इसे सुनेंरोकेंRas in hindi जैसे आत्मा के बिना शरीर का कोई मूल्य नही उसी प्रकार रस के बिना काव्य भी निर्जीव माना जाता हैं। आज हम रस किसे कहते हैं? परिभाषा भेद प्रकार अंग स्थायी भाव। दसों रसों श्रृंगार रस, हास्य रस, करूण रस, रौद्र रस, वीभत्स रस, भयानक रस, अद्धभुत रस, वीर रस, शान्त रस, और वात्सल्य रस की परिभाषा उदाहरण सहित जानेगें। Show
रास कितने होते हैं? रस कितने प्रकार के होते हैं – Ras ke prakar in Hindi
रस की उत्पत्ति में आश्रय की चेष्टाएँ क्या कहलाती है? इसे सुनेंरोकेंरसोत्पत्ति में आश्रय की चेष्टाएँ अनुभाव कही जाती है। नौ रस क्या है?इसे सुनेंरोकेंये चिरकाल तक रहने वाले तथा रस रूप में सृजित या परिणत होते हैं। स्थायी भावों की संख्या नौ है-रति, हास, शोक, क्रोध, उत्साह, भय, जुगुप्सा, विस्मय और निवेद। पढ़ना: जैसा कि मैंने घोषणा की थी , लेकिन मैं नहीं जानता था? आलम्बन विभाव क्या है? इसे सुनेंरोकेंआलम्बन का अर्थ है स्थाई भाव को जगाने वाले कारण जो कोई व्यक्ति हो सकता है , कोई वस्तु हो सकती है या कोई परिस्थिति हो सकती है उसे आलम्बन विभाव कहा जाता है। विश्व में रस का स्थाई भाव क्या है? इसे सुनेंरोकेंजब किसी काव्य की पंक्तियों को पढ़कर मन में जो भाव जाग्रत होते हैं जिससे एक प्रकार की अनुभूति होती है तो ये मन के भाव ही रस कहलाते हैं। संस्कृत के इस वाक्य काव्य की परिभाषा छिपी है। “वाक्यं रसात्मकं काव्यं” रस से युक्त वाक्य ही काव्य हैं। रस को काव्य की आत्मा कहा जाता है। आलंबन विभाव क्या होता है?इसे सुनेंरोकें(क) आलंबन विभाव – जब किसी विभाव को देखकर हमारे मन में भी ठीक वैसा ही भाव उत्पन्न हो, तो वह उत्पन्न भाव ‘आलंबन विभाव’ कहलाता है। जैसे – किसी हँसते हुए व्यक्ति को देखकर हँसी आना। प्रेमी युगल को प्रेम करते देखकर मन में प्रेम उमड़ना आदि। (अ) आलंबन- जिसे देखकर, पढ़कर या सुनकर भाव उत्पन्न हो, वह आलंबन कहलाता है। पढ़ना: वॉल्यूम का क्या उपयोग है? विभाव और अनुभव में क्या अंतर है? इसे सुनेंरोकेंयहाँ, आश्रय- राम, आलंबन- सीता, उद्दीपन- प्राकृतिक वातावरण एवं सीता का अलौकिक सौंदर्य। विभाव के उदाहरण में राम का सीता को देखना, मन-ही-मन पुलकित एवं रोमांचित होना अनुभाव है। इसे सुनेंरोकेंExplanation: विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के सहयोग से सहायता से स्थाई भाव रस रूप में परिणत हो जाते हैं। स्थायी भाव को रस का प्रारंभिक स्वरूप माना जाता है। विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के सहायता से स्थायी के रूप परिणत हो जाते हैं। रस कितने प्रकार के होते हैं किसी एक की सोदाहरण व्याख्या कीजिए? इसे सुनेंरोकेंकाव्य के प्रथम आठ रसों में शृंगार, रौद्र, वीर तथा वीभत्स को प्रधान मानकर क्रमश: हास्य, करुण, अद्भुत तथा भयानक रस की उत्पत्ति मानी है। शृंगार की अनुकृति से हास्य, रौद्र तथा वीर कर्म के परिणामस्वरूप करुण तथा अद्भुत एवं वीभत्स दर्शन से भयानक उत्पन्न होता है। पढ़ना: ककड़ी का बीज कैसे लगाएं? रस कितने प्रकार के होते हैं class 9?रस के प्रकार
रस कितने प्रकार के होते हैं Class 10? रस का शाब्दिक अर्थ है ‘आनन्द’। स्थाई भाव को जागृत करने वाला रस का अंग क्या कहलाता है? इसे सुनेंरोकेंआलंबन का अर्थ है आधार या आश्रय अर्थात जिसका अवलंब का आधार लेकर स्थाई भावों की जागृति होती है उन्हें आलंबन कहते हैं। सरल शब्दों में कहा जा सकता है कि जो सोए हुए मनोभावों को जागृत करते हैं वह आलंबन विभाव कहलाते हैं। पढ़ना: पीजीडीसीए की फीस कितनी है? जिसके कारण स्थाई भाव जागृत होता है उसे क्या कहते हैं?इसे सुनेंरोकें(iii) अनुभाव ‘अनु’ उपसर्ग का अर्थ है- बाद में या पीछे। स्थायी भाव के उत्पन्न होने पर उसके बाद जो भाव उत्पन्न होते हैं उन्हें अनुभाव कहा जाता है। ‘आलंबन और उद्दीपन विभावों के करण उत्पन्न भावों को बाहर प्रकाशित करने वाले कार्य ‘अनुभाव’ कहलाते हैं। कौन से रस को रसराज कहा जाता है? इसे सुनेंरोकेंश्रूंगार रस को रस राज कहा जाता हैं । शान्त रस का स्थाई भाव क्या है? इसे सुनेंरोकेंशांत रस: इसका स्थायी भाव निर्वेद (उदासीनता) होता है इस रस में तत्व ज्ञान कि प्राप्ति अथवा संसार से वैराग्य होने पर, परमात्मा के वास्तविक रूप का ज्ञान होने पर मन को जो शान्ति मिलती है वहाँ शान्त रस कि उत्पत्ति होती है जहाँ न दुःख होता है, न द्वेष होता है मन सांसारिक कार्यों से मुक्त हो जाता है मनुष्य वैराग्य प्राप्त कर … “कविता कहानी या उपन्यास को पढ़ने से जिस आनंद की अनुभूति होती है उसे रस कहते हैं। रस काव्य की आत्मा है।” आचार्य विश्वनाथ ने साहित्य-दर्पण में काव्य की परिभाषा देते हुए लिखा है-
नाट्य शास्त्र के छठे पाठ में, भरत ने संस्कृत में लिखा है:-
जिस प्रकार लोग स्वादिष्ट खाना, जो कि मसाले, चावल और अन्य चीज़ो का बना हो, जिस रस का अनुभव करते है और खुश होते है उसी प्रकार स्थायी भाव और अन्य भावों का अनुभव करके वे लोग हर्ष और संतोष से भर जाते है। इस भाव को तब ‘नाट्य रस’ कहा जाता है। कुछ लोगो की राय है कि रस और भाव की उठता उनके मिलन के साथ होती है। लेकिन यह बात सही नहीं है, क्योंकि रसो का जन्म भावो से होता है परंतु भावो का जन्म रसो से नहीं होता है। इसी कारण के लिये भावो को रसो का मूल माना जाता है। जिस प्रकार मसाले, सब्जी और गुड के साथ स्वाद या रस बनाया जा सके उसी प्रकार स्थाई भाव और अन्य भावों से रस बनाया जा सकता है और ऐसा कोई स्थाईभाव नहीं है जो रस की वृद्धि नहीं करता और इसी प्रकार स्थायीभाव, विभाव, अनुभाव और व्याभिचारी भावों से रस की वृद्धि होती है। रस के भाव:रसों के आधार भाव हैं। भाव मन के विकारों को कहते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं- स्थायी भाव और संचारी भाव। यही काव्य के अंग कहलाते है।
