1990 में कश्मीर में क्या हुआ था? - 1990 mein kashmeer mein kya hua tha?

हिंदू कश्मीरी पंडितों के पलायन का घाव 30 सालों बाद भी भरा नहीं है। जनवरी 1990 में कश्मीर घाटी से हिंदू कश्मीरी पंडितों का पलायन हुआ था। मस्जिदों से घोषणा की गई कि कश्मीरी पंडित काफिर थे और पुरुषों को कश्मीर छोड़ना होगा। अगर नहीं छोड़ा तो इस्लाम कबूल करना होगा वरना उन्हें मार दिया जाएगा। जिन लोगों ने मजबूर हो कर कश्मीर छोड़ना तय किया उन्हें अपने घर की महिलाओं को वहीं छोड़ने के लिए कहा गया। कश्मीरी मुसलमानों को पंडित घरों की पहचान करने का निर्देश दिया गया ताकि उनका धर्म परिवर्तन किया जा सके या डराया-धमकाया जा सके। कश्मीरी हिंदुओं के खिलाफ किए गए अत्याचार (Kashmir Pandit Tragedy) और 1990 के दशक में उग्रवाद के उदय के साथ घाटी से उनका जबरन पलायन देश भर में रोजाना की आम बातचीत का हिस्सा है। कभी राजनेता तो कभी अभिनेता इस मुद्दे को सुर्खियों में बनाए रखते हैं, लेकिन आखिर में सच क्या है? आइए सिलसिलेवार समझने की कोशिश करते हैं कि 1990 में किन-किन घटनाओं ने हिंदू कश्मीरी पंडितों को पलायन करने पर मजबूर किया।

रिसर्च थिंक टैंक सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड एंड होलिस्टिक स्टडीज (सीआईएचएस) ने घाटी में हुए 1989 से 2003 के बीच समुदाय के खिलाफ हत्या, बलात्कार और हिंसा के चुनिंदा प्रलेखित मामलों के विषय में एक रिपोर्ट, 'सेवेन एक्सोडस एंड द एथनिक क्लींजिंग ऑफ कश्मीरी हिंदुओं' की एक ग्राफिक लिस्ट प्रकाशित की है। 1990 में होने वाले पलायन की शुरुआत 1989 में ही हो गई थी।

14 मार्च, 1989- बडगाम जिले के नवागरी, चदूरा की प्रभावती की हरि सिंह हाई स्ट्रीट, श्रीनगर, जम्मू-कश्मीर में हत्या कर दी गई।

14 सितंबर 1989-
जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर के हब्बा कदल में प्रसिद्ध कश्मीरी पंडित सामाजिक कार्यकर्ता और अधिवक्ता पंडित टीका लाल टपलू की उनके घर में गोली मारकर हत्या कर दी गई।

31 अक्टूबर 1989- दलहसन्यार की 47 वर्षीय शीला कौल टीकू की छाती और सिर में गोली मार दी गई।

4 नवंबर 1989-
न्यायमूर्ति नीलकंठ गंजू की श्रीनगर में हाई कोर्ट के पास हरि सिंह स्ट्रीट बाजार में करीब से गोली मारकर हत्या कर दी गई।

1 दिसंबर 1989- जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर के महाराजगंज के निवासी अजय कपूर की आतंकवादियों ने सार्वजनिक रूप से गोली मारकर हत्या कर दी।

27 दिसंबर 1989-
अनंतनाग के 57 वर्षीय अधिवक्ता प्रेम नाथ भट्ट की सार्वजनिक रूप से हत्या कर दी गई।

15 जनवरी 1990- श्रीनगर के खोनमोह के एक सरकारी कर्मचारी एमएल भान की हत्या कर दी गई। उसी दिन, श्रीनगर के लाल चौक में एक संचालिका बलदेव राज दत्ता का अपहरण कर लिया गया था और चार दिन बाद 19 जनवरी 1990 को श्रीनगर के नई सड़क में उनका प्रताड़ित शरीर मिला था।

25 जनवरी 1990-
स्क्वाड्रन लीडर रवि खन्ना और उनके सहयोगी रावलपुरा बस स्टैंड पर भारतीय वायु सेना की बस का इंतजार कर रहे थे ताकि उन्हें हवाई अड्डे तक ले जाया जा सके, तभी एक मारुति जिप्सी और चार से पांच जेकेएलएफ आतंकवादियों को ले जा रहे एक दोपहिया वाहन ने उन्हें घेर लिया और गोलीबारी की। खन्ना और वायु सेना के 13 अन्य जवान जमीन पर गिर पड़े। खन्ना के साथ तीन की मौत हो गई और दस घायल हो गए। यासीन मलिक ने टिम सेबेस्टियन को दिए इंटरव्यू में इस हत्या की बात स्वीकार की है। वह जेकेएलएफ का एरिया कमांडर था, जो चीफ कमांडर इशफाक वानी के अधीन काम करता था।

