Table of Content Show विष्णु खरे का जीवन परिचय- Vishnu khare ka Jeevan Parichayकवि विष्णु खरे का जन्म मध्य प्रदेश में सन 1962 ईस्वी में हुआ था। कवि विष्णु खरे सिर्फ एक भारतीय कवि के रूप में नहीं जाने जाते हैं बल्कि वे एक अनुवादक के रूप में, साहित्यकार के रूप में तथा एक फिल्म समीक्षक एवं पत्रकार के रूप में भी जाने जाते हैं। बहुत लोग कहते हैं कि कवि विष्णु खरे अंग्रेजी साहित्य के कवि हैं और बहुत लोग कहते हैं कि कवि विष्णु खरे हिंदी साहित्य के कवि है। लेकिन सच्चाई तो यह है कि कभी विष्णु खरे हिंदी एवं अंग्रेजी दोनों ही भाषाओं में लिखा करते थे। इसलिए यह दोनों ही साहित्य में अपनी अहम भूमिका निभा चुके हैं। कार्यकाल- कवि विष्णु खड़े एक पत्रकार भी थे, तो उन्होंने नवभारत टाइम्स पत्रिका में से प्रभारी कार्यकारी संपादक के रूप में भी कार्य किया तथा वे अंग्रेजी टाइम्स ऑफ इंडिया में भी संपादन कार्य से जुड़े रहें। रचनाएं- कवि विष्णु खरे एक अनुवादक भी थे। इन्होंने टी एस इलियट का अनुवाद किया है। यह इनका पहला प्रकाशन था। इनकी दूसरी कविता संग्रह गैर रूमानी वर्ष 1970 में प्रकाशित हुई। एक के बाद एक लगातार उन्होंने अपनी रचनाएं रची। इनकी प्रमुख रचनाएं हैं– काल और अवधि, पिछला बाकी इत्यादि। कवि विष्णु खरे की मृत्यु सन 2018 में 19 सितंबर को हुआ। सत्य कविता के माध्यम से कवि विष्णु खरे जी ने महाभारत के पौराणिक पात्रों द्वारा सत्य का जीवन में क्या महत्व है, इसे स्पष्ट किया है। विष्णु खरे जिस काल के कवि हैं, वह काल सत्य का नहीं था, इसलिए कवि सत्य कविता के माध्यम से लोगों को सत्य का महत्व बताना चाहते हैं। एक कवि का उद्देश्य होता है कि वह अपने समाज के लोगों को सही रास्ता दिखाएं। इस कविता के माध्यम से कवि ने अपने पाठकों को सही रास्ता दिखाने का प्रयास किया है। कवि के अनुसार सत्य ढूंढने से नहीं मिलता। सत्य सभी व्यक्ति के अंदर विराजमान होता है। जिसे पहचानने की आवश्यकता होती हैं। कवि के अनुसार सत्य खोता चला जा रहा है। झूठ इतना बढ़ चुका है कि सत्य किसी को दिखाई नहीं देता। जिसके कारण रिश्तों में भी परिवर्तन आ रहे हैं। वर्तमान समाज में सत्य की क्या परिस्थिति है। संपूर्ण कविता में इसके बारे में बताया गया है, तो चलिए आगे सत्य कविता की संपूर्ण व्याख्या पढ़ते हैं। सत्य कविता – Satya Poemजब हम सत्य को पुकारते हैं सत्य शायद जानना चाहता है कभी दिखता है सत्य यदि
हम किसी तरह युदिष्ठिर जैसा संकल्प पा जाते हैं जैसे शमी वृक्ष के तने से टिककर हम
