हुण जाति को परास्त करने वाले राजा कौन थे - hun jaati ko paraast karane vaale raaja kaun the

हूण आक्रमण तथा गुप्त साम्राज्य का पतन

हुण जाति को परास्त करने वाले राजा कौन थे - hun jaati ko paraast karane vaale raaja kaun the

हुण कौन थे ?- जिस जाति ने 165 ई.पू. में गूह-ची (कुषाण जाति) नामक जाति को चीन पश्चिमोत्तर सीमा से निकालकर सारे मध्य एशिया और भारत की राजनीति (गुप्तकाल में तथा उसके बाद में) को प्रभावित किया था, वह जाति ही हूण (हिंग-नू) थी। ये लोग खाना- बदोश जंगलियों के समूह थे। ये लोग युद्ध प्रेमी थे तथा अपनी सुरक्षा और लूटमार के लिए एक स्थायी सेना रखते थे। अपने शत्रुओं का रक्तपात करने और उनकी सम्पत्ति को लूटने तथा नष्ट करने में उन्हें बिल्कुल संकोच नहीं होता था। इनका जीवन घुमक्कड़ था एवं लूट खसोट इनकी जीवन चर्या थी। कहा जाता है कि कुषाणों को चीन की पश्चिमोत्तर सीमा से बाहर निकाल देने के कुछ दिनों बाद हूणों ने अपनी जनसंख्या की वृद्धि एवं प्रसार की इच्छा से पश्चिम की ओर बढ़ना शुरू कर दिया।

आगे बढ़ने पर यह दो समूहों में विभक्त हो गये । इनकी एक शाखा सीधे पश्चिम यूराल पर्वत को पारकर 375 ई. के लगभग आँधी, पानी की तरह करीब आधे यूरोप को रोंदती हुई बढ़ गई। इसने गाथ जाति को डेन्यब : के दक्षिण में ढकेल दिया। गधों ने रोम साम्राज्य पर आक्रमण किया तथा हुण बोल्गा के डेन्यूब के बीच के सभी प्रदेश पर छा गये कुछ समय पश्चात् अपने अत्याचार पूर्ण शासन के कारण यूरोप में राजनीतिक सत्ता के रूप में हूणों की शक्ति नष्ट हो गयी । इनको काला हूण कहा जाता था।

हुण कौन थे ?- 

हूणों की दूसरी शाखा दक्षिण की तरफ मुड़कर वक्षु (आक्सस) नटी किनारे पहुँची। यहाँ पर यह सस्सैनियन साम्राज्य से कुछ समय के लिए दबी रही। लेकिन 484 ई. में इनके राजा अख्शोनवर ने ईरान के सस्सैनियन राजा फीरोज को परास्त किया है उसका वध भी किया। इससे हूणों की प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई और छठी सदी के अन्त में एक विशाल साम्राज्य पर राज्य करने लगे, जिसकी राजधानी बल्ख थी । यूनानी विवरणों के अनुसार ये लोग श्वेत हूण कहलाये। आर्य गर्शयन के अनुसार “5वीं शती के मध्य में हम जाति के कुछ लोगों ने हिन्दूकश क्षेत्र में अपना आधिपत्य स्थापित किया था। 420 ई. के लगभग हूणों ने आक्सस नदी को पार किया और फारस के राज्य पर आक्रमण करना प्रारम्भ किया। इस समय फारस सस्सैनियन वंश का राजा बहराम शासन करता था। उसने सफलतापूर्वक हूणों का सामना किया। 

परन्तु 484 ई. में हूणों ने फारस के राजा फीरोज को पराजित कर दिया।
डॉ. नाहर के कथनानुसार “हूण एशिया के रहने वाले थे, जिन्होंने चौथी और पाँचवी शताब्दियों में सम्पूर्ण विश्व पर साम्राज्य स्थापित किया था। पूरे विश्व को अपनी क्रूरता, निर्दयता, रक्तपात एवं मारकाट से इन्होंने आतंकित कर रखा था। हूणों का मूल निवास स्थान कहाँ था? इसके बारे में अधिकांश विद्वानों की यह राय है कि वे चीन के समीप रहते थे। ये लोग बनजारे थे। । डॉ. उपेन्द्र ठाकुर के कथनानुसार “484 ई. में फारस के शासक फीरोज की मृत्यु के बाद ये हूण लोग पूरब की ओर तूफान की तरह बढ़े और हेरात में अपना मुख्यालय बनाया। इन्होंने जहाँ कहीं आक्रमण किया वहाँ मृत्यु और व्यापक संहार का ताण्डव नृत्य प्रारम्भ हो गया। यह उनके चरित्र की नृशंसता तथा कठोरता का परिचायक है। 

इन लोगों ने पूर्वोत्तर में कुषाणों को समाप्त कर गान्धारों को पराजित किया और वहाँ अपना जबरदस्त अड़ा स्थापित किया । यहाँ से उन्होंने भारत पर आक्रमण करने की योजना बनाई। भारत पर आक्रमण एवं उसके भाग पर उनकी विजय एक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना है। यद्यपि इनकी सना थोड़े। समय की थी, फिर भी उतने समय में इन हूणों ने मध्य एशिया से लेकर कौशाम्बी तक एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की।”

