दुर्योधन ने दुर्वासा ऋषि से क्या मांगा? - duryodhan ne durvaasa rshi se kya maanga?

महाभारत में कौरव पांडवों से हमेशा जलन की भावना रखते थे। हर समय पांडवों और उनकी पत्नी द्रौपदी का अपमान करने का प्रयास करते थे। जब युधिष्ठिर जुए में अपनी पत्नी द्रौपदी को हार गए, तब द्रौपदी पर दुर्योधन का अधिकार हो गया था। द्रौपदी का अपमान करने के लिए दुर्योधन ने उसे कौरवों की सभा में बुलाया। दुःशासन द्वारा द्रौपदी का चीरहरण करके का प्रयास किया गया, लेकिन द्रौपदी के वस्त्र को बढ़ाकर भगवान ने उसकी रक्षा की थी। द्रौपदी को संकट के समय उसके अन्नत (कभी खत्म न होने वाले) हो जाने का वरदान ऋषि दुर्वासा ने दिया था। शिवपुराण के अनुसार, भगवान शिव के अवतार ऋषि दुर्वासा एक बार स्नान करने के लिए नदी के तट पर गए थे। नदी का बहाव बहुत तेज होने के कारण ऋषि दुर्वासा के कपड़े नदी में बह गए। ऋषि दुर्वासा से कुछ दूरी पर द्रौपदी भी स्नान कर रही थी। ऋषि दुर्वासा की मदद करने के लिए द्रौपदी ने अपनी वस्त्र में से एक टुकड़ा फाड़कर ऋषि को दे दिया था। इस बात से ऋषि द्रौपदी पर बहुत प्रसन्न हुए और संकट के समय उसके वस्त्र अन्नत हो जाने और उसकी रक्षा का वरदान दिया था। इसी वरदान के कारण कौरव सभा में दुःशासन द्वारा द्रौपदी

दुर्योधन ने दुर्वासा ऋषि से क्या मांगा? - duryodhan ne durvaasa rshi se kya maanga?

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कौन है ऋषि दुर्वासा ऋषि दुर्वासा भगवान शिव के अवतार हैं। भगवान ब्रह्मा के मानस पुत्र अत्रि और उनकी पत्नी अनुसूया की तपस्या से खुश होकर भगवान ब्रह्मा, विष्णु और शिव तीनों ने उन्हें दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा। भगवान के ऐसा कहने पर अत्रि और अनुसूया ने तीनों देवों को अपने पुत्रों के रूप में जन्म लेने का वरदान मांगा। इसी वरदान के फलस्वरूप भगवान ब्रह्मा के अंश से चंद्रमा, विष्णु का अंश से दत्तात्रेय और शिव के अंश से दुर्वासा उत्पन्न हुए। ऋषि दुर्वासा भगवान शिव के रुद्र रूप से उत्पन्न हुए थे, इसलिए वे अधिक क्रोधी स्वभाव के थे। भगवान शिव के अवतार ऋषि दुर्वासा का वर्णन कई पुराणों और ग्रंथों में पाया जाता है।

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ऋषि दुर्वासा ने ली थी श्रीराम की परीक्षा शिवपुराण के अनुसार, भगवान शिव के अवतार दुर्वासा ने भगवान विष्णु के अवतार श्रीराम की वचनबद्धता की परीक्षा ली थी। एक बार काल ने ऋषि का रूप धारण करके श्रीराम के साथ शर्त लगाई थी कि ‘मेरे साथ बात करते समय कोई भी श्रीराम के पास न आए, जो भी इस बात का पालन नहीं करेगा श्रीराम तुरंत ही उसका त्याग कर देंगे।’ श्रीराम की परीक्षा लेने के लिए ऋषि दुर्वासा ने हठपूर्वक लक्ष्मण को श्रीराम के पास भेजा। ऐसा होने पर श्रीराम ने तुरंत ही लक्ष्मण का त्याग कर दिया था।

