ऊष्मागतिकी का तृतीय नियम किस शास्त्र से संबंधित है - ooshmaagatikee ka trteey niyam kis shaastr se sambandhit hai

ऊष्मागतिकी का तृतीय नियम कभी-कभी इस प्रकार से कहा जाता है:

परम शून्य ताप वाले विशुद्ध क्रिस्टल की एण्ट्रॉपी शून्य होती है।

शून्य केल्विन ताप पर निकाय अपनी न्यूनतम सम्भव ऊर्जा वाली अवस्था में होगा, तथा ऊष्मागतिकी के तृतीय नियम का यह कथन तभी सत्य होगा यदि विशुद्ध क्रिस्टल (perfect crystal) की केवल एक ही न्यूनतम ऊर्जा वाली अवस्था हो। एण्ट्रॉपी का सम्बन्ध सभी सम्भव सूक्ष्म अवस्थाओं की संख्या से है। चूंकि शून्य केल्विन ताप पर केवल एक सूक्ष्म-अवस्था उपलब्ध है, अतः एण्ट्रॉपी अवश्य ही शून्य होगी।

नर्स्ट-साइमन (Nernst-Simon) का कथन इस प्रकार है:

शून्य केल्विन तप पर व्युत्क्रमणीय समतापी प्रक्रम से गुजरता हुए किसी भी संघनित निकाय का एण्ट्रॉपी परिवर्तन शून्य की तरफ अग्रसर होता है। यहाँ संगनित निकाय से आशय द्रव एवं ठोस से है। Satyapal Yadav

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • ऊष्मागतिकी का इतिहास
  • ऊष्मागतिकी का शून्यवाँ नियम
  • ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम
  • ऊष्मागतिकी का द्वितीय नियम
  • ऊष्मा इंजन

हेलो दोस्तो आपका प्रश्न है ऊष्मागतिकी के तृतीय नियम के अनुसार परम शून्य पर क्रिस्टलीय पदार्थ की एंड्रापिक होती है पहले भी कल में दे रखा है तो दूसरे विकल्प में दे रखा 50 तीसरे विकल्प दे रखा स्कूल ने चौथे भी करने दे रखा विभिन्न पदार्थों के लिए भी तो चाहिए इस प्रेस को हल करते हैं तो ऊष्मागतिकी का जो तृतीय नियम है इस नियम के अनुसार दोस्तों क्या बताया गया है कि जितने भी क्रिस्टलीय पदार्थ होते हैं उनकी परम शून्य ताप पर एंट्रॉफी क्या होती है जीरो होती है अब एंट्रॉफी क्या है तो उसको एंट्रॉफी है अव्यवस्था एंट्रॉफी क्या है एंट्रॉफी है अव्यवस्था अव्यवस्था ठीक है अब परम शून्य ताप क्या होता है तो परम शून्य ताप जीरो केल्विन ताप होता है इसे हम कहते हैं परम शून्य ताप ठीक है जीरो केल्विन ताप को क्या कहते हैं परम शून्य ताप अब जीरो केल्विन तापमान यह दोस्त को सबसे कम तापमान है इससे नीचे तापमान कभी भी संभव नहीं होता है इससे कम ताप कभी भी संभव नहीं है तो जीरो केल्विन ताप जो है परम शून्य

साथ में और परम शून्य ताप पर जितने भी क्रिस्टलीय पदार्थ हैं इनकी एंट्रॉफी शून्य होती अर्थात इनमें किसी भी प्रकार की अवस्था नहीं होगी यह पूरी तरीके से शुरू हो जाएगी एंट्रॉफी और जो भी क्रिस्टल पदार्थों को ऐसे समझ लिया कांच की तरह उस को छू लेंगे आप तुरंत ही वोट टूट जाएगा 5 से भी ज्यादा ज्यादा आगे बस एंट्रॉफी शुरू हो जाएगी तो कांच से भी ज्यादा कमजोर हो आप इसको समझ सकते हल्के से छूते ही तुरंत वह चटक जाएगा क्रश कोई भी क्रिस्टल पदार्थ हुआ क्योंकि जीरो केल्विन ताप इतना कम तक है कि इस बात पर जितने भी जितने भी परमाण्विक गति आणविक गति सुषमा करो कि जो गति होती इलेक्ट्रॉन की गति सभी गतियां यहां पर रुक जाती हैं और पदार्थ में अव्यवस्था बिल्कुल शून्य हो जाती है तो यहां पर स्कोर में लिख दे रहा हूं तो ऊष्मागतिकी का जो तृतीय नियम है वह यही है कि परम ताप पर जितने भी क्रिस्टलीय पदार्थ हैं इन सभी के एंट्रॉफी क्या हो जाती है शुन्य हो जाती है यह हमारे प्रश्न का उत्तर आदि कल देखते हैं पहले भी कल में दे रखा है तो यह गलत है दूसरे भी कल में दे रखा पच

