दुनिया में इस्लाम क्यों बढ़ रहा है - duniya mein islaam kyon badh raha hai

अमेरिका के थिंक टैंक PEW रिसर्च सेंटर ने कहा है कि वर्ष 2070 तक दुनिया में सबसे अधिक आबादी मुसलमानों की होगी. रिसर्च सेंटर ने बताया है कि साल 2010 से 2050 के बीच मुस्लिमों की आबादी 73 प्रतिशत तक बढ़ेगी, जबकि ईसाई 35 प्रतिशत बढ़ेंगे.

रिपोर्ट के अनुसार इस समयकाल में दुनिया की आबादी करीबन 37 प्रतिशत तक बढ़ जाएगी. इसमें यह भी कहा गया है कि अगर इसी रफ्तार से मुस्लिमों की जनसंख्‍या बढ़ती है तो 2070 तक इस दुनिया में सबसे अधिक आबादी मुस्लिमों की हो जाएगी.

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भारत में होंगे सबसे ज्‍यादा मुस्लिम
इस समय इंडोनेशिया को सबसे बड़ा मुस्लिम आबादी वाला देश बताया गया है पर प्यू रिसर्च सेंटर ने ये कहा है कि साल 2050 तक भारत में सबसे अधिक मुस्लिम होंगे. भारत में इनकी अाबादी करीबन 30 करोड़ हो जाएगी.

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क्‍यों बढ़ रहे मुस्लिम
प्यू रिसर्च सेंटर की रिपोर्ट में कहा गया है कि मुसलमानों की आबादी बढ़ने के दो कारण हैं. पहला, मुसलमानों की जनसंख्या वृद्धि दर बाकी धर्मों से ज्यादा है. रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक स्तर पर मुस्लिम महिला के औसतन 3.1 बच्चे होते हैं जबकि बाकी धर्मों का ये औसत 2.3 है. दूसरा कारण है उनकी युवा आबादी. युवा आबादी का मतलब है मुसलमानों की बड़ी आबादी या तो बच्चे पैदा कर रही है या भविष्य में करेगी.

आधिकारिक तौर पर अरब जगत के सभी देश मुस्लिम बहुल हैं. लेबनान में मुसलमानों की आबादी 60 फीसदी है तो वहीं जॉर्डन और सऊदी अरब में करीब 100 फीसदी. इन सभी देशों में लोगों की धार्मिक जिंदगी में शीर्ष धार्मिक सत्ताओं, सरकारी विभागों और सरकारों का अहम रोल रहता है. वे अक्सर मस्जिदों, मीडिया और स्कूली पाठ्यक्रम को नियंत्रित करते हैं.

लेकिन हाल के समय में मध्य पूर्व और ईरान में कराए गए बड़े और विस्तृत सर्वे एक नई कहानी कहते हैं: ये सभी सर्वे दिखाते हैं कि इन देशों में आबादी का बड़ा हिस्सा धर्मनिरपेक्षता की तरफ बढ़ रहा है और धार्मिक राजनीतिक संस्थाओं में सुधारों की मांग तेज हो रही है.

Goldener Halbmond Minarett Zentralmoschee in Kölnअरब जगत में धर्मनिरेपक्षता की तरफ बढ़ता रुझानतस्वीर: picture-alliance/dpa/O. Berg

धर्म से दूर जाता लेबनान

अरब बैरोमीटर मध्य पूर्व के सबसे बड़े सर्वेकर्ताओं में एक है. यह अमेरिका की प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी और मिशिगन यूनिवर्सिटी का रिसर्च नेटवर्क है. अरब बैरोमीटर ने अपने सर्वे के लिए लेबनान में 25,000 इंटरव्यू किए. नतीजे बताते हैं, "एक दशक से ज्यादा समय के भीतर धर्म के प्रति निजी आस्था में करीब 43 फीसदी कमी आई है. संकेत मिल रहे हैं कि एक तिहाई से भी कम आबादी ही अब खुद को धार्मिक इंसान समझती है."

