व्यक्ति का समाज के प्रति क्या कर्तव्य है - vyakti ka samaaj ke prati kya kartavy hai

चेतावनी: इस टेक्स्ट में गलतियाँ हो सकती हैं। सॉफ्टवेर के द्वारा ऑडियो को टेक्स्ट में बदला गया है। ऑडियो सुन्ना चाहिये।

देखा जाए तो समाज के प्रति हमारा काफी कर्तव्य होता है क्योंकि देखिए समाज जो है हम लोगों के ऐसे ही बनाए जाते जैसे कि हम लोगों के बाद ही समाज का निर्माण होता है अगर मान लीजिए हम लोग अपने कर्तव्य का पालन नहीं करेंगे और अच्छे से काम नहीं करेंगे तो समाज की अच्छाई की बिल्कुल नहीं आएगी अगर हम लोग अपने कर्तव्य को बताएंगे तो बिल्कुल अच्छा जाएगा और ऐसे करने से क्या होता है यह बता दे कि हम लोग समाज में बुराई सुनाते हैं तो हमारी जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी होगी वह बुराई की तरफ से जाएंगे

dekha jaaye toh samaj ke prati hamara kaafi kartavya hota hai kyonki dekhiye samaj jo hai hum logo ke aise hi banaye jaate jaise ki hum logo ke baad hi samaj ka nirmaan hota hai agar maan lijiye hum log apne kartavya ka palan nahi karenge aur acche se kaam nahi karenge toh samaj ki acchai ki bilkul nahi aayegi agar hum log apne kartavya ko batayenge toh bilkul accha jaega aur aise karne se kya hota hai yah bata de ki hum log samaj mein burayi sunaate hain toh hamari jo peedhi dar peedhi hogi vaah burayi ki taraf se jaenge

चेतावनी: इस टेक्स्ट में गलतियाँ हो सकती हैं। सॉफ्टवेर के द्वारा ऑडियो को टेक्स्ट में बदला गया है। ऑडियो सुन्ना चाहिये।

आपका प्रश्न है कि समाज के प्रति व्यक्ति के कौन-कौन से कब तक एडिफिस समाज में अगर आप पधार रहे हैं तो हर एक व्यक्ति के कर्तव्य है कि आप एक समाज में रहकर एक दूसरे का साथ दें और समय-समय पर एक दूसरे की मदद भी करें क्योंकि अगर आप समाज को लेकर चलते हैं तो हर किसी की मदद करनी चाहिए

aapka prashna hai ki samaj ke prati vyakti ke kaun kaun se kab tak edifice samaj me agar aap padhar rahe hain toh har ek vyakti ke kartavya hai ki aap ek samaj me rahkar ek dusre ka saath de aur samay samay par ek dusre ki madad bhi kare kyonki agar aap samaj ko lekar chalte hain toh har kisi ki madad karni chahiye

आपका प्रश्न है कि समाज के प्रति व्यक्ति के कौन-कौन से कब तक एडिफिस समाज में अगर आप पधार रह

  25      

व्यक्ति का समाज के प्रति क्या कर्तव्य है - vyakti ka samaaj ke prati kya kartavy hai
 511

व्यक्ति का समाज के प्रति क्या कर्तव्य है - vyakti ka samaaj ke prati kya kartavy hai

व्यक्ति का समाज के प्रति क्या कर्तव्य है - vyakti ka samaaj ke prati kya kartavy hai

व्यक्ति का समाज के प्रति क्या कर्तव्य है - vyakti ka samaaj ke prati kya kartavy hai

व्यक्ति का समाज के प्रति क्या कर्तव्य है - vyakti ka samaaj ke prati kya kartavy hai

This Question Also Answers:

Vokal App bridges the knowledge gap in India in Indian languages by getting the best minds to answer questions of the common man. The Vokal App is available in 11 Indian languages. Users ask questions on 100s of topics related to love, life, career, politics, religion, sports, personal care etc. We have 1000s of experts from different walks of life answering questions on the Vokal App. People can also ask questions directly to experts apart from posting a question to the entire answering community. If you are an expert or are great at something, we invite you to join this knowledge sharing revolution and help India grow. Download the Vokal App!

