ध रात्रि के समय समाप्त हुई थी और 9 अगस्त को सूर्योदय होने से पूर्व ही गाँधीजी व काँग्रेस कार्य समिति के सभी नेताओं को बंबई में गिरफ्तार कर अज्ञात स्थान पर भेज दिया गया। बहुत दिनों तक जनता को उनकी कोई जानकारी ही नहीं मिली। बाद में पता चला कि गाँधीजी को पूना में आगाखाँ महल में तथा अन्य नेताओं को अहमदाबाद जेल में बंद किया गया था। सरकार ने कांग्रेस को गैरकानूनी संस्था घोषित कर दिया। सरकार ने आंदोलन का दमन करने के लिए जनता पर अत्याचार किये। कांग्रेस के नेताओं की गिरफ्तारी से जनता नेतृत्वहीन हो गई। कांग्रेसी नेताओं ने कोई हिदायत भी नहीं छोङी थी। गाँधीजी ने केवल यही कहा था कि, मेरे जीवन का यह अंतिम संघर्ष होगा। उन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए जनता को करो या मरो (do or die) का नारा दिया। ऐसी स्थिति में कांग्रेस के शेष नेताओं ने कांग्रेस कमेटी की ओर से एक पुस्तिका प्रकाशित की, जिसमें 12 सूत्री कार्यक्रम दिया हुआ था। इस पुस्तिका में संपूर्ण देश में हङताल करने, सार्वजनिक सभाएँ करने, लगान न देने आदि की बात कही गई थी। इस पुस्तिका में अहिंसात्मक आंदोलन पर विशेष बल दिया गया था। भारत छोङो आंदोलन का स्वरूप( bhaarat chhodo aandolan ka svaroop )1942 के आंदोलन की कोई तैयारी नहीं की गई थी और न आंदोलन के संचालन की रूपरेखा तैयार की गई थी। यह एक स्वाभाविक जन-आंदोलन था, जो मुख्यतः विद्यार्थियों, किसानों और निम्न मध्यम वर्ग तक सीमित रहा। श्रमिकों ने इस आंदोलन में बहुत कम भाग लिया। भारत छोङो आंदोलन चार अवस्थाओं में से होकर गुजरा था, जो निम्नलिखित हैं-
अन्य दलों का भारत छोङो आंदोलन के प्रति रवैया-कांग्रेस को छोङकर अन्य किसी दल ने इस आंदोलन में भाग नहीं लिया। साम्यवादी दल की नीति तो रूस के कार्यकलापों से प्रभावित होती रही। जब द्वितीय विश्व युद्ध आरंभ हुआ तो उन्होंने युद्ध को साम्राज्यवादी बताया था, किन्तु जब रूस पर जर्मनी का आक्रमण हुआ और रूस, इंग्लैण्ड के साथ मिल गया, तब उन्होंने इस युद्ध को जनता का युद्ध कहना शुरू कर दिया। इस प्रकार साम्यवादी दल ने अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं से प्रभावित होकर राष्ट्रीय समस्याओं के प्रति अपना दृष्टिकोण शीघ्र बदल लिया और उन्होंने लोगों से अंग्रेजों की सहायता करने को भी कहा। साम्यवादियों ने भारत छोङो आंदोलन की निंदा की। मुस्लिम लीग के सर्वेसर्वा जिन्ना ने इस आंदोलन को खतरनाक बताते हुए मुसलमानों से इसमें भाग ने लेने की अपील की। इतना ही नहीं, इस समय जबकि कांग्रेस के सभी प्रमुख नेता जेलों में थे, मुस्लिम लीग ने उनकी अनुपस्थिति का लाभ उठाकर अंग्रेजों से साँठ-गाँठ करना आरंभ कर दिया। हिन्दू महासभा के प्रधान वीर सावरकर ने यद्यपि सरकार की कटु आलोचना की, लेकिन हिन्दुओं को इस आंदोलन में भाग न लेने को कहा। उदारवादियों के नेता सर तेज बहादुर सप्रू ने कांग्रेस के प्रस्ताव को अनीतिपूर्ण और असामयिक बताया। एंग्लो-इंडियन जाति के प्रवक्ता एन्थोनी ने आंदोलन का विरोध करते हुए कहा कि अंग्रेजों से अपना पुराना बदला चुकाने के लिए भारत को धुरी राष्ट्रों के हाथों बेचना ठीक नहीं होगा।हरिजन नेता डॉ.अंबेडकर,भारतीय ईसाइयों तथा अकाली दल ने भी आंदोलन का विरोध किया। भारत छोङो आंदोलन का महत्त्व एवं परिणामभारत छोङो आंदोलन की असफलता के कारणReference : https://www.indiaolddays.com/ भारत छोड़ो आंदोलन का कारण क्या है?भारत छोड़ो आन्दोलन, द्वितीय विश्वयुद्ध के समय 8 अगस्त 1942 को आरम्भ किया गया था। यह एक आन्दोलन था जिसका लक्ष्य भारत से ब्रिटिश साम्राज्य को समाप्त करना था। यह आंदोलन महात्मा गांधी द्वारा अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के मुम्बई अधिवेशन में शुरू किया गया था।
भारत छोड़ो आंदोलन कब हुआ था और क्यों?भारत छोड़ो आंदोलन: जब 1942 में बलिया, तमलुक और सतारा में बन गई थीं आज़ाद सरकारें नौ अगस्त 1942 को मुंबई के गोवालिया टैंक मैदान में महात्मा गांधी ने अंग्रेज़ों से तुरंत भारत छोड़ने को कहा और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे शक्तिशाली आंदोलन की शुरूआत की.
1942 में भारत छोड़ो आंदोलन शुरू करने का मुख्य कारण कौन सा था?'भारत छोड़ो आंदोलन' द्वितीय विश्वयुद्ध के समय 8 अगस्त 1942 को आरम्भ किया गया था, जिसका मकसद भारत मां को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद कराना था। ये आंदोलन देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की ओर से चलाया गया था। बापू ने इस आंदोलन की शुरूआत अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के मुम्बई अधिवेशन से की थी।
भारत छोड़ो आंदोलन की असफलता के क्या कारण थे कोई पांच कारण लिखिए?भारत छोड़ो आंदोलन की असफलता के कारण
सुसंगठित योजना के अभाव के कारण आंदोलन से पहले ही सारे नेता गिरफ्तार कर लिए गए। 2- गाँधी जी का अति आत्मविश्वास भी इस आंदोलन की असफलता का कारण बना। 3- इस आंदोलन का कोई मुख्य नेतृत्वकर्ता नहीं था जिसके कारण आंदोलन रास्ता भटक गया। 4- आंदोलन को बहुत सारे नेताओं का समर्थन प्राप्त नहीं था।
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