बलबन की गुप्तचर व्यवस्था का वर्णन करें - balaban kee guptachar vyavastha ka varnan karen

बलबन की प्रशासनिक व्यवस्था

बलबन जब शासक बना तो उसके सामने कई प्रकार की समस्याएं मौजूद थी. वह अच्छी तरह समझ गया कि एक सक्षम शासन प्रबंध बनाए बिना समस्याओं के निराकरण संभव नहीं है. अतः उसने सबसे पहले एक कठोर एवं सक्षम प्रशासनिक व्यवस्था की स्थापना की.

बलबन की गुप्तचर व्यवस्था का वर्णन करें - balaban kee guptachar vyavastha ka varnan karen

बलबन की प्रशासनिक व्यवस्था निम्न प्रकार थी:

1. राजत्व संबंधी सिद्धांत

सीरुद्दीन के अंतिम दिनों में सुल्तान की प्रतिष्ठा में अत्यंत कमी आ गई थी. प्रजा के मन में उसके प्रति किसी प्रकार का न कोई श्रद्धा थी और न कोई भय. अतः वह सुल्तान की प्रतिष्ठा को फिर से स्थापित करना चाहता था क्योंकि सुल्तान का भय ही सुशासन का आधार और राज्य की यश और वैभव का स्रोत है. अत: बलबन सुल्तान की शक्ति की प्रतिष्ठा में वृद्ध करने का संकल्प लिया. इस कारण उसने आतंक और निरंकुश शासन की स्थापना की. 

इस शासन व्यवस्था के अंतर्गत बलबन ने सल्तनत के विरोधी तत्वों का विनाश कर दिया. इसके बाद उसने राज्य के दैवीय सिद्धांत का प्रतिपादन किया. इस सिद्धांत के अनुसार सुल्तान को ईश्वर का प्रतिनिधि माना गया जिसकी तुलना जनसाधारण से नहीं की जा सकती थी. उसका विचार सुल्तान के अंदर ईश्वर की दिव्य ज्योति होती है तथा राजत्व के सिद्धांतों का पालन करने के लिए उसे ईश्वर से विशेष प्रेरणा मिलती है. उसने अपने पुत्र को शिक्षा देते हुए कहा था कि सुल्तान ईश्वर का प्रतिनिधि होता है. उसे निरंतर अपने पद की शोभा तथा गौरव को बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए. उसे इसी प्रकार का व्यवहार अपनी स्त्री, बच्चों और गुलाम के साथ भी करना चाहिए. जो घर में अनर्गल होता है, वह बाहर भी अनर्गल होता है. 

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बलबन ने स्वयं इन सिद्धांतों का पालन किया. सत्ता में बैठने के बाद अत्यंत संयमित जीवन व्यतीत किया. अपना व्यक्तित्व व्यक्तिगत गौरव बढ़ाने के लिए उसने अमीर परिवारों के साथ संबंध जोड़ा. साधारण लोगों के साथ अलग एकांत जीवन बिताने लगा. उसने मद्यपान और लोगों के साथ आमोद-प्रमोद बंद कर दिया. शासन के प्रति वह हमेशा गंभीर रहता था. वह अपनी आज्ञाओं को कठोरता से पालन करवाता था. उसके पुत्र भी जो बड़े-बड़े प्रांतों के शासक थे, उससे पूछे बिना अपनी राय से कोई कार्य नहीं कर सकते थे. उसकी आगे अंतिम समझी जाती थी. इस प्रकार कठोर नीतियों और नियमों का पालन करके बलबन ने सुल्तान की खोई हुई प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त किया.

