मियाँ नसीरुद्दीन ने जब लेखिका को अपने बुजर्गों के किस्सों को सुनाया कि किस तरह मियाँ नसीरुद्दीन के बुजुर्ग बादशाह के यहाँ नानबाई का काम करते थे और बादशाह सलामत उनके हुनर को सराहते थे तब लेखिका ने बादशाह का नाम पूछा। मियाँ नसीरुद्दीन ने सारे किस्से बुजुर्गों के मुँह से सुने थे। Show
सच्चाई यह थी कि उन्होंने कभी किसी बादशाह के यहाँ काम किया ही नहीं था । तभी तो वो लेखिका के पूछने पर बता नहीं सके कि उन्होंने बादशाह के यहाँ कौन-सा पकवान बनाया था । इसलिए बादशाह के नाम का प्रसंग आते ही लेखिका की बातों में मियाँ नसीरुद्दीन की दिलचस्पी कम होने लगी। Contents लेखिका परिचय● जीवन परिचय-कृष्णा सोबती का जन्म 1925 ई. में पाकिस्तान के गुजरात नामक स्थान पर हुआ। इनकी शिक्षा लाहौर, शिमला व दिल्ली में हुई। इन्हें साहित्य अकादमी सम्मान, हिंदी अकादमी का शलाका सम्मान, साहित्य अकादमी की महत्तर सदस्यता सहित अनेक राष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाजा गया। ● रचनाएँ-कृष्णा सोबती ने अनेक विधाओं में लिखा। उनके कई उपन्यासों, लंबी कहानियों और संस्मरणों ने हिंदी के साहित्यिक संसार में अपनी दीर्घजीवी उपस्थिति सुनिश्चित की है। इनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं- ● साहित्यिक परिचय-हिंदी कथा साहित्य में कृष्णा सोबती की विशिष्ट पहचान है। वे मानती हैं कि कम लिखना विशिष्ट लिखना है। यही कारण है कि उनके संयमित लेखन और साफ-सुथरी रचनात्मकता ने अपना एक नित नया पाठक वर्ग बनाया है। उन्होंने हिंदी साहित्य को कई ऐसे यादगार चरित्र दिए हैं, जिन्हें अमर कहा जा सकता है;
जैसेमित्रो, शाहनी, हशमत आदि। पाठ का सारांशमियाँ नसीरुद्दीन शब्दचित्र हम-हशमत नामक संग्रह से लिया गया है। इसमें खानदानी नानबाई मियाँ नसीरुद्दीन के व्यक्तित्व, रुचियों और स्वभाव का शब्दचित्र खींचा गया है। मियाँ नसीरुद्दीन अपने मसीहाई अंदाज से रोट्री पकाने की कला और उसमें अपनी खानदानी महारत बताते हैं। वे ऐसे इंसान का भी प्रतिनिधित्व करते हैं जो अपने पेशे को कला का दर्जा देते हैं और करके सीखने को असली हुनर मानते हैं। लेखिका बताती है कि एक दिन वह मटियामहल के गद्वैया मुहल्ले की तरफ निकली तो एक अँधेरी व मामूली-सी दुकान पर आटे का ढेर सनते देखकर उसे कुछ जानने का मन हुआ। पूछताछ करने पर पता चला कि यह खानदानी नानबाई मियाँ नसीरुद्दीन की दुकान है। ये छप्पन किस्म की रोटियाँ बनाने के लिए मशहूर हैं। मियाँ चारपाई पर बैठे बीड़ी पी रहे थे। उनके चेहरे पर अनुभव और आँखों में चुस्ती व माथे पर कारीगर के तेवर थे। लेखिका के प्रश्न पूछने की बात पर उन्होंने अखबारों पर व्यंग्य किया। वे अखबार बनाने वाले व पढ़ने वाले दोनों को निठल्ला समझते हैं। लेखिका ने प्रश्न पूछा कि आपने इतनी तरह की रोटियाँ बनाने का गुण कहाँ से सीखा? उन्होंने बेपरवाही से जवाब दिया कि यह उनका खानदानी पेशा है। इनके वालिद मियाँ बरकत शाही नानबाई थे और उनके दादा आला नानबाई मियाँ कल्लन थे। उन्होंने खानदानी शान का अहसास करते हुए बताया कि उन्होंने यह काम अपने पिता से सीखा। नसीरुद्दीन ने बताया कि हमने यह सब मेहनत से सीखा। जिस तरह बच्चा पहले अलिफ से शुरू होकर आगे बढ़ता है या फिर कच्ची, पक्की, दूसरी से होते हुए ऊँची जमात में पहुँच जाता है, उसी तरह हमने भी छोटे-छोटे काम-बर्तन धोना, भट्ठी बनाना, भट्ठी को आँच देना आदि करके यह हुनर पाया है। तालीम की तालीम