अनुस्वार का उच्चारण कैसे होता है? - anusvaar ka uchchaaran kaise hota hai?

दोस्तों आज आप paryayvachi.com हिंदी ब्लॉग में जानेंगे कि अनुस्वार और अनुनासिक शब्द ( Anuswar aur Anunasik shabd in Hindi ) उदाहरण के साथ सीखेंगे।

क्या आपने कभी सोचा है कि अनुस्वार और अनुनासिक जैसे शब्दों का क्या अर्थ है? इसके नियम क्या हैं, दोनों में अंतर क्या है, क्या है, क्या आप उनकी उत्पत्ति और उपयोग के बारे में अधिक जानने के लिए उत्सुक हैं? इस लेख में, हम इन दो शब्दों के अर्थ का पता लगाएंगे, ताकि आप इन्हें बेहतर ढंग से समझ सकें।

अनुस्वार और अनुनासिक दोनों संस्कृत शब्द हैं जिनका उपयोग सदियों से भारत और विदेशों में किया जाता रहा है। हम उनकी परिभाषाओं को देखेंगे, साथ ही यह भी देखेंगे कि विभिन्न संदर्भों में उनका उपयोग कैसे किया जाता है।

अनुस्वार का उच्चारण कैसे होता है? - anusvaar ka uchchaaran kaise hota hai?

Contents

  • 1 अनुनासिक किसे कहते हैं? उदाहरण सहित (Anunasik kise kahate hain):
  • 2 अनुनासिक शब्द के उदाहरण (Anunasik shabd examples)
  • 3 अनुस्वार किसे कहते हैं ?
  • 4 अनुस्वार शब्द के उदाहरण (अनुस्वार वाले Words हिंदी)
  • 5 अनुनासिक और अनुसार में क्या अंतर है? स्पष्ट कीजिए।
  • 6 FAQs (पूछे जाने वाले प्रश्न)
  • 7 निष्कर्ष

अनुनासिक किसे कहते हैं? उदाहरण सहित (Anunasik kise kahate hain):

परिभाषा (Anunasik definition in Hindi): अनुनासिक स्वरों के उच्चारण में मुँह से अधिक तथा नाक से बहुत कम साँस निकलती है। इन स्वरों पर चन्द्रबिन्दु (ँ) का प्रयोग होता है जो की शिरोरेखा के ऊपर लगता है।

जैसे अनुनासिक की परिभाषा में बताया गया है कि जिन स्वरों का उच्चारण मुख और नासिका दोनों से किया जाता है, उन्हें अनुनासिक कहते हैं और इन स्वरों को लिखते समय उन पर चन्द्रबिन्दु (ँ) का प्रयोग किया जाता है।

अनुनासिक स्वरों के उच्चारण में मुख से अधिक और नाक से बहुत कम श्वास निकलती है। इन स्वरों पर चंद्रबिंदु  अँ (ँ) का उपयोग होता है, जो शीर्षक के ऊपर लगता है।
जैसे – माँ, आँख, गाँव इतियादी।

अनुनासिक के स्थान पर बिंदु का प्रयोग

जब शीर्षक के ऊपर स्वर की मात्रा लगी हो तब सुविधा के लिए चन्द्रबिन्दु (ँ) के स्थान पर बिंदु (ं) का उपयोग करते हैं। जैसे – बिंदु, मैं, गोंद इतियादी।

अनुनासिक शब्द के उदाहरण (Anunasik shabd examples)

Anunasik words in Hindi

उँड़ेल, बाँस, सँभाले,  धँसकर, गाँव, मुँह, धुँधले, धुआँ, चाँद, काँप, मँहगाई, उँगली, काँच, बूँदें, रोएँ, कुआँ, चाँद, भाँति, जाऊँगा, ढूँढने, ऊँचे, पूँछ, काँच, झाँकते, अँधेर, माँ, फूँकना, भाँति, रँगी, अँगूठा, बूँदा-बाँदी, गाँव, आँखें, बाँधकर, पहुँच, बाँधकर, मियाँ, अजाँ, आँगन, कँप-कँपी, ठूँस, गूँथ, काँव-काँव, ऊँचाई, टाँग, पाँच, दाँते, साँस, दाँत, झाँका, मुँहजोर।

अनुस्वार किसे कहते हैं ?