2. चालीस मंडल का दमन

इल्तुतमिश ने प्रशासनिक क्षमता बढ़ाने के उद्देश्य से 40 गुलामों को संगठित कर के चालीस मंडल बनाया था. चालीस मंडल के सदस्य अत्यंत राजभक्ति तथा तन-मन से सुल्तान व राज्य की सेवा करते थे. लेकिन इल्तुतमिश की मृत्यु के पश्चात इन की महत्वकांक्षी बढ़ने लगी थी. इल्तुतमिश के निर्बल उत्तराधिकारियों के समय अत्यंत शक्तिशाली हो गए थे. वे सुल्तानों को बनाने व हटाने में भी अपनी भूमिका निभाने लगे थे. धीरे-धीरे मंडल के सदस्य अत्यंत स्वार्थी और अभिमान हो गए. वे राजा को अपनी कठपुतली समझते थे. अतः बलबन ने उनकी बढ़ती हुई मनमानियों के देखकर उनका का विनाश करने का निश्चय किया. बलबन उनका दमन करने व उनको जनता की दृष्टि से गिराने के लिए साधारण अपराधों के लिए कठोर ढंड दिया. बचे-खुचे सदस्यों को विष देकर सफाया कराया गया. इस तरह कठोर एवं बर्बर तरीके से उसने चालीस मंडल का दमन किया.

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3. उलमा की उपेक्षा

तुर्की राज संस्था धर्म प्रधान थी. इसमें उलमा का विशेष स्थान था. उलमा का दिल्ली की राजनीति पर गहरा प्रभाव था. किंतु उलमा के अनेक सदस्य भ्रष्ट हो चुके थे तथा राजनीति को कलुषित कर रहे थे. इस कारण बलबन ने इस चरित्र भ्रष्ट धार्मिक नेताओं को राजनीति से अलग कर दिया. बलबन उलमा का सम्मान करता था लेकिन उनसे केवल धार्मिक मामलों में उनसे परामर्श लेता था. राजनीति मामलों में उलमा के हस्तक्षेप करने का अधिकार को बलबन ने छीन लिया.

4. सुदृढ़ केंद्रीय शासन

बलबन अच्छी तरह जानता था कि प्रांतीय राज्यों पर अंकुश लगाने के लिए केंद्रीय शासन को सुदृढ़ बनाना आवश्यक था. अतः वह केंद्रीय शासन की नीतियों का निर्धारण स्वयं करने लगा. वह इस बात का विशेष ध्यान रखता था कि किसी निम्न वंशीय और अयोग्य व्यक्ति को उच्च पद पर नियुक्त ना किया जाए. केंद्रीय शासन को सुदृढ़ बनाने पर ध्यान देने के कारण वह प्रांतीय शासन की ओर विशेष ध्यान ना दे सका. इस कारण उसे अपने शासनकाल में प्रांतीय शासकों के कई विद्रोहों का सामना करना पड़ा. अतः उसने प्रांतीय सुबेदारों को कुछ वर्षों के बाद एक प्रांत से दूसरे प्रांत में स्थानांतरण करने की नीति अपनाई ताकि कोई प्रांतीय शासक इतना शक्तिशाली न हो सके कि उसके विरुद्ध विद्रोह कर सकें.

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5. हिंदुओं के प्रति नीति

बलबन ने उलमा को राजनीति से अलग कर दिया था लेकिन हिंदू जनता पर इसका कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा. हिंदुओं को स्थिति सल्तनत काल से कभी भी अच्छी नहीं थी. बलबन के शासनकाल में भी उसकी स्थिति अच्छी नहीं थी. बरनी के अनुसार बलबन ब्राह्मणों का सबसे बड़ा शत्रु था तथा उनको पूरी तरह नष्ट करना चाहता था क्योंकि उन्हें सारी समस्याओं का जड़ समझता था.

