तुलसीदास जयंती इस साल 2021 में भी श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि यानि रविवार, 15 अगस्त को मनाई जाएगी। Show भगवान श्रीराम की उनकी रचनाओं पर विशेष कृपा के चलते तुलसीदास जी सांसारिक जीवन से विरक्त संत थे। भगवान राम से भेंट करवाने का सबसे बड़ा श्रेय गोस्वामी तुलसीदास जी हनुमान जी को देते हैं। दरअसल माना जाता है कि हनुमान जी के परामर्श पर एक बार तुलसीदास चित्रकूट पहुंचे। जहां उन्होंने सर्वप्रथम नदी में स्नान के बाद कदमगिरि की परिक्रमा की। इसी समय उन्हें दो अत्यंत सुंदर राजकुमार दिखे जो सुंदर घोड़े पर सवार थे। इन राजकुमारों में जहां एक गौर वर्ण के थे तो वहीं दूसरे श्याम वर्ण के थे। तुलसीदास जी ने जब राजकुमारों को देखा तो उनके मन में प्रश्न पैदा हुबा कि आखिर इतने सुंदर राजकुमार चित्रकूट में क्या कर रहे हैं, लेकिन कुछ ही देर में वे राजकुमार उनकी आंखों से गायब हो गए। Must Read- श्रीकृष्ण जन्माष्टमी : जानें क्या करें इस दिन इस घटना के ठीक बाद हनुमान जी ने तुलसीदास जी के पास आकर पूछा कि क्या आपको प्रभु श्रीराम और भ्राता लक्ष्मण के दर्शन हुए? तुलसीदास जी ने जब नहीं कहा तो हनुमान जी ने उन्हें बताते हुए कहा कि अभी जो अश्व पर सवार दो राजकुमार गए हैं, वहीं प्रभु श्री राम और भ्राता लक्ष्मण थे। यह सुनते ही प्रभु के ना पहचान पाने से तुलसीदास जी अत्यधिक दुखी हो गए और हनुमान जी से पुन: प्रभु के दर्शन करने की प्रार्थना करने लगे। इसके बाद जब अगले दिन तुलसीदास नदी चित्रकूट के घाट पर बैठकर चंदन घिस रहे थे तभी चंदन लगवाने एक बालक उनके पास आया और बोला बाबा आपने बहुत अच्छा चंदन घिसा है थोड़ा हमें भी लगा दीजिए। Must Read- आदित्य ह्रदय स्त्रोतम् का कब और कैसे करें पाठ? इस बार भी तुलसीदास अपने सामने खड़े श्रीराम
को नहीं पहचान सके। जैसे ही हनुमान जी को यह महसूस हुआ कि कहीं इस बार भी तुलसीदास श्रीराम को न पहचानने की भूल ना कर दें, ऐसे में वे एक तोते के रूप में आकर करुणरस में गाने लगे कि तोते के ये स्वर सुनते ही तुलसीदास तुरंत श्रीराम को पहचान कर चंदन को छोड़ प्रभु के चरणों में गिर गए और जब उन्होंने उपर की ओर तो देखा तो पाया कि प्रभु श्रीराम साक्षात खड़े थे। अपने सामने प्रभु श्रीराम को देख तुलसीदास की आंखों से आंसू बहने लगे, इसी समय भगवान श्रीराम ने चंदन को अपने हाथों से उठाकर तुलसीदास के माथे पर लगा दिया और हनुमान जी की कही बात को सच कर दिया। तुलसीदास चंदनघिसैं तिलककरें रघुवीर। एक बार तुलसीदास जी महाराज को किसी ने बताया की जगन्नाथ जी में साक्षात भगवान ही दर्शन देते हैं। बस फिर क्या था तुलसीदास जी महाराज अपने इष्टदेव का दर्शन करने श्रीजगन्नाथपुरी को चल दिए। महीनों की कठिन और थका देने वाली यात्रा के उपरांत जब वह जगन्नाथ पुरी पहुंचे तो मंदिर में भक्तों की भीड़ देख कर प्रसन्न मन से अंदर प्रविष्ट हुए। जगन्नाथ जी का दर्शन करते ही उन्हें बड़ा धक्का सा लगा वह निराश हो गये और विचार किया कि यह हस्तपादविहीन देव हमारे जगत में सबसे सुंदर नेत्रों को सुख देने वाले मेरे इष्ट श्री राम नहीं हो सकते। तुलसीदास जी दुखी मन से बाहर निकल कर दूर एक वृक्ष के तले बैठ गये। सोचा कि इतनी दूर आना व्यर्थ हो गया। इस सोच में