डॉ. देवेंद्र सिंह कृषि भारत में आजीविका का साधन होने के साथ-साथ ऐतिहासिक, सांस्कृतिक उत्सवों एवं पर्वों की प्रतीक है। ग्रामीण जनसंख्या के 75 प्रतिशत लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से खेती आधारित जीविका पर निर्भर हैं। कृषि का राष्ट्रीय आय में लगभग 27.4 प्रतिशत का योगदान है। भारतीय कृषि मुख्य रूप से वर्षा पर निर्भर रहती है तथा एक वर्ष के अंतर्गत मुख्यतः रबी, खरीफ एवं जायद फसलों की रोपाई की जाती हैं। “कृषिर्धन्या कृषिर्मेध्या जन्तूनां जीवनं कृषि:” (कृषि पाराशर-श्लोक-7) आधुनिक कृषि प्रणाली ने समूचे देश में विभिन्न कृषि उत्पादों जैसे भोजन, चारा, रेशा एवं जैव ऊर्जा के उत्पादन की वृद्धि में सकारात्मक योगदान दिया है। कृषि कार्य में उपयोगी सर्वाधुनिक विधियां जैसे- उच्च गुणवक्ता वाले बीज, सिंचाई की नवीनतम विधियां, पौधों में पोषक तत्वों के लिए रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग तथा रोगों एवं कीटों का पीड़कनाशी रसायनों द्वारा नियंत्रण तथा विभिन्न्न प्रकार के कृषि यंत्र शामिल है। कृषि में फसल, बागवानी, पुष्प उत्पादन, सगंधीय पौधा उत्पादन, मशरूम संवर्धन, पशुपालन, मुर्गीपालन, मधुमक्खी पालन, रेशम कीट पालन एवं मत्स्य पालन से विभिन्न कृषि उत्पादों जैसे भोजन, चारा, रेशा तथा कई अन्य वांछित उत्पादों का निर्मित किए जाते हैं। कृषिक अनुसंधान, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, नवीनतम कृषि उपकरणों, विभिन्न कृषि गतिविधयों, पौध सरंक्षण, फसल की कटाई तथा फसलोत्तर प्रबंधन आदि महत्वपूर्ण कृषि पद्धतियों का उपयोग करके किसानों की आर्थिक एवं सामजिक स्थिति में सुधार किया जा सकता है। आधुनिक कृषि का मुख्य उद्देश्य अच्छी फसल के साथ-साथ वायु, जल, भूमि व मानवीय स्वास्थ्य का संरक्षण करना भी है। (अ) कृषि क्षेत्र में नवीन प्रौद्योगिकियां कृषि के आधुनीकरण तथा नवीन प्रौद्योगिकीयों ने कृषि आधारित उद्योगों को प्रोत्साहित किया है। हरित क्रांन्ति के फलस्वरूप देश में पारम्परिक कृषि को आधुनिक तकनिकीयों द्वारा प्रतिस्थापित करने से धान, गेहूँ, गन्ना, मक्का तथा बाजरा आदि फ़सलों की उत्पादकता में काफ़ी वृद्धि हुई है। देश खाद्यान्नों की आपूर्ति में आत्मनिर्भर बना तथा व्यवसायिक कृषि को बढ़ावा मिला। कृषि में तकनीकि एवं संस्थागत सुधारों को अधिक कारगर ढंग से लागू कर कृषि क्षेत्र का और अधिक विकास किये जाने की आश्यकता है। 1. कृषि रासायनों का उपयोग 2.उन्नतशील
बीजों के प्रयोग 3. सिंचाई सुविधाओं का
विकास 4. आधुनिक कृषि यंत्रों का प्रयोग मशीनीकरण द्वारा अधिक भूमि क्षेत्रों पर कृषि से संबंधित क्रियाएं बहुत कम समय में संभव है तथा कृषि उत्पाद जल्द ही बाजार पहुँच जाता है। जीरो टिलेज सीड कम फर्टिलाइजर ड्रिल से धान कटाई के उपरांत बिना खेत की तैयारी किए सीधे गेहूं की बुवाई से 85 प्रतिशत समय व 90 प्रतिशत डीजल की बचत होती है। अच्छे मृदा स्वास्थ्य एवं अधिक फसल पैदावार के लिए भूमि समतलीकरण अति आवश्यक तथा लेजर लेवलर की सहायता से भूमि का समतलीकरण करना सुविधाजनक रहता है। गन्ना रेकर एवं बेलर से पत्तियों के जलाने