अलंकार किसे कहते हैं, अलंकार कितने होते हैं? हिंदी साहित्य के अलंकार. अलंकार PDF. अलंकार in English. अलंकार मराठी, अलंकार Class 9. अनुप्रास अलंकार, श्लेष अलंकार अलंकार के बारे में पूरी जानकारी यहाँ दी गई है. Show
अलंकार किसे कहते हैंअलंकार किसे कहते हैं – काव्य की शोभा बढ़ाने वाले तत्त्वों को अलंकार कहते हैं। अलंकार के मुख्य दो भेद हैं—शब्दालंकार और अर्थालंकार। जहाँ शब्दों के कारण चमत्कार आ जाता है वहाँ शब्दालंकार तथा जहाँ अर्थ के कारण रमणीयता आ जाती है वहाँ अर्थालंकार होता है। (Alankar kise kahate hain) शब्दालंकार के प्रकारशब्दालंकार के तीन भाग हैं-
अनुप्रास अलंकार किसे कहते हैंअनुप्रास अलंकार– जहाँ व्यंजनों की बार-बार आवृत्ति हो, चाहे उनके स्वर मिलें या न मिलें वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है। अनुप्रास अलंकार के पाँच भेद होते हैं-
छेकानुप्रास अलंकार उदाहरण सहितजहाँ एक या अनेक वर्णों की आवृत्ति केवल एक बार होती है वहाँ छेकानुप्रास होता है। उदाहरण- राधा के बर बैन सुनि चीनी चकित सुभाइ। यहाँ ब, च, द, म और स वर्णों की एक एक बार आवृत्ति हुई है, अतः छेकानुप्रास है। वृत्त्यनुप्रास अलंकारजहाँ एक अथवा अनेक वर्णों की आवृत्ति दो या दो से अधिक बार हो, वहाँ वृत्त्यनुप्रास होता है। उदाहरण- तरनि-तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाये। यहाँ ‘त’ वर्ण की अनेक बार आवृत्ति होने के कारण वृत्त्यनुप्रास है। श्रुत्त्यनुप्रास अलंकार किसे कहते हैंजहाँ कण्ठ-तालु आदि एक स्थान से बोले जाने वाले वर्गों की आवृत्ति होती है, वहाँ श्रुत्त्यनुप्रास होता है। उदाहरण- तुलसीदास सीदत निसिदिन देखत तुम्हारि निठुराई। इसमें दन्त्य वर्णों त, स, र, न की आवृत्ति हुई है, अतः इसमें श्रुत्त्यनुप्रास है। लाटानुप्रास के उदाहरणजब शब्द और उसका अर्थ वही रहे, केवल अन्वय करने से अर्थ में भेद हो जाय, उसे लाटानुप्रास कहते हैं। उदाहरण- तीरथ-व्रत-साधन कहा, जो निस दिन हरिगान। इसमें शब्द और अर्थ वही है, परन्तु अन्वय करने से अर्थ में भिन्नता आ जाने के कारण लाटानुप्रास है। विशेष – लाट प्रदेश के कवियों द्वारा खोजे और फिर प्रचलित किये जाने के कारण यह अलंकार लाटानुप्रास कहलाता है. गुजरात में भड़ौच और अहमदाबाद के पास यह प्रदेश था. अन्त्यानुप्रास अलंकारजहाँ चरण या पद के अंत में स्वर या व्यंजन की समानता होती है वहाँ अन्त्यानुप्रास होता है. उदाहरण- गुरु पद रज मृदु मंजुल अंजन। इसमें अन्त में न वर्ण की समानता के कारण अन्त्यानुप्रास है।
