Show भूदान आन्दोलन सन्त विनोबा भावे द्वारा सन् 1951 में आरम्भ किया गया था। यह स्वैच्छिक भूमि सुधार आन्दोलन था। विनोबा की कोशिश थी कि भूमि का पुनर्वितरण सिर्फ सरकारी कानूनों के जरिए नहीं हो, बल्कि एक आंदोलन के माध्यम से इसकी सफल कोशिश की जाए। 20वीं सदी के पांचवें दशक में भूदान आंदोलन को सफल बनाने के लिए विनोबा ने गांधीवादी विचारों पर चलते हुए रचनात्मक कार्यों और ट्रस्टीशिप जैसे विचारों को प्रयोग में लाया। उन्होंने सर्वोदय समाज की स्थापना की। यह रचनात्मक कार्यकर्ताओं का अखिल भारतीय संघ था। इसका उद्देश्य अहिंसात्मक तरीके से देश में सामाजिक परिवर्तन लाना था। परिचय[संपादित करें]वह 18 अप्रैल 1951 की तारीख थी, जब आचार्य विनोबा भावे को जमीन का पहला दान मिला था। उन्हें यह जमीन तेलंगाना क्षेत्र में स्थित पोचमपल्ली गांव में दान में मिली थी। यह विनोबा के उसी भूदान आंदोलन की शुरुआत थी, जो अब इतिहास के पन्नों में दर्ज है या फिर पुराने लोगों की स्मृति में। तब विनोबा पदयात्राएं करते और गांव-गांव जाकर बड़े भूस्वामियों से अपनी जमीन का कम से कम छठा हिस्सा भूदान के रूप में भूमिहीन किसानों के बीच बांटने के लिए देने का अनुरोध करते थे। तब पांच करोड़ एकड़ जमीन दान में हासिल करने का लक्ष्य रखा गया था जो भारत में 30 करोड़ एकड़ जोतने लायक जमीन का छठा हिस्सा था। उस वक्त प्रजा सोशलिस्ट पार्टी (पीएसपी) के नेता जयप्रकाश नारायण भी 1953 में भूदान आंदोलन में शामिल हो गए थे। आंदोलन के शुरुआती दिनों में विनोबा ने तेलंगाना क्षेत्र के करीब 200 गांवों की यात्रा की थी और उन्हें दान में 12,200 एकड़ भूमि मिली। हैदराबाद राज्य के सातवें निजाम (मीर उस्मान अली खान) ने भी भूमिहीन किसानों के बीच फिर से वितरण के लिए इस आंदोलन की ओर अपनी व्यक्तिगत संपत्ति से १४,००० एकड़ जमीन दान की।[1] इसके बाद आंदोलन उत्तर भारत में फैला। बिहार और उत्तर प्रदेश में इसका गहरा असर देखा गया था। मार्च 1956 तक दान के रूप में 40 लाख एकड़ से भी अधिक जमीन बतौर दान मिल चुकी थी। पर इसके बाद से ही आंदोलन का बल बिखरता गया। 1955 तक आते-आते आंदोलन ने एक नया रूप धारण किया। इसे ‘ग्रामदान’ के रूप में पहचाना गया। इसका अर्थ था ‘सारी भूमि गोपाल की’। ग्रामदान वाले गांवों की सारी भूमि सामूहिक स्वामित्व की मानी गई, जिसपर सबों का बराबर का अधिकार था। इसकी शुरुआत उड़ीसा से हुई और इसे काफी सफलता मिली। 