कर्तव्य परायण का अर्थ कर्तव्य के प्रति आदर भाव रखना होता है। मानव को यथाशक्ति और आवश्यकतानुसार कार्य करना ही उसके कर्तव्य परायण होने की पहचान है। मानव जीवन कर्तव्यों का भंडार है। उसके कर्तव्य उसकी अवस्था अनुसार छोटे और बड़े होते हैं। इनको पूर्ण करने से जीवन में उल्लास, आत्मिक शांति और यश मिलता है ।

बचपन में माता-पिता तथा परिजनों की आज्ञा मानना भी कर्तव्य कहलाता है। विद्यार्थी जीवन में गुरू की आज्ञा ही उसका कर्तव्य बन जाता है। युवावस्था में उसके कर्तव्य परिजनों, पड़ोसियों के अतिरिक्त राष्ट्र के प्रति भी हो जाते हैं। उसके कंधों पर समाज और राष्ट्र की उन्नति का भार आ पड़ता है। उसे देश की कारीगरी, कला-कौशल और व्यापार की उन्नति करनी पड़ती है। ऐसे तमाम दायित्वों से उसका जीवन सदा त्याग, तपस्या और सेवा - भाव में लिप्त रहता है । जिस प्रकार प्रत्येक शासक का कर्तव्य अपनी प्रजा की रक्षा करना है। उसी प्रकार उनका कर्तव्य भी उसकी मंगल कामना करना है। शिक्षक का कर्तव्य अपने छात्रों के हृदय पर से अज्ञानता का आवरण हटाकर उन्हें आदर्शवादी बनाना है। यही सब मानव के कर्तव्य हैं। अपने कर्तव्यों को आदर से पूरा करना कर्तव्य परायण है। इनको पूर्ण करने के लिए उसे अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। उसको प्राकृतिक शक्तियां अपने कर्तव्य का पालन करती हुई पूर्ण सहयोगी देती है। इस पर भी जो कर्तव्य के पथ से विचलित हो जाता है, उसका समाज में निरादर होता है। उसका अपयश सर्वत्र फैल जाता है। जो मानव लज्जा, भय, निदा और विघ्नों की चिता न करके अपने- अपने कर्तव्य पर ²ढ़ रहते हैं, वे अपने जीवन में सफल होते हैं ।कर्तव्य परायण के कुछ उदाहरण भी मिलते है। कर्तव्यपरायण महाराणा प्रताप ने अनेक कष्टों को सहन किया पर मुगलों के सामने नतमस्तक नहीं हुए । श्री राम ने कर्तव्यपरायणता से वशीभूत होकर गर्भवती सीता का परित्याग किया। ऐसे तमाम उदाहरण भरे पड़े हैं। कर्तव्य पालन ही एक ऐसी वस्तु है जिसके द्वारा हम अवर्णनीय आनन्द को प्राप्त कर सकते हैं । इसके आनन्द से मस्त मानव मातृभूमि की रक्षा हेतु हर्षित मन से फांसी के तख्ते पर लटक जाता है । उसकी अमरगाथा पुष्प - पराग के समान सर्वत्र फैल जाती है । अत: प्रत्येक मानव को कर्तव्यों का अवश्य पालन करना चाहिए ।

- अरविद कुमार पांडेय, प्रधानाचार्य इंटर कॉलेज, इटौरा कर्तव्य परायण से व्यक्ति का होता अंत:करण

