वियोग श्रृंगार में क्या होता है? - viyog shrrngaar mein kya hota hai?

वियोग शृंगार रस के उदाहरण

विभाव, अनुभाव और संचारी भावों के संयोग से प्रमाता के हृदय में स्थित ‘रति’ नामक स्थाई भाव प्रबुद्ध होकर शृंगार रस के रूप में अभिव्यक्त होता है। रति का अर्थ प्रेम से लिया जाना चाहिए। प्रस्तुत लेख में हम आपके लिए वियोग शृंगार रस के 9 उदाहरण लेकर आये है (9 viyog shringar ras ke udaharan) जो अवश्य ही आपके ज्ञान में वृद्धि करने वाले है।

प्रेम से अभिप्राय है स्त्री-पुरुष परस्पर आकर्षण। जीव मात्र में इसका प्रसार होने के कारण शृंगार की व्यापकता असंदिग्ध है। इसी कारण इसे रसराज कहा जाता है। प्राचीन 9 रसों में इसे सर्वश्रेष्ठ के रूप में प्रतिपादित करने वाला दोहा उल्लेखनीय है।

नव रस सब संसार में, नव रास में संसार।
नव रास सार सिंगार रस, युगल सार सिंगार।।

इस रस के विभिन्न अंग इस प्रकार है

रति, आलम्बन, उद्दीपन, अनुभाव, संचारी भाव आदि।

शृंगार रस के भेद – Shringar Ras ke Bhed

संयोग शृंगार रस
वियोग शृंगार रस

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वियोग श्रृंगार में क्या होता है? - viyog shrrngaar mein kya hota hai?
Viyog Shringar Ras Ke Udaharan Doha

Viyog Shringar Ras Ke Udaharan

निस दिन बरसत नैन हमारे।
सदा रहत पावस ऋतु हम पै जब तै स्याम लिघारे।
दृग अंजन लागत नहिं कबहूँ उर कपोल भये कारे।
कंचुकि नहिं सूखत सुनु सजनी उर बिच बहत पधारे। – सूरदास जी

चलत गोपालन के सब चले
यही प्रीतम सौ प्रीति निरंतर, रहे ने अरथ चले। – सूरदास जी

इति विरिया वन तै ब्रज आवति।
दूरहि तै वह तेनु, अधर धरी बारम्बार बजावति। – सूरदास जी

यह जिय हौ सै पुजु रही।
सुनि रे सखी श्याम सुन्दर हंसि बहुरिन बाँह गही। – सूरदास जी

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Viyog Shringar Ras Ke Udaharan

अँखियां करति है अति आरि।
सूंदर श्याम पाहुनै कै मिस, मिलि न जाहु दिनचारि। – सूरदास जी

गोपालहीं पावौ धौ किहि देस।
सिंगी मुद्राकर खप्पर लै, करि हौ, जोगिनी भेस। – सूरदास जी

पिय बिनु नागिन कारी रात।
कहहुँ जामिनि होत, जुन्हैया डसि उलटि हयै जात। – सूरदास जी

तारे गनत – गनत हौ हारी, टपकन लागै नैन। – सूरदास जी

दूलह श्रीरघुनाथ बने दुलही सिय सुंदर मंदिर माही ।
गावति गीत सबै मिलि सुन्दरि बेद जुवा जुरि विप्र पढ़ाही।।
राम को रूप निहारित जानकि कंकन के नग की परछाही ।
यातें सबै भूलि गई कर टेकि रही, पल टारत नाहीं। – तुलसीदास जी

