वह दिन जब चंद्रमा पृथ्वी से बहुत दूर होता है - vah din jab chandrama prthvee se bahut door hota hai

नासा के गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर (NASA's Goddard Space Flight Center) के लूनर साइंटिस्ट रिचर्ड वोंड्रक (Richard Vondrak) ने 2017 में कहा था कि समय के साथ, पूर्ण सूर्य ग्रहणों की संख्या और आवृत्ति कम हो जाएगी. अब से लगभग 60 करोड़ साल बाद, पृथ्वी पूर्ण सूर्य ग्रहण की सुंदरता का अनुभव आखिरी बार करेगी. क्योंकि धरती और सूरज के बीच चांद आएगा ही नहीं. (फोटोः गेटी)

भारत के पहले चंद्रयान ने बुधवार, 22 अक्टूर को, चंद्रमा की दिशा में अपनी यात्रा शुरू कर दी. 3.85.000 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद, क़रीब दो सप्ताह के भीतर वह चंद्रमा की परिक्रमा कक्षा में चला जायेगा और दो वर्षों तक उसकी परिक्रमा करेगा. चंद्रयान-1 भारत के अतिरिक्त अमेरिका और जर्मनी सहित यूरोप के कुछ अन्य देशों के भी वैज्ञानिक उपकरण अपने साथ ले गया है. अगले दिनों में हम चंद्रमा के बारे में बहुत कुछ सुनेंगे. पर, क्या आपने कभी यह भी सोचा है कि यदि चंद्रमा नहीं होता, तब क्या होता? उस के न होने से हमारी धरती पर क्या देखने में आता? नहीं सोचा है न! हम आपको बताते हैं:

तथ्य और आंकड़े

पहले कुछ तथ्य और आंकड़ेः चंद्रमा रेगिस्तान की तरह मरुस्थल है. उसकी ऊपरी सतह चेचक वाले दाग भरे किसी चेहरे की तरह गड्ढों और क्रेटरों से भरी है. जन्म कोई चार अरब वर्ष पूर्व हुआ समझा जाता है. पृथ्वी से उसकी औसत दूरी 3.84.467 किलोमीटर है.

पृथ्वी और चन्द्रमा ग्रह और उपग्रह के बदले दो जुड़वां ग्रहों के समान हैं. चंद्रमा का व्यास पृथ्वी के व्यास का एक-चौथाई है, जो कि अपेक्षाकृत काफी़ अधिक है. पृथ्वी का व्यास 12.756 किलोमीटर है, चंद्रमा का 3.476 किलोमीटर.

पृथ्वी के विपरीत चंद्रमा के पास न तो अपना वायुमंडल है और न ही अपना चुंबकीय क्षेत्र. चंद्रमा पर हर चीज़ का वज़न, पृथ्वी पर के वज़न का छठा हिस्सा ही रह जाता है. यानी, जो चीज़ पृथ्वी पर 60 किलो भारी है, वह चंद्रमा पर केवल 10 किलो भारी होगी.

चंद्रमा अपनी धुरी पर और साथ ही पृथ्वी के चारो ओर भी अपना एक चक्कर 27 दिन 8 घंटे में पूरा करता है. इसी कारण पृथ्वी पर से हमेशा उसका एक ही आधा भाग दिखायी पड़ता है और यही आधा भाग लगभग हमेशा सूर्य के प्रकाश में भी रहता है.

यही चंद्रमा यदि न होता, तो पृथ्वी पर का नज़ारा कुछ और ही होता. न चांदनी रातें होतीं, न कवियों की कल्पनाएं. रातें और भी अंधियारी और कुछ और ठंडी होतीं- इसलिए, क्योंकि चंद्रमा अपने ऊपर पड़ने वाले सूर्य-प्रकाश और उसकी गर्मी का एक हिस्सा पृथ्वी की तरफ परावर्तित कर देता है.

सबसे बड़ी बात यह होती कि पृथ्वी पर के समुद्रों में ज्वार-भटा भी नहीं आता. चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण बल से ही पृथ्वी पर ज्वार-भाटा पैदा होता है. बहुत संभव है कि समुद्री जलधाराओं की दिशाएं भी आज जैसी नहीं होतीं.

चांद बिना दिन होता छोटा

Erster Mann auf dem Mondएडविन एल्ड़्रिन 20 जुलाई 1969 को चंद्रमा पर पहली बार पैर खने वाले नील आर्मस्ट्राँग के साथी थेतस्वीर: AP

ज्वार-भाटा अपनी धुरी पर घूमने की पृथ्वी की अक्षगति को धीमा करते हैं. ज्वार-भाटे न होते तो पृथ्वी पर दिन 24 घंटे से कम का होता. कितना कम होता, कहना कठिन है- शायद 6 घंटे छोटा होता, शायद 10 घंटे भी छोटा होता.

