भारत में प्रथम बार राष्ट्रीय ध्वज कब फहराया गया? - bhaarat mein pratham baar raashtreey dhvaj kab phaharaaya gaya?

भारत में प्रथम बार राष्ट्रीय ध्वज कब फहराया गया? - bhaarat mein pratham baar raashtreey dhvaj kab phaharaaya gaya?

तिरंगा झंडा  |  तस्वीर साभार: Instagram

  • 15 अगस्त 2022 को पूरे हो रहे आजादी के 75 साल

  • 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों से आजाद हुआ था देश

  • 75 साल के मौके पर जान लें तिरंगे से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें

Happy Independence Day 2022: भारत इस साल अपना 75वां स्वतंत्रता दिवस मनाने जा रहा है। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसके उपलक्ष्य में देशवासियों से 'हर घर तिरंगा अभियान' में हिस्सा लेने का आग्रह किया है। सरकार ने देश के लोगों से 13 अगस्त से लेकर 15 अगस्त तक झंडा फहराने को कहा है। ऐसे में हम आपके लिए आजादी से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण सवाल और उनके जवाब लेकर आए हैं। आजादी से जुड़े ये सवाल इतने इंपॉर्टेंट हैं कि इनके जवाब हर भारतीय को जानना जरूरी हैं।

आजादी के 75 साल

हम सब जानते हैं कि हमारा देश 15 अगस्त, 1947 को आजाद हुआ था। लेकिन बहुत ही कम लोग जानते होंगे कि भारत का राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा सबसे पहले कब फहराया गया था। आपको जानकर थोड़ा आश्चर्य होगा कि हमारा राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा आजादी से 41 साल पहले ही फहरा दिया गया था। आज हम आपको इससे जुड़ी पूरी बात बताएंगे। इसके अलावा कुछ ऐसे सवालों के जवाब भी बताएंगे, जो स्वतंत्रता दिवस के मौके पर सबसे ज्यादा पूछे जाते हैं, लेकिन उनके जवाब कम ही लोगों को पता होते हैं।

भारत के राष्ट्रीय ध्वज में 1906 से लेकर साल 1947 तक अलग-अलग बदलाव आए हैं. आज जो हमें ध्वज दिखता है वह पहले से वाले काफी अलग है. इसी को लेकर इतिहासकार कपिल कुमार कहते हैं कि भारत के राष्ट्रीय ध्वज का इतिहास बहुत पुराना है. वर्तमान में जो हमारे देश राष्ट्रीय ध्वज है, उससे पहले कई बार ध्वज बदल चुके हैं. अशोक चक्र वाले इस झंडे के राष्ट्रीय ध्वज बनने की कहानी बहुत लंबी है और इस यात्रा में भारत के कई झंडे रह चुके हैं.

1857 को मनाया था पहला स्वतंत्रता संग्राम 

इतिहासकार कपिल बताते हैं कि 1857 को हमने पहला स्वतंत्रता संग्राम मनाया था. उस दौरान सबका अपना-अपना झंडा था, लेकिन पहली बार क्रांतिकारियों ने एक झंडे को अपना झंडा बनाया. वह एक हरे रंग का झंडा था जिसके ऊपर कमल था. आजाद हिंदुस्तान की पहली लड़ाई के लिए यही वो झंडा था जिसे फहराया गया था. 

उन्होंने आगे बताया कि साल 1906 में कोलकाता के पारसी बागान चौक पर तिरंगा फहराया गया था. इस पर हरे पीले और लाल रंग से बनाया गया था. इसके मध्य में वंदे मातरम भी लिख गया था.

पेरिस में फहराया गया ध्वज 

इतिहासकार कपिल बताते हैं कि उसके बाद 1907 में मैडम कामा द्वारा भारतीय क्रांतिकारियों की मौजूदगीमें  पेरिस में यह ध्वज फहराया गया था. इसमें 1906 वाले तिरंगे से कुछ ज्यादा बदलाव नहीं थे,  लेकिन इसमें सबसे ऊपर लाल पट्टी का रंग केसरिया का और कमल के बजाय सात तारे थे जो सप्त ऋषि का प्रतीक थे. इसमें आखरी पट्टे पर सूरज और चांद भी अंकित किए गए थे.

कब आया तीसरा झंडा?