विभाव या निर्धारक तत्व:विभाव वजह या कारण या प्रेरणा होता है। उसे इसीलिए विभाव कहते हैं क्योंकि यह वचन शरीर, इशारों और मानसिक भावनाओं का विवरण करते हैं।
अनुभाव:जिसका उद्भव वाक्य और अंगाभिनय से होता हे उसे अनुभाव कहते हैं। यह विभाव का परिणामी है | यह एक व्यक्ति द्वारा महसूस अभिव्यक्ति भावनात्मक भावनाएं हैं। रस का स्थायी भाव : Ras and Sthayi Bhavरस का स्थायी भाव – ras ka sthayi bhavस्थायी भाव: स्थायी भाव से रस का जन्म होता है। जो भावना स्थिर और सार्वभौम होती है उसे स्थायी भाव कहते हैं। रस का उत्पादन भाव के बिना नही हो सकता, इस प्रकार से स्थायी भाव रस के नाम मे मशहूर है। स्थायी भाव 9 होते है:-
संचारी भाव: रस की वस्तु या विचार का नेतृत्व करते हे उसे संचारी भाव कहते हे। सात्विक भाव: आश्रय की शरीर से उसके बिना किसी बाहरी प्रयत्न के स्वत: उत्पन्न होने वाली चेष्टाएँ सात्विक अनुभाव कहलाती है इसे ‘अयत्नज भाव’ भी कहते है.। सात्विक भाव 8 तरह के होते है। स्तम्भ, स्वेद, स्वरभंग, वेपथु (कम्पन), वैवर्ण्य, अश्रुपात, रोमांस व प्रलय । रस के प्रकार नौ हैं – वात्सल्य रस को दसवाँ एवं भक्ति रस को ग्यारहवाँ रस भी माना गया है। वत्सलता तथा भक्ति इनके स्थायी भाव हैं। विवेक साहनी द्वारा लिखित ग्रंथ “भक्ति रस– पहला रस या ग्यारहवाँ रस” में इस रस को स्थापित किया गया है।
इन 9 रस मे से 4 रस मौलिक रस है- वे हैं – श्रृंगार, रौद्र, वीर और वीभत्स। इन चार मौलिक रस से बाकी 9 रस का उद्भव हुआ है- श्रृंगार से हास्य का उद्भव, रौद्र से करुण का उत्भव, वीर से अद्भुत का उत्भव और वीभत्स से भयानक का उद्भव होता है ।
रंग की तरह हर रस के लिए एक एक देवता भी होता है:-
1. शृंगार रसशृंगार (कामुक) का भाव रति (प्यार) नामक स्थायी मानोभाव से उत्पन्न होता है। इस दुनिया मे जो कुछ भी सुध और दीप्तिमान है उसे शृंगार कहा जाता है। संयोग शृंगारसुखद मौसम, माला, गहने, लोग, अच्छे घर, सुखों का आनंद, उद्यान के यातरें, सौंदर्य की बातें सुनने और देखने और आदि विभावों से सम्भोग श्रृंगार उत्पन्न होता है। आंखें, भौंहे आदि के निपुण आंदोलन द्वारा इस भाव का प्रतिनिधित्व किया जाता है। इसके भावनायें आलस्य, ऊग्रता और जुगुप्सा को छोडकर अन्य तीस भावनायें है। सम्भोग श्रृंगार को फिर से दो भागो में बांटां गया है, जो कि इस प्रकार है:
संक्षिप्त श्रृंगार को सात्विक भाव और शर्म द्वारा दिखाया जाता है और जुदाई के बाद पुनर्मिलन और प्यार से भरी अभिव्यक्ती को सम्पन्न सम्भोग कहा जाता है। संयोग श्रंगार का उदाहरण:-
विप्रलम्भ शृंगारप्यार मे जुदाई के विविधताओं को निर्वेदा, ग्लानि, स्ंक, असूय, श्रमा, सिन्त, उत्सुक्ता, आवेग, भय, विषाद, अवसाद, निद्रा, सुप्ति, विबोध, व्यधि, उन्माद, अपस्मर, जडता, मोह, मरण आदि अन्य क्षणभंगुर भावनायों द्वारा प्रतिनिधित्व किया जाता है। रास प्रकारण वीप्रलंभ को दो भागों में बांटा है; अयोग्य (अभाव मे प्यार)अपने प्रियतम से मिलने के पेहले, अभिनेत्रि कि दशा को अयोग्य विप्रलम्भ कहा जाता है। यहमुग्ध नायिकामे देखा जाता है, उदाहरण के लिये: शादि से पेहले पारवति का प्यार शिव जी के लिये और रुकमिणी का प्यार कृषण के लिये। अयोग्य विप्रलम्भ के मुख्य तौर पर दस तरिकों से दिखाया जा सकता है, जैसे कि:
विप्रयोग (जुदाई मे प्यार)विप्रयोग दो तरह के होते है: अभाव से उत्पन्न होने वाली जुदाई और असंतोष से उत्पन्न होने वाली जुदाई। अभाव से उत्पन्न होने वाली जुदाई को प्रवास कहा जाता है, यह प्रोषित्प्रिय नामक अभिनेत्रि मे देखा गया है। असंतोष से उत्पन्न होने वाली जुदाई, दो प्रेमी जो कि एक दूसरे को देखना नही चाहते या एक दूसरे को आलंगन नही करना चाहते, के बीच पैदा होता है। यह फिर से दो तरह का होता है:
वियोग श्रंगार का उदाहरण:-
Read More! 2. हास्य रसहास्य भाव का जन्म हास्य नामक स्थायी या प्रमुख मनोदषा से होती है। यह विक्रतप्रवेश, धृषटता, विक्रतालंकार, लौल्य, कुहाका, असतप्रलाप, व्यंगदर्शन, और दोसोधारण, आदि निर्धारकों द्वारा उतपन्न होता है। यह ओषथास्पंदन, नासस्पंदन, कापोलस्पंदन, दृष्टिव्याकोस, दृष्टाकुणचन, स्वेद, अस्यराग, पर्सव्याग्रह और आदि इशारों से दिखाया जात है। यह हास्य भाव दो तरह के होते हैं: जब कोई अपने आप से ह्ंसता है, तब आतमस्त कहलाता है और जब कोई दूसरों को हंसाता है तो परस्थ कहलाता है। हंसी के ६ प्रकार होते है:
इन मे से स्मिता और हसिता उत्तम वर्ग के वर्ण है, विहसिता और उपहसिता मधयम वर्ग के वर्ण है, और अपहसिता और अतिहसिता नीचि वर्ग के वर्ण है। हास्य रस का उदाहरण:-
Read More! 3. करुण रसकरुणा का भाव शोक नामक स्थायी मणोदषा से उतपन्न होता है। इसका उत्पादन अपनो और रिशतेदारों से जुदाई, धन की हानी, प्राण की हानी, कारावास, उडान, बदकिसमती, आदि अन्य निर्धारक तत्वों द्वारा होति है। अश्रुपात, परिवेदना, मुखषोशना, वैवरन्य, स्वरभेद, निश्वास, और स्मृतिलोप, से इसका प्रतिनिधित्व होता है। निर्वेद, ग्लानि, उत्सुकता, आवेग, मोह, श्रमा, विषाद, दैन्य, व्याधि, जडता, उनमाद, अपस्मर त्रासा, आल्स्य, मरण आदि अन्य इसके श्रणभंगुर भावनाएं है। स्तम्भ, सिहरन, वैवरन्य, अश्रु और स्वरभेद इसके सात्विक भाव है। करुण रस प्रिय जन कि हत्या की दृष्टि, या अप्रिय शब्दो के सुनने से भी इसकी उठता होति है। इसका प्रतिनिधित्व ज़ोर ज़ोर से रोने, विलाप, फूट फूट के रोने और आदि द्वारा होता है। करुण रस का उदाहरण:-
