प्रात: काल नहा धो कर पूर्व या ऊतर दिशा मुख करके सर्वप्रथम मंत्र सिद्ध शिव यंत्र को किसी साफ प्लेट में स्थापित करें यंत्र कि पूजा धूप दीप लगा कर करें. Show
विनियोग-न्यास-भगवान् शिव का ध्यान करने के बाद ही इस मंत्र का मंत्र जाप करे | विनियोगःॐ अस्य मंत्रस्य वामदेवऋषि, पंक्ति छंद, ईशानदेवता, ॐ बीजाय, नमः शक्तये, शिवायेति कीलकाय, सदाशिव प्रसन्नार्थे जपे विनियोगः |ऋष्यादिन्यासॐ वामदेवर्षये नमः शिरसि | बोलकर अपने सर को स्पर्श करे | पञ्चाङ्गन्यासॐ ॐ अंगुष्ठाभ्यां नमः | ॐ नं तर्जनीभ्यां नमः | ॐ मं मध्यमाभ्यां नमः | ॐ शिं अनामिकाभ्यां नमः | ॐ यं करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः | हृदयादिन्यासॐ ॐ हृदयाय नमः | ॐ नं शिरसे स्वाहा | ॐ मं शिखायै वौषट | ॐ वां नेत्रत्रयाय वौषट | ॐ यं अस्त्राय फट | शिव ध्यानभगवान् शिव के आगे नतमस्तक होकर ध्यान करे दोनों आँखे बांध करे | ॐ ध्यायेन्नित्यं महेशं रजतगिरिनिभं चारुचंद्रा वतंसं कौन सी माला का प्रयोग करे ? इस मंत्र जाप के लिए के मंत्र सिद्ध शिव यंत्र के सामने रुद्राक्ष माला का प्रयोग करे| मंत्र :“ॐ नमः शिवाय “कितने मंत्र जाप करने चाहिये ? कब करना चाहिए ? ॐ नमः शिवाय || शिव के अन्य प्रिय मंत्र 1- ॐ नमः शिवाय। 2 नमो नीलकण्ठाय। 3 ॐ पार्वतीपतये नमः। 4 ॐ ह्रीं ह्रौं नमः शिवाय। Shiv Mantra Advertisement महामृत्युजंय शिवाश्री महामृत्युञ्जय मंत्र विधान मृत्युंजय मंत्र सभी प्रकार की विपत्तियों और संकटो का विनाश करनेवाला अमोघ मंत्र है महामृत्युंजय मंत्र विधान। महामृत्युञ्जय मंत्र विधान विनियोगके लिए अपने दाए हाथ में जल पकड़कर विनियोग पढ़े. विनियोगः ॐ अस्य श्रीमृत्युञ्जयमंत्रस्य वसिष्ठऋषिः श्रीमृत्युञ्जय रुद्रो देवता अनुष्टुप छन्दः हौं बीजं जूं शक्तिः सः कीलकं श्रीमृत्युञ्जयप्रीतये मम ( यजमानस्य ) अभीष्ट सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः हाथ का जल किसी पात्र में छोड़ दे. विनियोग के बाद न्यास करे. ऋष्यादिन्यासः वसिष्ठ ऋषये नमः शिरसि बोलकर अपने सिर को स्पर्श करे अनुष्टुप छन्दसे नमः मुखे . बोलकर अपने मुख को स्पर्श करे . श्रीमृत्युञ्जय रुद्रदेवतायै नमो हृदये – बोलकर ह्रदय को स्पर्श करे . हौं बीजाय नमः गुह्ये , बोलकर अपने गुप्त भाग को स्पर्श करे . जूं शक्तये नमः पादयोः बोलकर अपने पैरो को स्पर्श करे . सः कीलकाय नमः सर्वाङ्गेषु बोलकर अपने दोनों हाथो से सिर से पेअर तक दोनों हाथो को घुमाये . करन्यास: ॐ त्र्यंबकं अङ्गुष्ठाभ्यां नमः यजामहे तर्जनीभ्यां नमः सुगंधिं पुष्टिवर्धनं मध्यमाभ्यां नमः उर्वारुकमिव बंधनात अनामिकाभ्यां नमः मृत्योर्मुक्षीय कनिष्ठिकाभ्यां नमः मामृतात करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः हृदयादि न्यास:ॐ त्र्यंबकं हृदयाय नमःयजामहे शिरसे स्वाहा . सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं शिखायै वौषट . उर्वारुकमिव बंधनात कवचाय हुम् . मृत्योर्मुक्षीय नेत्रत्रयाय वौषट . मामृतात अस्त्राय फट . अक्षरन्यासःॐ त्र्यं नमः पूर्वमुखे।