कपिल का कहना है कि साल 1917 में जब राजनीतिक संघर्ष ने एक नया मोड़ लिया तब तीसरा झंडा आया.  कह सकते हैं कि होमरूल आंदोलन की आड़ में तीसरे ध्वज को रूप दिया गया. डॉ. एनी बेसेंट और लोकमान्‍य तिलक ने घरेलू शासन आंदोलन के दौरान इसे फहराया था. इस ध्वज में पांच लाल और चार हरी क्षितिज पट्टियां थीं. इसमें खास तौर पर यूनियन जैक भी मौजूद थे. यानी की प्राचीन परंपरा को दर्शाते हुए  सप्तऋषि, और एकता दिखाने के लिए चांद और तारे मौजूद थे. इस तिरंगे से यह दिखाने की कोशिश की गई कि इससे स्वतंत्रता तो नहीं मिली लेकिन स्वयं शासन का अधिकार जरूर मिला.

इसके बाद कुछ ऐसा रहा राष्ट्रिय ध्वज का सफर

इतिहासकार कपिल बताते हैं कि इसके बाद साल 1921 में जब भारत अंग्रेजो की गुलामी से आजाद होने की कोशिश कर रहा था उस वक्त यह दो रंगों का बना था, जिसमें लाल-हरा मौजूद था. गांधी जी ने सुझाव दिया था कि भारत के शेष समुदाय का प्रतिनिधित्‍व करने के लिए इसमें एक सफेद पट्टी और राष्‍ट्र की प्रगति का संकेत देने के लिए एक चलता हुआ चरखा होना चाहिए. इसलिए इस वक्त इसमें चरखा भी जोड़ा गया. 

इसी के बीच एक महत्वपूर्ण झंडा और है जिसका जिक्र कहीं पर नहीं है. यह वो झंडा है जो नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने जर्मनी में भारतीय रीजन बनाने के बाद फहराया था. उस तिरंगे में भी ऊपर केसरिया, बीच में सफेद, नीचे हरा और बीच में एक टाइगर मौजूद था. यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण झंडा है.

जब आया तिरंगा में अशोक चक्र 

कपिल आगे कहते हैं, “बहरहाल 1931 में ध्वज को केसरिया, सफेद और हरे रंग के साथ, मध्‍य में गांधी जी के चलते हुए चरखे का साथ मिला. इसके बाद अशोक चक्र का सफर आता है. ये साल 1947 था. जिसमें सावरकर ने चरखे की कमेटी को एक टेलीग्राम भेजा था. उन्होंने कहा था कि तिरंगे के बीच में मध्य में अशोक चक्र होना चाहिए.” 

बता दिन, 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने इसे आजाद भारतीय राष्‍ट्रीय ध्‍वज के रूप में अपनाया. इतिहासकार कपिल कहते हैं कि स्‍वतंत्रता मिलने के बाद इसके रंग और उनका महत्‍व बना रहा. अशोक चक्र होने का महत्व यह है कि अशोक चक्र अखंड भारत को परिभाषित करता है. क्योंकि अशोक का साम्राज्य अफगानिस्तान से लेकर नीचे तक मौजूद था तो इसीलिए अशोक चक्र एक बड़े, दिव्य और विशाल भारत का प्रतीक बनता है.

भारत में आजादी के 75 साल के मौके पर आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है। घर-घर पर तिरंगे लगाए जा रहे हैं। भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में तिरंगे को 22 जुलाई 1947 को स्वीकार किया गया। इस ध्वज में केसरिया, सफेद और हरे रंग की पट्टी लगी है और बीच में अशोक चक्र बना हुआ है। हालांकि, इससे पहले स्वतंत्रता के लिए चले आंदोलनों में 1857 से लेकर 1947 तक क्रांतिकारियों ने 8 राष्ट्रीय ध्वजों को प्रतीक बनाकर उसने नेतृत्व में लड़ाइयां लड़ीं। आखिर में 1947 में तिरंगे को भारतीय ध्वज की मान्यता मिली।

पहली बार भारत में तिरंगा कब फहराया गया था?

22 जुलाई 1947 को इसे भारतीय तिरंगा के रूप आधिकारिक तौर पर अपनाया गया। इसे पहली बार 15 अगस्त 1947 को फहराया गया थातिरंगे का पहला रंग केसरिया जो देश की ताकत और साहस का प्रतीक है। वहीं सफेद शांति और सच्चाई का और हरा रंग समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।

भारत में पहला झंडा फहराने वाला कौन है?

इस प्रदर्शन में पहली बार स्वतंत्रता सेनानी सुरेंद्र नाथ बनर्जी ने एक झंडा फहराया, जिसे भारत का पहला नेशनल फ्लैग कहा जाता है। इस झंडे में हरे, पीले और लाल रंग की तीन पट्टियां थीं। इनमें से बीच वाली पीली पट्टी पर वंदे मातरम लिखा हुआ था।