1960 तक देश में 4,500 से अधिक ग्रामदान गांव हो चुके थे। इनमें 1946 गांव उड़ीसा के थे, जबकि महाराष्ट्र दूसरे स्थान पर था। वहां 603 ग्रामदान गांव थे। कहा जाता है कि ग्रामदान वाले विचार उन्हीं स्थानों पर सफल हुए जहां वर्ग भेद उभरे नहीं थे। वह इलाका आदिवासियों का ही था। पर बड़ी उम्मीदों के बावजूद साठ के दशक में भूदान और ग्रामदान आंदोलन का बल कमजोर पड़ गया। लोगों की राय में इसकी रचनात्मक क्षमताओं का आम तौर पर उपयोग नहीं किया जा सका। दान में मिली 45 लाख एकड़ भूमि में से 1961 तक 8.72 लाख एकड़ जमीन गरीबों व भूमिहीनों के बीच बांटी जा सकी थी। कहा जाता है कि इसकी कई वजहें रहीं। मसलन- दान में मिली भूमि का अच्छा-खासा हिस्सा खेती के लायक नहीं था। काफी भूमि मुकदमें में फंसी हुई थी, आदि-आदि। कुल मिलाकर ये बातें अब भुला दी गई हैं। हालांकि, कभी-कभार मीडिया में भूदान में मिली जमीन के बाबत खबरें आती रहती हैं। आचार्य विनोबा का भूदान आंदोलन लोगों के जेहन में रह गया है। जानकारों की राय में आजादी के बाद यह उन पहली कोशिशों में से एक था, जहां रचनात्मक आंदोलन के माध्यम से भूमि सुधार की कोशिशें की गई थी। सो लोगों ने बड़ी कोशिशें की हैं, इस समाज को आगे लाने की। दुख है कि वह कोशिश राजनीतिक या फिर शासकीय मकड़ाजाल में फंसकर रह जाती है। उस समय के राजनेताओं का या फिर स्वशासन के डर से नेताओं ने अड़चने लगानी सुरु कर दी जिससे ये भविष्य मे एक बड़ा रूप लेने से पहले ही बिखर गया था| इन्हें भी देखें[संपादित करें]
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
June 26, 2019 Itihas भूदान आंदोलन का इतिहास (Bhoodan Andolan History in Hindi)देश में स्वतंत्रता के बाद सामान्य कृषक वर्ग को कई समस्याओं का सामना करना पड़ा था, जिसमें भूमि की कमी काफी बड़ी समस्या थी, इसके समाधान हेतु ही भूदान आंदोलन अस्तित्व में आया, ये आंदोलन कोई एक दिन, महीने या वर्ष तक चलने वाला आंदोलन नहीं था, इसमें पूरा एक दशक लगा था. इस मिशन की चर्चा देश के बाहर भी हुयी थी और इसे काफी सराहना भी मिली. आंदोलन के संस्थापक विनोबा भावे के बारे में न्यूयॉर्क टाइम्स में भी छपा था.
किसने शुरू किया था?? (Who started it) आचार्य विनोबा भावे ने भूदान आन्दोलन की शुरुआत की थी. विनोबा जी ने गांधीजी के साथ स्वतंत्रता संग्रामा में भाग लिया था और लगभग 5 वर्ष जेल में बिताये थे. गाँधीजी की हत्या के बाद भावे को ही उनका उत्तराधिकारी माना जा रहा था लेकिन उनके उद्देश्य काफी अलग थे, उन्होंने देश के गरीब और भूमि विहीन वर्ग के हितों की रक्षा की जिम्मेदारी ली थी. भावे ने उनके आदर्शों और सिद्धांतों को आगे बढाते हुए भूमि सुधार कार्यों में विशेष योगदान दिया था. 1951 में भूदान आंदोलन के लिए विनोबा भावे ने हजारों मीलों की पदयात्रा की थी और भू-दाताओं से जमीन दान करने की अपील की थी. भावे की प्रेरणा से जयप्रकाश नारायण जैसे कई बड़े समाजवादी नेता इस आंदोलन से जुड़े. भूदान आंदोलन का उद्देश्य (Objectives of the Bhoodan Movement)
भूदान आन्दोलन कब और कैसे शुरू हुआ था? (When and Where did Bhoodan Andolan started)