Read More! 4. रौद्र रसरौद्र क्रोध नामक स्थायी भाव से आकार लिया है | और यह आमतौर पर राक्षसों दानवो और बुरे आदमियो मे उत्भव होता है |और य्ह निर्धारकों द्वारा उत्पन्न जैसे क्रोधकर्सन, अधिकशेप, अवमन, अन्र्तवचना आदि रौद्र तीन तरफ क है – बोल से रौद्र नेपध्य से रौद्र और अग से रौद्र। रौद्र रस का उदाहरण:-
Read More! 5. वीर रसवीर का भाव उत्साह नामक स्थायी मणोदषा से उतपन्न होता है। वीर का भाव बेहतर स्वभाव के लोग और उर्जावन उत्साह से विषेशता प्राप्त करती है। इसका उत्पादन असम्मोह, अध्यवसय, नाय, पराक्रम, श्क्ती, प्रताप और प्रभाव आदि अन्य :निर्धारक तत्वों द्वारा होति है। स्थैर्य, धैर्य, शौर्य, त्याग और वैसराद्य से इसका प्रतिनिधित्व होता है। धृर्ती, मति, गर्व, आवेग, ऊग्रता, अक्रोश, स्मृत और विबोध आदि अन्य इसके श्रणभंगुर भावनाएं है। येह तीन प्रकार के होते है:
वीर रस का उदाहरण:-
Read More! 6. भयानक रसभयानक का भाव भय नामक स्थायी मणोदषा से उतपन्न होता है। इसका उत्पादन, क्रूर जानवर के भयानक आवाज़ो से, प्रेतवाधित घरों के दृषय से या अपनों कि मृत्यु कि खबर सुनने आदि अन्य निर्धारक तत्वों द्वारा होता है। हाथ, पैर, आखों के कंपन द्वारा इसका प्रतिनिधित्व किया जा सकता है। जडता, स्ंक, मोह, दैन्य, आवेग, कपलता, त्रासा, अप्सर्मा और मरण इसकी श्रणभंगुर भावनाएं है। इसके सात्विक भाव इस प्रकार है:
यह तीन प्रकार के होते है: व्यज, अपराध और वित्रसितक, अर्थात भय जो छल, आतंक, या गलत कार्य करने से पैदा होता है। भयानक रस का उदाहरण:-
Read More! 7. वीभत्स रसवीभत्स का भाव जुगुप्सा नामक स्थायी मणोदषा से उतपन्न होता है। इसका उत्पादन, अप्रिय, दूषित, प्रतिकूल, आदि अन्य निर्धारक तत्वों द्वारा होता है। सर्वङसम्हर, मुखविकुनन, उल्लेखन, निशिवन, उद्वेजन, आदि द्वारा इसका प्रतिनिधित्व किया जा सकता है। आवेग, मोह, व्याधि इसकी श्रणभंगुर भावनाएं है। यह तीन प्रकार के होते है:
वीभत्स रस का उदाहरण:-
Read More! 8. अद्भुत रसअद्भुत का भाव विस्मय नामक स्थायी मणोदषा से उतपन्न होता है। इसका उत्पादन दिव्यजनदरशन, ईप्सितावाप्ति, उपवनगमण्, देवाल, यगमण, सभादर्शण, विमणदर्शण, आदि अन्य निर्धारक तत्वों द्वारा होता है। नयणविस्तार, अनिमेसप्रेक्षण, हर्ष, साधुवाद, दानप्रबन्ध, हाहाकार और बाहुवन्दना आदि द्वारा इसका प्रतिनिधित्व किया जा सकता है। आवेग, अस्थिरता, हर्ष, उन्माद, धृति, जडता इसकी श्रणभंगुर भावनाएं है। स्तम्भ, स्वेद, रोमान्च, अश्रु और प्रलय इस्के सात्विक भाव है।