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वियोग-शृंगार

उदाहरण

इत लखियत यह तिय नहीं उत लखियत नहि पीय।

आपुस माँहि दुहून मिलि पलटि लहै हैं जीय॥951॥

बियोग-शृंगार-भेद

पुनि वियोग सिंगार हूँ दीन्हौं है समुझाइ।

ताही को इन चारि बिधि बरनत हैं कबिराइ॥952॥

इक पूरुब अनुराग अरु दूजो मान विसेखि।

तीजो है परवास अरु चौथो करुना लेखि॥953॥

पूर्वानुराग-लक्षण

जो पहिलै सुनि कै निरख बढ़ै प्रेम की लाग।

बिनु मिलाप जिय विकलता सो पूरुब अनुराग॥954॥

उदाहरण

होइ पीर जो अंग की कहिये सबै सुनाइ।

उपजी पीर अनंग की कही कौन बिधि जाइ॥955॥

पूर्वानुराग मध्य

सुरतानुराग-उदाहरण

जाहि बात सुनि कै भई तन मन की गति आन।

ताहि दिखाये कामिनी क्यौं रहि है मो प्रान॥956॥

पूर्वानुराग मध्य

वृष्ठानुराग-उदाहरण

आप ही लाग लगाइ दृग फिरि रोवति यहि भाइ।

जैसे आगि लगाइ कोउ जल छिरकत है आइ॥957॥

हिये मटुकिया माहि मथि दीठि रई सो ग्वारि।

मो मन माखन लै गई देह दही सो डारि॥958॥

मान में लघुमान उपजने का

उदाहरण

और बाल को नाउ जो लयो भूलि कै नाह।

सो अति ही विष ब्याल सौं छलो बाल हिय माह॥959॥

मध्यमान-उदाहरण

पिय सोहन सोहन भई भुवरिस धनुष उतारि।

रस कृपान मारन लगी हँसि कटाछ सो नारि॥960॥

गुरुमान-उदाहरण

पिय दृग अरुन चितै भई यह तिय की गति आइ।

कमल अरुनता लखि मनों ससि दुति घटै बनाइ॥961॥

लहि मूँगा छवि दृग मुरनि यह मन लह्यौ प्रतच्छ।

नख लाये तिय अनखइ पियनख छाये पच्छ॥962॥

गुरमान छूटने का उपाय

स्याम जो मान छोड़ाइये समता को समुझाइ।

जो मनाइये दै कछू सो है दान उपाइ॥963॥

सुख दै सकल सखीन को करिके आपनि ओरि।

बहुरि छुड़ावै मान सो भेद जानि सब ठौरि॥964॥

मान मोचावन बान तजि कहै और परसंग।

सोइ उत्प्रेक्षा जानिये बरनन बुद्धि उतंग॥965॥

उपजै जिहि सुनि भावभ्रम कहिये यहि बिधि बात।

सो प्रसंग बिध्वंस है बरनत बुधि अविदात॥966॥

जो अपने अपराध सो रूसी तिय को पाइ।

पाँइ परे तेहि कहत है कविजन प्रनत उपाइ॥967॥

सामोपाय-उदाहरण

हम तुम दोऊ एक हैं समुझि लेहु मन माँहि।

मान भेद को मूल है भूलि कीजिये नाहि॥968॥

दानोपाय-उदाहरण

इन काहू सेयो नहीं पाय सेयती नाम।

आजु भाल बनि चहत तुव कुच सिव सेयो बाम॥969॥

पठये है निजु करन गुहि लाल मालती फूल।

जिहि लहि तुव हिय कमल तें कढ़ै मान अति तूल॥970॥

भेदोपाय-उदाहरण

लालन मिलि दै हितुन मुख दहियै सौतिन प्रान।

उलटी करै निदान जनि करि पीतम सो मान॥971॥

रोस अगिन की अनल तें तूँ जनि जारे नाँह।

तिहि तरुवर दहियत नहीं रहियत जाकी छाँह॥972॥

उत्प्रेक्षा उपाय-उदाहरण

बेलि चली बिटपन मिली चपला घन तन माँहि।

कोऊ नहि छिति गगन मैं तिया रही तजि नाँहि॥973॥

प्रसंग विध्वंस-उदाहरण

कहत पुरान जो रैनि को बितबति हैं करि मान।

ते सब चकई होहिगी अगिले जनम निदान॥974॥

प्रनत उपाय-उदाहरण

पिय तिय के पायन परत लागतु यहि अनुमानु।

निज मित्रन के मिलन को मानौ आयउ भानु॥975॥