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Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers Summary in Hindi Chapter 18 द्वेष करने वाले का जी नहीं भरता

Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers in Hindi Chapter 18

प्रश्न 1.
दुर्योधन वन में जाकर क्या देखना चाहता था ?
उत्तर:
दुर्योधन वन में जाकर अपनी आँखों से पांडवों को कष्ट उठाते देखना चाहता था।

प्रश्न 2.
कर्ण ने पांडवों के कष्टों को समीप से देखने का क्या हल निकाला?
उत्तर:
कर्ण ने दुर्योधन से कहा-“द्वैतवन में, कई बस्तियाँ हैं। हर साल उन बस्तियों से जाकर चौपायों की गणना करना राजकुमारों का ही काम होता है। बहुत समय से यह प्रथा चली आ रही है। उसके बहाने हम पिता जी की अनुमति आसानी से प्राप्त कर सकते हैं।

प्रश्न 3.
दुर्योधन और गंधर्वराज के युद्ध का क्या कारण था? इस युद्ध का क्या परिणाम हुआ ?
उत्तर:
दुर्योधन भी उसी सरोवर के तट पर डेरा डालना चाहता था जिसके तट पर गंधर्वराज सपरिवार पहले ही डेरा डाले हुए था। गंधर्वराज के सेवकों ने दुर्योधन के अनुचरों को ऐसा करने से मना किया। दुर्योधन ने अपनी सेना लेकर गंधर्वराज पर आक्रमण कर दिया। दुर्योधन की सेना की हार हुई तथा गंधर्वराज ने दुर्योधन को बंदी बना लिया।

दुर्योधन ने दुर्वासा ऋषि से क्या मांगा? - duryodhan ne durvaasa rshi se kya maanga?

प्रश्न 4.
युधिष्ठिर ने दुर्योधन की सहायता क्यों की ?
उत्तर:
युधिष्ठिर ने दुर्योधन की सहायता इसलिए कि क्योंकि दुर्योधन उनके ही परिवार का था। इसलिए अर्जुन व भीमसेन ने कौरव सेना को एकत्रकर गंधर्वराज पर हमला करके दुर्योधन को मुक्त करा लिया।

प्रश्न 5.
दुर्योधन की राजसूय यज्ञ करने की इच्छा पूरी क्यों नहीं हो पाई ?
उत्तर:
दुर्योधन ने जब राजसूर्य यज्ञ करने की इच्छा व्यक्त की तो पंडितों ने कहा कि धृतराष्ट्र और युधिष्ठिर के रहते हुए उसे राजसूय यज्ञ करने का अधिकार नहीं है। तब दुर्योधन ने वैष्णव नामक यज्ञ करके ही संतोष कर लिया।

प्रश्न 6.
दुर्योधन ने ऋषि दुर्वासा को युधिष्ठिर का आथित्य ग्रहण करने क्यों भेजा ?
उत्तर:
दुर्वासा बहुत ही क्रोधी स्वभाव के ऋषि थे। दुर्योधन जानता था कि पांडवों के पास इतने लोगों को खिलाने के लिए कुछ भी नहीं है। उनका अक्षयपात्र भी द्रौपदी के भोजन करने के बाद खाली हो जाता था। ऐसा करके दुर्योधन पांडवों का अपमान करना चाहता था व दुर्वासा से उन्हें श्राप दिलाना चाहता था।

प्रश्न 7.
पांडवों की लाज किस प्रकार बची ?
उत्तर:
द्रौपदी ने जब परमात्मा का ध्यान किया तो थोड़ी देर बाद ही वहाँ श्रीकृष्ण आ पहुंचे। उन्होंने द्रौपदी से भोजन माँगा। भोजन था नहीं। उन्होंने द्रौपदी से अक्षयपात्र मँगवाया जिसमें एक अन्न का दाना व साग की पत्ती लगी थी। कृष्ण ने उसे लेकर मुँह में डालते हुए कहा कि यह भोजन हो, इससे उनकी भूख मिट जाए। कृष्ण के ऐसा करने से दुर्वासा एवं उनके शिष्यों की भी भूख मिट गई। भीम जब बुलाने गए तो वे आपस में कह रहे थे कि हम व्यर्थ ही युधिष्ठिर से कह आए कि वे भोजन तैयार रखें। दुर्वासा ने असुविधा के लिए युधिष्ठिर से क्षमा माँगी।

दुर्योधन ने दुर्वासा ऋषि से क्या मांगा? - duryodhan ne durvaasa rshi se kya maanga?