यह भी गलत है तीसरे विकल्प में तेरा खून नहीं है बिल्कुल सही विकल्प है चौथे निकलने दे रखा है विभिन्न पदार्थों के लिए धन नहीं यह भी गलत निकलता है तो आशा करता हूं आपको यह समझ में आया होगा धन्यवाद

हेलो दोस्तो आपका प्रश्न ऊष्मागतिकी के तृतीय नियम का उल्लेख कीजिए तो चलिए इस प्रेस को हल करते हैं तो दोस्तों उस्मा गतिकी का जो तृतीय नियम है तीसरा नियम यह एंड ट्रॉफी के विषय में है ठीक है और यह नियम क्या कहता है 0 केल्विन ताप पर इस नियम के अनुसार 0 केल्विन ताप पर किसी पूर्ण क्रिस्टलीय पदार्थ की जो एंट्रॉफी होती है दोस्तों है जीरो होती है अर्थात सूर्य होती है तो इसको यहां पर मैं लिख रहा हूं इस उस्मा गतिकी के तृतीय नियम के अनुसार ठीक है उष्मा गति की गति की के के तृतीय नियम के अनुसार तृतीय नियम के अनुसार नियम के

अनुसार परम शून्य ताप परम शून्य ताप परम शून्य ताप अर्थात जीरो केल्विन पर अर्थात जीरो केल्विन जीरो केल्विन तापमान पर जीरो केल्विन तापमान पर एक पूर्ण क्रिस्टलीय पदार्थ एक क्रिस्टलीय पदार्थ की एक पूर्ण क्रिस्टलीय पदार्थ की एंट्रॉफी एंट्रॉफी सदैव सून होती है एंट्रॉफी सदा

सोने होती है शून्य होती है ठीक है तू जीरो केल्विन तापमान पर ठीक है ऊष्मागतिकी के तृतीय नियम के अनुसार क्या कहा गया दोस्तों कोई भी अगर पदार्थ पूरी तरीके से एक पूर्ण क्रिस्टलीय पदार्थ है ठीक है तो जीरो केल्विन तापमान पर इस पदार्थ इस पदार्थ की एंट्रॉफी क्या होगी दोस्तों सदैव शुन्य होगी सदैव शुन्य होगी इस पदार्थ की एंट्रॉफी ठीक है क्योंकि एंट्रॉफी क्या होता है व्यवस्था के मान को व्यक्त करती है दोस्तों एंड ट्रॉफी किस को व्यक्त करती है अव्यवस्था के मान को व्यक्त करती अब जीरो केल्विन तापमान 2 से इतना कम तापमान है सबसे कम तापमान है जीरो केल्विन तापमान ठीक है इससे कम तापमान नहीं हो सकता है तो जीरो केल्विन तापमान पर दोस्तों क्या होता है प्रत्येक प्रकार की जितनी भी अव्यवस्था आएं हैं कि

पिटल में वह समाप्त हो जाती हैं जीरो केल्विन तापमान पर किसी प्रकार की अव्यवस्था उपस्थित नहीं रह सकती है और झुकिया व्यवस्था का मानसून हो गया तो इसका मतलब उसका पर एंट्रॉफी का मान भी सुनोगे तो की एंट्रॉफी जो है अव्यवस्था की माप होती है ठीक है यह हमारे प्रश्न का उत्तर है आशा करता हूं आपको समझ में आया होगा धन्यवाद

ऊष्मागतिकी का तृतीय नियम

ऊष्मागतिकी का तृतीय नियम किस शास्त्र से संबंधित है - ooshmaagatikee ka trteey niyam kis shaastr se sambandhit hai