6. शक्तिशाली सेना का गठन

बलबन अत्यंत योग्य शासक था. वह अच्छी तरह जानता था कि उसके साम्राज्य की सुरक्षा और विस्तार तभी हो सकता है जब उसके पास शक्तिशाली सेना हो. अतः उसने अपनी सेना को शक्तिशाली बनाने की ओर विशेष ध्यान दिया. उसने सेना के सर्वोच्च अधिकारी इमाद-उल-मुल्क को बनाया. अपनी सेना को नवीन प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित कराया. सेना में भर्ती के नियम कठोर कर दिए गए. इसके अतिरिक्त उसने पुरानी दुर्गों की भी मरम्मत कराई. कई स्थानों पर नए दुर्गों का निर्माण कराया ताकि दुश्मनों का सामना आसानी से किया जा सके. इन दुर्गों की सुरक्षा के लिए चुने हुए और योग्य सैनिकों को नियुक्त किया और इनमें पर्याप्त मात्रा में रसद का भी इंतजाम किया गया. इसके अतिरिक्त उसने कुतुबुद्दीन और इल्तुतमिश के शासनकाल में उनके द्वारा योद्धाओं को दी जाने वाली जागीरें तथा अन्य प्रकार की मदद की प्रथा को बलबन ने बंद कर दिया. उसने जागीरदारों से जागीरें छीन ली. उसके इस नीति का उद्देश्य जागीर प्रथा के स्थान पर नकद वेतन देकर सैनिकों की भर्ती करना तथा सेना की शक्ति में वृद्धि करना था.

7. गुप्तचर व्यवस्था

विशाल साम्राज्य पर निरंकुशता पूर्वक शासन करने के लिए एक सक्षम गुप्तचर व्यवस्था का होना अत्यंत आवश्यक था. अत: बलबन एक कुशल गुप्तचर व्यवस्था की स्थापना की. इस व्यवस्था को सुदृढ बनाने के लिए उसने काफी धनराशि खर्च किया. उसके गुप्तचर देश के विभिन्न भागों में नियुक्त थे तथा वहां होने वाली घटनाओं के बारे में सुल्तान को सूचित करते थे. गुप्तचरों को आकर्षक वेतन दिया जाता था तथा उन्हें अन्य अधिकारियों और सेनानायकों के अधिपत्य से मुक्त रखा जाता था. अगर वह कोई गुप्तचर ठीक से काम नहीं करता था, तो उसे भी कठोर दंड दिया जाता था. इतिहासकारों के मुताबिक बलबन की इस गुप्तचर व्यवस्था से अपराध कम हुए तथा उच्च अधिकारियों के अत्याचारों से निर्दोष लोगों की रक्षा हुई. डॉक्टर ए एल श्रीवास्तव ने भी बलबन के गुप्तचर  के विषय में लिखा है कि बलबन की शासन व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए गुप्तचर व्यवस्था की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका थी. सुसंगठित गुप्तचर व्यवस्था के कारण ही बलबन निरंकुश शासन की स्थापना कर पाया.

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8. न्याय व्यवस्था

बलबन अत्यंत न्याय प्रिय शासक था. इसी कारण उसने निष्पक्ष न्याय-व्यवस्था की स्थापना की. न्याय करते समय वह अमीर-गरीब, रिश्ते-नाते आदि का ध्यान नहीं रखता था. अपराध करने पर बड़े से बड़े अधिकारियों को कठोर दंड देता था. उसका शासन शक्ति एवं न्याय पर आधारित था. बदायूं का मलिक एक शक्तिशाली अमीर था, किंतु जब उसने अपने गुलाम को कोड़ों से पिटवा कर मार डाला तो बलवान ने उसके साथ भी वैसा ही व्यवहार कराया. बरनी ने बलबन की न्याय प्रणाली की प्रशंसा करते हुए लिखा है कि न्याय के संबंध में वह बहुत कठोर था. इसमें वह अपने संबंधियों, सहयोगियों एवं नौकरों तक के साथ कोई पक्षपात नहीं करता था. यदि इसमें से कोई भी किसी के प्रति अन्याय या अपराध करता, तो वह सताए हुए व्यक्ति को संतुष्ट करने का प्रयास करता. इस कारण कोई भी व्यक्ति अपने दास-दासियों आदि पर कठोर व्यवहार करने की साहस नहीं कर सकता था.

इन बातों से स्पष्ट होता है कि बलबन ने अपने शासन प्रणाली को सुदृढ़ करने की दिशा में भरपूर प्रयास किया. उनकी इस व्यवस्था भी काफी सफल रहा. इसने उसके शासन में बहुत से बदलाव लाए. उसने सुल्तान की खोई हुई प्रतिष्ठा को भी वापस लाया. इसके अलावा न्याय व्यवस्था में भी काफी सुधार किया जिसके कारण अपराध कम हुए.

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