लेबनान की एक महिला ने अपने अनुभव डीडब्ल्यू से साझा करते हुए कहा, "मैं बहुत ही धार्मिक परिवार से आती हूं. जब मैं 12 साल की थी तो माता पिता ने मुझे बुर्का पहनने के लिए मजबूर किया." अब यह युवती 27 साल की है. डर की वजह से नाम छुपाने वाली इस महिला ने आगे कहा, "वे मुझे लगातार डराते थे कि अगर मैंने बुर्का हटाया तो मुझे नर्क में जलाया जाएगा."

यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान इस युवती की दोस्ती कुछ ऐसे छात्रों से हुई जो नास्तिक थे, "मैं धीरे धीरे उनकी सोच से प्रभावित होने लगी, एक दिन यूनिवर्सिटी जाने से पहले मैंने अपना बुर्का हटाकर घर से बाहर निकलने का फैसला किया." फैसले का असर लाजिमी था, "सबसे मुश्किल था मां बाप का सामना करना. दिल की गहराई में मुझे भी इस बात पर शर्म आ रही थी कि मैंने अपने माता पिता के सम्मान को ठेस पहुंचाई है."

Symbolbild: Frauen in Saudi Arabienआस्था बनाम संस्था की बहस में इस्लामतस्वीर: picture-alliance/KFS

इसके बावजूद लेबनान में आधिकारिक रूप से धर्म के बिना रहना संभव नहीं है. देश के सिविल रजिस्टर में हर लेबनानी नागरिक की धार्मिक पहचान दर्ज की जाती है. रजिस्टर में कुल 18 श्रेणियां हैं, लेकिन इसमें "गैर धार्मिक" या नास्तिक जैसी कोई कैटेगरी नहीं है.

ईरान में भी आस्था की बदलती बयार

ग्रुप फॉर एनालाइजिंग एंड मेजरिंग एटीट्यूड्स इन ईरान (गामान) ने 50,000 लोगों को इंटरव्यू किया. इस सर्वे के नतीजे कहते हैं कि ईरान में 47 फीसदी लोग "मजहबी से गैर मजहबी" हो चुके हैं. नीदरलैंड्स की उटरेष्ट यूनिवर्सिटी में धार्मिक शोध विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर पूयान तमिनी सर्वे के सह लेखक हैं. डीडब्ल्यू से बातचीत में उन्होंने कहा, "ईरान का समाज एक बड़े व्यापक बदलाव से गुजर चुका है, वहां सारक्षता दर जबरदस्त तेजी से बढ़ी है, देश व्यापक शहरीकरण का अनुभव कर चुका है, आर्थिक बदलावों ने पारंपरिक पारिवारिक ढांचे पर असर डाला है, इंटरनेट की पहुंच यूरोपीय संघ जितनी रफ्तार से बढ़ी है और प्रजनन की दर गिर चुकी है."

ईरान में सर्वे में हिस्सा लेने वाले 99.5 फीसदी लोग शिया थे. उनमें से 80 फीसदी ने कहा कि वे ईश्वर पर विश्वास करते हैं. लेकिन खुद को शिया मुसलमान कहने वालों की संख्या सिर्फ 32.2 फीसदी थी. नौ फीसदी ने खुद को नास्तिक बताया. इन नतीजों का विश्लेषण करते हुए तमिनी कहते हैं, "आस्था और विश्वास के मामले में हम बढ़ती धर्मनिरपेक्षता और विविधता देख रहे हैं." तमिनी के अनुसार सबसे निर्णायक तत्व है, "शासन और धर्म का मिश्रण, इसी की वजह से ईश्वर पर यकीन रखने के बावजूद धार्मिक संस्थानों से ज्यादातर आबादी का मोहभंग हुआ है."

कुवैत की एक महिला ने सुरक्षा कारणों के कारण डीडब्ल्यू से नाम न छापने की गुजारिश की और कहा कि वह एक धर्म के रूप में इस्लाम और एक सिस्टम के रूप में इस्लाम, इन दोनों में फर्क करती हैं, "एक टीनएजर होने के नाते मैं कुरान में सरकारी नियम कायदों का सबूत नहीं खोज पाती हूं." 20 साल पुरानी यादों को ताजा करते हुए वह बताती हैं कि किस तरह आज इस्लाम के प्रति मुसलमानों की भावना बदल चुकी है, "इस्लाम को एक सिस्टम के तौर पर खारिज करने का मतलब यह नहीं है कि हम इस्लाम को धर्म के तौर पर भी खारिज कर रहे हैं."