ऊष्मागतिकी का तृतीय नियम कभी-कभी इस प्रकार से कहा जाता है: शून्य केल्विन ताप पर निकाय अपनी न्यूनतम सम्भव ऊर्जा वाली अवस्था में होगा, तथा ऊष्मागतिकी के तृतीय नियम का यह कथन तभी सत्य होगा यदि विशुद्ध क्रिस्टल (perfect crystal) की केवल एक ही न्यूनतम ऊर्जा वाली अवस्था हो। एण्ट्रॉपी का सम्बन्ध सभी सम्भव सूक्ष्म अवस्थाओं की संख्या से है। चूंकि शून्य केल्विन ताप पर केवल एक सूक्ष्म-अवस्था उपलब्ध है, अतः एण्ट्रॉपी अवश्य ही शून्य होगी। नर्स्ट-साइमन (Nernst-Simon) का कथन इस प्रकार है: .

7 संबंधों: ऊष्मा इंजन, ऊष्मागतिकी का द्वितीय नियम, ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम, ऊष्मागतिकी का शून्यवाँ नियम, ऊष्मागतिकी का इतिहास, एन्ट्रॉपी, परम शून्य।

ऊष्मा इंजन

एक ऊष्मा इंजन का चित्र: यह इंजन TH ताप वाले गरम स्रोत से QH ऊर्जा लेती है और इसमें से W ऊर्जा यांत्रिक ऊर्जा के रूप में बदलकर शेष QC ऊष्मा को TC ताप वाले सिंक को स्थानातरित कर देती है। जो इंजन है ऊष्मा को यांत्रिक ऊर्जा में बदलते हैं उन्हें ऊष्मा इंजन (थर्मल इंजन) कहते हैं। ये इंजन ऊष्मा के उच्च ताप से निम्न ताप पर प्रवाहित होने के गुण का उपयोग करके बनाए जाते हैं। इसके विपरीत वे इंजन जो यांत्रिक ऊर्जा की सहायता से ऊष्मा को अधिक ताप से कम ताप पर ले जाते हैं उन्हें 'ऊष्मा पम्प' या 'प्रशीतक' (रेफ्रिजिरेटर) कहते हैं। उच्च ताप से निम्न ताप पर ऊष्मा किसी तरल के सहारे स्थानान्तरित होती है। ऊष्मा मशीनें प्रायः किसी ऊष्मा चक्र में काम करती हैं। इसीलिए इन्हें सम्बन्धित ऊष्मागतिकीय चक्र (थर्मोडाइनेमिक सायकिल) के नाम से जाता जाता है। उदाहरण के लिए कर्ना चक्र पर काम करने वाला ऊष्मा इंजन 'कर्ना इंजन' कहलाता है। ऊष्मा इंजन अन्य इंजनों से इस मामले में भिन्न हैं कि इनकी अधिकतम दक्षता कर्ना के प्रमेय से निर्धारित होती है जो अपेक्षाकृत बहुत कम होती है। किन्तु फिर भी ऊष्मा इंजन सर्वाधिक प्रचलित इंजन है क्योंकि लगभग सभी प्रकार की उर्जाओं को ऊष्मा में बहुत आसानी से बदला जा सकता है और ऊष्मा इंजन द्वारा इस ऊष्मा को यांत्रिक ऊर्जा में। ऊष्मा इंजन और ऊर्जा का संतुलन .

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ऊष्मागतिकी का द्वितीय नियम

ऊष्मागतिकी का द्वितीय सिद्धान्त प्राकृतिक प्रक्रमों के अनुत्क्रमणीयता को प्रतिपादित करता है। यह कई प्रकार से कहा जा सकता है। आचार्यों ने इस नियम के अनेक रूप दिए हैं जो मूलत: एक ही हैं। यह ऊष्मागतिक निकायों में 'एण्ट्रोपी' (Entropy) नामक भौतिक राशि के अस्तित्व को इंगित करता है। .