ॐ बं मनः पश्चिममुखे। ॐ कं नमः दक्षिणमुखे। ॐ यं नमः उत्तरमुखे। ॐ जां नमः शिरसि। ॐ मं नमः कंठे। ॐ हें नमः मुखे। ॐ सुं नमः नाभौ। ॐ गं नमः ह्रदि। ॐ धिं नमः पृष्ठे। ॐ पुं नमः कुक्षौ। ॐ ष्टिं नमः लिंगे। ॐ वं नमः गुदे। ॐ धं नमःदक्षिणोरुमूले। ॐ नं नमः वामोरुमूले। ॐ उं नमः दक्षिणोरूमध्ये। ॐ वां नमः वामोरुमध्ये। ॐ रुं नमः दक्षिणजानुनि। ॐ मिं नमः दक्षिणजानुवृत्ते। ॐ वं नमः वामजानुवृत्ते। ॐ बं नमः दक्षिणस्तने। ॐ घं नमः वामस्तने। ॐ नां नमः दक्षिणापार्श्वे। ॐ त्यों नमः दक्षिणपादे। ॐ मुं नमः वामपादे। ॐ क्षीं नमः दक्षिण करे। ॐ यं नमः वामकरे। ॐ मां नमः दक्षिणनासायाम। ॐ मृं नमः वामनासायाम। ॐ तां नमः मूर्घ्नि। पदन्यासः ॐ त्र्यम्बकं शिरसि। ॐ यजामहे भ्रुवोः। ॐ सुगंधिं नेत्रयोः। ॐ पुष्टिवर्धनम मुखे। ॐ उर्वारुकं गण्डयोः। ॐ इव ह्रदये। ॐ बंधनात जठरे। ॐ मृत्योः लिंगे। ॐ मुक्षीय ह्रदये। ॐ मां जान्वोः। ॐ अमृतात पादयोः। महामृत्युंजयमंत्रकरन्यास ॐ हौं ॐ जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यंबकं ॐ नमो भगवते रुद्राय शूलपाणये स्वाहा अंगुष्ठाभ्यां नमः। ॐ हौं ॐ जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः यजामहे ॐ नमो भगवते रुद्राय अमृतमूर्तये मांजीवय तर्जनीभ्यां नम ॐ हौं ॐ जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः सुगंधिं पृष्टिवर्धनम ॐ नमो भगवते रुद्राय चन्द्रेशिरसे जटिने स्वाहा मध्यमाभ्यां नमः। ॐ हौं ॐ जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः उर्वारुकमिव बंधनात ॐ नमो भगवते रुद्राय त्रिपुरान्तकाय ह्रां ह्रीं अनामिकाभ्यां नमः। ॐ हौं ॐ जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः मृत्योर्मुक्षीय ॐ नमो भगवते रुद्राय त्रिलोचनाय ऋग्यजुः साम मंत्राय कनिष्ठिकाभ्यां नमः। ॐ हौं ॐ जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः मामृतात ॐ नमो भगवते रुद्राय ॐ अग्नित्रयाय ज्वल ज्वल मां रक्ष रक्ष अघोरास्त्राय करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः। एवं हृदयादि न्यासाः। ध्यानम हस्ताभ्यां कलशद्वयामृतरसैः आप्लावयन्तं शिरःद्वाभ्यां तौ दधतं मृगाक्षवलये द्वाभ्यां वहन्तं परम। अंके न्यस्तकरद्वयामृतघटं कैलासकान्तं शिवं स्वच्छांभोजगतं नवेन्दुमुकुटं देवं त्रिनेत्रं भजे . मृत्युञ्जय मंत्र:शिव माला को दाहिने हाथ में कर जाप प्रारम्भ करेंॐ भूः ॐ भुवः ॐ स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम | उर्व्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात ॐ स्वः ॐ भुवः ॐ भूः ॐ . षट्प्रणव युक्त मृत्युञ्जय मंत्र :ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम , उर्व्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात ॐ स्वः ॐ भुवः ॐ भूः ॐ सः ॐ जूं ॐ हौं ॐ . चतुर्दश ओंकार युक्त महामृत्युञ्जय मंत्र :-ॐ हौं ॐ जूं ॐ सः ॐ भूः ॐ भुवः ॐ स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम , उर्व्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात ॐ स्वः ॐ भुवः ॐ भूः ॐ सः ॐ जूं ॐ हौं ॐ . जो कोई भी मनुष्य अगर उपरोक्त मंत्र में से कोई मंत्र करने में असमर्थ हो तो आनलाइन पूजा हवन करवा सकते हैं या पुराणोक्त मंत्र पुराणोक्त मृत्युंजय मंत्र: ह्रीं मृत्युञ्जय महादेव त्राहिमां शरणागतं | जन्ममृत्यु जराव्याधि पीडितं कर्मबन्धनैः || इस प्रकार से भगवान् महादेव के अनमोल और अमोघ मंत्र की साधना करने से बीमार से बीमार मनुष्य भी स्वस्थ हो जाता है | || श्री महामृत्युञ्जय मंत्र साधना सम्पूर्णं || पशुपतास्त्र साधनापशुपतास्त्र मंत्र साधना एवं पशुपतास्त्र मंत्र साधना एवं सिद्धि ब्रह्मांड में तीन अस्त्र सबसे बड़े हैं। पहला पशुपतास्त्र, दूसरा नारायणास्त्र एवं तीसरा ब्रह्मास्त्र। इन तीनों में से यदि कोई एक भी अस्त्र मनुष्य को सिद्ध हो जाए, तो उसके सभी कष्टों का शमन हो जाता है। उसके समस्त कष्ट समाप्त हो जाते हैं। परंतु इनकी सिद्धि प्राप्त करना सरल नहीं है। यदि आपमें कड़ी साधना करने का साहस एवं धैर्य नहीं है तो ये साधना आपके लिए नहीं है। किसी भी प्रकार की साधना करने हेतु मनुष्य के भीतर साहस एवं धैर्य दोनों की आवश्यकता होती है। सोमवार व्रत कैसे करें, पढ़ें पूजन विधि, एवं फल शास्त्रों के अनुसार यह व्रत सोमवार के दिन किया जाता है। इस दिन भगवान शिव और देवी पार्वती जी की पूजा-अर्चना करने का विधान है। इस व्रत को शिव पूजा के बाद सोमवार व्रत की कथा सुननी आवश्यक है। व्रत करने वाले को दिन में एक बार भोजन करना चाहिए। कैसे करें सोमवार व्रत-पूजन * सोमवार को ब्रह्म मुहूर्त में सोकर उठें। * पूरे घर की सफाई कर स्नानादि से निवृत्त हो जाएं। * गंगा जल या पवित्र जल पूरे घर में छिड़कें। * घर में ही किसी पवित्र स्थान पर भगवान शिव की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। * पूरी पूजन तैयारी के बाद निम्न मंत्र से संकल्प लें – – ‘मम क्षेमस्थैर्यविजयारोग्यैश्वर्याभिवृद्धयर्थं सोमवार व्रतं करिष्ये’ * इसके पश्चात निम्न मंत्र से ध्यान करें – ‘ध्यायेन्नित्यंमहेशं रजतगिरिनिभं चारुचंद्रावतंसं रत्नाकल्पोज्ज्वलांग परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम्। * ध्यान के पश्चात ‘ॐ नमः शिवाय’ से शिवजी का तथा ‘ॐ नमः शिवाय’ से पार्वतीजी का षोडशोपचार पूजन करें। * पूजन के पश्चात व्रत कथा सुनें। * तत्पश्चात आरती कर प्रसाद वितरण करें। * इसके बाद भोजन या फलाहार ग्रहण करें।सोमवार व्रत की पौराणिक कथा सोमवार व्रतकथा- अमरपुर नगर में एक धनी व्यापारी रहता था। दूर-दूर तक उसका व्यापार फैला हुआ था। नगर में उस व्यापारी का सभी लोग मान-सम्मान करते थे। इतना सबकुछ होने पर भी वह व्यापारी अंतर्मन से बहुत दुखी था क्योंकि उस व्यापारी का कोई पुत्र नहीं था। दिन-रात उसे एक ही चिंता सताती रहती थी। उसकी मृत्यु के बाद उसके इतने बड़े व्यापार और धन-संपत्ति को कौन संभालेगा। पुत्र पाने की इच्छा से वह व्यापारी प्रति सोमवार भगवान शिव की व्रत-पूजा किया करता था। सायंकाल को व्यापारी शिव मंदिर में जाकर भगवान शिव के सामने घी का दीपक जलाया करता था। उस व्यापारी की भक्ति देखकर एक दिन पार्वती ने भगवान शिव से कहा- ‘हे प्राणनाथ, यह व्यापारी आपका सच्चा भक्त है। कितने दिनों से यह सोमवार का व्रत और पूजा नियमित कर रहा है। भगवान, आप इस व्यापारी की मनोकामना अवश्य पूर्ण करें।’ भगवान शिव ने मुस्कराते हुए कहा- ‘हे पार्वती! इस संसार में सबको उसके कर्म के अनुसार फल की प्राप्ति होती है। प्राणी जैसा कर्म करते हैं, उन्हें वैसा ही फल प्राप्त होता है।’ इसके बावजूद पार्वती जी नहीं मानीं। उन्होंने आग्रह करते हुए कहा- ‘नहीं प्राणनाथ! आपको इस व्यापारी की इच्छा पूरी करनी ही पड़ेगी। यह आपका अनन्य भक्त है। प्रति सोमवार आपका विधिवत व्रत रखता है और पूजा-अर्चना के बाद आपको भोग लगाकर एक समय भोजन ग्रहण करता है। आपको इसे पुत्र-प्राप्ति का वरदान देना ही होगा।’ पार्वती का इतना आग्रह देखकर भगवान शिव ने कहा- ‘तुम्हारे आग्रह पर मैं इस व्यापारी को पुत्र-प्राप्ति का वरदान देता हूं। लेकिन इसका पुत्र 16 वर्ष से अधिक जीवित नहीं रहेगा।’ उसी रात भगवान शिव ने स्वप्न में उस व्यापारी को दर्शन देकर उसे पुत्र-प्राप्तिभगवान के वरदान से व्यापारी को खुशी तो हुई, लेकिन पुत्र की अल्पायु की चिंता ने उस खुशी को नष्ट कर दिया। व्यापारी पहले की तरह सोमवार का विधिवत व्रत करता रहा। कुछ महीने पश्चात उसके घर अति सुंदर पुत्र उत्पन्न हुआ। पुत्र जन्म से व्यापारी के घर में खुशियां भर गईं। बहुत धूमधाम से पुत्र-जन्म का समारोह मनाया गया। व्यापारी को पुत्र-जन्म की अधिक खुशी नहीं हुई क्योंकि उसे पुत्र की अल्प आयु के रहस्य का पता था। यह रहस्य घर में किसी को नहीं मालूम था। विद्वान ब्राह्मणों ने उस पुत्र का नाम अमर रखा। जब अमर 12 वर्ष का हुआ तो शिक्षा के लिए उसे वाराणसी भेजने का निश्चय हुआ। व्यापारी ने अमर के मामा दीपचंद को बुलाया और कहा कि अमर को शिक्षा प्राप्त करने के लिए वाराणसी छोड़ आओ। अमर अपने मामा के साथ शिक्षा प्राप्त करने के लिए चल दिया। रास्ते में जहाँ भी अमर और दीपचंद रात्रि विश्राम के लिए ठहरते, वहीं यज्ञ करते और ब्राह्मणों को भोजन कराते थे। लंबी यात्रा के बाद अमर और दीपचंद एक नगर में पहुंचे। उस नगर के राजा की कन्या के विवाह की खुशी में पूरे नगर को सजाया गया था। निश्चित समय पर बारात आ गई लेकिन वर का पिता अपने बेटे के एक आंख से काने होने के कारण बहुत चिंतित था। उसे इस बात का भय सता रहा था कि राजा को इस बात का पता चलने पर कहीं वह विवाह से इनकार न कर दे। इससे उसकी बदनामी होगी।वर के पिता ने अमर को देखा तो उसके मस्तिष्क में एक विचार आया। उसने सोचा क्यों न इस लड़के को दूल्हा बनाकर राजकुमारी से विवाह करा दूं। विवाह के बाद इसको धन देकर विदा कर दूंगा और राजकुमारी को अपने नगर में ले जाऊंगा। वर के पिता ने इसी संबंध में अमर और दीपचंद से बात की। दीपचंद ने धन मिलने के लालच में वर के पिता की बात स्वीकार कर ली। अमर को दूल्हे के वस्त्र पहनाकर राजकुमारी चंद्रिका से विवाह करा दिया गया। राजा ने बहुत-सा धन देकर राजकुमारी को विदा किया। अमर जब लौट रहा था तो सच नहीं छिपा सका और उसने राजकुमारी की ओढ़नी पर लिख दिया- ‘राजकुमारी चंद्रिका, तुम्हारा विवाह तो मेरे साथ हुआ था, मैं तो वाराणसी में शिक्षा प्राप्त करने जा रहा हूं। अब तुम्हें जिस नवयुवक की पत्नी बनना पड़ेगा, वह काना है।’