एक लकुटी और कामरिया पर कवि सब कुछ न्यौछावर करने को क्यों तैयार - ek lakutee aur kaamariya par kavi sab kuchh nyauchhaavar karane ko kyon taiyaar

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रसखान सवैये की व्याख्या/ प्रश्नोत्तर/ अतिरिक्त प्रश्न    

रसखान सवैया की व्याख्या

मानुष हों तो वही रसखानि बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन।जौ पसु हौं तो कहा बस मेरो चरौं नित नंद की धेनु मँझारन।।पाहन हौं तो वही गिरि को जो कियो हरिछत्र पुरंदर धारन।जौ खग हौं तो बसेरो करौं मिलि कालिंदी कूल कदंब की डारन।

सवैये की व्याख्या-कवि कृष्ण के प्रेम में इतना तल्लीन है कि उसकी इच्छा है कि यदि मैं मनुष्य के रूप में पुन: जन्म पाऊँ तो ब्रज और गोकुल गाँव के ग्वालों के बीच ही रहूँ। रसखान कहते हैं कि यदि मैं पशु के रूप में जन्म लूँ तो नित्य नंद की गायों के बीच चरू। रसखान की इच्छा बस इतनी है कि विधाता यदि मुझे पत्थर बनाए तो उसी गोवर्धन पर्वत का, जिसे ब्रज की रक्षा के लिए इन्द्र के कारण कृष्ण ने छतरी की भाँति उठा लिया था रसखान की कामना है कि यदि मैं पक्षी बनूँ तो मेरा बसेरा यमुना के तट पर स्थित वही कदंब वृक्ष हो जिसके नीचे खड़े होकर कृष्ण वंशी बजाते हैं। तात्पर्य यह है कि रसखान प्रत्येक स्थिति में कृष्ण का निकटतम सानिध्य प्राप्त करना चाहते हैं।

या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिहूँ पुर को तजि डारौं।आठहुँ सिद्धि नवौ निधि के सुख नंद की गाइ चराइ बिसा ।।रसखान कबौं इन आँखिन सौं, ब्रज के बन बाग तड़ाग निहारौं।कोटिक ए कलधौत के धाम करील कुंजन ऊपर वारौं।।

सवैये का भावार्थ  (व्याख्या)- कृष्ण की लकुटी और कंबल पर मैं तीनों लोकों का राज्य भी न्योछावर कर दूँ। आठों सिद्धियों और नौ निधियों के सुख को भी यदि नंद की गाय चराने का अवसर मिल जाए तो भूल जाऊँ। रसखान कहते हैं कि यदि केवल एक बार भी इन आंखों से मैं ब्रजमंडल के वन-बागों को देख पाऊँ तो उन पर, करील के कुंजों पर सोने के बने करोड़ों भवनों को न्योछावर कर दूँ।

मोरपखा सिर ऊपर राखिहौं, गुंज की माल गरें पहिरौंगी।ओढ़ि पितंबर लै लकुटी बन गोधन ग्वारनि संग फिरौंगी।।भावतो वोहि मेरो रसखानि सों तेरे कहे सब स्वाँग करौंगी।या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी।।

 रसखान के सवैये का भावार्थ - हे सखी! मैं मोरपंख सिर के ऊपर रखूँगी, गुंजा की माला भी मैंं पहनुँगी। लंकुटी लेकर, पीतांबर ओढ़कर गायों और ग्वालों के साथ वन में भी घूमती रहूँगी। रसखान कहते हैं कि गोपिका अपनी सखी से कहती है कि कृष्ण मुझे इतना भाते (प्यारे लगते हैं कि मैं उनके रूप का प्रत्येक स्वांग तुम्हारे कहने से करूँगी। लेकिन शर्त यह है कि वह मुरली, जो उस कृष्ण के अधरों (हाटी) पर विराजती है  उसको कभी अपने अधरों पर नहीं रखँगी।

काननि दै अँगुरी रहिबो जबहीं मुरली धुनि मंद बजैहै।मोहनी तानन सों रसखान अटा चड़ि गोधन गैहै तौ गैहै।टेरि कहौं सिगरे ब्रजलोगनि काल्हि कोऊ कितनो समुहै।माइ री वा मुख की मुसकानि सम्हारी न जैहै, न जैहै, न जैहै।

