ट्रक में कौन सी मात्रा लगती है? - trak mein kaun see maatra lagatee hai?

वो भीषण गर्मी का एक दिन था, ट्रेफिक बेहद धीमी रफ़्तार से आगे को बढ़ रहा था। एयर कंडीशंड (ए.सी) कार्स में बैठे लोगों को शायद इस बात का ज़रा भी एहसास नहीं था की बाहर सूरज किस स्तर की गर्मी उगल रहा है। जिस बेसब्री के साथ लोग अपनी अपनी गाड़ियों के हॉर्न बजा रहे थे, ऐसा लग रहा था मानो इन को सुनने वाले धीरे धीरे बहरे होते चले जा रहे हैं और अब इस शोर को सुनने वाला कोई नहीं है। यहाँ एक बड़ी तादाद में व्हीक्ल्स, जिस में ट्रक्स भी शामिल थे, ट्रेफिक सिग्नल की बत्ती का हरी होने का इंतेज़ार कर रहे थे। लोग अपने अपने अंदाज़ में ट्रक ड्राइवर्स को धमका रहे थे व बुरा भला कह रहे थे। यह दृश्य देखने में किसी जंग से कम नहीं लग रहा था, एक ऐसी जंग जो की बातों, शब्दों और इशारों से लड़ी जा रही हो, और जिस में से ट्रक ड्राइवर्स के प्रति नफ़रत की दुर्गंध आ रही हो। लोगों को इस बात का बिल्कुल भी अंदाज़ा नहीं था की ट्रक्स में एयर कंडीशनिंग नहीं है।

शायद, जो लोग ट्रक ड्राइवर्स को कोस रहे थे उन्हें इस बात का पता नहीं था की यह ड्राइवर्स ना सिर्फ़ ऊपर से गर्मी की तपिश बर्दाश्त कर रहे हैं, बल्कि यह जिस पर बैठे हैं उस के नीचे उबलता हुआ ट्रक का इंजन मौजूद है। असल में, सड़क पर मौजूद किसी और के मुक़ाबले ट्रक ड्राइवर्स के हालात बहुत ज़्यादा ख़तरनाक, दयनीय और मुश्किल थे। सभी लोगों ने यह ठान ली थी की इस अव्यवस्था के लिए किसी ना किसी को ज़िम्मेदार ठहराना है, और उन के सामने इन अभागे ट्रक ड्राइवर्स से अच्छा निशाना और कौन हो सकता है, जिस पर वह अपना गुस्सा निकाल सकें।

ऐसे लोगों को ढूँढ निकालना बहुत आसान होगा, जो की यह मानते हैं की ट्रक ड्राइविंग वो लोग करते हैं जिन के पास कोई योग्यता नहीं होती। हमारे समाज ने ट्रक ड्राइवर्स को बीच में स्कूल छोड़ने वाले, मनमर्ज़ी करने वाले और नियामविरोधी लोगों व अन्य तुच्छ व्यक्तियों की श्रेणी में खड़ा कर रखा है। और यही समाज शायद एक महत्त्वपूर्ण बात भूल जाता है की यही 'किस्मत के मारे' ट्रक ड्राइवर्स अपना सब कुछ दाव पर लगा देते हैं देश के कोने कोने में ज़रूरी सामान पहुँचने में। हिस्ट्री टीवी का शो 'आइस रोड ट्रकर्स' इस बात का सबूत है, जो यात्रा के दौरान ट्रक ड्राइवर्स को पेश आने वाली मुश्किलों को दर्शाता है।

भारत सरकार ने हाल ही में मोटर व्हीकल एक्ट 1988 में कुछ संशोधन किया हैं, जिस के बाद देश में जो भी ट्रक 1 अप्रैल 2017 के बाद से बेचे जाएँगे उन में एयर कंडीशनर होना अनिवार्य होगा। पूरे भारत के ट्रक ड्राइवर्स में इस बात को लेकर खुश की लहर दौड़ पड़ी है, लेकिन क्या सिर्फ़ अनिवारीयता ही सब कुछ था जिस की ज़रूरत थी? अनिवार्य करते हुए सभी कमर्शियल व्हीकल मॅन्यूफॅक्चरर्स से केवल एसी लगे ट्रक्स बिकवाना, समस्या का कुछ हद तक समाधान करता है, परंतु, ऐसा लगता है की अभी बहुत सारी चुनोतियों दरवाज़े पर दस्तक देने के लिए रुकी हुई हैं। तो चलिए देखते हैं की असल में ट्रक ड्राइवर्स पर किस मुश्किल से गुज़रते हैं।