पाँव गहत यौं मान तिय मन ते निकल्यो हाल।

नील गहति ज्यौं कोटि के निकसि जात कोतवाल॥976॥

अंगमान छूटने की बिधि

देस काल बुद्धि बचन पुनि कोमल धुनि सुनि कान।

औरो उद्दीपन लहै सुख ही छूटत मान॥977॥

प्रवास बिरह-लक्षण

त्रितिय बियोग प्रबास जो पिय प्यारी द्वै देस।

जामे नेकु सुहात नहि उद्दीपन को लेस॥978॥

उदाहरण

नेह भरे हिय मैं परी अगिनि बिरह की आइ।

साँस पवन की पाइ कै करिहै कौन बलाइ॥979॥

सिवौ मनावन को गई बिरिहिनि पुहुप मँगाइ।

परसत पुहुप भसम भए तब दै सिवहिं चढ़ाइ॥980॥

करुना बिरह-लक्षण

सिव जारîौ जब काम तब रति किय अधिक विलापु।

जिहिं बिलाप महँ तिनि सुनी यह धुनि नभ ते आपु॥981॥

द्वापर में जब होइगो आनि कृष्ण अवतार।

तिनके सुत को रूप धरि मिलि है तुव भरतार॥982॥

यह सुनि कै जो बिरह दुख रति को भयो प्रकास।

सोई करुना बिरह सब जानैं बुद्धि निवास॥983॥

पुनि याहू करुना बिरह बरनत कवि समुदाइ।

सुख उपाय ना रहे जो जिय निकसन अकुलाई॥984॥

जासो पति सब जगत मैं सो पति मिलन न आइ।

रे जिय जीबो बिपत कौ क्यौं यह तोहि सुहाई॥985॥

सुख लै संग जिहि जियत ज्यौं पियतन रच्छक काज।

सोऊ अब दुख पाइ कै चलो चहत है आज॥986॥

वियोग-शृंगार

दसदसा-कथन

धरे बियोग सिंगार मैं कवि जो दसादस ल्याइ।

लच्छन सहित उदाहरन तिनके सुनहु बनाइ॥987॥

मिलन चाह उपजै हियै सो अभिलाष बखानि।

पुनि मिलिबे को सोचु कौ चिंता जिय में जानि॥988॥

लखै सुनै पिय रूप कौ सौरे सुमिरन सोइ।

पिय गुन रूप सराहिये वहै गुन कथन होइ॥989॥

सो उद्वेग जो बिरह ने सुखद दुखद ह्वै जाइ।

बकै और की और जो सो प्रलाप ठहिराइ॥990॥

सो उनमाद जो मोह ते बिथा काज कछु होइ।

कृसता तन पियराइ अरु ताप व्याधि है सोइ॥991॥

जड़ता बरनन अचल जहँ चित्र अंग ह्वै जाइ।

दसमदसा मिलि दस दसो होत बिरह तें आइ॥992॥

अभिलाष-उदाहरण

अलि ही ह्वै वह द्योस जो पिय बिदेस ते आइ।

विथा पूछि सब बिरह कौ लैहैं अंग लगाई॥993॥

जेहि लखि मोह सो बिमुख मै चकोर ह्वै नैन।

रे बिधि क्यौंहू पाइहौं तेहि तिय मुख लखि चैन॥994॥

चिंता-उदाहरण

इत मन चाहत पिय मिलन उत रोकति है लाज।

भोर साँझ को एक छिन किहि बिधि बसै समाज॥995॥

कौन भाँति वा ससिमुखी अमी बेलि सी पाइ।

नैनन तपन बुझाइ के लीजै अंग लगाइ॥996॥

स्मरण-उदाहरण

खटक रहौ चित अटक जौ चटक भरी बहु आइ।

लटक मटक दिखराइ कै सटकि गई मुसक्याइ॥997॥

कहा होत है बसि रहै आन देस कै कंत।

तो हौं जानौ जो बसौ मो मनते कहु अंत॥998॥

लखत होत सरसिज नमन आली रवि बे और।

अब उन आँनदचंद हित नयन करîो चकोर॥999॥

चन्द निरखि सुमिरन बदन कमलबिलोकत पाइ।

निसि दिनि ललना की सुरति रही लाल हिय छाइ॥1000॥

बिछुरनि खिन के दृगनि मैं भरि असुँवा ठहरानि।

अरु ससकति धन गर गहन कसकति है मन आनि॥1001॥

या पावस रितु मैं कहौ कीजै कौन उपाइ।

दामिनि लखि सुधि होति है वा कामिनि की आइ॥1002॥

गुणकथन-उदाहरण

दिन दिन बढ़ि बढ़ि आइ कत देत मोहि दुख द्वंद।