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ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम

उष्मागतिकी के शून्यवें सिद्धांत में ताप की भावना का समावेश होता है। यांत्रिकी में, विद्युत् या चुंबक विज्ञान में अथवा पारमाण्वीय विज्ञान में, ताप की भावना की कोई आवश्यकता नहीं प्रतीत होती। उष्मागतिकी के प्रथम सिद्धांत द्वारा ऊष्मा की भावना का समावेश होता है। जूल के प्रयोग द्वारा यह सिद्ध होता है कि किसी भी पिंड को (चाहे वह ठोस हो या द्रव या गैस) यदि स्थिरोष्म दीवारों से घेरकर रखें तो उस पिंड को एक निश्चित प्रारंभिक अवस्था से एक निश्चित अंतिम अवस्था तक पहुँचाने के लिए हमें सर्वदा एक निश्चित मात्रा में कार्य करना पड़ता है। कार्य की मात्रा पिंड की प्रारंभिक तथा अंतिम अवस्थाओं पर ही निर्भर रहती है, इस बात पर नहीं कि यह कार्य कैसे किया जाता है। यदि प्रारंभिक अवस्था में दाब तथा आयतन के मान p0 तथा V0 हैं तो कार्य की मात्रा अंतिम अवस्था की दाब तथा आयतन पर निर्भर रहती है, अर्थात् कार्य की मात्रा p तथा V का एक फलन है। यदि कार्य की मात्रा का W हैं तो हम लिख सकते हैं कि W .

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ऊष्मागतिकी का शून्यवाँ नियम

ऊष्मागतिकी के अध्ययन में एक नई भावना का समावेश होता है, वह ताप की भावना है। यदि किसी पिंड (बॉडी) के गुणधर्म इस बात पर निर्भर न रहें कि वह कितना गरम अथवा ठंडा है तो उसका पूरा परिचय पाने के लिए उसके आयतन अथवा उसके घनत्व के ज्ञान की ही आवश्यकता होती है। जैसे यदि हम कोई द्रव लें तो यांत्रिकी में यह माना जाता है कि उसके ऊपर दाब बढ़ाने पर उसका आयतन कम होगा। दाब का मान निश्चित करते ही आयतन का मान भी निश्चित हो जाता है। इस तरह इन दो चर राशियों में से एक स्वतंत्र होती है और दूसरी आश्रित अथवा परंतत्र। परंतु प्रत्यक्ष अनुभव से हम जानते हैं कि आयतन यदि स्थिर हो तो भी गरम या ठंडा करके दाब को बदला जा सकता है। इस प्रकार दाब तथा आयतन दोनों ही स्वतंत्र चर राशियाँ हैं। आगे चलकर आवश्यकतानुसार हम अन्य चर राशियों का भी समावेश करेंगे। और आगे बढ़ने के पहले हम ऐसी दीवारों की कल्पना करेंगे जो विभिन्न द्रवों को एक दूसरे से अलग करती हैं। ये दीवारें इतनी सूक्ष्म होंगी कि इन द्रवों की पारस्परिक अंतरक्रिया को निश्चित करने के अतिरिक्त उन द्रवों के गुणधर्म के ऊपर उनका अन्य कोई प्रभाव नहीं होगा। द्रव इन दीवारों के एक ओर से दूसरी ओर न जा सकेगा। हम यह भी कल्पना करेंगे कि ये दीवारें दो तरह की हैं। एक ऐसी दीवारें जिनसे आवृत द्रव में बिना उन दीवारों अथवा उनके किसी भाग को हटाए हम कोई परिवर्तन नहीं कर सकते और उन द्रवों में हम विद्युतीय या चुंबकीय बलों द्वारा परिवर्तन कर सकते हैं क्योंकि ये बल दूर से भी अपना प्रभाव डाल सकते हैं। ऐसी दीवारों को हम "स्थिरोष्म" दीवारें कहेंगे। दूसरे प्रकार की दीवारों को हम "उष्मागम्य" (डायाथर्मानस) दीवारें कहेंगे। ये दीवारें ऐसी होंगी कि साम्यावस्था में इनके द्वारा अलग किए गए द्रवों की दाब तथा आयतन के मान स्वेच्छ नहीं होंगे, अर्थात् यदि एक द्रव की दाब एवं आयतन और दूसरे द्रव की दाब निश्चित कर दी जाए तो दूसरे द्रव का आयतन भी निश्चित हो जाएगा। ऐसी अवस्था में पहले द्रव की दाब एवं आयतन P1 और V1 तथा दूसरे द्रव की दाब एवं आयतन P2 और V2 में एक संबंध होगा जिसे हम निम्नांकित समीकरण द्वारा प्रकट कर सकते हैं:; F (P1, V1, P2, V2) .