कम वेतन

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है की पैसा बहुत इम्पोर्टेंट रोल निभाता है रोज़मर्रा की ज़िंदगी में, और इस का महत्त्व और भी बढ़ जाता है जब आप यात्रा (ट्रेवल) कर रहे होते हैं। यात्रा के दौरान खाना, कपड़े और अन्य ज़रूरी चीज़ों का खर्च बढ़ जाता है। लेकिन तब क्या, जब आप अक्सर ही ट्रेवलिंग कर रहे होते हैं व आप का काम ही यह हो, और आप को इस काम के लिए बहुत कम वेतन मिलता हो।

भारत में एक ट्रक ड्राइवर की कमाई 30 हज़ार से 40 हज़ार से ज़्यादा नही होती है। हो सकता है दिखने में आप यह पेकेज शानदार या लुभावना दिख रहा हो, परंतु इस में अपने घर से दूर दिन-रात की ड्राइविंग और साथ ही ज़्यादा से ज़्यादा खाने का खर्च शामिल है, जिस के चलते कुछ ही दिनों में यह रकम अपने आप घाटकर चन्द हज़र ही रह जाती है। इस तरह के जीवन से देश में ट्रक चलाने वाले लोग रोज़ाना गुज़रते हैं। वह काम करते हैं, त्याग देते हैं, सिर्फ़ इसी वजह से ताकि वह दो वक़्त की रोटी कमा सकें।

काम की कोई सीमा नहीं

देश की बहुत से संस्थाओं में अमूमन एक जनरल शिफ्ट नौ घंटे की होती है। कर्मचारियों को, यदि वह नौ घंटे से ज़्यादा काम करते हैं तो, एक्सट्रा टाइम (अतिरिक्त समय) के लिए अलग से पैसे दिए जाते हैं। साथ ही, छुट्टियों के मौके पर अगर वह काम करते हैं तो उस के लिए अलग भत्ता मिलता है। कुल मिलाकर, लोग 'एक्सट्रा' काम करते हैं ताकि वह 'एक्सट्रा कमाई' का ज़रिया बने। परंतु, दुर्भाग्यवश क्या ऐसा देश के ट्रक ड्राइवर्स वर्ग के लिए कहना उचित होगा?

ज़ाहिर है, नहीं! ट्रकर्स देश में दिन और रात ड्राइविंग करते हैं। उन के कोई भी सुनिश्चित काम के घंटे नहीं हैं, क्योंकि उन का पेमेंट किलो मीटर्स के तौर पर होता है नाकी घंटों की बुनियाद पर। कई बार तो ट्रक ड्राइवर्स के सामने ऐसी स्थिति भी आ जाती है जब उन को 10-10 घंटे ड्राइव करना पड़ जाता है वह भी बिना रुके। और इस का सबसे कड़वा सत्य यह है की वह इस बात की शिकायत भी कहीं नहीं कर सकते, क्योंकि डिलीवरी टाइम पर होना चाहिए चाहे कुछ भी हो जाए। आप सोच सकते हैं की वह किस तरह के शारीरिक और मानसिक तनाव अतिशयोक्ति से गुज़रते होंगे। इस में कोई शक नहीं है की वह इसी कारण कई मर्तबा हताश या गुस्से में दिखाई देते हैं।