Bal Mahabharat Katha Class 7 Summary in Hindi Chapter 18

धृतराष्ट्र ने जब यह सुना कि पांडव वन में बड़ी तकलीफें उठा रहे हैं तो उनके मन में चिंता होने लगी। कर्ण और शकुनि दुर्योधन की चापलूसी किया करते थे। दुर्योधन ने कर्ण से कहा कि मैं मुसीबत में पड़े पांडवों को अपनी आँखों से देखना चाहता हूँ। कर्ण ने दुर्योधन से कहा कि द्वैतवन में कुछ बस्तियाँ हैं जो हमारे अधीन हैं। हर साल उन बस्तियों में जाकर चौपायों की गणना का काम राजकुमारों द्वारा ही होता आ रहा है। दुर्योधन अनुमति के लिए धृतराष्ट्र के पास गए। धृतराष्ट्र ने उनको द्वैतवन जाने की अनुमति दे दी। कौरव एक बड़ी सेना लेकर द्वैतवन की ओर चल पड़े। वहाँ पहुँचकर उन्होंने अपने डेरे ऐसे स्थान पर लगाए जहाँ से पांडवों का आश्रम चार कोस की दूरी पर था। गंधर्वराज चित्रसेन भी उसी जलाशय के तट पर सपरिवार डेरा डाले हुए थे। दुर्योधन के अनुचर जब जलाशय पर जाकर तंबु गाड़ने लगे तो गंधर्वराज के सेवकों ने उनको भगा दिया। दुर्योधन सेना लेकर तालाब की ओर आया और गंधर्यों के साथ युद्ध करने लगा कौरवों की सेना तितर-बितर हो गई। गंधर्वराज ने दुर्योधन को बंदी बना लिया। उन्होंने शंखनाद किया। जब युधिष्ठिर ने सुना कि दुर्योधन और उसके साथी अपमानित हुए हैं तो अपने कुटुंब का हवाला देकर भीमसेन और अर्जुन को दुर्योधन को छुड़ाने के लिए भेजा। इन्होंने कौरव सेना को एकत्र कर गंधर्वराज पर आक्रमण किया और दुर्योधन को छुड़ा लिया।

