वायु में जल की स्थिति जलवाष्प या जल की गैसीय अवस्था को वायु की आर्द्रता या नमी कहते हैं। आर्द्रता वर्षण के लिए आवश्यक शर्त है। आर्द्र वायु से ही संघनन की क्रिया होती है। सापेक्षिक आर्द्रता 100% हो तो ऐसी वायु संतृप्त कहलाती है। संतृप्त वायु में ही संघनन की क्रिया होती है। बादलों का निर्माण होता है, और वर्षा होती है। वह तापमान जिस पर संघनन क्रिया प्रारंभ होती है। 0°C या 32°F ओसांक है। संतृप्त वायु का संघनन के बाद जल बिंदुओं के रूप में पृथ्वी के तल पर गिरना, वर्षण कहलाता है। जब आर्द्र वायु, ओसांक को प्राप्त कर लेता है, तो संघनन की क्रिया प्रारंभ होती है और संघनन जलबिंदु या हिम कणों के रूप में होता है। दोनों ही परिस्थितियों में सतह पर जल वर्षा होती है। हालांकि वर्षा के विभिन्न रूप है।
जैसे जलवृष्टि, हिमवृष्टि, सहिमवृष्टि एवं ओलावृष्टि, लेकिन जलवृष्टि को ही वास्तविक रूप में वर्षण कहते हैं। वर्षा के प्रकार
संवहनिक वर्षा
विषुवत प्रदेश में संवहनिक वर्षा दोपहर 12:00 बजे प्रारंभ होती है। सांय 4 बजे के बाद वर्षा समाप्त हो जाती है। इसका कारण दोपहर में सतह का अधिक गर्म हो जाना है। विषुवतीय प्रदेश में विश्व में, विश्व में सर्वाधिक तड़ित झंझा उत्पन्न होते हैं। यहां वर्ष में 75-150 तड़ित झंझा उत्पन्न होते हैं, जो अत्यंत तूफानी होते हैं। पर्वतीय वर्षा
विश्व में सर्वाधिक वर्षा पर्वतीय प्रकार की ही होती हैं, विशेषकर पश्चिमी यूरोपीय तटीय क्षेत्रों की वर्षा रॉकी, एंडीज, तटीय क्षेत्रों की वर्षा, भारत की मानसूनी वर्षा, पर्वतीय प्रकार की होती है। चक्रवातीय वर्षा
उष्ण चक्रवात में वर्षाउष्ण चक्रवात में निम्न वायुदाब केंद्र का विकास होता है, जिसके चारों ओर से हवाएं दौड़ती हैं। निम्न वायुदाब केंद्र को चक्रवात की आंख कहते हैं। चक्रवात की आंख की ओर दौड़ती हवाएं इसके सीमांत क्षेत्र के प्रभाव से गर्म होकर ऊपर उठ जाती है, जिसमें संघनन की क्रिया के फलस्वरुप बादलों का निर्माण होता है, और तीव्र वर्षा होती है। वर्षा चक्रवात की आंख के चारों ओर होती है, जबकि चक्रवात की आंख का निम्न वायुदाब केंद्र (LP) का क्षेत्र वर्षा से अप्रभावित रह जाता है। तीव्र गति के कारण उष्ण चक्रवात से वर्षा कम समय तक होती है। उष्ण चक्रवात से उष्णकटिबंधीय क्षेत्र के ITCZ क्षेत्र में वर्षा होती है। हरिकेन और टायफून तूफान उष्णकटिबंधीय (Tropical) चक्रवात के उदाहरण है। शीतोष्ण चक्रवात में वर्षाउष्ण चक्रवात के विपरीत शीतोष्ण चक्रवात में वाताग्र का विकास होता है और वाताग्र के सहारे सतह की हवाएं ऊपर उठती हैं, जिसमें संघनन की क्रिया के फलस्वरुप बादलों का निर्माण होता है और वर्षा होती है। शीतोष्ण चक्रवात में वर्षा, शीत वाताग्र एवं उष्ण वाताग्र के सहारे होती है। क्योंकि शीत वाताग्र का ढाल तीव्र होता है। अतः वर्षा छोटे क्षेत्र में लेकिन तीव्र एवं मूसलाधार होती है और वर्षा कपासी बादलों से होती है। उच्च
वाताग्र (High atmosphere) मन्द ढाल का होता है एवं गर्म वायु धीरे-धीरे ठंडी वायु के ऊपर चढ़ती है अर्थात मंद ढाल के सहारे गर्म वायु ऊपर उठती है, जिससे बहुस्तरीय बादलों का विकास होता है और वर्षा मुख्यत वर्षा स्तरी बादलों से होती है। इसमें वर्षा अपेक्षाकृत बड़े क्षेत्र में लेकिन धीमी गति से होती है। विश्व में वर्षा का वितरणविश्व में वर्षा की निम्नलिखित पेटियां हैं।
वर्षा कैसे होती है यह कितने प्रकार की होती है?यहां संवहनीय तथा मानसूनी वर्षा अधिक होती है। शीतल तथा उष्ण मरूस्थलों में वायु में जलवाष्प की कमी होने से वर्षा बहुत कम होती है। भूमध्यरेखीय कटिबन्ध तथा शीत-शीतोष्ण कटिबन्धों के पश्चिमी भागों में वर्षा का वितरण साल भर एक समान रहता है। इसके विपरीत मानसूनी और भूमध्यसागरीय क्षेत्रों में वर्षा मौसमी होती है।
वर्षा कैसे होता है?वर्षा तब होती है जब बादलों के भीतर बहुत तेजी के साथ संघनन होने लगता है और हवा इन संगठित कणों के वजन को संभाल नहीं पाती. वर्षा के प्रकार -. वर्षा - इसके अन्तर्गत जल की बूंदें गिरती हैं । ... . फुहार - जब वर्षा की बूँदों का आकार बहुत ही छोटा (आधे मिलीमीटर से भी कम) होता है, तो ऐसी बूँदों को फुहार कहते हैं ।. वर्षण का क्या अर्थ है वर्षा के विभिन्न रूपों का वर्णन करें?वर्षण या अवक्षेपण एक मौसम विज्ञान की प्रचलित शब्दावली है जो वायुमण्डलीय जल के संघनित होकर किसी भी रूप में पृथ्वी की सतह पर वापस आने को कहते हैं। वर्षण के कई रूप हो सकते हैं जैसे वर्षा, फुहार, हिमवर्षा, हिमपात और ओलावृष्टि इत्यादि। अतः वर्षा वर्षण का एक रूप या प्रकार है।
वर्षा कैसे होती है वर्षा के प्रकार बताते हुए विश्व वितरण?जब समुद्री आर्द्र हवाएं पर्वतीय क्षेत्र से टकराती है तो ऊपर उठने लगती हैं। ऊपर उड़ती हवाओं में शुष्क रुद्धोष्म परिवर्तन की दर से तापमान में कमी आती है। फलस्वरुप हवाएं ठंडी होने लगती हैं, जिसमें संघनन की क्रिया के फलस्वरुप विभिन्न प्रकार के बादलों का विकास होता है और तीव्र वर्षा होती है।
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