कठोर मौसम परिस्थीति

विश्व भर में भारत उन देशों में से एक है जिस को कुदरत ने हर तरह के मौसम का वरदान दिया है। यहाँ लोग रेगिस्तान क्षेत्रों से बर्फ़ीली जगहों की यात्रा करते हैं, और वहीं भारी वर्षा वाली जगहों से लोग सूखे क्षेत्रों में जाना पसंद करते हैं, परंतु यह वरदान ट्रक ड्राइवर्स के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं होता है। भारत में मौसम की स्थिति ख़तरनाक सड़कों पर ड्राइविंग को और भी बदतर बना देती है। बहुत ज़्यादा मात्रा में बरसात, कपकपा देने वाली कड़ाके की ठंड, भीषण गर्मी; यह सभी ट्रक ड्राइविंग से जुड़े लोगों के लिए किसी दुशमन से कम नहीं हैं। ट्रक के केबिन्स में एयर कंडीशनर्स के ना होने की वजह से यह स्थिति आग में घी का काम करती है। अक्सर यह होता है की, ट्रक ड्राइवर्स या तो शून्य से कम तापमान का सामना कर रहे होते हैं या फिर 45 डिग्री से ज़्यादा का तापमान झेल रहे होते हैं, यह नहीं तो देश के किसी भाग में घने कोहरे और मूसलाधार बारिश को बर्दाश्त कर रहे होते हैं। मौसम की ऐसी विपरीत परिस्थितियाँ हो सकता है किसी के लिए एड्वेंचर हों, परंतु इस एड्वेंचर का सामना रोज़ाना तो नहीं किया जा सकता ना!

ख़तरनाक सड़कें

हम सभी जानते है की हम यहाँ क्या दर्शाना चाहते हैं, क्यों है ना? 'ख़तरनाक रोड' यह शब्द आते ही हमारे ज़हन में खड्डे और गैर ज़िम्मेदाराना ड्राइविंग आ जाते हैं, लेकिन रुकिये, यह सब पूरा सच नहीं है। आप को इस के लिए भारत में हो रहे आइस रोड ट्रकर्स का मौजूदा सीज़न देखना चाहिए या फिर इस के एक प्रतिभागी पहलवान संग्राम सिंह ट्रक ड्राइविंग के बारे में क्या कह रहे हैं जानना चाहिए। इस शो में क्षमता है की वह ट्रक ड्राइविंग के प्रति आप का नज़रिया बदल कर रख दे। वहाँ बेहद रोचक होता है यह देखना की किस तरह लोग इतनी संकरी जगहों से ट्रक को ड्राइव कर के ले जाते हैं जहाँ अमूमन आप को एक कार का निकल पाना भी मुश्किल मालूम होता है। जी हाँ, यह सच है की भारतीय ट्रक ड्राइवर्स यह सब इस लिए करते हैं ताकि वह देश के दूर दराज़ रह रहे लोगों तक उपयोगी वस्तुओं को पहुँचा सकें।

कोई उचित पिट स्टॉप्स नहीं

दिन भर की थकान के बाद शायद चार दीवारी की गर्मजोशी के बीच, जिसे हम घर कहते हैं, किसी नर्म बिस्तर पर कूद पड़ने से बेहतर क्या हो सकता है। लेकिन सच यह है की ट्रक ड्राइवर्स इस तरह के आराम से कोसों दूर होते हैं। कई बार, जो उन्हें आराम करने के लिए मिलता है वो रस्सी और बाँस से बनी या तो 'खाट' होती है, या फिर ट्रक का केबिन होता है।

हमारे देश में इनफ्रास्ट्रक्चर की स्थिति दयनीय हैं ख़ासकर जब ट्रक ड्राइवर्स के पिट स्टॉप्स की आती है। जिन जगहों को 'अच्छा' कहा जा सकता है वह या तो बहुत महेंगी हैं, या फिर हाइवे पर स्थित नहीं हैं। यात्रा के दौरान जो ट्रक को मिलता है वो हैं ढाबे जो की खाट के साथ चटपटा एवं मसाले दार खाना परोसते हैं। लंबे समय तक ज़्यादा मसालेदार खाना खाने से शरीर पर नकारात्मक असर पड़ सकता है। और साथ ही, आराम की सही व्यवस्था ना होना इनकी मुसीबतें सिर्फ़ बढ़ाती है।