भी बड़ी चीज होती है। खानदान के नाम पर वे गर्व से फूल उठते हैं। उन्होंने बताया कि एक बार बादशाह सलामत ने उनके बुर्जुगों से कहा कि ऐसी चीज बनाओ जो आग से न पके, न पानी से बने। उन्होंने ऐसी चीज बनाई और बादशाह को खूब पसंद आई। वे बड़ाई करते हैं कि खानदानी नानबाई कुएँ में भी रोटी पका सकता है। लेखिका ने इस कहावत की सच्चाई पर प्रश्नचिहन लगाया तो वे भड़क उठे। लेखिका जानना चाहती थी कि उनके बुजुर्ग किस बादशाह के यहाँ काम करते थे। अब उनका स्वर बदल गया। वे बादशाह का नाम स्वयं भी नहीं जानते थे। वे इधर-उधर की बातें करने लगे। अंत में खीझकर बोले कि आपको कौन-सा उस बादशाह के नाम चिट्ठी-पत्री भेजनी है। लेखिका से पीछा छुड़ाने की गरज से उन्होंने बब्बन मियाँ को भट्टी सुलगाने का आदेश दिया। लेखिका ने उनके बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि वे उन्हें मजदूरी देते हैं। लेखिका ने रोटियों की किस्में जानने की इच्छा जताई तो उन्होंने फटाफट नाम गिनवा दिए। फिर तुनक कर बोले-तुनकी पापड़ से ज्यादा महीन होती है। फिर वे यादों में खो गए और कहने लगे कि अब समय बदल गया है। अब खाने-पकाने का शौक पहले की तरह नहीं रह गया है और न अब कद्र करने वाले हैं। अब तो भारी और मोटी तंदूरी रोटी का बोलबाला है। हर व्यक्ति जल्दी में है। शब्दार्थ पृष्ठ संख्या 22 पृष्ठ संख्या 23 पृष्ठ संख्या 24 पृष्ठ संख्या 25 पृष्ठ संख्या 26 पृष्ठ संख्या 27 पृष्ठ संख्या 28 अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न1.
साहबों, उस दिन अपन मटियामहल की तरफ से न गुज़र जाते तो राजनीति, साहित्य और कला के हज़ारों-हज़ार मसीहों के धूम-धड़क्के में नानबाइयों के मसीहा मियाँ नसीरुद्दीन को कैसे तो पहचानते और कैसे उठाते लुत्फ उनके मसीही अदाज़ का! प्रश्न
उत्तर-
2. मियाँ नसीरुद्दीन ने पंचहज़ारी अंदाज़ से सिर हिलाया-‘निकाल लेंगे वक्त थोड़ा, पर यह तो कहिए, आपको पूछना क्या है? ‘फिर घूरकर देखा और जोड़ा-‘मियाँ, कहीं अखबारनवीस तो नहीं हो? यह तो खोजियों की खुराफात है। हम तो अखबार बनानेवाले और अखबार पढ़नेवाले-दोनों को ही निठल्ला समझते हैं। हाँ-कामकाजी आदमी को इससे क्या काम है। खैर, आपने यहाँ तक आने की तकलीफ़ उठाई ही है तो पूछिए-क्या पूछना चाहते हैं!’ ” (पृष्ठ-22-23) प्रश्न
उत्तर-
3. मियाँ नसीरुद्दीन ने आँखों के कंचे हम पर फेर दिए। फिर तरेरकर बोले-‘क्या मतलब? पूछिए साहब-नानबाई इल्म लेने कहीं और जाएगा? क्या नगीनासाज़ के पास? क्या आईनासाज़ के पास? क्या मीनासाज़ के पास? या रफूगर, रैंगरेज़ या तेली-तंबोली से सीखने जाएगा? क्या फरमा दिया साहब-यह तो हमारा खानदानी पेशा ठहरा। हाँ, इल्म की बात पूछिए तो जो कुछ भी सीखा, अपने वालिद उस्ताद से ही। मतलब यह कि हम घर से न निकले कि कोई पेशा अख्तियार करेंगे। जो बाप-दादा का हुनर था, वही उनसे पाया और वालिद मरहूम के उठ जाने पर बैठे उन्हीं के ठीये पर!’ (पृष्ठ-23-24) प्रश्न 1. मियाँ ने लखिका को अखें तरेरकर क्यों उत्तर दिया उत्तर- 1. मियाँ से जब लेखिका ने पूछा कि आपने नानबाई का काम किससे सीखा तो उन्हें क्रोध आ गया। उन्हें यह प्रश्न ही गलत लगा। वे अपनी आँखें तरेरकर अपनी प्रतिक्रिया जता