कह नहीं सकते विदुर कहना चाहते तो वही बात कह सकते थे सत्य कविता की व्याख्या– Satya Poem explanation line by line explanationजब हम सत्य को पुकारते हैं भावार्थ- कवि विष्णु खरे ने इस कविता के माध्यम से यह बताने का प्रयास किया है कि किस तरह आज के युग में सत्य की पकड़ कमजोर होती जा रही है। लोग सत्य के जगह पर झूठ का सहारा ले रहे हैं। कवि के अनुसार सत्य को केवल पुकारने मात्र से ही वह प्राप्त नहीं होता। सत्य को पाने के लिए कठोर तप की आवश्यकता होती है। जिस तरह सोना तप कर, जलकर फिर जाकर चमकता है। ठीक उसी प्रकार सत्य को पुकारने से वह प्राप्त नहीं होता है। सत्य को पाने लिए आपको तपना पड़ेगा, तब जाकर सत्य आपको आवाज देगा। सत्य कविता का यह अंश आपको महाभारत की कहानियों से कुछ मिलता-जुलता दिखेगा। जब युधिष्ठिर सत्य की बात कहने वाले विदुर के पास जाते हैं, उन्हें सच का साथ देने के लिए कहते हैं। तब विदुर पांडव के साथ हुए अन्याय के प्रति कोई व्यर्थ प्रकट नहीं करते हैं। और युधिष्ठिर जब सत्य के साथ खड़े होने के लिए कहते हैं। तब विदूर उनसे मुंह छिपाकर भागते हैं अर्थात यहां पर दो चीजें देखी गई हैं। एक सत्य के पीछे भागता हुआ युधिष्ठिर, दूसरा सत्य का प्रतीक विदुर अन्याय के पक्ष में कुछ ना कहते हुए युधिष्ठिर से अपना मुंह छिपाए रहते हैं। पांडव के साथ गलत होने के कारण वह अपना मुंह छुपाए रहते हैं। अर्थात वह सत्यवादी होते हुए भी सत्य का साथ नहीं देते हैं, इस पंक्ति में यही बताया गया है। सत्य शायद जानना चाहता है भावार्थ-सत्य भी शायद कभी-कभी जानना चाहता है कि हम सत्य का साथ पाने के लिए कितनी दूर तक भाग सकते हैं। शायद विदुर भी यही जानना चाहते थे कि युधिष्ठिर विदुर का साथ पाने के लिए किस हद तक कितनी दूर तक जा सकते हैं। तभी तो विदुर मुंह छुपाते हुए जंगल की ओर भागते हैं और बार-बार युधिष्ठिर के कहने पर भी नहीं रुकते हैं। कभी दिखता है सत्य भावार्थ-कवि विष्णु खरे ने इन पंक्तियों के माध्यम से हमें यह बताने का प्रयास किया है कि सत्य कभी हमारे आसपास ही रहता है और कभी हमें दिखता ही नहीं है, क्योंकि कभी-कभी सत्य हमसे दूर हो जाता है, ओझल हो जाता है, गायब हो जाता है और कहां चला जाता है, यह हमें पता ही नहीं चलता। तभी तो बार-बार धर्म के राजा युधिष्ठिर के कहने पर और विनती करने पर भी स्वामी विदुर नहीं रूकते हैं। युधिष्ठिर ने विदूर स्वामी से यह भी कहा कि मैं कुंती नंदन हूं अर्थात कुंती का पुत्र आपका सेवक हूं। आप रुकिए मगर विदूर नहीं रुकते हैं और वे जंगल की ओर भाग जाते हैं। सत्य हमारी परिक्षा लेता है कि हम किस हद तक सत्य के पीछे भाग सकते हैं, उसको पाने के लिए तप कर सकते हैं। जैसे शमी वृक्ष के तने से टिककर भावार्थ- सत्य का प्रकाश उन पर बिखर रहे थे उनसे छिपकर वह भी आख़िरी बार आखरी बार कहने का तात्पर्य यह है कि इस घटना के बाद विदुर की मृत्यु हो जाती है। विदुर को यह एहसास होता है कि वह अब जीवन और मृत्यु के मायाजाल से निकलने वाले हैं और इस मायाजाल से निकलने से पहले वह अपने अंदर की उर्जा को किसी को देना चाहते थे और युधिष्ठिर से अच्छा कोई व्यक्ति हो ही नहीं सकता था। तभी तो जैसे उनको पता चलता है कि सत्य की खोज में निकले युधिष्ठिर उनसे सत्य का साथ पाना चाहते हैं. तो महाराज युधिष्ठिर को विदूर अपनी सारी शक्तियां दे देते हैं और मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। हम