What is anuswar: अनुस्वार की परिभाषा : अनु + स्वर के योग से अनुस्वार बनता है, जिसका अर्थ है कि यह स्वर के बाद आता है। शब्दों के भाव भी कई बार बदलते हैं।

अनुस्वार वह व्यंजन है जो स्वर के बाद आता है। इसकी आवाज नाक से निकलती है। हिंदी अनुनासिक शब्द में चंद्र बिंदु होती है। हिन्दी भाषा में बिन्दु अनुस्वार अं (ं) का प्रयोग भिन्न-भिन्न स्थानों पर होता है। हम जानेंगे कि अनुस्वार का प्रयोग कब और क्यों किया जाता है।

पांचवें अक्षर के जगह पर

अनुस्वार (ं) का उपयोग पंचम वर्ण ( ङ्, ञ़्, ण्, न्, म् – ये पंचमाक्षर कहलाते हैं) के जगह  पर किया जाता है। जैसे –
गड्.गा – गंगा
चञ़्चल – चंचल
झण्डा – झंडा
गन्दा – गंदा
कम्पन – कंपन

अनुस्वार को पंचम वर्ण में बदलने का नियम :-

अनुस्वार के चिह्न के इस्तेमाल के बाद आने वाला वर्ण ‘क’ वर्ग, ’च’ वर्ग, ‘ट’ वर्ग, ‘त’ वर्ग और ‘प’ वर्ग में से जिस वर्ग से जुड़े हुए होते हैं अनुस्वार उसी वर्ग के पंचम-वर्ण के लिए उपयोग होता है।

नियम :-

  • यदि पंचमाक्षर के बाद किसी अन्य वर्ग का अक्षर आता है तो अनुस्वार के रूप में पंचमाक्षर नहीं बदलेगा। जैसेकि – चिन्मय, वाड्.मय, उन्मुख, अन्य, आदि शब्द चिंमय, वांमय, उंमुख, अंय के रूप में नहीं लिखे गए हैं।
  • यदि पाँचवाँ वर्ण फिर से द्वैत के रूप में आता है, तो पाँचवाँ वर्ण अनुसार में नहीं बदलेगा। जैसे – अन्न, प्रसन्न, सम्मेलन आदि के अंन, प्रसंन, संमेलन रूप नहीं लिखे जाते हैं।
  • जिन शब्दों में य, र, ल, व, अनुस्वार के बाद आते हैं, वहां अनुस्वार अपने मूल रूप में रहता है। जैसे – अन्य, कन्हैया आदि।
  • यदि य , र .ल .व – (अंतस्थ व्यंजन) श, ष, स, ह – (ऊष्म व्यंजन) से पहले आने वाले अनुस्वार में बिंदु के रूप का ही उपयोग किया जाता है क्योंकि ये व्यंजन किसी वर्ग में शामिल नहीं हैं। जैसे – संशय, संयम आदि।

अनुस्वार शब्द के उदाहरण (अनुस्वार वाले Words हिंदी)

anuswar shabd in hindi examples

अंकित, अंतरंग, बैंजनी, आशंका, बिंदु, पंक्ति, चकाचौंध, श्रृंगार, संसर्ग, वंचित, गंध, उपरांत, सौंदर्य, संस्कृति, बंद, बंधन , पतंग, संबंध, ज़िंदा, नंगा, अंदाज़ा, संभ्रांत, कैंप, अधिकांश, श्रृंखला, शूटिंग, हस्तांतरण, शांति, सींकें, अंधकार, गंदा, रौंदते, सींगो, खंभात, पंकज, कंठ, चिंतित, कौंधा, शंकु, काकभुशुंडी, संदेश, संधि, संपादन, सिद्धांत, पसंद, चिंतन, ढंग, संघर्ष, प्रारंभ, संचालक, ग्रंथकार, धुरंधर, संपन्न, कंधे, डंडा, त्योंही, उपरांत, संकल्प, संक्रमण, गुंजायमान, नींद, अत्यंत, क्रांति, इंद्रियों, कंप, खिंच, गुंजल्क, धौंकनी, अत्यंत, कुकिंग, सिलिंडर,  लंबी,  संपूर्ण, सुन्दर, रंगीन, तंबू,  आनंद, निस्संकोच, फ़ेंक, संभावना, संश्लेषण,  भयंकर, मंत्री, सौंप, संक्षिप्त, अंग्रेजी, प्रशंसक, चौंका, खिंच,  नींव,  परंतु, हंस, चंचल, बंद, बसंत, गंध, झुंड, ठंडक, पंजे, भयंकर, सायंकाल, आशंका,  डेंग,  संदर्भ, आतंक, तांडव।