Iran Ashura Fest Religion Islam बड़े बदलाव से गुजर रहा है खमेनई का ईरानतस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Nikoubazi

स्वभाव बदलने से पैदा होने वाली चुनौतियां

धर्म को आस्था बनाम एक सिस्टम के रूप में तौलने पर सुधारों की मांग बुलंद होती है. सिंगापुर की नानयांग टेक्निकल यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्ट्डीज के सीनियर फेलो जेम्स डॉरसे कहते हैं, "यह ट्रेंड ईरान और उसके प्रतिद्वंद्वियों सऊदी अरब, तुर्की और संयुक्त अरब अमीरात की कोशिशों पर चोट पहुंचा रहा है. ये सब धार्मिक सॉफ्ट पावर के जरिए मुस्लिम जगत का नेतृत्व करना चाहते हैं."

डोरसे धार्मिक मामलों के विशेषज्ञ हैं. वह दो बड़े विरोधाभासों की तरफ इशारा करते हैं. एक तरफ संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) अल्कोहल पीने पर प्रतिबंध हटा चुका है और अविवाहित जोड़ों को साथ में रहने की अनुमति दे चुका है. वहीं दूसरी तरफ सऊदी अरब में आज भी नास्तिक विचारों को एक तरह का आतंकवाद माना जाता है.

BdTD Saudi Arabien | Hadsch-Pilgerfahrt inmitten der COVID-19-Pandemieआम मुसलमान कैसे जिए, इसे लेकर कई देशों में मतभेदतस्वीर: Reuters/Saudi Ministry of Media

डोरसे सऊदी ब्लॉगर रईफ बदावी का उदाहरण देते हैं. बदावी को धर्म त्यागने का दोषी करार दिया गया. उन पर इस्लाम की तौहीन करने का दोष लगाया गया. बदावी को 10 साल की जेल और 1,000 कोड़ों की सजा दी गई. बदावी ने सिर्फ यही पूछा था कि क्यों सऊदी नागरिकों को इस्लामिक तौर तरीकों को मानने के लिए बाध्य किया जाता है. उन्होंने जोर देते हुए कहा कि धर्म के पास जिंदगी के सभी सवालों का जवाब नहीं है.

इस्लाम के तेजी से फैलने का कारण क्या है?

पैगम्बर मुहम्मद की उपलब्धियों से प्रभावित होकर, बहुत से कबीलों, अधिकांशतः बद्दुओं, ने अपना धर्म बदलकर इस्लाम को अपना लिया और उस समाज में शामिल हो गए। पैगम्बर मुहम्मद द्वारा संरचित गठजोड़ का फैलाव समूचे अरब देश में हो गया ।

कौन सा धर्म तेजी से बढ़ रहा है?

वहीं, क्रिश्चियन्स की आबादी इसी दौरान 35% तक बढ़ेगी, जो दूसरा सबसे तेजी से बढ़ने वाला रिलिजन है। हिंदू 34% तक बढ़ेंगे और वे दुनिया में तीसरी सबसे ज्यादा आबादी वाले लोग हो जाएंगे। बता दें कि फिलहाल भारत दुनिया में मुस्लिम आबादी के मामले में इंडोनेशिया के बाद दूसरे नंबर पर आता है।

दुनिया का पहला मुसलमान कौन था?

इस्लाम के पहले नबी, मुसलमानों के अनुसार, पहला आदमी, हजरत एडम (अरबी में, आदम) और बाइबल में उल्लेखित थे, उन्हें भी मुसलमानों को पैग़म्बर के रूप में माना जाता है, हजरत मुहम्मद साहब को इस्लाम के अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण पैग़म्बर के रूप में माना जाता है।

भारत में सबसे तेजी से फैलने वाला धर्म कौन सा है?

भारत की कुल आबादी में 79.8% हिंदू और 14.2% मुस्लिम हैं. इनके बाद ईसाई 2.78 करोड़ (2.3%) और सिख 2.08 करोड़ (1.7%) हैं. बाकी बौद्ध और जैन धर्म को मानने वालों की आबादी 1% से भी कम है. - 2001 की तुलना में 2011 में भारत की आबादी 17.7% तक बढ़ गई थी.