रसखान के सवैये का भावार्थ -  जब कृष्ण मंद-मीठी धुन में बांसुरी बजाएंगे तो मैं कानों में अंगुली कैसे दे लँगी। जब वे अपनी मोहिनी तान में गोधन के गीत गाएँगे तो घर की अटारी पर कैसे न जाऊँं। इसलिए गोपी कहती है कि मैं बार-बार पुकार कर ब्रज के लोगों से कह रही हूँ कि कल जब वे यहाँ आकर मुस्कुराएँगे तो सबके लाख समझाने पर भी उनकी मुस्कराहट के प्रत्युत्तर (जबाब) में मुझे मुस्कुराना ही होगा। अर्थात् मैं कृष्ण की मुसकान की मादकता से बच नहीं सकती।

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रसखान के सवैये का प्रश्न उत्तर 

1. ब्रजभूमि के प्रति कवि का प्रेम किन-किन रूपों में अभिव्यक्त हुआ है?

उत्तर- ब्रजभूमि के प्रति कवि का प्रेम अगाध और असीम है जो निम्नलिखित रूपों में अभिव्यक्त हुआ है

*कवि कहता है कि यदि मुझे अगले जन्म में मनुष्य जन्म मिले तो गोकुल के गांव निवासी बनूँ ।

*यदि पशु के घर जन्म मिले तो नंद की गायों के बीच में चरूँ। 

*यदि पत्थर बनबनूँँ तो कृष्ण द्वारा उठाए गए गोवर्धन पर्वत का पत्थर बनूँ ।

*यदि पक्षी के घर जन्म लूं तो यमुना के किनारे कदंब की डालो पर बसेरा करूं।

2. कवि का ब्रज के वन, बाग और तालाब को निहारने के पीछे क्या कारण हैं?

उत्तर- कृष्ण से जुड़े प्रत्येक स्थान, प्रत्येक वस्तु और उनकी लीलाएं कवि को बहुत ही प्रिय है। ब्रज की भूमि वहां के वन-बाग कृष्ण की लीला के महत्वपूर्ण स्थान है। अतः कवि अपने आराध्य या स्वामी कृष्ण का स्वामित्व पाने के लिए ब्रज के इन बागों और तालाबों को अपनी आंखों से देखना चाहता है। उसे इन सभी दृश्यों में कृष्ण के दर्शन होते हैं।

3.एक लकुटी और कामरिया पर कवि सब कुछ न्योछावर करने को क्यों तैयार है?

उत्तर- एक लकुटी और कमरिया पर कवि अपना सब कुछ न्यौछावर करने को इसलिए तैयार है कि संसार के अन्य साधनों में उसे वह शांति वह संतोष नहीं मिलता जो कृष्ण के समीप स्वयं को ले जाने से मिलता है। अतः वह कृष्ण द्वारा प्रयोग किए जाने वाले संसाधनों को प्राप्त कर लेने मात्र से ही खुश हो जाता है। उसे कृष्ण प्रेम के अतिरिक्त अन्य किसी वस्तु की कोई कामना नहीं है।

4.सखी ने गोपी से कृष्ण का कैसा रूप धारण करने का आग्रह किया था? अपने शब्दों में वर्णन कीजिए। 

उत्तर- सखी ने गोपी से सिर के ऊपर मोर का पंख, शरीर पर पितांबर ओढ़े और हाथ में गायों को चराने की लकड़ी या लकड़ी लिए ग्वाल बालों के साथ वन में विचरण करते हुए गोपियों के घर से माखन चुराकर खाने वाले कृष्ण का रूप धारण करने का आग्रह किया था।

5.आपके विचार से कवि पशु, पक्षी और पहाड़ के रूप में भी कृष्ण का सान्निध्य क्यों प्राप्त करना चाहता है?

उत्तर- कवि के हृदय में श्री कृष्ण और ब्रजभूमि के प्रति अपार और असीम प्रेम है। उसे ब्रज क्षेत्र के कण-कण में  कृष्ण की छवि झलकती है वह हमेशा उस छवि को अपनी आंखों के सामने ही देखना चाहता है। कवि कृष्ण की अधिकारिक कृपा का पात्र बनने के लिए पशु, पक्षी और पहाड़ के रूप में भी कृष्ण का सानिध्य प्राप्त करना चाहता है।

6.चौथे सवैये के अनुसार गोपियाँ अपने आप को क्यों विवश पाती हैं?