जब राजकुमारी ने अपनी ओढ़नी पर लिखा हुआ पढ़ा तो उसने काने लड़के के साथ जाने से इनकार कर दिया। राजा ने सब बातें जानकर राजकुमारी को महल में रख लिया। उधर अमर अपने मामा दीपचंद के साथ वाराणसी पहुं च गया। अमर ने गुरुकुल में पढ़ना शुरू कर दिया। जब अमर की आयु 16 वर्ष पूरी हुई तो उसने एक यज्ञ किया। यज्ञ की समाप्ति पर ब्राह्मणों को भोजन कराया और खूब अन्न, वस्त्र दान किए। रात को अमर अपने शयनकक्ष में सो गया। शिव के वरदान के अनुसार शयनावस्था में ही अमर के प्राण-पखेरू उड़ गए। सूर्योदय पर मामा अमर को मृत देखकर रोने-पीटने लगा। आसपास के लोग भी एकत्र होकर दुःख प्रकट करने लगे। मामा के रोने, विलाप करने के स्वर समीप से गुजरते हुए भगवान शिव और माता पार्वती ने भी सुने। पार्वती जी ने भगवान से कहा- ‘प्राणनाथ! मुझसे इसके रोने के स्वर सहन नहीं हो रहे। आप इस व्यक्ति के कष्ट अवश्य दूर करें।’ भगवान शिव ने पार्वती जी के साथ अदृश्य रूप में समीप जाकर अमर को देखा तो पार्वती जी से बोले- ‘पार्वती! यह तो उसी व्यापारी का पुत्र है। मैंने इसे 16 वर्ष की आयु का वरदान दिया था। इसकी आयु तो पूरी हो गई।’ पार्वती जी ने फिर भगवान शिव से निवेदन किया- ‘हे प्राणनाथ! आप इस लड़के को जीवित करें। नहीं तो इसके माता-पिता पुत्र की मृत्यु के कारण रो-रोकर अपने प्राणों का त्याग कर देंगे। इस लड़के का पिता तो आपका परम भक्त है। वर्षों से सोमवार का व्रत करते हुए आपको भोग लगा रहा है।’पार्वती के आग्रह करने पर भगवान शिव ने उस लड़के को जीवित होने का वरदान दिया और कुछ ही पल में वह जीवित होकर उठ बैठा। शिक्षा समाप्त करके अमर मामा के साथ अपने नगर की ओर चल दिया। दोनों चलते हुए उसी नगर में पहुंचे, जहां अमर का विवाह हुआ था। उस नगर में भी अमर ने यज्ञ का आयोजन किया। समीप से गुजरते हुए नगर के राजा ने यज्ञ का आयोजन देखा। राजा ने अमर को तुरंत पहचान लिया। यज्ञ समाप्त होने पर राजा अमर और उसके मामा को महल में ले गया और कुछ दिन उन्हें महल में रखकर बहुत-सा धन, वस्त्र देकर राजकुमारी के साथ विदा किया। रास्ते में सुरक्षा के लिए राजा ने बहुत से सैनिकों को भी साथ भेजा। दीपचंद ने नगर में पहुंचते ही एक दूत को घर भेजकर अपने आगमन की सूचना भेजी। अपने बेटे अमर के जीवित वापस लौटने की सूचना से व्यापारी बहुत प्रसन्न हुआ। व्यापारी ने अपनी पत्नी के साथ स्वयं को एक कमरे में बंद कर रखा था। भूखे-प्यासे रहकर व्यापारी और उसकी पत्नी बेटे की प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्होंने प्रतिज्ञा कर रखी थी कि यदि उन्हें अपने बेटे की मृत्यु का समाचार मिला तो दोनों अपने प्राण त्याग देंगे।