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ऊष्मागतिकी का इतिहास

सावरी का इंजन - सन १६९८ में थॉमस सावरी द्वारा निर्मित वाणिज्यिक रूप से उपयोगी विश्व का प्रथम वाष्प इंजन ऊष्मागतिकी, भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान और व्यापक रूप में विज्ञान का ही महत्वपूर्ण और मूलभूत विषय रहा है। ऊष्मागतिकी विज्ञान की वह शाखा है जिसमें यान्त्रिक कार्य तथा ऊष्मा में परस्पर सम्बन्ध का वर्णन किया जाता है, यह प्रमुख रूप से यान्त्रिक कार्य तथा ऊष्मा के परस्पर रुपान्तरण से सम्बन्धित है। ऊष्मागतिकी के मुख्यतः दो नियम है-.

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एन्ट्रॉपी

एन्ट्रॉपी। ऊष्मागतिकी में, एन्ट्रॉपी एक भौतिक राशि है जो सीधे मापी नहीं जाती बल्कि गणना (कैल्कुलेशन) द्वारा इसका मान निकाला जाता है। इसका प्रतीक S है। किसी निकाय की कुल ऊर्जा का वह भाग जिसे उपयोग में नहीं लाया जा सकता (दूसरे शब्दों में, कार्य में नहीं बदला जा सकता), उस निकाय की एन्ट्रॉपी कहलाती है। एण्ट्रॉपी की गणितीय परिभाषा नीचे दी गयी है। जर्मनी के गणितज्ञ एवं भौतिकशास्त्री रुडॉल्फ क्लासिअस ने १८५० के दशक में एन्ट्रॉपी की संकल्पना दी और उसका यह नाम दिया। १८७७ में लुडविग बोल्ट्जमान ने एन्ट्रॉपी की प्रायिकता पर आधारित परिभाषा दी। .

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परम शून्य

परम ताप न्यूनतम सम्भव ताप हैं तथा इससे कम कोई ताप संभव नही हैं। इस ताप पर गैसों के अणुओं की गति शून्य हो जाती हैं। इसका मान -२७३ डिग्री सेन्टीग्रेड होता हैं। इसे केल्विन में दर्शाते हैं। श्रेणी:तापमान श्रेणी:भौतिकी श्रेणी:भौतिक शब्दावली.

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ऊष्मागतिकी का तृतीय नियम क्या है Hindi?

परम शून्य ताप वाले विशुद्ध क्रिस्टल की एण्ट्रॉपी शून्य होती है। शून्य केल्विन ताप पर निकाय अपनी न्यूनतम सम्भव ऊर्जा वाली अवस्था में होगा, तथा ऊष्मागतिकी के तृतीय नियम का यह कथन तभी सत्य होगा यदि विशुद्ध क्रिस्टल (perfect crystal) की केवल एक ही न्यूनतम ऊर्जा वाली अवस्था हो।

ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम किसका नियम है?

ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम Cp, Cu से बडा़ होता है - जब स्थिर आयतन पर किसी गैस को ऊष्मा दी जाती है तो सम्पूर्ण ऊष्मा उसके ताप बढ़ाने में व्यय होती है। परन्तु जब स्थिर दाब पर किसी गैस को ऊष्मा दी जाती तो उसका कुछ भाग आयतन बढ़ाने में व्यय होता है एवं बाकी भाग उसके ताप वृद्धि में व्यय होता है। अत: Cp, Cu से बडा़ होता है।

ऊष्मागतिकी का शून्य नियम क्या है in Hindi?

यह समीकरण उन द्रवों के तापीय संबंध का द्योतक है। दीवार का उपयोग केवल इतना है कि पदार्थ एक ओर से दूसरी ओर नहीं जा सकता। अनुभव द्वारा हम यह भी जानते हैं कि यदि एक द्रव के साथ अन्य द्रवों की तापीय साम्यावस्था हो तो स्वयं इन द्रवों में आपस में तापीय साम्यावस्था होगी। इसी को उष्मागतिकी का शून्यवाँ सिद्धांत कहते हैं।

ऊष्मागतिकी का दूसरा नियम क्या प्रदर्शित करता है?

ऊष्मागतिकी का द्वितीय सिद्धान्त प्राकृतिक प्रक्रमों के अनुत्क्रमणीयता को प्रतिपादित करता है। यह कई प्रकार से कहा जा सकता है। आचार्यों ने इस नियम के अनेक रूप दिए हैं जो मूलत: एक ही हैं। यह ऊष्मागतिक निकायों में 'एण्ट्रोपी' (Entropy) नामक भौतिक राशि के अस्तित्व को इंगित करता है।