ओवर लोडिंग

यह मुद्दा कइयों के लिए बहस का विषय हो सकता है। हम समझते हैं की ट्रक ड्राइवर्स ओवर लोडिंग जान बुझ कर करते हैं अपना मुनाफ़ा बढ़ाने के लिए। लेकिन हक़ीकत नज़रों से बहुत दूर है। स्थिति की गंभीरता का पता इस बात से चलता है की कई सारे ट्रक ड्राइवर्स अपने फ्लीट ओनर्स के समक्ष केवल एक वर्कर के तौर पर काम करते हैं, और उन्हें सिर्फ़ आदेशों का पालन करना होता है। अब यदि फ्लीट मालिक ट्रक ड्राइवर से समान से भरे ओवर लोड ट्रक को ट्रांसपोर्ट करने के लिए कहता है तो इस में ड्राइवर ज़्यादा कुछ नहीं कर सकता। इस के अलावा, जिन के पास खुद के ट्रक्स हैं वह अपने आप को ऐसी स्थिति में पाते हैं जहाँ जो एजेन्सी उनको हायर कर रही है वह चाहती है की आप पूरा लोड एक ही चक्कर में पहुँचा दें।

ओवर लोडिंग ख़तरनाक होती है क्योंकि यह ट्रक के आउट ऑफ बेलेन्स होने की संभावनाओं को बढ़ा देती है जिस से भीषण एक्सीडेंट भी हो सकता है। यहाँ ऐसी स्थित में सिर्फ़ ट्रक ड्राइवर्स की ही जान ख़तरे में नहीं होती बल्कि रोड पर चल रहे अन्य लोगों की भी जान भी दाँव पर लगी होती है।

असंगठित सेक्टर

सालाना छुट्टियाँ, बीमारी के चलते छुट्टियाँ, अर्जित छुट्टियाँ व अन्य एक संगठित सेक्टर में काम करने कुछ भत्ते (पर्क्स) हैं। लोगों के पास यह विशेषाधिकार होता है की वह छुट्टियों के लिए अप्लाइ कर सकते हैं जब उन्हें मालूम पड़ जाए की वह बीमार पड़ने वाले हैं। परंतु, भारतीय ट्रकिंग इंडस्ट्री की कहानी इस से बिल्कुल उलट है। अनगिनत ट्रक ड्राइवर्स को सच में छुट्टियों के लिए भीख माँगनी पड़ती है, जो की अनपेड होती हैं, यानी उनका पैसा तनख़्वाह में से कटेगा। अब प्रोविडेंट फंड (पीएफ) को जोड़ें रिटायरमेंट फंड के तौर पर जो की आप को 65 वर्ष की आयु के बाद एक समृद्ध जीवन बिताने के लिए मिलेगा। ट्रक ड्राइवर्स को ऐसा कोई विशेषाधिकार भी नहीं मिलता।

अब जब आप अच्छी तरह से समझ गये हैं की ट्रक ड्राइवर्स देश में किन चुनोतियों से रोज़ाना गुज़रते हैं, हम आप से आग्रह करते हैं आप उनके प्रति सभ्य और आदरपूर्ण रहें। याद रखें की यह वही लोग हैं जो की हमारे लिए दिन और रात काम करते हैं ताकि हमें रोज़मर्रा के वास्तु, कपड़े, खाने के समान हर समय सही समय पर पहुँचा सकें।

ट्रक में कौन सा र लगा है?

ट्रक, ट्राम, ट्रेन, ट्रिन-ट्रिन, ट्रेकिंग, ट्रिक, ट्रे। ट्र में पदेन है और ट स्वर रहित अर्थात आधा है ।

ट्रक कौन सा शब्द है?

अतः ट्रक शब्द जातिवाचक संज्ञा है।

ट्रक किसका पर्यायवाची है?

ट्रक संज्ञा स्त्री॰ [अं॰] बोझा ढोनेवाली खुली मोटर । सामान को ले जाने के लिये प्रयुक्त इंजन वाली गाडी को ट्रक कहा जाता है। ठेला देहाती भाषा का शब्द भी ट्रक के लिये प्रयुक्त किया जाता है। लारी भी ट्रक का दूसरा शब्द है।

र कितने प्रकार के होते हैं?

'र' के विभिन्न रूप.
1.1 रेफ (र्) वाले शब्द.
1.2 पदेन (र) वाले शब्द.
1.3 'रु' और 'रू' वाले सामान्य शब्द.
1.4 अन्य हिन्दी मात्राएँ.