Show यात्रावृत्तान्त (travelogue) किसी स्थान में बाहर से आये व्यक्ति या व्यक्तियों के अनुभवों के बारे में लिखे वृतान्त को कहते हैं। इसका प्रयोग पाठक मनोरंजन के लिए या फिर उसी स्थान में स्वयं यात्रा के लिए जानकारी प्राप्त करने के लिए करते हैं।[1][2][3] हिन्दी साहित्य में यात्रा वृतान्त[संपादित करें]हिन्दी साहित्य में यात्रा वृतान्त एक आधुनिक गद्य विधा के रूप में स्वीकृत है। हिन्दी में यात्रा-वृत्तान्त लिखने की परम्परा का सूत्रपात भारतेन्दु से माना जाता है। इनके यात्रावृत्त विषयक रचनाएँ कविवचनसुधा में प्रकाशित होती थीं। राहुल सांकृत्यायन, अज्ञेय और नागार्जुन को आधुनिक हिंदी साहित्य का ‘घुमक्कड़ बृहतत्रयी’ कहा जाता है। भारतेन्दु ने विभिन्न स्थलों की यात्रा की और अपने अनुभवों को साझा किया। यात्रा वृतांत के रूप में उनके कुछ संस्मरण हैं- सरयू पार की यात्रा, लखनऊ की यात्रा, हरिद्वार की यात्रा। भारतेंदु युग में ही कुछ लेखकों के द्वारा विदेश यात्रा के वृतांत भी लिखे गए। इसी प्रकार द्विवेदी युग में भी विभिन्न यात्रा वृतान्त लिखे गए श्रीधर पाठक की देहरादू , शिमला यात्रा। स्वामी सत्यदेव परिव्राजक की "मेरी कैलाश यात्रा", अमेरिका भ्रमण आदि। सबसे महत्वपूर्ण यात्रावृतान्त लेखक राहुल सांकृत्यायन माने जाते हैं। उन्होंने विभिन्न देशों की यात्रा की और यात्रा में आने वाली कहानियों को बताने के साथ-साथ उस स्थान विशेष कि प्राकृतिक संपदा, सांस्कृतिक तथा ऐतिहासिक घटनाओं को भी बारी-बारी से प्रस्तुत किया जैसे- किन्नर देश में, दार्जिलिंग परिचय, यात्रा के पन्ने आदि। बाद में चलकर अज्ञेय ने अपनी यात्रा वृतांत के द्वारा विदेशी अनुभवों को भी एक भी एक कहानीकार की रोचकता और यात्री के रोमांचक के साथ प्रस्तुत किया है। "एक बूंद सहसा उछली" में यूरोप और अमेरिका की यात्राओं को प्रस्तुत किया है। मोहन राकेश ने अपनी यात्रा वृतान्त "आखिरी चट्टान" में दक्षिण भारत की यात्राओं का वर्णन किया है। निर्मल वर्मा ने "चीड़ों पर चांदनी" नामक यात्रा वृतांत में अपने यूरोप यात्रा का वर्णन किया है। इस यात्रा वृतांग में वे वहां के इतिहास, दर्शन और संस्कृति से सीधा संवाद करते हैं। उनके यात्रा में संवेदनशीलता के साथ साथ बौद्धिक गहराई का भी अनुभव होता है। सन २०१३ में ओम थानवी ने निम्नलिखित यात्रा संस्मरणों को हिन्दी के श्रेष्ठ यात्रा वृतान्त चुना था-
हिन्दी के यात्रावृतान्तों की विस्तृत सूची निम्नांकित है-
इन्हें भी देखें[संपादित करें]
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
सन्दर्भ[संपादित करें]
यात्रा वृतांत कैसे लिखा जाता है?स्थानीय सांस्कृतिक उत्सवों, खाद्यों, खरीदारी के आलों और अपने नगर की विशिष्टताओं के संबंध में बातें करें। सप्ताहांतों में किलों, पर्वतीय स्थलों और पड़ोस के शहरों का भ्रमण करें तथा उनके संबंध में लिखें। मंथर गति से और निरंतर, आप एक बड़े यात्रा संविभाग का निर्माण कर लेंगे।
यात्रा वृतांत विधा की विशेषताएं क्या है?लेखक अपने यात्रा वर्णन में अमुक स्थान की प्राकृतिक विशिष्ठता, सामाजिक संरचना, समाज, लोगों के रहन सहन संस्कृति, स्थानीय भाषा, आगंतुकों के प्रति उनकी सोच व विचारों को अपने साहित्य में स्थान देता हैं. एक सच्चे यात्री के सम्बन्ध में कहा गया हैं कि उस यायावर की कोई मंजिल नहीं होती हैं.
यात्रा वृतांत के लेखक कौन है?हिन्दी के यात्रा-वृत्तान्त और यात्रा-वृत्तान्तकार
है और इसके रचनाकार या लेखक “भारतेन्दु हरिश्चन्द्र” हैं। एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने की क्रिया यात्रा कहलाती है और जिस रचना में इस यात्रा का वर्णन किया जाता है उसे यात्रा वृत्त कहते हैं।
यात्रा साहित्य से आप क्या समझते हैं उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए?यात्रा-साहित्य का उद्देश्य लेखक के यात्रा अनुभवों को पाठकों के साथ बाँटना और पाठकों को भी उन स्थानों की यात्रा के लिए प्रेरित करना है। इन स्थानों की प्राकृतिक विशिष्टता, सामाजिक संरचना, सामाज के विविध वर्गों के सह-संबंध, वहाँ की भाषा, संस्कृति और सोच की जानकारी भी इस साहित्य से प्राप्त होती है।
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