रात भी हो गई, वहीं थके-मांदे, भूखे-प्यासे तुलसीदास जी का अंग-अंग टूट रहा था। अचानक एक आहट हुई, वे ध्यान से सुनने लगे। अरे बाबा! तुलसीदास कौन है? एक बालक हाथों में थाली लिए पुकार रहा था। तुलसीदास जी ने सोचा साथ आए लोगों में से शायद किसी ने पुजारियों को बता दिया होगा कि तुलसीदास जी भी दर्शन करने को आए हैं, इसलिये उन्होने प्रसाद भेज दिया होगा। वे उठते हुए बोले, मैं ही हूं तुलसीदास। बालक ने कहा- लीजिए, जगन्नाथ जी ने आपके लिए प्रसाद भेजा है। तुलसीदास बोले- भैया कृपा करके इसे वापस ले जाएं। बालक ने कहा, आश्चर्य की बात है, स्वयं महाप्रभु द्वारा भेजा प्रसाद आप अस्वीकार कर रहे हैं। इसका कारण? तुलसीदास बोले- बालक, मैं बिना अपने इष्ट को भोग लगाए कुछ ग्रहण नहीं करता। फिर यह जगन्नाथ का जूठा प्रसाद जिसे मैं अपने इष्ट को समर्पित न कर सकूं, यह मेरे किस काम का? बालक ने मुस्कराते हुए कहा- अरे बाबा, आपके इष्ट ने ही तो भेजा है । तुलसीदास बोले, यह हस्तपादविहीन दारुमूर्ति मेरा इष्ट नहीं हो सकता। बालक ने कहा कि फिर आपने अपने श्रीरामचरितमानस में यह किस रूप का वर्णन किया है: बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना। अब तुलसीदास की भाव-भंगिमा देखने लायक थी। नेत्रों में अश्रु-बिन्दु, मुख से शब्द नहीं निकल रहे थे। थाल रखकर बालक यह कहकर अदृश्य हो गया कि मैं ही तुम्हारा राम हूं। मेरे मंदिर के चारों द्वारों पर हनुमान का पहरा है। विभीषण नित्य मेरे दर्शन को आता है। कल प्रातः तुम भी आकर दर्शन कर लेना। तुलसीदास जी ने बड़े ही प्रेम से प्रसाद ग्रहण किया। अगली सुबह मंदिर में जब तुलसीदास जी महाराज दर्शन करने के लिए गए तब उन्हें जगन्नाथ, बलभद्र स्थान पर श्री रामजी और लक्ष्मणजी के भव्य दर्शन हुए। जिस स्थान पर तुलसीदास जी ने रात्रि व्यतीत की थी, वह स्थान 'तुलसी चौरा' नाम से विख्यात हुआ। वहां पर तुलसीदास जी की पीठ 'बड़छता मठ' के रूप में प्रतिष्ठित है। तुलसीदास को भगवान कैसे मिले?तुलसी दास भगवान की भक्ति में लीन होकर लोगों को राम कथा सुनाया करते थे। एक बार काशी में रामकथा सुनाते समय इनकी भेंट एक प्रेत से हुई। प्रेत ने इन्हें हनुमान जी से मिलने का उपाय बताया। तुलसीदास जी हनुमान जी को ढूंढते हुए उनके पास पहुंच गए और प्रार्थना करने लगे कि राम के दर्शन करवा दें।
तुलसीदास जी किसकी भक्ति करते थे?तुलसीदास प्रभु श्री राम के भक्त थे।
वह भक्तिकाल की सगुण विचारधारा के रामाश्रयी शाखा के कवि थे। उन्होंने भगवान श्रीराम के जीवन चरित्र पर आधारित रामचरितमानस ग्रंथ की रचना की थी। वह मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के परम भक्त थे।
तुलसीदास जी को हनुमान जी के दर्शन कैसे हुए?तुलसीदास जी ने चित्रकूट के रामघाट पर अपना डेरा जमा लिया। एक दिन मार्ग में उन्हें दो सुंदर युवक घोड़े पर बैठे नज़र आए, इन्हें देखकर तुलसीदास जी सुध-बुध खो बैठे। जब युवक इनके सामने से चले गए तब हनुमान जी प्रकट हुए और बताया कि यह राम और लक्ष्मण जी थे। तुलसीदास जी पछताने लगे कि वह अपने प्रभु को पहचान नहीं पाए।
तुलसीदास जी के आराध्य देव कौन थे *?मित्र तुलसीदास के आराध्य देव भगवान श्री राम हैंं।
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