राम और सुग्रीव की मित्रता किस प्रकार हुई इस प्रसंग में सच्चे मित्र के क्या लक्षण बताए गए हैं? - raam aur sugreev kee mitrata kis prakaar huee is prasang mein sachche mitr ke kya lakshan batae gae hain?

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श्रीराम और सुग्रीव का प्रसंग, सच्ची मित्रता में मित्रों के सुख-दुख एक ही होते हैं

  • हनुमानजी ने पहली बार में ही अपनी बुद्धि और वाणी से श्रीराम को किया था प्रभावित

जीवन मंत्र डेस्क। रामायण के किष्किंधा कांड की शुरुआत में सुग्रीव और सभी वानर दो राजकुमारों को देखते हैं। सुग्रीव को बाली ने अपने राज्य से निकाल दिया था और उनकी पत्नी तारा को बलपूर्वक अपने पास रख लिया था। सुग्रीव हनुमानजी, जामवंत और अपने कुछ वानर साथियों के साथ किसी तरह अपने प्राण बचाकर एक गुफा में छिपे थे। जब सुग्रीव ने दो राजकुमारों को देखा तो उन्होंने हनुमानजी को उनके पास उनका परिचय जानने के लिए भेजा। उज्जैन के श्रीराम कथाकार पं. मनीष शर्मा के अनुसार जानिए इस प्रसंग की खास बातें...

1) श्रीराम और सुग्रीव की खास बातें

हनुमानजी वेश बदलकर दोनों राजकुमारों से मिले। वे दोनों राजकुमार श्रीराम और लक्ष्मण थे। हनुमानजी ने अपनी बुद्धिमता और वाणी-कौशल से पहली भेंट में ही श्रीराम को प्रभावित कर लिया। श्रीराम लक्ष्मण से कहते हैं कि ये निश्चित ही ज्ञानी हैं। जिस राजा के पास इनके समान दूत न हो, उसके कार्यों की सिद्धि कैसे हो सकती है।

सुग्रीव-श्रीराम मित्रता में हनुमान की भूमिका महत्वपूर्ण थी। जिस संबंध में हनुमान की उपस्थिति हो, वह हमेशा मंगलदायक और कल्याणदायक ही होता। इसीलिए किसी भी काम की शुरुआत में हनुमानजी का ध्यान जरूर करना चाहिए। इस प्रसंग में श्रीराम सुग्रीव से मित्रता के लिए स्वयं पहल करते हैं। श्रीराम कहते हैं उपकार ही मित्रता का फल है और अपकार शत्रुता का लक्षण है।

इस प्रसंग में श्रीराम ने कहा है कि उपकार ही मित्रता का फल है। मित्र एक-दूसरे का भला करते हैं यानी एक-दूसरे पर उपकार करते हैं। मित्र एक-दूसरे को सभी कष्टों से मुक्ति दिलाते हैं। श्रीराम और सुग्रीव अग्नि को साक्षी बनाकर मित्रता करते हैं। सुग्रीव श्रीराम से कहते हैं कि आप मेरे प्रिय मित्र हैं। आज से हम दोनों के दुख और सुख एक हैं। श्रीराम को सीता की खोज करनी थी और सुग्रीव को अपना राज्य और पत्नी वापस प्राप्त करनी थी। बाली से युद्ध के लिए सुग्रीव को श्रीराम की जरूरत थी और श्रीराम सीता की खोज के लिए वानर सेना की जरूरत थी। इस प्रकार दोनों से मित्रता करके एक-दूसरे की मदद करने का संकल्प लिया। इस प्रसंग की सीख यही है कि सच्ची मित्रता में मित्रों के सुख-दुख एक ही होते हैं।

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Ram Sugreev Maitri (Milan) summary in hindi राम सुग्रीव मित्रता

हिन्दू धर्म का ग्रन्थ रामायण एक पवित्र महान ग्रन्थ है| इसमें जीवन के अनेकों प्रसंग देखने को मिलते है| वाल्मीकि द्वारा लिखी गई रामायण के हर अध्याय को बहुत खूबसूरती के साथ रचित किया गया है| रामायण से आज आधुनिक जीवन में बहुत सी बातें सीखी जा सकती है, इससे हम सीखते है कि किसी मनुष्य के लिए प्राण से ज्यादा वचन जरुरी है, शादी के बंधन को बहुत अटूट बताया गया है, पति पत्नी दोनों के कर्तव्यों को गहराई से समझया गया है, भाइयों के प्रेम को अनोखे रूप में दिखाया गया है| बाप बेटे के मार्मिक संबंध को दर्शाया गया है, मित्रता के सम्बन्ध को जाति-पाती, राज्य धर्म से सबसे उपर रखा गया है| रामायण के रचियता मह्रिषी वाल्मीकि का जीवन परिचय, जयंती के बारे में यहाँ पढ़ें|