पांडवों के वनवास के समय दुर्योधन की इच्छा राजसूय यज्ञ करने की हुई। पंडितों ने कहा कि धृतराष्ट्र और युधिष्ठिर के रहते उसे राजसूय यज्ञ करने का अधिकार नहीं है। इसी समय की बात है कि एक बार महर्षि दुर्वासा अपने शिष्यों के साथ हस्तिनापुर आए। दुर्योधन ने उनका खूब आदर सत्कार किया। चलते समय प्रसन्न ऋषि ने वर माँगने के लिए कहा। दुर्योधन ने दुर्वासा से वर माँगा कि वे अपने शिष्यों के साथ युधिष्ठिर के अतिथि बनकर जाएं। दुर्वासा दुर्योधन की विनती स्वीकार करते हुए युधिष्ठिर के पास पहुंचे और बोले हम अभी स्नान करके आते हैं तब तक भोजन तैयार रखना। वनवास के प्रारंभ में सूर्य ने युधिष्ठिर को एक अक्षयपात्र दिया था जो उनके भोजन की पूर्ति करता था। द्रौपदी के भोजन करने के बाद इस बर्तन की शक्ति अगले दिन तक के . लिए लुप्त हो जाती थी। जब दुर्वासा पांडवों के आश्रम में पहुंचे थे उस समय द्रोपदी भी भोजन कर चुकी थी। अब ऋषि एवं उनके शिष्यों के लिए भोजन का प्रबंध किस प्रकार किया जाए ? द्रौपदी ने परमात्मा का ध्यान किया तभी कहीं से श्रीकृष्ण जी पधारे वे आकर बोले बहिन द्रौपदी! बहुत भूख लगी है कुछ खाने को दो। द्रौपदी को दुविधा में जानकर श्रीकृष्ण ने उनको अक्षयपात्र लाने को कहा। द्रौपदी हड़बड़ाकर अक्षयपात्र लाई। उसमें अन्न का एक कण व साग की एक पत्ती लगी हुई थी। श्रीकृष्ण ने उसे मुँह में डालते हुए कहा “यह भोजन हो, इससे उनकी भूख मिट जाए।” उधर द्रौपदी अपने को धिक्कार रही थी कि उसने बर्तन भी ठीक प्रकार से नहीं धोया। श्रीकृष्ण ने बाहर आकर भीमसेन से कहा कि जाकर ऋषि दुर्वासा को शिष्यों समेत भोजन के लिए बुला लाओ।” भीमसेन उस स्थान पर गया जहाँ दुर्वासा शिष्यों समेत स्नान कर रहे थे। शिष्य दुर्वासा से कर रहे थे गुरुदेव! हमने युधिष्ठिर को बेकार परेशान किया हमारा पेट भरा हुआ है। इस समय हमारी भोजन की इच्छा बिल्कुल भी नहीं है। यह सुनकर दुर्वासा ने भीमसेन से कहा- “हम सब तो भोजन कर चुके हैं। युधिष्ठिर से जाकर कहना कि इस असुविधा के लिए हमें क्षमा करें।

दुर्योधन ने दुर्वासा ऋषि से क्या प्रार्थना की?

प्रश्न-10 दुर्योधन ने ऋषि दुर्वासा से क्या प्रार्थना की? उत्तर- दुर्योधन बोला-“मुनिवर! प्रार्थना यही है कि जैसे आपने शिष्यों-समेत अतिथि बनकर मुझे अनुगृहीत किया है, वैसे ही वन में मेरे भाई पांडवों के यहाँ जाकर उनका भी सत्कार स्वीकार करें और फिर एक छोटी सी बात मेरे लिए करने की कृपा करें।

दुर्वासा ने भीम से क्या कहा?

हमसे उठा नहीं जाता। इस समय हमारी खाने की बिलकुल इच्छा नहीं है। यह सुनकर दुर्वासा ने भीम से कहा- हम सब भोजन कर चुके हैं। युधिष्ठिर से कहना असुविधा के लिए हमें क्षमा करें।

दुर्वासा ऋषि की मृत्यु कैसे हुई?

शिव पुराण के अनुसार, अंबरीश ने दुर्वासा को भोजन कराने से पहले व्रत तोडकर महर्षि दुर्वासा का अपमान किया। इसलिए महर्षि दुर्वासा ने अंबरीश को मारने का निर्णय कर लिया। अंबरीश को बचाने के लिए सुदर्शन चक्र उत्पन्न हुआ। लेकिन महर्षि दुर्वासा के रूप में साक्षात शिव को पाकर वह रुक गया।

दुर्वासा ऋषि ने कुंती को क्या वरदान दिया और क्यों?

कुंती को महर्षि दुर्वासा ने एक वरदान दिया था जिसमें कुंती किसी भी देवता का आवाहन कर सकती थी और उन देवताओं से संतान प्राप्त कर सकती थी। पाण्डु एवं कुंती ने इस वरदान का प्रयोग किया एवं धर्मराज, वायु एवं इंद्र देवता का आवाहन किया। अर्जुन चौथे पुत्र थे जो देवताओं के राजा इंद्र से हुए।