कर्तव्य परायण एक ऐसा शब्द है जिसके द्वारा हम अवर्णनीय आनंद को प्राप्त कर सकते हैं। इस आनंद से मस्त होकर मानव मातृभूमि की रक्षा हेतु हर्षित मन से फांसी के तख्ते पर जा सकता है। उस की अमर गाथा पुण्य पराग के समान सर्वत्र फैल जाती है। मानव को यथाशक्ति और आवश्यकता अनुसार कार्य करना ही उसका कर्तव्य परायण होना कहलाता है मानव जीवन कर्तव्यों का भंडार है। उसके कर्तव्य उसकी अवस्था अनुसार छोटे और बड़े होते हैं। इसको पूर्ण करने से जीवन में उल्लास आत्मिक शांति और यश मिलता है। कर्तव्य परायण व्यक्ति का अंत: करण हमेशा स्वस्थ और सरल होता है। वह निर्भीक होता है, उसके जीवन में उत्साह और आकांक्षाओं की लहरें हिलोरें मारती है। उसके शत्रु उससे कोसों दूर भागते हैं उसकी विघ्न बाधाएं उसके मार्ग को छोड़ देते हैं। उसका सर्वत्र सम्मान होता है। वह महापुरुषों के रूप में पूजा जाता है। उसकी शक्ति पर लोगों को विश्वास होता है। जैसे पन्नाधाय ने अपने कर्तव्य को पूरा करने के लिए अपने एकमात्र पुत्र का बलिदान कर दिया था। जीवन की हर विभूति कर्तव्य परायणता पर निर्भर है। हमें बहुमूल्य मानव शरीर मिला है उसे निरोगी और दीर्घ जीवी तभी बनाया जा सकता है जब मन की प्रखरता एवं सभ्यता इस बात पर निर्भर है कि चिता शोक निराशा भय क्रोध आवेश आदि से उसे बचाया जाए। उत्साह उल्लास धैर्य साहस संतोष विश्वास संतुलन स्थिरता एकाग्रता जैसे सद्गुणों से सुसज्जित रखा जाए। यदि मन को ऐसे ही जंगली बेल व कांटे की तरह चाहे जिस दिशा में बढ़ने दिया जाए तो वह जीवन अपने आप ही शत्रु के समान हो जाएगा। मन को साधने और सुसंस्कृत बनाने की जिम्मेदारी उस प्रत्येक व्यक्ति की है। वह जिसे मानसिक क्षमता का वरदान मिला है। महत्वपूर्ण कार्य सदा ही उन्हीं के द्वारा संपन्न होते हैं जो कर्तव्य पालन को प्राणों से अधिक प्यार करते हैं सैनिकों का सबसे बड़ा पुण्य अनुशासन और अपने महान उत्तरदायित्व का शानदार ढंग से निर्वहन कर देना तो ही है। संत ब्राह्मण पुरोहित नेता और प्रवचन कर्ता अपनी जिम्मेदारी के प्रति निष्ठावान रहें तो वे मानव जाति का कल्याण ही करते हैं। अपने समाज के प्रति हर व्यक्ति की जिम्मेदारी है अधिकार कर्तव्य का बड़ा घनिष्ठ संबंध है वस्तुत: अधिकार और कर्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। अत: कर्तव्य और अधिकार से आगामी है जब हम यह समझते हैं कि समाज और राज्य में रहकर हमारे कुछ अधिकार बन जाते हैं तो हमें यह भी समझना चाहिए कि समाज में रहते हुए हमारे कुछ कर्तव्य भी हैं। अधिकारों का कर्तव्य से संबंध है बड़े-बड़े उत्कृष्ट गुंजन से मनुष्य समाज में माननीय होता है। जिन के अभाव से सब बेकार हो जाता है उनमें कर्तव्य परायणता का होना गुण सोपान की पहली सीढ़ी है उन्होंने कर्तव्य के बोझ पर कहा है मनुष्य को अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए सबसे बड़ा धर्म मनुष्य को अपने कर्तव्य को सत्य निष्ठा के साथ करना चाहिए साथी कर्तव्य रहते हुए प्रत्येक क्षण उस जीवनदाता परमात्मा का स्मरण करते रहना चाहिए। कर्तव्य पालन करने वाले मनुष्य के मन में हमेशा समानता होती है उसके व्यवहार में हमेशा सच्चाई होती है वह एक मजबूत चट्टानों पर खड़ा होता है। उसे गिरने का भय नहीं होता है। कर्तव्य पालन करने वाला अपने हर एक काम को ठीक ढंग से और उचित समय पर करता है समय पर अपना कर्तव्य पालन करते रहने से आप अपने आप सफल होने लगते हैं। वह हमेशा उन्नति करता रहता है। संसार में उन्हीं लोगों को सबसे अधिक सम्मान मिलता है जो अपने कर्तव्य का ठीक से निर्वहन करते हैं। जिस जाति के लोग करता पालन करने की आदत बना लेते हैं वह जाति अवश्य उन्नति करता है जो लोग करता प्राणों से अपने आप को चुराते हैं वह हमेशा अंधकार की ओर चले जाते हैं और उनका भविष्य पतन की ओर जाता है कर्तव्य परायण मनुष्य के जीवन का सबसे अहम पहलू है।