यमक अलंकार किसे कहते हैंयमक अलंकार– जहाँ भिन्न-भिन्न अर्थों वाले शब्दों की आवृत्ति हो वहाँ यमक अलंकार होता है। (Yamak alankar kise kahate hain) यमक अलंकार के उदाहरण– इकली डरी हौं, घन देखि के डरी हौं, ऊपर के पद में ‘डरी‘ तीन बार आया है—अर्थ भिन्न-भिन्न हैं। पहली डरी का अर्थ पड़ी है, दूसरी डरी का अर्थ ‘भयभीत’ है तथा तीसरी डरी का अर्थ विष की डली या टुकड़ी है। श्लेष अलंकार किसे कहते हैंश्लेष अलंकार– जहाँ एक शब्द का एक ही बार प्रयोग होता है और उसके एक से अधिक अर्थ होते हैं, वहाँ श्लेषालंकार होता है। उदाहरण- चिरजीवो जोरी जुरे क्यों न सनेह गंभीर। यहाँ वृषभानुजा दो अर्थों में प्रयुक्त है, पहला वृषभानु की पुत्री राधा, दूसरा वृषभ की अनुजा गाय। इसी प्रकार ‘हलधर के वीर’ के भी दो अर्थ हैं—(1) हलधर अर्थात् बलराम के कृष्ण तथा (2) हलधर को धारण करने वाले बैल के भाई बैल। ‘वृषभानुजा’ तथा ‘हलधर’ के एक से अधिक अर्थ होने के कारण यहाँ श्लेष अलंकार है। अर्थालंकार कितने प्रकार के होते हैंअर्थालंकार के नौ भेद होते हैं-
उपमा अलंकार किसे कहते हैंउपमा अलंकार – समान धर्म के आधार पर जहाँ एक वस्तु की समानता या तुलना किसी दूसरे वस्तु से की जाती है वहाँ उपमा अलंकार माना जाता है। इसके चार अंग हैं-
उदाहरणार्थ– हरिपद कोमल कमल से। इस एक पंक्ति में उपमा के चारों अंग उपस्थित हैं। हरिपद का वर्णन किया जा रहा है, वे उपमेय हैं। उनकी समता कमल से की गयी है, अतः कमल उपमान है। कोमलता वाले गुण में ही दोनों के बीच समानता दिखाई गई है, अतः यह साधारण धर्म है तथा ‘से’ शब्द वाचक है. इस पंक्ति में पूर्णोपमा है क्योंकि इसमे चारो अंग हैं. जहाँ उपमा के चारो अंग में से कोई अंग लुप्त रहता है वहाँ लुप्तोपमा होता है. उपमेय लुप्तोपमा– जहाँ केवल उपमेय लुप्त हो, वहाँ उपमेय लुप्तोपमा अलंकार होता है। यथा- उपमान लुप्तोपमा– जहाँ उपमान का लोप हो वहाँ उपमानं लुप्तोपमा अलंकार होता है। यथा- साधारण-धर्म लुप्तोपमा– जहाँ साधारण धर्म का लोप हो वहाँ धर्म लुप्तोपमा अलंकार होगा। यथा- वाचक लुप्तोपमा– जहाँ वाचक शब्द का लोप हो वहाँ वाचक लुप्तोपमा अलंकार होता है। जैसे- जहाँ उपमेय का उत्कर्ष दिखाने के हेतु अनेक उपमान एकत्र किये जायँ वहाँ मालोपमा अलंकार होता है। जैसे- इन्द्र जिमि जम्भ पर बाड़व सुअंभ पर, रूपक अलंकार किसे कहते हैंजहाँ उपमेय में उपमान का आरोप हो वहाँ रूपक अलंकार होता है। रूपक अलंकार के तीन भेद होते हैं.