से होने वाले प्रदूषण भी रोका जा सकता है। धान की कटाई के उपरांत खेत में खड़ी फसल के अवशेषों को हटाने में बेलर मशीन का उपयोग से प्रायः जलाकर नष्ट किए जाने वाले इस बायोमॉस को बेल बनाकर ईंधन के रूप में व अन्य औद्योगिक जरूरत के रूप में उपयोग कर अतिरिक्त लाभ कमाया जा सकता है। कम्बाइन हार्वेस्टर से फसल कटाई के उपरान्त स्ट्रारीपर यंत्र से खेत से फसल अवशेषों को एकत्र कर पशुओं के लिये भूसा बनाया जाता है जो पर्यावरण संरक्षण में सहायक होता है। 5. जैव प्रौद्योगिकी की भूमिका 6. प्रसंसकरण एवं भंडारण तकनिकी 7. डिजिटल कृषि प्रौद्योगिकी भारत में आज भी अधिकतर खेती मौसम आधारित है, लेकिन किसान घर बैठे कृषि वैज्ञानिकों के बताए तरीकों से इन समस्यायों से निपट रहे हैं। किसान सोशल मीडिया के सही इस्तेमाल से फसलों की रोपाई, बीज शोधन व कटाई आदि के लिए नयी कृषि तकनीकीयों के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। कृषि जलवायु यानी खेती के लिए अनुकूल मौसम आधारित अध्ययन के जरिए जरूरी सूचना, फसलों के बारे में उनकी मांग और आपूर्ति की जानकारी, समूचे देश के मंडीयों में फसलों के मूल्य बारे में समुचित सूचना मिल जाती है। नवीनतम प्रौद्योगिकियां द्वारा विशेषज्ञों की सहायता के बिना ही क्षेत्रीय जलवायु तथ आर्थिक विशेषताओं का सही विश्लेषण हो जाता है। उपग्रहों से प्राप्त आकड़ो तथा पथ प्रदर्शक उपकरणों के उपयोग से सभी क्षेत्रों का पूरा अवलोकन करके फसलों के लिए उत्तम योजना बनाना, वित्तीय नियोजन, खनिज उर्वरकों और पौध संरक्षण के उत्पादों की लागत को कम किया जा सकता है। जिन किसानों को ठीक से पढ़ना नहीं आता वे भी वीडियो को देखकर और सुनकर खेती के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। किसानों के लिए कई ऐप्स हैं जिनसे खेती से जुड़ी हर जानकारी पलक झपकते ही मिल जाती है। (ब) कृषिक कार्यकलापों का पर्यावरण पर प्रभाव आधुनिक कृषि पद्धतियां वैश्विक तापमान वृद्धि का एक कारण है। संयुक्त राष्ट्र के “सहस्राब्दी पारिस्थितिकी तंत्र मूल्यांकन” संकलन प्रतिवेदन के अनुसार “कृषि जैव विविधता के लिए सबसे बड़ा खतरा है”। विश्व भविष्य परिषद के अनुसार, कुल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 14 प्रतिशत के लिए कृषि प्रत्य्क्ष रुप से उत्तरदायी है। ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी में मृदा विज्ञान के प्रोफेसर डॉ. रतन लाल के अनुसार, “पिछले 150 वर्षों में, अनुचित कृषि एवं चराई प्रथाओं के कारण 476 अरब टन कार्बन कृषि योग्य भूमि से उत्सर्जित हुआ है, जबकि इसकी तुलना में केवल 270 गीगावाट जलने वाले ईंधन से निकले हैं”। जलवायु परिवर्तन पर अंतर्राष्ट्रीय पैनल (IPCC, 2013) के अनुसार, कृषि, वनीकरण और भूमि-उपयोग की पद्धति में परिवर्तन, मानव-प्रेरित ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन का 25 प्रतिशत जितना हिस्सा है। बढ़ती आबादी की जरूरतों को पूरा करने तथा उपज बढ़ाने के लिए, हमने उन कृषि पद्धतियों को अपनाया है जिनका पर्यावरण पर गंभीर प्रभाव पड़ता है तथा प्राकृतिक संसाधनों का शोषण होता है। 