अनुनासिक और अनुसार में क्या अंतर है? स्पष्ट कीजिए।

Difference between Anuswar and Anunasik

अनुनासिक एक स्वर है और अनुस्वार मूल रूप से एक व्यंजन है। कुछ शब्दों के प्रयोग के कारण उनके अर्थ में अंतर होता है। जैसे- हंस (जल पक्षी), हँस (हँसने की क्रिया)।

अनुस्वार वे व्यंजन हैं जो स्वर के बाद आते हैं। नाक से अनुश्वर की आवाज निकलती है। पंचम वर्ण अर्थात ङ्, ञ़्, ण्, न्, म् के स्थान पर अनुसावर का प्रयोग किया जाता है। अनुनासिक वे स्वर हैं जिनमें मुख से अधिक तथा नासिका से कम ध्वनि निकलती है।

Nokia Company belongs to which country

FAQs (पूछे जाने वाले प्रश्न)

प्रश्न 01: अनुस्वारों की संख्या कितनी होती है?

उत्तर: अनुस्वार अधिकांश भारतीय लिपियों में प्रयुक्त उच्चारण की मात्रा है। इसके कारण नाक के माध्यम से अक्सर हुंकार जैसी आवाज निकलती है, इसलिए इसे नासिका या अनुनासिक कहते हैं। इसे कभी-कभी “म” (और अन्य) अक्षरों से लिखा जाता है। जैसे: कंबल : कम्बल; इंफाल : इम्फाल आदि।

प्रश्न 02: कौन-सी ध्वनियाँ अनुस्वार में बदलती है?

उत्तर: आम तौर पर ‘म’ व्यंजन को वर्ण से पहले अनुस्वार (ं) में बदल दिया जाता है। विसर्ग (:) का उच्चारण कुछ हद तक ‘ह’ जैसा होता है; स्वर के बाद भी इसका प्रयोग होता है।

प्रश्न 03: हिन्दी में अनुस्वार शब्द का प्रयोग कहाँ होता है ?

उत्तर: हिन्दी भाषा में बिन्दु अनुस्वर (ं) का प्रयोग भिन्न-भिन्न स्थानों पर होता है। पंचमाक्षर के बाद यदि किसी अन्य वर्ग का अक्षर आता है तो अनुस्वार के रूप में पंचमाक्षर नहीं बदलेगा।

प्रश्न 04: अनुस्वार शब्द कौन से हैं?

उत्तर:

डण्डा = डंडा
चंचल = चंचल
कम्पन = कंपन
गन्दा = गंदा, आदि।

प्रश्न 04: हिंदी में अनुनासिक वर्णों की संख्या कितनी है? Hindi mein Anunasik varn kitne hote hain

उत्तर: हिन्दी की बात करें तो अनुनासिक अक्षरों की संख्या पाँच है। ये ङ, ञ, ण, म, न हैं। मुंह के पीछे से ‘न’ ध्वनि उत्पन्न होती है और अपने ऊपरी होंठ को अपने निचले दांतों से दबाने पर ‘म’ ध्वनि उत्पन्न होती है। ध्वनियों का यह संयोजन हिंदी भाषा में एक विशिष्ट और विशिष्ट ध्वनि उत्पन्न करता है।