सांगरूपक Alankar in hindiजहाँ उपमेय पर उपमान का सांग आरोप हो, वहाँ सांगरूपक होता है। उदाहरण- उदित उदय गिरि मंच पर रघुवर बाल पतंग। यहाँ रघुवर, मंच, संत, लोचन आदि उपमेयों पर बाल सूर्य, उदयगिरि, सरोज तथा भुंग आदि उपमानों का आरोप किया गया है, अतः यहाँ सांगरूपक है। निरंग रूपक Alankar in hindiजहाँ उपमेय पर उपमान का आरोप सर्वांग न हो वहाँ निरंग रूपक होता है। उदाहरण- अवसि चलिय बन राम पहुं भरत मंत्र भल कीन्ह। यहाँ सिन्धु उपमान का शोक उपमेय में आरोप मात्र है, अतः निरंग रूपक है। परम्परित रूपक Alankar in hindiजहाँ मुख्य रूपक किसी दूसरे रूपक पर अवलम्बित हो या जहाँ एक आरोप दूसरे का कारण बनता हुआ दिखाया जाय वहाँ परम्परित रूपक होता है। उदाहरण- बन्दौं पवन कुमार खल बन पावक ज्ञान घन। यहाँ हनुमान् में जो अग्नि का आरोप प्रदर्शित किया गया है, उसका कारण खलों में वन का आरोप है, अतः इस आरोप पर ही प्रथम आरोप अवलम्बित है। जहाँ उपमान के अभाव में उपमेय ही को उपमान मान लिया जाय वहाँ अनन्वय अलंकार होता है। उदाहरण- राम से राम सिया सी सिया प्रतीप अलंकार किसे कहते हैंजहाँ प्रसिद्ध उपमान को उपमेय बना दिया जाय अथवा उसकी व्यर्थता प्रदर्शित की जाए वहाँ प्रतीप अलंकार होता है. जैसे सांवले रंग के शरीर का प्रसिद्ध उपमान यमुना जल है. तुलसीदास ने भगवान् राम के वनवास जाते समय मार्ग में यमुना स्नान करने के प्रसंग में इस अलंकार का प्रयोग किया है. उदाहरण- उतरि नहाये जमुन जल जो सरीर सम स्याम। राम उस जमुना-जल में नहाये जो उनके शरीर के समान साँवले रंग का है। इस प्रकार उपमेय को उपमान बना दिया और उपमान को उपमेय। प्रतीप का अर्थ ही उल्टा होता है। उदाहरण- जगप्रकाश तुव जस करै बृथा भानु यह देख। यहाँ पर भी प्रसिद्ध उपमान सूर्य की व्यर्थता प्रतिपादित कर देने से प्रतीप अलंकार है। सन्देह अलंकार उदाहरण सहितसंदेह अलंकार– जहाँ किसी वस्तु की समानता अन्य वस्तु से दिखायी पड़ने से यह निश्चित न हो पाये कि यह वस्तु वही है या कोई अन्य, वहाँ सन्देह अलंकार होता है। लंका-दहन के वर्णन में हनुमान की पूँछ को देखकर यह निश्चित ज्ञान नहीं हो पाता कि यह आकाश में अनेक हैं या पर्वत से अग्नि की नदी सी निकल रही है- संदेह अलंकार के उदाहरण– कैधौं व्योम बीथिका भरे हैं भूरि धूमकेतु सन्देह अलंकार का एक और उदाहरण- नारी बीच सारी है कि सारी बीच नारी है भ्रान्तिमान अलंकार Alankar in hindiसन्देह में तो यह संदेह बना रहता है कि यह वस्तु रस्सी है या सर्प है, परन्तु भ्रान्तिमान में तो अत्यन्त समानता के कारण एक वस्तु को दूसरी समझ लिया जाता है और उसी भूल के अनुसार कार्य भी कर डाला जाता है। यथा- बिल बिचारि प्रविसन लग्यौ नाग शुंड में ब्याल। यहाँ सर्प को हाथी की सूंड़ में बिल होने की भ्रान्ति हुई और वह उसी भूल के अनुसार क्रिया भी कर बैठा, उसमें घुसने लगा। उधर हाथी को भी सर्प में काले गन्ने की प्रान्ति हुई और उसने तत्काल उसे गन्ना समझ कर उठा लिया।