- इमरान अहमद, प्राचार्य, एमजेएच डिग्री कॉलेज, आटा मानव समाज की सफलताओं के पीछे मानव का कर्तव्य परायण होना मुख्य कारण है। वर्तमान समय से लेकर आदि काल तक जो भी समाज या देश उन्नति और आदर्श के पथ पर अग्रसर हुआ वहां के मानव कर्तव्य परायण अवश्य हुए होंगे। क्योंकि हमारे जीवन में कर्तव्य परायण बोध से ही व्यक्तिगत और सार्वजनिक कर्तव्यों को पूरा करने की प्रेरणा शक्ति प्राप्त होती है। इतिहास गवाह है किसी भी देश का उत्थान वहां के नागरिकों के अपने-अपने कर्तव्यों के पालन के ही फल स्वरुप हुआ है समाज या देश का उत्थान सामूहिक प्रयासों से होता है ना की किसी एक व्यक्ति के कर्तव्य परायण होने से। व्यक्ति के जीवन में सफलताएं तभी प्राप्त होती हैं जब वह कर्तव्य परायण हो जाता है। कर्तव्य परायण होने के बाद मानव को सामाजिक धार्मिक राजनीतिक आर्थिक अर्थात जीवन के सभी क्षेत्रों में सफलताएं और सम्मान प्राप्त होते हैं।

- राज कुमार यादव, सहायक अध्यापक, इंटर कॉलेज, इटौरा

कर्तव्य परायण का अर्थ है नागरिकों द्वारा अपने कर्तव्यों का ठीक से निर्वाहन करना। इस संदर्भ में कर्तव्य परायणता के लिए सबसे आवश्यक हो जाता है कि हमें अपने कर्तव्यों की पहचान हो। यदि प्रत्येक नागरिक अपने कर्तव्यों की ठीक समय पर पहचान करके उसका निर्वहन करता है तभी एक सभ्य समाज का निर्माण होता है। कभी-कभी हम कर्तव्यों के मामले में भ्रम की स्थिति में हो जाते हैं। ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार महाभारत की युद्ध में अर्जुन भ्रम की स्थिति में थे तब भगवान श्रीकृष्ण ने गीता का ज्ञान देकर अर्जुन की आशंकाओं को दूर किया और उन्हें सही मार्ग दिखाए। ऐसी स्थितियां सामान्य मनुष्य के जीवन में भी आना स्वाभाविक है। तब वह अपनी बुद्धि विवेक द्वारा यह पता लगा सकता है कि इस स्थिति में किस कर्तव्य का निर्वाहन करें जो उसका बुद्धि विवेक कहता है वह वह कर्तव्य का निर्वहन करता है और अपने विचारों द्वारा इस समाज का निर्माण करता है।

- धीरेंद्र सिंह यादव, सहायक अध्यापक इंटर कॉलेज, इटौरा

संसार में प्रत्येक व्यक्ति के अधिकारों के साथ-साथ कर्तव्य भी होते हैं। अपनी शक्ति तथा साम‌र्थ्य अनुसार कर्म करना कर्तव्य पालन कहलाता है। यदि अधिकार और कर्तव्य साथ साथ चलते हैं तो समाज में की व्यवस्था बनी रहती है। मानव के अतिरिक्त प्रकृति जीव-जंतु भी तो अपना कर्तव्य पालन किसी न किसी रूप में करते हैं। तभी तो प्रकृति हमारा जीवन सुंदर बनती है। धरती हमें अन्न देती है। पशु-पक्षी भी अपना कर्तव्य निभाते हैं और हम तो इंसान हैं, कर्तव्य पालन करने से जीवन में सच्चरित्र और अच्छा बनता है। साथ ही गुणों का विकास होता है। हमारे पूर्वजों ने कहा है कि कर्तव्यों का पालन करने वाले अंधे नहीं होते हैं। वह अपने दायित्व को निभाने की तीव्र इच्छा रखते हैं। अपने समाज के प्रति हर व्यक्ति की जिम्मेदारी है। अधिकारों से ज्यादा अपने कर्तव्यों को पहचाने इसीलिए यदि हम घर समाज राष्ट्र तथा संसार सभी का सर्वागीण विकास चाहते हैं तो हमें यह देखना चाहिए कि हमने किसी के लिए क्या किया है। यह नहीं कि किसी ने हमारे लिए क्या किया है। ऐसी सोच होने पर कठिनाइयां अपने आप दूर हो जाएंगी