अद्भुत रस का उदाहरण:-
Read More! 9. शांत रसशांत का भाव शांति नामक स्थायी मणोदषा से उतपन्न होता है और यह भाव हर उस चीज़ से हमे मुक्ति दिलाता है जो हमारि मणोदषा को परेशान करती है। इसका उत्पादन तत्त्वज्नान, वैर्ग्य, आशय शुद्धि निर्धारक तत्वों द्वारा होता है। याम, नियाम, अध्यात्माध्यान, धारण, उपासन, आदि द्वारा इसका प्रतिनिधित्व किया जा सकता है। निर्वेद, स्मृति, धृति और मति इसकी श्रणभंगुर भावनाएं है। स्तम्भ और रोमान्च इस्के सात्विक भाव है। शात रस योगियो ने गिना हुआ है | शात रस सारे जीवियो को आनद देते है। शांत रस का उदाहरण:-
Read More! 10. वात्सल्य रसजब काव्य में किसी की बाल लीलाओं या किसी के बचपन का वर्णन होता है तो वात्सल्य रस होता है।सूरदास ने जिन पदों में श्री कृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन किया है उनमें वात्सल्य रस है। वात्सल्य रस का उदाहरण:-
Read More! 11. भक्ति रसइसका स्थायी भाव देव रति है इस रस में ईश्वर कि अनुरक्ति और अनुराग का वर्णन होता है अर्थात इस रस में ईश्वर के प्रति प्रेम का वर्णन किया जाता है। भक्ति रस के उदाहरण:-
Read More! Hindi Grammarभाषा, वर्ण, शब्द, पद, वाक्य, विराम चिन्ह, संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया, क्रिया विशेषण, समुच्चय बोधक, विस्मयादि बोधक, संबंधबोधक, निपात, वचन, लिंग, कारक, पुरुष, उपसर्ग, प्रत्यय, संधि, छन्द, समास, अलंकार, श्रंगार रस, विलोम शब्द, पर्यायवाची शब्द, अनेक शब्दों के लिए एक शब्द रस कितने प्रकार की होती है?मुख्य रूप से रस के नौ भेद होते हैं. वैसे तो हिंदी में 9 ही रस होते हैं लेकिन सूरदास जी ने एक रस और दिया है जो कि 10 रस माना जाता है. 1. श्रृंगार – जब नायक नायिका के बिछुड़ने का वर्णन होता है तो वियोग श्रृंगार होता है.
9 रस कौन कौन से हैं?रस के प्रकार (Ras Ke Prakar). श्रृंगार रस रति. हास्य रस हास. रौद्र रस क्रोध. करुण रस शोक. वीर रस उत्साह. अद्भुत रस आश्चर्य. वीभत्स रस घृणा, जुगुप्सा. भयानक रस भय. रस कितने प्रकार के होते हैं Class 10?Types of Ras – रस के प्रकार रस के ग्यारह भेद होते है- (1) शृंगार रस (2) हास्य रस (3) करूण रस (4) रौद्र रस (5) वीर रस (6) भयानक रस (7) बीभत्स रस (8) अदभुत रस (9) शान्त रस (10) वत्सल रस (11) भक्ति रस । जब नायक नायिका के परस्पर मिलन, स्पर्श, आलिगंन, वार्तालाप आदि का वर्णन होता है, तब संयोग शृंगार रस होता है।
रस के कितने अंग होते हैं?रस के चार प्रमुख अंग होते हैं: स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव और संचारी भाव।
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