धारा 134 भू राजस्व अधिनियम क्या है? - dhaara 134 bhoo raajasv adhiniyam kya hai?

प्रयागराज:रिपोर्ट मनोज केसरवानी: शंकरगढ़ नगर पंचायत के अन्तर्गत वार्ड नंबर 5 मोटीयानटोला में स्तिथ ज़मीन के सम्बंध में चक्रवती बनाम सुनीता सिंह के वाद में न्यायालय उपजिलाधिकारी बारा - इलाहाबाद द्वारा चक्रवती के पक्ष मे निर्णय देते हुए सुनीता सिंह को बेदखल करने का आदेश पारित कर दिया था। इस आदेश को याचीं सुनीता सिंह द्वारा  उच्चन्यायालय इलाहाबाद में चुनौती दी गई थी, जिसमें उच्चन्यायालय इलाहाबाद द्वारा उपजिलाधिकारी बारा के आदेश को स्टे कर दिया, और मामले को अपने पास सुरक्षित रखते हुए सुनवाई के लिये अगली तिथि नियत कर दी।
उपरोक्त आदेश हाईकोर्ट के अधिवक्ता अभिषेक अंकुर चौरासिया द्वारा सुनीता सिंह के पक्ष में बहस पर माननीय उच्चन्यायालय इलाहाबाद द्वारा पारित किया गया।
डीआरएस न्यूज नेटवर्क

धारा 134 का विवरण

भारतीय दंड संहिता की धारा 134 के अनुसार, जो कोई भारत सरकार की सेना, नौसेना या वायुसेना के अधिकारी, सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिक द्वारा किसी वरिष्ठ अधिकारी पर, जब कि वह अधिकारी अपने पद-निष्पादन में हो, हमले का दुष्प्रेरण जिसके परिणामस्वरूप हमला किया जाए, तो उसे किसी एक अवधि के लिए कारावास जिसे सात वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है से दण्डित किया जाएगा, और साथ ही वह आर्थिक दण्ड के लिए भी उत्तरदायी होगा।

  लागू अपराध
हमले का दुष्प्रेरण जिसके परिणामस्वरूप हमला किया जाए ।
सजा - सात वर्ष कारावास और आर्थिक दण्ड।
यह एक गैर-जमानती, संज्ञेय अपराध है और प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय है।

यह अपराध समझौता करने योग्य नहीं है।

कब्जे के मामले में हमले की लगा दी धारा

जागरण संवाददाता, मैनपुरी : इसे पुलिस की लापरवाही कहें या फिर नासमझी। पट्टेदार की जमीन पर दोबारा कब्ज

जागरण संवाददाता, मैनपुरी : इसे पुलिस की लापरवाही कहें या फिर नासमझी। पट्टेदार की जमीन पर दोबारा कब्जा कर लिया। कब्जेदारों के खिलाफ कार्रवाई की शिकायत की गई तो पुलिस यही नहीं समझ पाई कि मुकदमा किस धारा में दर्ज किया जाए। कब्जे के मामले में पुलिस ने यहां हमला करने की रिपोर्ट दर्ज कर ली। खुद ही हमले की रिपोर्ट दर्ज करने वाली पुलिस ने जांच की तो हमले के सुबूत ही नहीं मिले। पुलिस ने फाइनल रिपोर्ट लगा, फाइल ही बंद कर दी। अब पीड़ित पुलिस की इस लापरवाही को लेकर दर-दर भटक रहा है।