1 फरवरी 1990- केंद्र सरकार के कर्मचारी कृष्ण गोपाल बैरवा और त्रेहगाम, कुपवाड़ा के राज्य सरकार के कर्मचारी रोमेश कुमार थुसू को सार्वजनिक रूप से गोली मार दी गई।

2 फरवरी 1990- एक युवा कश्मीरी हिंदू (पंडित) सतीश कुमार टिक्कू को फारूक अहमद डार (उर्फ बिट्टा कराटे) के नेतृत्व वाले एक समूह ने गोली मार दी थी।

13 फरवरी 1990- दूरदर्शन के निदेशक लस्सा कौल की उस समय हत्या कर दी गई, जब उनके एक सहयोगी ने कथित तौर पर उनके आंदोलन के बारे में जानकारी लीक कर दी थी। उसी दिन नागरिक संगठन मिलिट्री इंजीनियरिंग सर्विस (एमईएस) में कार्यरत रावलपोरा के रतन लाल की भी मौत हो गई थी।

16 फरवरी 1990- अनिल भान को फारूक अहमद डार उर्फ बिट्टा कराटे ने मार डाला, जो चौंतीस कश्मीरी पंडितों की हत्या के लिए जिम्मेदार है।

23 फरवरी 1990- अशोक काज़ी को प्रताड़ित किया गया और घुटनों में गोली मार दी गई।

27 फरवरी 1990- नवीन सप्रू को श्रीनगर, जम्मू-कश्मीर में हब्बा कदल पुल के पास गोली मार दी गई थी।

1 मार्च 1990
- सूचना विभाग के पीएन हांडू मारे गए और बडगाम के तेज किशन को इस्लामिक आतंकवादियों ने फांसी पर लटका दिया।

18 मार्च 1990- राज्यपाल के निजी सहायक आरएन हांडू की श्रीनगर के नरसिंहगढ़ में उनके घर के गेट के बाहर हत्या कर दी गई।

20 मार्च 1990-
खाद्य और आपूर्ति के उप निदेशक एके रैना की उनके अधीनस्थों के सामने श्रीनगर में उनके कार्यालय में हत्या कर दी गई।

10 अप्रैल 1990- हिन्दुस्तान मशीन टूल्स (एचएमटी) के महाप्रबंधक एचएल खेरा की श्रीनगर में आतंकवादियों ने गोली मारकर हत्या कर दी।

19 अप्रैल 1990
- सरला भट का सामूहिक बलात्कार किया गया और बेशर्मी से हत्या कर दी।

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कश्मीर से कश्मीरी पंडितों को क्यों भगाया गया?

कश्मीरी मुसलमानों को पंडित घरों की पहचान करने का निर्देश दिया गया ताकि उनका धर्म परिवर्तन किया जा सके या डराया-धमकाया जा सके। कश्मीरी हिंदुओं के खिलाफ किए गए अत्याचार (Kashmir Pandit Tragedy) और 1990 के दशक में उग्रवाद के उदय के साथ घाटी से उनका जबरन पलायन देश भर में रोजाना की आम बातचीत का हिस्सा है।

कश्मीरी पंडितों के साथ 1990 में क्या हुआ था?

कश्मीरी पंडितों के मुताबिक, 1989-1990 में 300 से ज्यादा लोगों को मारा गया। इसके बाद भी पंडितों का नरसंहार जारी रहा। 26 जनवरी 1998 में वंदहामा में 24, 2003 में नदिमर्ग गांव में 23 कश्मीरी पंडितों का कत्ल किया गया।

1990 में कितने कश्मीरी पंडित मारे गए?

टीकू का यह भी मानना ​​है कि अकेले 1990 में ही 302 कश्मीरी पंडितों की हत्या कर दी गई थी.

1989 में कश्मीर में क्या हुआ था?

300 से अधिक हिंदू महिला और पुरुषों की हुई थी हत्या - घाटी में कश्मीरी पंडितों के बुरे दिनों की शुरुआत 14 सितंबर 1989 से हुई। भाजपा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य और वकील कश्मीरी पंडित, तिलक लाल तप्लू की जेकेएलएफ ने हत्या कर दी। - इसके बाद जस्टिस नील कांत गंजू की भी गोली मारकर हत्या कर दी गई।