आज मैं आपको रामायण के एक प्रसंग से मित्रता के बारे में बताउंगी| मनुष्य के जीवन में मित्रता एक ऐसा संबंध है, जो मनुष्य के जन्म के साथ शुरू नहीं होता है, लेकिन मनुष्य के मरते दम तक वो सम्बन्ध मनुष्य को बांधे रहता है| परमेश्वर, मनुष्य को जन्म के साथ अनेकों सम्बन्ध के साथ जोड़ कर भेजता है, लेकिन सिर्फ एक सम्बन्ध है जिसे बनाने का हक वो मनुष्य को देते है| दुनिया में हर सम्बन्ध बनाने के पहले मनुष्य उसकी जाति, धर्म, घर, व्यापार देखता है, लेकिन मित्रता के लिए ये सब नहीं देखा जा सकता है. मित्रता दिल से दिल को जोड़ती है. मित्रता के उदाहरण कई युगों से मिलते आ रहे है आदि|

1. कृष्ण-सुदामा
2. कृष्ण-अर्जुन
3. कर्ण-दुर्योधन
4. राम-सुग्रीव

राम सुग्रीव की मित्रता के बारे में हम रामायण के किशकिन्दा कांड में पढ़ते है| राम सुग्रीव की मित्रता तब होती है, जब राम अपने पिता दशरथ के बोलने पर 14 वर्ष के वनवास में होते है| वनवास के दौरान जब राम माता सीता के बोलने पर स्वर्ण मृग को पकड़ने के लिए जाते है, उसी समय रावन ब्राह्मण का वेश धारण कर सीता माता का अपहरण कर लेता है| स्वर्ण मृग को मारकर जब राम लौटते है, तब सीता कुटिया में नहीं होती है| सीता की खोज में राम लक्ष्मण निकलते है, तभी उन्हें जटायु मिलता है, जो उन्हें बताता है कि रावन माता सीता को उठा ले गया. जटायु के पंख रावन काट देता है, जिससे वो मर जाते है| राम लक्ष्मण दोनों माता सीता की खोज में चित्रकूट से निकल कर दक्षिण की ओर मलय पर्वत की ओर आते है| माता सीता का अद्भुत स्वयंवरके बारे में यहाँ पढ़े|

राम और सुग्रीव की मित्रता किस प्रकार हुई इस प्रसंग में सच्चे मित्र के क्या लक्षण बताए गए हैं? - raam aur sugreev kee mitrata kis prakaar huee is prasang mein sachche mitr ke kya lakshan batae gae hain?

  • Ram Sugreev Maitri (Milan) summary in hindi राम सुग्रीव मित्रता
    • राम हनुमान मिलन (Ram Hanuman Milan) –
    •   राम सुग्रीव मित्रता Ram Sugreev Maitri Summary In Hindi
    • लक्ष्मण का भाभी के प्रति सम्मान –
    • बलि का वध (Bali Vadh) –
    • सुग्रीव का मित्रता निभाना –

दक्षिण के ऋषयमुका पर्वत पर सुग्रीव नाम का वानर अपने कुछ साथियों के साथ रहते है| सुग्रीव किशकिन्दा के राजा बली के छोटे भाई होते है| राजा बली और सुग्रीव के बीच किसी बात को लेकर मतभेद हो जाता है, जिस वजह से बली, सुग्रीव को अपने राज्य से निकाल देते है, और उनकी पत्नी को भी अपने पास रख लेते है| बली, सुग्रीव की जान का दुश्मन हो जाते है और उन्हें देखते ही मारने का आदेश देते है| ऐसे में सुग्रीव अपनी जान बचाते हुए, बली से बचते फिरते है| उनसे छिपने के लिए वे ऋषयमुका पर्वत पर एक गुफा में रहते है|

जब राम लक्ष्मण मलय पर्वत की ओर आते है, तब सुग्रीव के वानर उन्हें देखते है और वे सुग्रीव को जाकर बोलते है, दो हष्ट-पुष्ट नौजवान हाथ में धनुष बाण लिए पर्वत की ओर बढ़ रहे है| सुग्रीव को लगता है कि ये बली ही की कोई चाल है| उनके बारे में जानने के लिए सुग्रीव अपने प्रिय मित्र हनुमान को उनके पास भेजते है|