यह भी हिसाब लगाया गया है कि डायनॉसरों वाले युग में, जब चंद्रमा आज की अपेक्षा पृथ्वी के निकट हुआ करता था, उसके गुरुत्वाकर्षण प्रभाव के कारण पृथ्वी पर एक दिन 24 नहीं, साढ़े 23 घंटे का हुआ करता था और कुछेक अरब साल पहले केवल 4 से 5 घंटे का ही एक दिन हुआ करता था.

चांद न रहता, तो हम भी न होते

कुछ ऐसी वैज्ञानिक अवधारणाएँ भी हैं, जो कहती हैं कि यदि चंद्रमा नहीं होता, तो पृथ्वी पर मानव जाति का अभी तक उदय भी नहीं हुआ होता-- यानी विकासवाद अभी बंदरों और जानवरों तक ही पहुँच पाया होता. ऐसा इसलिए, क्योंकि चंद्रमा के न होने पर ज्वार-भाटे नहीं होते और उनके न होने से भूमि और समुद्री जल के बीच पोषक तत्वों के आदान-प्रदान की क्रिया बहुत धीमी पड़ जाती. इससे सारी विकसवादी प्रक्रिया ही धीमी पड़ जाती.

चंद्रमा के कारण पृथ्वी की अक्षगति का धीमा पड़ना आज भी जारी है. हर सौ वर्षों में वह 0.0016 सेकंड, यानी हर 50 हज़ार वर्षों में एक सेकंड की दर से धीमी पड़ रही है.

हम से बढ़ती चांद की दूरी

पृथ्वी की गति धीमी पड़ रही है, और चंद्रमा की बढ़ रही है. अक्षगति बढ़ने से वह पृथ्वी से दूर जा रहा है--प्रतिवर्ष करीब 3 सेंटीमीटर की दर से दूर जा रहा है. एक समय ऐसा भी आयेगा, जब चंद्रमा आज की अपेक्षा डेढ़ गुना दूर चला जायेगा.

और तब पृथ्वी पर के केवल एक हिस्से के लोग ही चंद्रमा को देख पायेंगे, दूसरे हिस्से के लोग नहीं, बशर्ते कि तब तक पृथ्वी पर जीवन है और मनुष्य भी रहते हैं.

चंद्रमा की उत्पत्ति के बारे में एक नया शोध सामने आया है. इसका मानना है कि अरबों साल पहले एक बड़ा ग्रह पृथ्वी से टकराया था. इस टक्कर के फलस्वरूप चांद का जन्म हुआ.

शोधकर्ता अपने इस सिद्धांत के पीछे अपोलो के अंतरिक्ष यात्रियों के ज़रिये चांद से लाए गए चट्टानों के टुकड़ों का हवाला दे रहे हैं. इन चट्टानी टुकड़ों पर 'थिया' नाम के ग्रह की निशानियां दिखती हैं.

शोधकर्ताओं का दावा है कि उनकी खोज पुख़्ता करती है कि चंद्रमा की उत्पत्ति टक्कर के बाद हुए भारी बदलाव का नतीजा थी.

ये अध्ययन एक साइंस पत्रिका में प्रकाशित हुआ है. वैसे ये कोई नया सिद्धांत नहीं है. ये पहले से माना जाता रहा है कि चांद का उदय खगोलीय टक्कर के परिणाम स्वरूप हुआ था. हालांकि एक दौर ऐसा भी आया जब कुछ लोग कहने लगे कि ऐसी कोई टक्कर हुई ही नहीं.

लेकिन वर्ष 1980 से आसपास से इस सिद्धांत को स्वीकृति मिली हुई है कि 4.5 बिलियन साल पहले पृथ्वी और थिया के बीच हुई टक्कर ने चंद्रमा कीउत्पत्ति की थी.

थिया का नाम ग्रीक पौराणिक कथाओं में मौजूद सीलीन की मां के नाम पर रखा गया था. सीलीन को चांद की मां कहा जाता है.

समझा जाता है कि टक्कर होने के बाद थिया और धरती के टुकड़े एक दूसरे में समाहित हो गए और उनके मिलने से चांद की पैदाइश हुई.

ये सबसे आसान थ्योरी है जो कंप्यूटर सिमूलेशन से भी मेल खाती है. लेकिन इसकी सबसे बड़ी दिक्क़त ये है कि किसी ने भी थिया की मौजूदगी का प्रमाण चांद के चट्टानों में नहीं देखा है.

चंद्रमा पर बेशक थिया के निशान मिले हैं लेकिन इसकी संरचना आमतौर पर पृथ्वी सरीखी है. अध्ययनकर्ताओं की टीम के अगुवा यूनिवर्सिटी ऑफ गॉटिंगेन के डा. डेनियल हेवाट्ज के अनुसार, अब तक किसी को इस टक्कर सिद्धांत के इतने दमदार सबूत नहीं मिले थे.