उत्तर- कृष्ण के वंशी की मधुर धुन उनके द्वारा गाए जाने वाले गोधन के गीत और उनकी मादक मुस्कान से उत्पन्न सहज आकर्षण के कारण गोपियां अपने को विवश पाती हैं।

7.भाव स्पष्ट कीजिए(क) कोटिक ए कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं।(ख) माइ री वा मुख की मुसकानि सम्हारी न जैहै, न जैहै, न जैहै।

उत्तर-

() रसखान ब्रज की  झाड़ियों को सुंदर महलों अट्टालिका से श्रेष्ठ और महान मानते हैं और उसे ही पाना चाहते हैं। जिससे कृष्ण के प्रति अपने प्रेम और निष्ठा को प्रकट कर सकें। कृष्ण से जुड़े स्थानों पर रहने से कवि को महलों में रहने से ज्यादा संतोष और शांति मिलती है।

() दी गई पंक्ति का तात्पर्य यह है कि जब कृष्ण गोपियों की ओर देखकर मुस्कुराएंगे तो उस समय उत्पन्न होने वाले आनंद को संभालना असंभव हो जाएगा|

8. 'कालिंदी कूल कदंब की डारन' में कौन-सा अलंकार है?

उत्तर-   'कालिंदी कूल कदंब की डारन' में क वर्ण की आवृत्ति एक से अधिक बार हुई है अतः यहाँ अनुप्रास अलंकार होगा। 

9. काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिएया मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी।

प्रश्न गोपियां कैसा श्रृंगार करना चाहते हैं?
प्रश्न- रसखान के काव्य की विशेषताएं बताइए?
प्रश्न- कवि मनुष्य रूप में कहाँ जन्म लेना चाहता है?
प्रश्न कवि किसके बदले में तीनों लोगों का राज्य छोड़ने को तैयार है
प्रश्न गोपियां स्वयं को किन कारणों से विवश अनुभव करती हैं? 
प्रश्न गोपियां श्री कृष्ण द्वारा बजाई बांसुरी की तान को क्यों सुनना नहीं चाहती?
प्रश्न गोपियां अपने होठों पर मुरली क्यों नहीं रखना चाहती?
प्रश्न रसखान की काव्य भाषा पर टिप्पणी लिखिए।

एक लकुटी और कामरिया पर कवि क्या क्या न्योछावर करने को तैयार है?

कवि श्रीकृष्ण का अनन्य भक्त है। वह कृष्ण की हर वस्तु से प्रेम करता है। श्रीकृष्ण गायों को चराते समय यह लकुटी और कामरिया (छोटा कंबल) अपने साथ रखते थे। यह लकुटी और कामरिया कोई साधारण वस्तु न होकर कृष्ण से संबंधित वस्तुएँ थीं, इसलिए कवि उन पर सब कुछ न्योछावर करने को तैयार है।

एक िकुि और कामररया पर कवि सब कुछ न्धयोछािर करने को क्यों तैयार है?

कृष्ण गायों को चराते समय लकुटी और कामरिया अपने साथ रखते थे। यह कोई साधारण वस्तुएँ न होकर कृष्ण से सम्बंधित वस्तुएँ है। यही कारण है कि कृष्ण की लाठी और कंबल के लिए कवि अपना सर्वस्व न्योछावर करने को तैयार है

लकुटी लेकर रसखान क्या करना चाहते हैं और क्यों?

लकुटी लेकर रसखान वह अपने गोवा लो के साथ अपना भी ऐसी खेत जोते यह चाहत यह सब चाहते थे। और वह इसलिए चाहते थे कि वह हर जन्म जन्म तक इसी श्री कृष्ण जी की बस्ती में रहे।

रसखान श्री कृष्ण की भूमि में क्या क्या बन कर जन्म लेना चाहते हैं?

ईश्वर अगले जन्म में उसे ग्वाला बनाएँ, गाय बनाएँ, पक्षी बनाएँ या पत्थर बनाएँ-वह हर हाल में ब्रजभूमि में रहना चाहता है। वह ब्रजभूमि के वन, बाग, सरोवर और करील-कुंजों पर अपना सर्वस्व न्योछावर करने को भी तैयार है। 2. कवि का ब्रज के वन, बाग और तालाब को निहारने के पीछे क्या कारण हैं?