1. मृदा एवं जल पर प्रभाव अत्याधिक नाइट्रोजन उर्वरक के प्रयोग से मिट्टी में नाइट्रेट का स्तर बढ़ जाता है जो भूमिगत-जल को प्रदूषित कर देता है। अत्याधिक जल आपूर्ति से जल-जमाव हो जाता है तथा मिट्टी में लवणता बढ़ जा से उत्पादकता में कमीं हो जाती है। जब जलाशय या जल श्रोत में कृत्रिम या गैर-कृत्रिम पदार्थों जैसे नाइट्रेट्स और फॉस्फेट की मात्रा अधिक होना सुपोषण (Eutrophication) कहलाता है, इस समृद्धकरण से जल में बायोमास अत्याधिक हो जाता तथा जल में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है इसका जलीय जीवों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। अधिक सिंचाई के कारण भूमिगत जल में कमी होने से मिट्टी तथा पानी का आपसी पारिस्थितिक तंत्र अंसतुलित हो जाता है| 2. जैव विविधता पर प्रभाव किसानों के मित्र केंचुए व लाभदायक सूक्ष्म जीव भूमि में अधिक क्षार की मात्रा होने से धीरे-धीरे नष्ट हो जाते हैं तथा रासायनिक खादों के अंधाधुंध उपयोग से खेती की लागत भी बढ़ती जा रही है। विभिन्न वैज्ञानिक शोधों से यह ज्ञात हुआ है कि कृषि रसायनों के अत्यधिक उपयोग से जहाँ एक ओर पौधों तथा सूक्ष्म जीवों की विशिष्ट विविधता नष्ट हो रही है, वहीं दूसरी ओर फसलनाशी कीटों के प्राकृतिक दुश्मनों की विविधता में भी कमी आ रही है तथा साथ ही हानिकारक कीटों की विविधता में भी वृद्धि हो रही है। 3. खाद्य श्रृंखला पर प्रभाव कृषि रसायनों का उपयोग शत्रु तथा मित्र कीटों की संख्या को एक समान प्रभावित करता है। मनुष्य इस खाद्य श्रंखला के शीर्ष पर है इस कारण वह सबसे ज्यादा प्रभावित होता है। रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों के माध्यम से भोजन में भारी धातुओं का प्रवेश होता है जो हमारे शरीर के लिए घातक हैं। जब रासायनिक खादों एवं कीटनाशकों का छिड़काव किया जाता है तो ये सारी जमीन, जल व वातावरण में फैल जाते हैं। बारिश कुछ कीटनाशी जहरों को पानी में बहाकर ले जाती है तो तालाबों एवं बड़े जलाशयों में मिल जाते हैं, जहाँ छोटे-बड़े पौधे तथा जीव-जन्तु इस जहर को खा लेते हैं जिससे ये जहर इनके शरीर में एकत्रित हो जाते हैं। इन जीवों को छोटी मछलियाँ खाती हैं। इन छोटी मछलियों को बड़ी मछलियाँ खाती हैं। बहुत सारी बड़ी मछलियों को बड़े जीव-जंतु एवं पक्षी जिनका आहार मछलियाँ हैं, खातें हैं। इस प्रकार कीटनाशी रसायन पक्षियों एवं बड़े जन्तुओं के शरीर में चले जाते हैं जिससे इनका स्वास्थ्य बिगड़ता है तथा कुछ जीवों की मृत्यु भी हो जाती है। 4. परागकणकर्ता जीवों पर प्रभाव 5. मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव मानवीय स्वास्थ्य एवं किसानों के हितों की रक्षा को ध्यान में रखते हुए “कीटनाशी प्रबंधन विधेयक, 2019” का मसौदा तैयार हो चुका है। भारतीय दृष्टिकोण “जीवो जीवस्य भोजनम्” यानी प्रकृति के सह-अस्तित्व के सिद्धांत के को अपनाने की आवश्यकता है। हमें पर्यावरण एवं मानव स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए पारंपरिक कृषि प्रणाली में सन्निहित समेकित कीट प्रबंधन तथा जैविक कीटनाशकों को प्रोत्साहन और प्राथमिकता देने की आवश्यकता है। |