रहे थे। 4. मियाँ कुछ देर सोच में खोए रहे। सोचा पकवान पर रोशनी डालने को है कि नसीरुद्दीन साहिब बड़ी रुखाई से बोले-‘यह हम न बतावेंगे। बस, आप इत्ता समझ लीजिए कि एक कहावत है न कि खानदानी नानबाई कुएँ में भी रोटी पका सकता है। कहावत जब भी गढ़ी गई हो, हमारे बुजुर्गों के करतब पर ही पूरी उतरती है।’ मज़ा लेने के लिए टोका-‘कहावत यह सच्ची भी है कि.।’ मियाँ ने तरेरा-‘और क्या झूठी है? आप ही बताइए, रोटी पकाने में झूठ का क्या काम! झूठ से रोटी पकेगी? क्या पकती देखी है कभी! रोटी जनाब पकती है आँच से, समझे!’ (पृष्ठ-26) प्रश्न
उत्तर-
5.‘अजी साहिब, क्यों बाल की खाल निकालने पर तुले हैं!’ कह दिया न कि बादशाह के यहाँ काम करते थे-सो क्या काफी नहीं?’ प्रश्न
उत्तर-
6. फिर तेवर चढ़ा हमें घूरकर कहा-‘तुनकी पापड़ से ज़्यादा महीन होती
है, महीन। हाँ किसी दिन खिलाएँगे, आपको।’ एकाएक मियाँ की आँखों के आगे कुछ कौंध गया। एक लंबी साँस भरी और किसी गुमशुदा याद को ताज़ा करने को कहा-‘उतर गए वे ज़माने। और गए वे कद्रदान जो पकाने-खाने की कद्र करना जानते थे। मियाँ अब क्या रखा है. निकाली तंदूर से-निगली और हज़म!’ (पृष्ठ-28)
उत्तर-
पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्नपाठ के साथप्रश्न 1: प्रश्न 2: प्रश्न 3: प्रश्न 4: प्रश्न 5: पाठ के आस-पासप्रश्न 1: प्रश्न
2: प्रश्न 3: प्रश्न 4: प्रश्न 5: भाषा की बातप्रश्न 1: (क) पचहज़ारी अदाज़ से सिर हिलाया। उत्तर- (क) हमारे
पड़ोस में एक धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति रहते थे। वे लोगों के हर कष्ट में साथ होते थे। समाजसेवा के कार्यों में बढ़-चढ़कर भाग लेते थे! मैंने एक दिन उनकी समाजसेवा की प्रशंसा की तो उन्होंने पंचहज़ारी अंदाज़ में सिर हिलाया। प्रश्न 2:
प्रश्न 3: (क) मियाँ मशहूर
हैं छप्पन किस्म की रोटियाँ बनाने के लिए। उत्तर- (क) मियाँ छप्पन किस्म की रोटियाँ बनाने के लिए मशहूर हैं। अन्य हल प्रश्न● बोधात्मक प्रशन प्रश्न 1: प्रश्न 2: प्रश्न 3: प्रश्न 4: प्रश्न 4: NCERT SolutionsHindiEnglishHumanitiesCommerceScience बादशाह के नाम का प्रसंग आते लेखिका की बातों में मियां नसीरुद्दीन की दिलचस्पी क्यों खत्म होने लगी?3. बादशाह के नाम का प्रसंग आते ही लेखिका की बातों में मियाँ नसीरुद्दीन की दिलचस्पी क्यों खत्म होने लगी? 4. मियाँ नसीरुद्दीन के चेहरे पर किसी दबे हुए अंधड़ के आसार देख यह मज़मून न छेड़ने का फ़ैसला किया - इस कथन के पहले और बाद के प्रसंग का उल्लेख करते हुए इसे स्पष्ट कीजिए ।
प्रश्न 1 मियाँ नसीरुद्दीन को नानबाइयों का मसीहा क्यों कहा गया है?उन्हें छप्पन तरह की रोटियाँ बनानी आती हैं। अन्य नानबाईयों के लिए यह काम उनकी जीविका का साधन है और मियाँ नसीरुद्धीन के लिए यह एक कला है, जिसे पकाने में उन्हें आनंद आता है। उसकी मसीहाई अंदाज़ और सर्वश्रेष्ठता के कारण ही उसे नानबाइयों का मसीहा कहा जाता है।
लेखिका मियां नसीरुद्दीन के पास क्यों गए थे?लेखिका मियाँ नसीरुद्दीन के पास इसलिए गई ताकि वह उसकी नानबाई कला के बारे में जानकारी प्राप्त कर सके । जब उसने एक मामूली अँधेरी-सी दुकान पर पटापट आटे का ढेर सनते देखा तो वह अपनी उत्सुकता रोक न सकी ।
मियाँ नसीरुद्दीन ने अपने कारीगरों को मनभर मैदे की कितनी मजदूरी देते थे?बाद के प्रसंग में मियाँ नसीरुद्दीन अपने कारीगरों को दी जाने वाली मजदूरी के बारे में बताते हैंदो रुपए मन आटे की और चार रुपए मन मैदा की मजदूरी दी जाती है । मियाँ नसीरुद्दीन की कौन-सी बातें आपको अच्छी लगीं? मियाँ नसीरुद्दीन की निम्नलिखित बातें हमें अच्छी लगीं? 1.
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