व्यापारी अपनी पत्नी और मित्रों के साथ नगर के द्वार पर पहुंचा। अपने बेटे के विवाह का समाचार सुनकर, पुत्रवधू राजकुमारी चंद्रिका को देखकर उसकी खुशी का ठिकाना न रहा। उसी रात भगवान शिव ने व्यापारी के स्वप्न में आकर कहा- ‘हे श्रेष्ठी! मैंने तेरे सोमवार के व्रत करने और व्रतकथा सुनने से प्रसन्न होकर तेरे पुत्र को लंबी आयु प्रदान की है।’ व्यापारी बहुत प्रसन्न हुआ। सोमवार का व्रत करने से व्यापारी के घर में खुशियां लौट आईं। शास्त्रों में लिखा है कि जो स्त्री-पुरुष सोमवार का विधिवत व्रत करते और व्रतकथा सुनते हैं उनकी सभी इच्छाएं पूरी होती हैं। श्री रावण कृतं सम्पूर्ण शिव तांडव स्तोत्र” चंडोग्र प्रचंड शिव साधना “शिव ताण्डव स्तोत्र की महिमा” शिव तांडव स्तोत्र –जटा टवी गलज्जलप्रवाह पावितस्थले गलेऽव लम्ब्यलम्बितां भुजंगतुंग मालिकाम्। डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं चकारचण्डताण्डवं तनोतु नः शिव: शिवम् ॥१॥ उनके बालों से बहने वाले जल से उनका कंठ पवित्र है, और उनके गले में सांप है जो हार की तरह लटका है, और डमरू से डमट् डमट् डमट् की ध्वनि निकल रही है, भगवान शिव शुभ तांडव नृत्य कर रहे हैं, वे हम सबको संपन्नता प्रदान करें। जटाकटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी विलोलवीचिवल्लरी विराजमानमूर्धनि। धगद्धगद्धगज्ज्वल ल्ललाटपट्टपावके किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम: ॥२॥ मेरी शिव में गहरी रुचि है, जिनका सिर अलौकिक गंगा नदी की बहती लहरों की धाराओं से सुशोभित है, जो उनकी बालों की उलझी जटाओं की गहराई में उमड़ रही हैं? जिनके मस्तक की सतह पर चमकदार अग्नि प्रज्वलित है, और जो अपने सिर पर अर्ध-चंद्र का आभूषण पहने हैं।धराधरेंद्रनंदिनी विलासबन्धुबन्धुर स्फुरद्दिगंतसंतति प्रमोद मानमानसे। कृपाकटाक्षधोरणी निरुद्धदुर्धरापदि क्वचिद्विगम्बरे मनोविनोदमेतु वस्तुनि ॥३॥ मेरा मन भगवान शिव में अपनी खुशी खोजे, अद्भुत ब्रह्माण्ड के सारे प्राणी जिनके मन में मौजूद हैं, जिनकी अर्धांगिनी पर्वतराज की पुत्री पार्वती हैं, जो अपनी करुणा दृष्टि से असाधारण आपदा को नियंत्रित करते हैं, जो सर्वत्र व्याप्त है, और जो दिव्य लोकों को अपनी पोशाक की तरह धारण करते हैं। जटाभुजंगपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा कदंबकुंकुमद्रव प्रलिप्तदिग्व धूमुखे। मदांधसिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे मनोविनोदद्भुतं बिंभर्तुभूत भर्तरि ॥४॥ मुझे भगवान शिव में अनोखा सुख मिले, जो सारे जीवन के रक्षक हैं, उनके रेंगते हुए सांप का फन लाल-भूरा है और मणि चमक रही है, ये दिशाओं की देवियों के सुंदर चेहरों पर विभिन्न रंग बिखेर रहा है, जो विशाल मदमस्त हाथी की खाल से बने जगमगाते दुशाले से ढंका है।सहस्रलोचन प्रभृत्यशेषलेखशेखर प्रसूनधूलिधोरणी विधूसरां घ्रिपीठभूः। भुजंगराजमालया निबद्धजाटजूटकः श्रियैचिरायजायतां चकोरबंधुशेखरः ॥५॥ भगवान शिव हमें संपन्नता दें, जिनका मुकुट चंद्रमा है, जिनके बाल लाल नाग के हार से बंधे हैं, जिनका पायदान फूलों की धूल के बहने से गहरे रंग का हो गया है, जो इंद्र, विष्णु और अन्य देवताओं के सिर से गिरती है। ललाटचत्वरज्वल द्धनंजयस्फुलिंगभा निपीतपंच सायकंनम न्निलिंपनायकम्। सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं महाकपालिसंपदे शिरोजटालमस्तुनः ॥