कह नहीं सकते भावार्थ- कविता के इस अंश में विदुर शमी वृक्ष की टहनियों से चिपक कर युधिष्ठिर को देख रहे थे और अपना तेज बिखेर रहें थे। हम पछताएंगे की सत्य ने हमसे तो कोई बात ही नहीं कि जबकि सत्य बोलता नहीं है बस समय रहते उसे पहचानने की आवश्यकता है। जिस दिन हमने सच को पहचान लिया उस दिन सत्य की समस्त शक्तियां हम में आ जाती हैं और हम सत्य से परिचित हो जाते हैं। इस अंश में कवि सत्य के बारे में कुछ बातें बताना चाहते हैं। कवि कहते हैं कि जब सत्य का प्रकाश हमारे अंदर समाहित होता है, तो वह कोई सबूत नहीं देता क्योंकि उस वक्त ना ही हमारे शरीर के अंदर कोई हलचल होती है न ही भूकंप जैसा कोई कंपन महसूस होता है और ना ही हम अपने आप में कोई बदलाव देखते हैं। अर्थात सत्य का प्रकाश जब हमारे अंदर आता है, तो वह कुछ भी नहीं बताता है या कुछ भी नहीं दिखाता है। जिससे हमें यह मालूम चले कि आखिरकार सत्य का प्रकाश हमारे अंदर आया है या नहीं। कवि ने इस अंश पर यह भी बताने का प्रयास किया है कि सत्य का प्रकाश अगर हमारे भीतर समाहित होता है, तो उसे केवल और केवल आत्मा ही पहचान पाती है। महाराज युधिष्ठिर अपने अंदर समाहित हुए सत्य को अपने आत्मा के माध्यम से पहचान पाए थे। विदुर कहना चाहते तो वही बात कह सकते थे भावार्थ- कविता के इस अंतिम अंश में कभी कहते हैं कि महाभारत के अनुसार सत्य बहुत ही कड़वा होता है और सत्य हर एक व्यक्ति के लिए अलग होता है जिस तरह वस्तु, समाज, पात्र, स्थान खान-पान बदलता है। ठीक वैसे ही सत्य भी हर एक व्यक्ति के लिए बदलता है। जो सत्य एक व्यक्ति के लिए सही होता है वह दूसरे व्यक्ति के लिए गलत भी हो सकता है। इन समस्त बातों को महाराज युधिष्ठिर जान चुके थे और इस तरीके से वह अपने देश लौट रहे थे। Tags: सत्य कविता का मूल भाव क्या है?सत्य कविता में कवि ने महाभारत के पौराणिक संदर्भों और पात्रों के द्वारा जीवन में सत्य की महत्ता को स्पष्ट करना चाहा है।
सत्य कविता का मुख्य प्रतिवाद क्या है?व्याख्या- 1
सत्य ( सच) यह जानना चाहता है की हम उसके पीछे की तरह भटक सकते हैं ! कवि कहता है सत्य केवल पुकारने से प्राप्त नहीं होता सत्य को प्राप्त करने के लिए कठोर तप करना पड़ता है ! कविता में विदुर सत्य के प्रतीक है ! और युधिष्ठिर सत्य के प्रति निष्ठावान व्यक्ति के प्रतिक है !
सत्य कविता कौन से युग की है?'सत्य' कविता महाभारत काल की कविता है।
इस कविता में कवि ने महाभारत काल के पौराणिक संदर्भों और पात्रों के द्वारा जीवन में सत्य के महत्व को स्पष्ट करने की कोशिश की है।
सत्य कभी दिखता है कभी ओझल हो जाता है क्यों?Answer: सत्य स्वयं में एक प्रबल शक्ति है। उसे दिखने से कोई नहीं रोक सकते हैं परन्तु यदि परिस्थितियाँ इसके विरोध में आ जाएँ, तो वह शीघ्रता से ओझल हो जाता है। सत्य को हर समय अपने सम्मुख रखना संभव नहीं है क्योंकि यह कोई वस्तु नहीं है।
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