उन्होंने कहा, ''पृथ्वी और चंद्रमा के बीच छोटे-छोटे अंतर हैं, जिसे हमने इस नमूनों में खोज निकाला है. ये टक्कर की अवधारणा को पुख्ता करता है."

ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर हेलीडे उन वैज्ञानिकों में हैं, जो ये देखकर चकित हैं कि चांद की चट्टानों पर मिली थिया की सामग्री और पृथ्वी के बीच अंतर बहुत मामूली और सूक्ष्म हैं.

ओपन यूनिवर्सिटी के डॉक्टर महेश आनंद इस शोध को रोमांचकारी बताते हैं लेकिन वह ये भी कहते हैं, "मौजूदा तथ्य चांद के लाए गए महज़ तीन चट्टानी नमूनों के आधार पर निकाला जा रहा है."

"हमें इन चट्टानों को पूरे चंद्रमा का प्रतिनिधि मानने के प्रति सावधानी बरतनी चाहिए. इस लिहाज से चांद की अलग-अलग चट्टानों का विश्लेषण भी ज़रूरी है तभी आगे कुछ पुष्टि की जानी चाहिए."

कुछ और सिद्धांत बताते हैं कि कि चांद और पृथ्वीकी संरचनाएं लगभग एक जैसी क्यों हैं. क्योंकि टक्कर से पहले पृथ्वी और अधिक गति से धूमती थी. एक और सिद्धांत ये है कि थिया आकार में कहीं ज्यादा बड़ा ग्रह था.

एक और विवादित सिद्धांत नीदरलैंड्स के ग्रोनिंजेन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर राव डी मेइजेर का है. उनके अनुसार, पृथ्वी की सतह के करीब 2900 किलोमीटर नीचे एक नाभिकीय विखंडन के फलस्वरूप पृथ्वी की धूल और पपड़ी अंतरिक्ष में उड़ी और इस मलबे ने इकट्ठा होकर चांद को जन्म दिया.

उन्होंने बीसीसी से बातचीत में कहा कि पृथ्वी और चंद्रमा की संरचना में अंतर के नए निष्कर्षों के बाद भी उनके दृष्टिकोण में कोई बदलाव नहीं हुआ है.

वह कहते हैं, "जिस अंतर के बारे में कहा जा रहा है कि वो बहुत मामूली है. हमें नहीं मालूम कि चांद का निर्माण किस तरह हुआ. ज़रूरत है कि हम चांद पर जाएं और उसकी सतह के काफी नीचे की चट्टानों को खोजें. जो अब तक अंतरिक्ष में आने वाली आंधियों और खगोलीय प्रभावों से प्रदूषित नहीं हुई हैं.''

चंद्रमा पृथ्वी से दूर क्यों जा रहा है?

चंद्रमा को खींच रहे हैं दूसरे ग्रह रिपोर्ट के मुताबिक अब दूसरे ग्रह चंद्रमा (Moon) को अपनी ओर खींच रहे हैं. उनकी गुरुत्वाकर्षण शक्ति पृथ्वी से ज्यादा है. इसलिए चंद्रमा प्रति वर्ष लगभग आठ इंच की दर से दूर जा रहा है.

चंद्रमा हर साल पृथ्वी से कितना दूर होता है?

पृथ्वी से चन्द्रमा की दूरी ३८४,४०३ किलोमीटर है। यह दूरी पृथ्वी के व्यास का ३० गुना है। चन्द्रमा पर गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी से १/६ है। यह पृथ्वी कि परिक्रमा २७.३ दिन में पूरा करता है और अपने अक्ष के चारो ओर एक पूरा चक्कर भी २७.३ दिन में लगाता है।

जब चन्द्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है तो उस स्थिति को क्या कहा जाता है?

जब चन्द्रमा पृथ्वी के सबसे नजदीक होता है तब उस स्थिति को उपभू (Perigee) कहते हैं। उस समय चन्द्रमा पृथ्वी से 3,63,104 किमी की न्यूनतम दूरी पर होता है। तथा इसी के साथ चन्द्रमा की अधिकतम दूरी को अपभू (Apogee) कहते हैं, जिसमें चन्द्रमा पृथ्वी से 4,05,696 किमी की दूरी पर होता हैचंद्रमा पृथ्वी से दूर क्यों जा रहा है?

सूर्य पृथ्वी से सबसे दूर कब होता है?

जब पृथ्वी सूर्य से अधिकतम दूरी पर होती है तो यह अपसौर (Aphelion) कहलाता है. अपसौर की स्थिति 4 जुलाई को होती है. ऐसी स्थिति में पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी 15.21 करोड़ किलोमीटर होती है.