६॥ शिव के बालों की उलझी जटाओं से हम सिद्धि की दौलत प्राप्त करें, जिन्होंने कामदेव को अपने मस्तक पर जलने वाली अग्नि की चिनगारी से नष्ट किया था, जो सारे देवलोकों के स्वामियों द्वारा आदरणीय हैं, जो अर्ध-चंद्र से सुशोभित हैं। करालभालपट्टिका धगद्धगद्धगज्ज्वल द्धनंजया धरीकृतप्रचंड पंचसायके। धराधरेंद्रनंदिनी कुचाग्रचित्रपत्र कप्रकल्पनैकशिल्पिनी त्रिलोचनेरतिर्मम ॥७॥ मेरी रुचि भगवान शिव में है, जिनके तीन नेत्र हैं, जिन्होंने शक्तिशाली कामदेव को अग्नि को अर्पित कर दिया, उनके भीषण मस्तक की सतह डगद् डगद्… की घ्वनि से जलती है, वे ही एकमात्र कलाकार है जो पर्वतराज की पुत्री पार्वती के स्तन की नोक पर, सजावटी रेखाएं खींचने में निपुण हैं।नवीनमेघमंडली निरुद्धदुर्धरस्फुर त्कुहुनिशीथनीतमः प्रबद्धबद्धकन्धरः। निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिंधुरः कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥८॥ भगवान शिव हमें संपन्नता दें, वे ही पूरे संसार का भार उठाते हैं, जिनकी शोभा चंद्रमा है, जिनके पास अलौकिक गंगा नदी है, जिनकी गर्दन गला बादलों की पर्तों से ढंकी अमावस्या की अर्धरात्रि की तरह काली है। प्रफुल्लनीलपंकज प्रपंचकालिमप्रभा विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्। स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥९॥ मैं भगवान शिव की प्रार्थना करता हूं, जिनका कंठ मंदिरों की चमक से बंधा है, पूरे खिले नीले कमल के फूलों की गरिमा से लटकता हुआ, जो ब्रह्माण्ड की कालिमा सा दिखता है। जो कामदेव को मारने वाले हैं, जिन्होंने त्रिपुर का अंत किया, जिन्होंने सांसारिक जीवन के बंधनों को नष्ट किया, जिन्होंने बलि का अंत किया, जिन्होंने अंधक दैत्य का विनाश किया, जो हाथियों को मारने वाले हैं, और जिन्होंने मृत्यु के देवता यम को पराजित किया।अखर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम्। स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥१०॥ मैं भगवान शिव की प्रार्थना करता हूं, जिनके चारों ओर मधुमक्खियां उड़ती रहती हैं शुभ कदंब के फूलों के सुंदर गुच्छे से आने वाली शहद की मधुर सुगंध के कारण, जो कामदेव को मारने वाले हैं, जिन्होंने त्रिपुर का अंत किया, जिन्होंने सांसारिक जीवन के बंधनों को नष्ट किया, जिन्होंने बलि का अंत किया, जिन्होंने अंधक दैत्य का विनाश किया, जो हाथियों को मारने वाले हैं, और जिन्होंने मृत्यु के देवता यम को पराजित किया। जयत्वदभ्रविभ्रम भ्रमद्भुजंगमस्फुरद्ध गद्धगद्विनिर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्। धिमिद्धिमिद्धि मिध्वनन्मृदंग तुंगमंगलध्वनिक्रमप्रवर्तित: प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥११॥ शिव, जिनका तांडव नृत्य नगाड़े की ढिमिड ढिमिड तेज आवाज श्रंखला के साथ लय में है, जिनके महान मस्तक पर अग्नि है, वो अग्नि फैल रही है नाग की सांस के कारण, गरिमामय आकाश में गोल-गोल घूमती हुई।दृषद्विचित्रतल्पयो र्भुजंगमौक्तिकमस्र जोर्गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः। तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥१२॥ मैं भगवान सदाशिव की पूजा कब कर सकूंगा, शाश्वत शुभ देवता, जो रखते हैं सम्राटों और लोगों के प्रति समभाव दृष्टि, घास के तिनके और कमल के प्रति, मित्रों और शत्रुओं के प्रति, सर्वाधिक मूल्यवान रत्न और धूल के ढेर के प्रति, सांप और हार के प्रति और विश्व में विभिन्न रूपों के प्रति? कदा निलिंपनिर्झरी निकुंजकोटरे वसन् विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्। विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ॥१३॥ मैं कब प्रसन्न हो सकता हूं, अलौकिक नदी गंगा के निकट गुफा में रहते हुए, अपने हाथों को हर समय बांधकर अपने सिर पर रखे हुए, अपने दूषित विचारों को धोकर दूर करके, शिव मंत्र को बोलते हुए, महान मस्तक और जीवंत नेत्रों वाले भगवान को समर्पित?इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं पठन्स्मरन् ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्। हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथागतिं विमोहनं हि देहिनां सुशंकरस्य चिंतनम् ॥१६॥ इस स्तोत्र को, जो भी पढ़ता है, याद करता है और सुनाता है, वह सदैव के लिए पवित्र हो जाता है और महान गुरु शिव की भक्ति पाता है। अमोघ शिव कवच शिव कवच अत्यंत दुर्लभ परन्तु चमत्कारिक है, इसका प्रभाव अमोघ है | बड़ी से बड़ी मुसीबतों को समाप्त करने में सिद्धहस्त यह शिव कवच परम-कल्याणकारी है | हवन करते समय क्या मंत्र बोला जाता है?इसलिए हवन के समय स्वाहा मंत्र का उच्चारण किया जाता है. तब से ही किसी भी हवन या यज्ञ के दौरान आहूति देते समय स्वाहा बोला जाता है. उस मंत्र के उच्चारण से ही देवतागण हविष्य ग्रहण करते हैं. देवता ये तभी ग्रहण कर सकते हैं जबकि अग्नि के द्वारा स्वाहा के माध्यम से अर्पण किया जाए.
हवन की शुरुआत कैसे करें?ऐसे करें हवन :
हवन करने से पूर्व स्वच्छता का ख्याल रखें। सबसे पहले रोज की पूजा करने के बाद अग्नि स्थापना करें फिर आम की चौकोर लकड़ी लगाकर, कपूर रखकर जला दें। उसके बाद इन मंत्रों से हवन शुरू करें।
हवन में आहुति कैसे दें?रूई में घी लगाकर लकड़ी के ऊपर रखें। कपूर जलाकर हवनकुंड की ज्वाला प्रज्जवलित करें। इसके बाद बाद घी से 3 या 5 बार गणेशजी, पंचदेवता, नवग्रह, क्षेत्रपाल, ग्राम देवता एवं नगर देवता को आहुति दें। इसके बाद 'ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डयै विच्चै नमः' मंत्र से माता के नाम से आहुति दें।
पूर्णाहुति का मंत्र क्या है?पूर्णाहुति मंत्र - ओम पूर्णमद : पूर्णमिदम् पूर्णात पुण्य मुदज्यते, पुणस्य पूर्णमादाय पूर्णमेल बिसिस्यते स्वाहा। पूर्णाहुति के बाद यथाशक्ति दक्षिणा माता के पास रख दें, फिर आरती करें।
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