भारत में हुणों का आक्रमण - 

भारत पर हुणों के आक्रमण के सम्बंध में निम्न साक्ष्य प्राप्त हुए हैं-
 (1) भितरी क अभिलेख - भितरी अभिलेख के अनुसार हणों के साथ स्कन्दगुप्त युद्ध का स्पष्ट वर्णन मिलता है। इस अभिलेख के अनुसार जिस समय स्कन्दगु हूणां का सामना करने के लिए युद्धभूमि में उतरा उसके बाहबल से पृथ्वी के हो उठी थी।
(2) जूना गढ़ अभिलेख --- इसमें स्कन्दगुप्त के म्लेच्छ (हूण) विजय की चर्चा प्राप्त होती है अपने पिता की मृत्यु के पश्चात स्कन्दगुप्त ने अपने पराक्रम से अपने शत्रुओं को पराजित किया । म्लेच्छ देशों में अपने शत्रुओं के अभियान को जड़ से ही समाप्त किया और यह घोषणा करवाई कि उसने विजय प्राप्त कर ली है।”
(3) कथा सरित्सागर - एलन के अनुसार सोमदेव के कथा सरित्सागर में उज्जयिनी नरेश महेन्द्रादित्य के पुत्र विक्रमादित्य द्वारा हूणों को परास्त करने का उल्लेख मिलता है। इसका तात्पर्य यहाँ स्कन्दगुप्त से है जिसकी उपाधि विक्रमादित्य थी, जो कुमार गुप्त (महेन्द्रादित्य) का पुत्र था।
(4) कालिदास का रघुवंश - इसमें हूणों की चर्चा करते हुए कहा है कि रघु ने अपनी दिग्विजय के सम्बंध में हूणों को पराजित किया था।
(5) चीनी राजदूत का लेख - चीनी राजदूत सुंगयुन नामक चीनी राजदूत सन् 520 में गान्धार में आया था। अपने लेख में उसने लिखा कि दो पीढी पूर्व इस देश को हूणों ने नष्ट कर दिया था। यह आक्रमण स्कन्दगुप्त के काल में हुआ।
(6) क्रिश्चियन टोपोग्राफी ग्रंथ - क्रिश्चियन टोपोग्राफी ग्रंथ के लेखक एक यूनानी कास्मस के अनुसार “उत्तर भारत में हूणों का निवास था । इन हूणो में से एक का नाम गोल्ल बताया गया है । इतिहासकारों ने इस गोल्ल का एकीकरण मिहिर वंश से किया है।”
(7) चान्द्रव्याकरण -- इस व्याकरण ग्रंथ में अजयत् गुप्तों हुणानं लिखा हुआ है। ऐसी सम्भावना व्यक्त की जाती है कि यह हूणों पर विजय प्राप्त करने वाला गुप्त स्कन्दगुप्त ही था।
(8) कालिदास ने अपने ग्रंथ रघुवंश में आक्सस के पास हूणों की बस्ती का उल्लेख किया है।
(9) जैनकृति कुवलय माला - इस ग्रंथ के लेखानुसार तोरमाण का सम्पूर्ण विश्व पर आधिपत्य था। वह चिनाव नदी के किनारे रहता था।
(10) साल्टरेज के निकट प्राप्त कुराअभिलेख - पंजाब के साल्टरेज के निकट प्राप्त कुरा अभिलेख में महाराज तोरमाण का उल्लेख है। इस अभिलेख से स्पष्ट होता है कि पंजाब पर भी हूणों का स्वामित्व ।
(11) कल्हड़ की राजतरंगिणी - राजतंरगिनी में हूण सम्राट तोरमाण और मिहिरकुल का उल्लेख हुआ है। 

हूणों का पतन कैसे हुआ?

इतिहासकारों द्वारा स्कंदगुप्त को एशिया अथवा यूरोप का ऐसा पहला शासक होने का श्रेय दिया जाता है, जिसने हूणों को पराजित किया। 466-67 ई0 में तोरमाण के नेतृत्व में हूणों ने भारत पर दूसरी बार आक्रमण किया। इस बार भी हूणों को स्कंदगुप्त के हाथों पराजित होना पड़ा। 484 ई0 में हूणों ने पूर्ण शक्ति के साथ भारत पर आक्रमण किए।

हूणों ने प्रथम आक्रमण के समय मगध के सम्राट कौन थे?

भारत पर हूणों का पहला आक्रमण 458 ई. में हुआ. उस समय गुप्त सम्राट कुमार गुप्त गद्दी पर था.

भारत पर हूणों का आक्रमण कब हुआ?

सन् 455 ईसवीं में उसकी मृत्यु के बाद उसका पुत्र स्कंदगुप्त राजा हुआ। स्कंदगुप्त के शासक होते ही मध्य एशिया के हूणों के आक्रमण आरंभ हो गए। स्कंदगुप्त के शासनकाल में हूणों का पहला हमला भारत में सन् 455 ईसवीं में हुआ

भारत पर आक्रमण करने वाले हूण कौन थे?

भारत पर आक्रमण करने वाले हूणों के नेता क्रमशः तोरमाण व मिहिरकुल थे। तोरमाण ने स्कन्दगुप्त को शासन काल में भारत पर आक्रमण किया था।