प्रश्न 05: अनुस्वार और अनुनासिक के उदाहरण

उत्तर: अनुस्वार और अनुनासिका संस्कृत अभियोगात्मक आकृतियों के उदाहरण हैं। अनुस्वार एक शब्दांश के अंत में एक अनुनासिक ध्वनि है, जबकि अनुनासिका एक शब्दांश की शुरुआत में एक अनुनासिक ध्वनि है।

भाषा में विभिन्न बारीकियों को व्यक्त करने के लिए इन दोनों अभियोगात्मक आकृतियों का उपयोग संस्कृत में किया जाता है। उनका उपयोग भावना, जोर देने या किसी विशिष्ट शब्द या वाक्यांश पर जोर देने के लिए किया जा सकता है।

उदाहरण के लिए, अनुस्वार का उपयोग अक्सर आश्चर्य या सदमा व्यक्त करने के लिए किया जाता है, जबकि अनुनासिका का उपयोग किसी विशेष शब्द पर जोर देने के लिए किया जाता है। इन दोनों अभियोगात्मक आकृतियों का उपयोग किसी वाक्य या वाक्यांश को अधिक काव्यात्मक या गीतात्मक बनाने के लिए भी किया जा सकता है।

निष्कर्ष

अंत में, यह स्पष्ट है कि संस्कृत या हिंदी सीखने की कोशिश करने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए अनुनासिका और अनुस्वार के नियमों को समझना महत्वपूर्ण है। अनुनासिका और अनुस्वार शब्दों का सही उच्चारण प्रदान करते हैं और भाषा में लय और प्रवाह बनाने में मदद करते हैं।

अभ्यास और समर्पण के साथ, अनुनासिका और अनुस्वार में महारत हासिल की जा सकती है, जिसके परिणामस्वरूप सुंदर, काव्यात्मक संस्कृत वाक्य बनते हैं।

हमें आशा है कि आपको हमारे द्वारा दी गई जानकारी पसंद आया होगा। यदि आप का कोई सुझाओ है तो हमें कमेंट के माध्यम से बताएं। और पोस्ट को अपने दोस्तों के साथ सोशल मीडिया में शेयर कर दें।

अन्य पढ़ें:

  • अनेक शब्दों के लिए एक शब्द
  • उपसर्ग की परिभाषा
  • नुक्ता की परिभाषा
  • शब्दकोश क्या है?

अनुस्वार का उच्चारण कैसे किया जाता है?

अनुस्वार एक उच्चारण की मात्रा है जो अधिकांश भारतीय लिपियों में प्रयुक्त होती है। इससे अक्सर ं जैसी ध्वनि नाक के द्वारा निकाली जाती है, अतः इसे नसिक या अनुनासिक कहते हैं। इसको कभी-कभी म (और अन्य) अक्षरों द्वारा भी लिखते हैं। जैसे: कंबल ~ कम्बल; इंफाल ~ इम्फाल इत्यादि।

अनुस्वार का उच्चारण स्थान क्या होगा?

इस प्रकार उपर्युक्त तालिका के अनुसार अनुस्वार का उच्चारण स्थान नासिका है।

अनुस्वार का उच्चारण कहाँ से होता है यह कौन सा व्यंजन है इसका प्रयोग कैसे करते हैं?

अनुस्वार वे व्यंजन होते हैं, जो स्वर के बाद आते हैंअनुस्वार की ध्वनि नाक से निकलती है। अनुस्सवार पंचम वर्ण अर्थात ङ्, ञ़्, ण्, न्, म् के जगह पर प्रयुक्त किये जाते हैं। अनुनासिक वे स्वर होते हैं, जो जिनमें मुँह से अधिक और नाक से कम ध्वनि निकलती है।

अनुनासिक का उच्चारण कैसे होता है?

अनुनासिक स्वर जिन स्वरों के उच्चारण में मुख के साथ-साथ नासिका (नाक) की भी सहायता लेनी पड़ती है,अर्थात् जिन स्वरों का उच्चारण मुख और नासिका दोनों से किया जाता है वे अनुनासिक कहलाते हैं। हँसना, आँख, ऊँट, मैं, हैं, सरसों, परसों आदि में चन्द्रबिन्दु या केवल बिन्दु आया है वह अनुनासिक है।