मामला शहर कोतवाली के औड़ेन्य पड़रिया के मजरा बिछिया का है। यहां रहने वाले सुभाष ¨सह को वर्ष 2013 में भूमि प्रबंधन समिति ने चार बीघा जमीन का पट्टा किया था। कुछ दिन बाद ही दबंगों ने उसकी जमीन पर कब्जा कर लिया। सुभाष ¨सह ने अधिकारियों से मामले में शिकायत की। राजस्वकर्मियों ने मौके पर पहुंचकर नापतौल की। पुलिस की मदद से 22 सितंबर 2014 को फिर से कब्जा करा दिया। एक दखलनामा भी पीड़ित पट्टेदार को दिया गया। पट्टेदार किसान पट्टे पर मिली भूमि पर एक फसल ही उगा पाया था कि दबंगों ने फिर से कब्जा कर लिया। सुभाष ने फिर से अधिकारियों की शरण ली। एसडीएम के आदेश पर राजस्व कर्मियों व पुलिस ने 26 फरवरी 2016 को फिर से दबंगों को बेदखल कर पट्टे की जमीन पर पट्टेदार सुभाष ¨सह को कब्जा दिला दिया। यहां से पुलिस व राजस्व टीम के जाते ही दबंगों ने फिर से जमीन पर कब्जा कर लिया। सुभाष फिर एसडीएम के पास पहुंचे। एसडीएम ने तहसीलदार को मामले की जांच कर रिपोर्ट दर्ज कराने का आदेश दिया। तहसीलदार ने जांच के बाद पट्टेदार की तहरीर को अपने पत्र सहित रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए कोतवाली पुलिस मामला दिया। पुलिस ने 20 अप्रैल 2016 को घटना की रिपोर्ट धारा 352 आइपीसी के तहत दर्ज की। ये धारा किसी पर हमला करने से संबंधित है। छह माह तक मुकदमे की जांच चली। अक्टूबर 2016 में जांच के बाद मामले में हमला करने के साक्ष्य नहीं मिले। इस पर विवेचक ने अदालत में फाइनल रिपोर्ट लगा दी। सीओ सिटी राजेश चौधरी का कहना है कि मामला मेरी जानकारी में नहीं है, जानकारी कर अग्रिम कार्रवाई की जाएगी।

राजस्व संहिता के तहत हो कार्रवाई

पट्टेदार की जमीन पर फिर से कब्जा करने के मामले में आइपीसी के प्रावधान लागू नहीं होते हैं। इसके लिए 11 फरवरी 2016 से पूर्व जमींदारी विनाश अधिनियम की धारा 198ए(2) के तहत एफआइआर दर्ज कर अवैध कब्जेदार को दंडित किए जाने की कार्रवाई की जानी थी। 11 फरवरी 2016 को जमींदारी विनाश अधिनियम को शासन द्वारा समाप्त कर दिया गया। इसकी जगह उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता लागू की गई। राजस्व मामलों के जानकार अधिवक्ता अवनीश जौहरी बताते हैं कि ये मामला 20 फरवरी 2016 के बाद का है। इसलिए इसमें उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता की धारा 65(2) के तहत रिपोर्ट दर्ज की जानी चाहिए थी। पुलिस द्वारा धारा 352 आइपीसी के तहत कार्रवाई की गई। ये कार्रवाई हमले की घटना में की जानी चाहिए। पुलिस द्वारा कानून का सही प्रयोग नहीं किया गया है।

Edited By: Jagran

प्रशासन की चौखट पर न्याय मुश्किल

-आरटीआई से पता चली हकीकत, राजधानी में छह हजार से अधिक राजस्व वाद लंबित

-तहसीलदार बीकेटी के कोर्ट में सर्वाधिकमुकदमे, 13 सौ प्रकरण एक साल से ज्यादा पुराने

जागरण संवाददाता

लखनऊ, 10 अप्रैल : जमीन पर दाखिल खारिज कराना है, कोई भूमि पर गलत कब्जे से परेशान है, पैमाइश नहीं हो रही। फरियादी आते हैं और राजस्व न्यायालयों के बाहर चस्पा कागज पर अंकित अगली तारीख नोट कर लौट जाते हैं। यह है प्रशासन के न्यायालयों का हाल। यहां भूमि से जुड़े छह हजार से ज्यादा मुकदमें लंबित हैं। इनमें करीब 13 सौ तो साल भर से ज्यादा समय से निस्तारण की बाट जोह रहे हैं।