उत्प्रेक्षा अलंकार किसे कहते हैं(Utpreksha alankar) जहाँ उपमेय में उपमान की सम्भावना की जाय वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। इसके तीन भेद हैं- 1. वस्तूत्प्रेक्षा 2. हेतूत्प्रेक्षा 3. फलोत्प्रेक्षा। वस्तूत्प्रेक्षा – जहाँ किसी वस्तु में किसी अन्य वस्तु की सम्भावना की जाती है वहाँ वस्तूत्प्रेक्षा होती है। यथा- सखि सोहति गोपाल के उर गुंजन की माल। गुंजन की माल उपमेय में दावानल ज्वाल उपमान की सम्भावना की गयी है। हेतूत्प्रेक्षा– जहाँ अहेतु में अर्थात् जो कारण न हो, उसमें हेतु की सम्भावना की जाय, वहाँ हेतूत्प्रेक्षा होती है। यथा- रवि अभाव
लखि रैनि में दिन लखि चन्द्र विहीन। राजा के यश प्रताप के सतत देदीप्यमान होने का हेतु रात्रि में सूर्य का और दिन में चन्द्र का अभाव बताया गया है, अतः अहेतु में हेतु की सम्भावना की गयी है। फलोत्प्रेक्षा–जहाँ अफल में फल की सम्भावना की गयी हो, वहाँ फलोत्प्रेक्षा होती है। यथा- तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाये। यहाँ तमालों को झुके हुए होने का पवित्र जमुना जल स्पर्श का पुण्यलाभ प्राप्त करना फल या उद्देश्य बताया गया है। यहाँ अफल को फल मान लेने के कारण फलोत्प्रेक्षा है। दृष्टान्त अलंकार किसे कहते हैंजहाँ उपमेय व उपमान के साधारण धर्म में भिन्नता होते हुए भी बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव से कथन किया जाय वहाँ दृष्टान्त अलंकार होता है।उदाहरण- दुसह दुराज प्रजान को क्यों न बड़े दुख द्वन्द्व। अतिशयोक्ति अलंकार किसे कहते हैंजहाँ किसी वस्तु की इतनी अधिक प्रशंसा की जाय कि लोकमर्यादा का अतिक्रमण हो जाय, वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है। उदाहरण- अब जीवन की है कपि आस न कोय। यहाँ शरीर की क्षीणता को व्यंजित करने के लिए अंगूठी को कंगन होना बताया गया है, अतः यहाँ अतिशयोक्ति अलंकार है।
राम सिया राम सिया को सिया में अलंकार कौन सा है?अतः यहाँ श्लेष अलंकार हैं। जब काव्य में समान धर्म के आधार पर एक वस्तु की समानता अथवा तुलना अन्य वस्तु से की जाए, तब वह उपमा अलंकार होता है, जिसकी उपमा दी जाए उसे उपमेय तथा जिसके द्वारा उपमा यानी तुलना की जाए उसे उपमान कहते हैं।
अर्थालंकार कौन कौन से हैं?अर्थालंकार के भेद. उपमा अलंकार. रूपक अलंकार. उत्प्रेक्षा अलंकार. विरोधाभास अलंकार. मानवीयकरण अलंकार. अतिशयोक्ति अलंकार. आंसू से में कौन सा अलंकार है?सही उत्तर निदर्शना है। जहाँ उपमेय और उपमान वाक्यों के अर्थ में भिन्नता होते हुए भी उनमें समानता की कल्पना की जाती है, वहाँ निदर्शना अलंकार होता है। उदाहरण - यह प्रेम को पंथ कराल महा, तरवारि की धार पै धावनो है।
नवजीवन दो घनश्याम हमें इस पंक्ति में कौन सा अलंकार है?(3) श्लेष अलंकार
नव जीवन दो घनश्याम हमें! घनश्याम = कृष्ण, बादल, हथौड़ा।
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