पिय मुख सरि करि है न तू अरे कलंकी चंद॥1003॥

जिहि तन चंदन बदन ससि कमल अमल करि पाइ।

तिहि रमनी गुन गन गनत क्यौं न हियौ सहराइ॥1004॥

उद्वेग-उदाहरण

जरत हुती हिय अगिन ते तापैं चंदन ल्याइ।

बिंजन पवन डुलाइ इनि दीन्हौं अधिक जराइ॥1005॥

कमलमुखी बिछुरत भये सबै जरावन हार।

तारे ये चिनगी भए चंदा भयो अँगार॥1006॥

प्रलाप-उदाहरण

स्याम रूप घन दामिनी पीतांबर अनुहार।

देखत ही यह ललित छबि मोहि हनत कत मार॥1007॥

तू बिछुरत ही बिरह ये कियो लाल को हाल।

पिय कँह बोलत यह कहत मोहि पुकारत बाल॥1008॥

उन्माद उदाहरण

खिनि चूमति खिनि उर धरति बिन दृग राखति आनि।

कमलन को तिय लाल के आनन कर पग जानि॥1009॥

कमल पाइ सनमुख धरत पुहुपलतन लपटाइ।

लै श्री फल हिय मैं गहत सुनत कोकिलन जाइ॥1010॥

ब्याधि-उदाहरण

बिरह तचो तन दुबरी यैं परयंक लखाइ।

मनु सित घन की सेज पै दामिनि पौढ़ी आइ॥1011॥

मन की बात न जानियत अरी स्याम को गात।

तो सों प्रीत लागइ कै पीत होत नित जात॥1012॥

जड़ता-उदाहरण

नेक न चेतत और बिधि थकित भयो सब गाँउ।

मृतक सँजीवन मंत्र है वाहि तिहारो नाँउ॥1013॥

तुव बिछुरत ही कान्ह की यह गति भई निदान।

ठाढ़े रहत पखान ते राखै मोर पखान॥1014॥

दसदसा-उदाहरण

बिदित बात यह जगत में बरन गये प्राचीन।

पिय बिछुरे सब मरत हैं ज्यौं जल बिछुरत मीन॥1015॥

पांती-वर्णन

बिथा कथा लिखि अंत की अपने अपने पीय।

पाँती दैहैं और सब हौं दैहौं यह जीय॥1016॥

पिय बिन दूजो सुख नहीं पाती के परिमान।

जाचत बाचत मोद तन बाँचत बाचत प्रान॥1017॥

नैन पेखबे को चहै प्रान धरन को हीय।

लहि पाँती झगरîौ परîौ आनि छुड़ावै पीय॥1018॥

संदेशा-वर्णन

पकरि बाँह जिन कर दई बिरह सत्रु के साथ।

कहियो री वा निठुर सों ऐसे गहियत हाथ॥1019॥

कहि यो री वा निठुर सों यह मेरी गति जाइ।

जिन छुड़ाइ निज अंग ते दई अनंग मिलाइ॥1020॥

Putr shok me klap raha hu jis prakar mai ajnandan,
Sut biyog me pran tajoge isi bhati karke karndan.
KYA is udahran ko karud ras Ke liya likh sakte hai?

वियोग श्रृंगार रस क्या होता है?

वियोग श्रृंगार रस : Viyog Shringar Ras एक दूसरे के प्रेम में अनुरक्त नायक एवं नायिका के मिलन का अभाव 'विप्रलम्भ श्रंगार' होता है ।

वियोग श्रृंगार की कितनी दशाएं होती है?

विशेष—साहित्य में श्रृंगार रस दो प्रकार का माना गया है— संयोग श्रृगार (या संभोग श्रृंगार) और वियोग श्रृंगार (या विप्रलंभ श्रृंगार) । वियोग की दशा तीन प्रकार की होती है—पूर्वराग, मान और प्रवास ।

वियोग श्रृंगार का दूसरा नाम क्या है?

विशेष—साहित्य में श्रृंगार रस दो प्रकार का कहा गया है— संभोग श्रृंगार विप्रलंभ श्रृंगार । इन्हीं को संयोग और वियोग भी कहते है ।

वियोग श्रृंगार रस का उदाहरण कौन सा नह ं है?

वियोग श्रृंगार रस का उदाहरण- उधो, मन न भए दस बीस। एक हुतो सो गयौ स्याम संग, को अवराधै ईस॥ इन्द्री सिथिल भईं सबहीं माधौ बिनु जथा देह बिनु सीस।