'सूचना का अधिकार अधिनियम' के तहत मांगी गई जानकारी से पता चलता है कि मार्च माह के अंत तक जिला प्रशासनिक अधिकारियों के न्यायालयों में कुल मिलाकर 6904 मुकदमे लंबित चल रहे हैं। इनमें से करीब तीस फीसदी 1964 छह माह और 1293 एक साल से ज्यादा पुराने हैं। राजस्व अधिनियम के तहत जिले में भूमि संबंधी वादों के निस्तारण के लिए तीन स्तरीय ढांचे की व्यवस्था की गई है। नायब तहसीलदार 'भूराजस्व अधिनियम-1901' की धारा 134 के तहत दाखिल खारिज के प्रकरणों की सुनवाई करता है। तहसीलदार उक्त प्रकरण के अलावा 'जमींदारी उन्मूलन एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम-1951' की धारा 154 के तहत भी भूमि विवादों का निस्तारण करता है। इसके बाद उपजिलाधिकारी (एसडीएम) भूराजस्व अधिनियम, स्टांप एक्ट, दंड प्रक्रिया संहिता की सुसंगत धाराओं के तहत सुनवाई करते हैं। इसके बाद जिलाधिकारी और अपर जिलाधिकारी का अपीलीय न्यायालय है। एक अधिकारी बताते हैं कि प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा नियमित मुकदमों का निस्तारण न किए जाने से लंबित मुकदमों की संख्या बढ़ती जा रही है। रही सही कसर आए दिन होने वाली वकीलों की हड़ताल ने पूरी कर दी है।

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नई व्यवस्था से भी राहत नहीं

मुकदमों की लगातार बढ़ती संख्या से निपटने के लिए प्रशासन ने फरवरी माह में डिप्टी कलेक्टरों को भी तहसील से जुड़े मुकदमें सुनने का अधिकार दिया था। इसके बाद मुख्यमंत्री का निरीक्षण, रजिस्ट्री कर्मचारियों के साथ कलेक्ट्रेट कर्मियों की हड़ताल और वकीलों के कार्य बहिष्कार के चलते यह व्यवस्था फिलहाल कोई प्रभाव नहीं छोड़ पाई है।

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'हर माह मासिक बैठक आयोजित कर समीक्षा की जाती है। संबंधित पीठासीन अधिकारियों को लंबित वादों के त्वरित एवं गुणात्मक निस्तारण के लिए निर्देशित किया गया है।'-राकेश कुमार सिंह, अपर जिलाधिकारी प्रशासन

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राजस्व संहिता की धारा 134 क्या है?

[ 1 ] धारा 134 : आदेश के तामील या अधिसूचना (1) आदेश की तामील उस व्यक्ति पर, जिसके विरूद्ध वह किया गया है, यदि साध्य हो तो उस रीति से की जाएगी जो समन की तामील के लिए इसमें उपबन्धित है ।

राजस्व संहिता की धारा 128 क्या है?

2/ संदर्भित अधिसूचना द्वारा प्रदेश की सभी ग्रामसभाओं को मध्यप्रदेश भू-राजस्व संहिता, 1959 की धारा 128 की उपधारा (2) की तहसीलदार की शक्तियां सौंपी गयी हैं, जिसके अनुसार ग्रामसभा सीमा चिन्हों को क्षतिग्रस्त होने पर इनकी मरम्मत करा सकेगी और जो भू-धारक ऐसे सीमा चिन्ह के रख-रखाव के लिए उत्तरदायी है उससे मरम्मत का खर्चा तथा ...

भू राजस्व अधिनियम की धारा 34 क्या है?

कः-क्या राजस्व संहिता-2006 की धारा-34 अथवा भू-राजस्व अधिनियम-1901 की धारा- 34 के अंतर्गत बैनामे के उपरांत नामांतरण वाद दायर करने हेतु कोई समय-सीमा निर्धारित है तथा क्या मियाद अधिनियम 1963 के प्राविधान राजस्व भूमियों के नामांतरण पर लागू होंगे तथा यदि हाॅ, तो इसके अंतर्गत कितने पुराने अभिलेख/बैनामा/वसीयत के आधार पर ...

भू राजस्व संहिता की धारा 144 क्या है?

धारा 144 के मुताबिक 4 से अधिक लोगों की सभा को प्रबंधक करती है . आपको अपने पास के न्यायालय में जाकर एक अच्छे प्रॉपर्टी के वकील से संपर्क करना चाहिए और उनकी सहायता से स्वामित्व का हस्तांतरण करवाना चाहिए जिसके उपरांत जो संपत्ति का बंटवारा हुआ है वह उनके नाम पर ही हो जाएगा जिनके नाम पर अब वह संपत्ति आई है .