- योगेंद्र सिंह, असिस्टेंट प्रोफेसर एमजेएच डिग्री कॉलेज, आटा

भारतीय संस्कृति में भी कर्म को ही प्रधानता दी गई है। इसीलिए उन्ही महापुरुषों को पूजा गया है जिन्होंने भावना से ऊपर उठकर कर्तव्य को प्रधानता दी है। महर्षि वेदव्यास ने तो यह स्पष्ट कहा है कि यह धरती हमारे कर्मों की भूमि है। कर्तव्य मनुष्य के संबंधों और दोस्तों से ऊपर होता है। ईश्वर की इच्छा के अनुसार चलना प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है। देश की आजादी के आंदोलन के समय भी कई युवकों कि अपनी भावनाएं रही होंगी उनके अपने सपने रहे होंगे कितु उन्होंने अपनी परवाह न करते हुए हंसते-हंसते फांसी के फंदे को झूल गए। प्रत्येक व्यक्ति को शुभ कर्मों के प्रति हमेशा ईमानदार रहना चाहिए। समाज के सदस्य राष्ट्र का एक नागरिक होना भी मानवीय उत्तरदायित्व से लगा हुआ है। अपनी सुविधा उसी सीमा तक चाहे जिससे दूसरों की श्रद्धा में कोई व्यवधान उत्पन्न ना हो यह हर किसी नागरिक की नैतिक जिम्मेदारी है सब समाज का हर नागरिक अपनी जिम्मेदारियों को समझता है नैतिक सामाजिक एवं राष्ट्रीय जिम्मेदारियों के प्रति सजग रहकर भी अपनी और अपने देश के प्रति कर्तव्यों का निर्वहन करना कर्तव्य परायणता का एक उदाहरण है।

व्यक्ति का समाज के प्रति क्या कर्त्तव्य है?

तो आज हमरा कर्तव्य बनता है कि अपने देश-समाज ही नहीं, बल्कि संपूर्ण मानव जाति की रक्षा के लिए हमें 'सामाजिक दूरी' बनाए रखना चाहिए। इस विकट स्थिति में भी हमें समाज से प्रेम रखना है,सहयोग के लिए आगे आना है लेकिन हाथ नहीं लगाना है। यह कोई जरुरी नहीं है कि हम जिससे प्रेम करते हैं,सदा उसके साथ ही रहें।

व्यक्ति का कर्तव्य क्या है?

सभी युगों में समस्त संप्रदायों और देशों के मनुष्यों द्वारा मान्य कर्तव्य का सार्वभौमिक भाव यही है- 'परोपकारः पुण्याय, पापाय, परपीड़नम्‌ अर्थात परोपकार ही पुण्य है और दूसरों को दुख पहुंचाना पाप है। अतः अपनी सामाजिक अवस्था के अनुरूप एवं हृदय तथा मन को उन्नत बनाने वाला कार्य ही हमारा कर्तव्य है।

समाज के प्रति हमारी जिम्मेदारी क्या है?

हमारा समाज के प्रति जिम्मेदारी व दायित्व उसी तरह है जैसा कि हमारा अपने परिवार के प्रति होता है। हम जिस परिवार में जन्म लेते हैं जिस परिवार में रहते हैं, उस परिवार अर्थात उस परिवार सदस्यों के प्रति हमारा कुछ दायित्व बनता है। चाहे वह माता-पिता हो, पत्नी, भाई-बहन या पुत्र-पुत्री आदि हों।

एक नागरिक के मानवता के प्रति क्या कर्तव्य हैं?

संस्कारशाला : हमारा पहला कर्तव्य मानवता के प्रति है ... देश के प्रति एक व्यक्ति के क‌र्त्तव्य उसकी गरिमा, उज्जवल भविष्य बनाए रखने और इसे भलाई के ओर अग्रसर करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। आप का पहला क‌र्त्तव्य महत्व की दृष्टि से मानवता के प्रति है। नागरिक या पिता, होने से पूर्व आप मनुष्य है।