आंदोलन का प्रसार (The Movement Expands)
आंदोलन की समाप्ति विनोबा भावे ने भूमि विहीन लोगों के लिए पूरे देश में भूमि-वंचितों तक भूदान आंदोलन पहुंचाने का निर्णय किया था, इसलिए जो आंदोलन निजी स्तर पर शुरू हुआ था वो राष्ट्रीय आंदोलन बन गया. लेकिन 1971 की शुरुआत में इसका महत्व बदलने लगा एव भूदान की जगह ग्रामदान का चलन बढ़ा, इस दान में किसी गाँव का अधिकतर हिस्सा ग्रामीणों में सभी परिवारों को बराबर बाँट दिया जाता था, हालांकि भूदान तब भी हो रहा था लेकिन कम हो गया था. वैसे भूदान आंदोलन गैर-आदिवासी इलाकों में नहीं पहुंच सका था, इसलिए भी समय के साथ कमजोर हो गया था. हालांकि आंदोलन में कई उतार-चढाव आये लेकिन 1969 में भूदान तक लगभग 4 मिलियन एकड़ भूमि दान की जा चूकी थी इसके अतिरिक्त सम्पतिदान, श्रमदान, जीवनदान (आन्दोलन में अपना जीवन देना), साधनदान (कृषि कार्यों के लिए साधन/उपकरण दान देना) जैसे कई कार्यक्रम हुए. वैसे सम्पति दान भूदान के साथ शुरू नही हुआ था लेकिन भूमि विहीन लोगों के पास इस भूमि पर काम शुरू करने के लिए साधन नही थे इसलिए सम्पतिदान अस्तित्व में आया. आचार्यजी ने कहा कि वो शुरू से जानते थे कि ये समस्या आयेगी,लेकिन जड़ों को मजबूत करना जरूरी होता हैं,शाखाएं स्वत: निकल आती हैं, और ये बात सबको पता थी कि समस्या की जड़ भूमि की कमी होना हैं. इस तरह भूदान आंदोलन से ना केवल भूमि विहीन लोगों को भूमि मिली बल्कि गांधीवादी विचारधारा का विस्तार भी हुआ. Other Links:
भूदान आंदोलन का मुख्य उद्देश्य क्या है?भूदान आंदोलन का उद्देश्य पूरे देश का उद्धार करना था जिसमें समाज में सबको साथ लेकर आगे बढना था. भूदान आंदोलन सिर्फ भूमि का वितरण नही था बल्कि एक प्रक्रिया थी जिसके अतंर्गत समाज के सभी वर्गों के हितों की रक्षा की गयी थी. भावे ने कहा था कि हम समाज की आर्थिक समस्याओं को कम करना चाहते हैं.
भूदान आंदोलन क्यों किया गया?भूदान आंदोलन क्यों शुरू हुआ था:
ऐसी ही एक प्रथा जमींदारी थी जिसे कानून के माध्यम से खत्म कर दिया गया। इसके साथ ही यह भी व्यवस्था लागू की गई, कि गाँव में प्रत्येक व्यक्ति के पास केवल उसकी ज़रूरत के अनुसार भूमि का अधिकार रहेगा। इससे अधिक भूमि होने पर वो सरकार द्वारा ले ली जाएगी और भूमिहीन किसानों को दे दी जाएगी।
भूदान आंदोलन कहाँ से शुरू हुआ?भूमिहीन कृषकों की दशा सुधारने हेतु विनोबा भावे ने 1951 में भूदान तथा ग्रामदान आंदोलनों की शुरुआत वर्तमान तेलंगाना के पोचमपल्ली गाँव से की, जिससे भूमिहीन निर्धन किसान समाज की मुख्य धारा से जुड़कर गरिमामय जीवनयापन कर सकें।
भूदान का क्या अर्थ होता?- 1. दान स्वरूप दी गई भूमि 2. दान के रूप में भूमि देने की क्रिया, अवस्था या भाव।
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