राम हनुमान मिलन (Ram Hanuman Milan) –

हनुमान जी सुग्रीव के आदेश पर राम जी के पास जाते है, वे ब्राह्मण भेष में उनके सामने जाते है| हनुमान राम जी से उनके बारे में पूछते है कि वे राजा जैसे दिख रहे है, तो वे सन्यासी भेष में इस घने वन में क्या कर रहे है| राम जी उन्हें कुछ नहीं बोलते है, तब हनुमान खुद अपनी सच्चाई उनके सामने बोलते है, और बताते है कि वे एक वानर है जो सुग्रीव के कहने पर यहाँ आये है| यह सुन राम उन्हें अपने बारे में बताते है, हनुमान जी जब ये पता चलता है कि ये मर्यादा पुरषोतम राम है, तो वे भाव विभोर हो जाते है, और तुरंत राम के चरणों में गिर उन्हें प्रणाम करते है| राम भक्त हनुमान अपने जन्म से ही इस पल का इंतजार कर रहे होते है, राम जी उनका मिलना, उनके जीवन का बहुत बड़ा एवं महत्पूर्ण क्षण होता है|

राम हनुमान मिलान के बाद लक्ष्मण जी उन्हें बताते है कि सीता माता का किसी ने अपहरण कर लिया है, उन्ही को ढूढ़ने के लिए हम आ पहुंचे है| तब हनुमान उन्हें वानर सुग्रीव के बारे में बताते है, और ये भी बोलते है कि सुग्रीव माता सीता की खोज में उनकी सहायता करेंगें| फिर हनुमान दोनों भाई राम लक्ष्मण को अपने कन्धों पर बैठाकर वानर सुग्रीव के पास ले जाते है|

  राम सुग्रीव मित्रता Ram Sugreev Maitri Summary In Hindi

हनुमान सुग्रीव को राम लक्ष्मण के बारे में बताते है, जिसे सुन सुग्रीव सम्मानपूर्वक उन्हें अपनी गुफा में बुलाते है| सुग्रीव अपने मंत्री जामवंत और सहायक नर-नीर से उनका परिचय कराते है| राम सुग्रीव से इस तरह गुफा में रहने का कारण पूछते है, तब जामवंत उन्हें राजा वाली के बारे में सब कुछ बताते है| मंत्री जामवंत फिर राम जी से बोलते है कि अगर वे  को मारने में उनकी मदद करेंगें, तो वानर सेना माता सीता को खोजने में उनकी मदद करेगी| और कहते है कि इस तरह दोनों के बीच राजनैतिक संधि हो जाएगी| यह सुन राम जी सुग्रीव की मदद को इंकार कर देते है| वे कहते है कि “मुझे सुग्रीव से राजनैतिक सम्बन्ध नहीं रखना है, ये तो दो राजाओं के बीच होता है, जहाँ सिर्फ स्वार्थ होता है, और मेरे स्वाभाव में स्वार्थ की कोई जगह नहीं है. इस तरह की संधि तो व्यापार की तरह है कि पहले आप मेरी मदद करें, फिर मैं आपकी करूँगा”

जामवंत ये सुन राम से माफ़ी मांगते है, और कहते है कि वे छोटी जाति के है, उन्हें शब्दों का सही उपयोग नहीं पता है, लेकिन नियत साफ है| जामवंत राम जी से कहते है कि उन्हें वो तरीका बताएं जिससे वानर योनी के प्राणी और उनके जैसे उच्च मानवजाति के बीच सम्बन्ध स्थापित हो सके| तब राम जी बोलते है कि वो एक ही नाता है, जो योनियों, जातियों, धर्मो, उंच नीच को पीछे छोड़, एक मनुष्य का दुसरे मनुष्य से रिश्ता कायम कर सकता है, और वो नाता है ‘मित्रता’ का| राम जी बोलते है कि वे सुग्रीव से ऐसा रिश्ता चाहते है जिसमें कोई शर्त न हो, कोई लेन देन नहीं हो, किसी भी तरह का कोई स्वार्थ न हो, उस रिश्ते में सिर्फ प्यार का आदान प्रदान हो| संधि तो राजा के बीच ही होती है, लेकिन मित्रता तो एक राजा की एक भिखारी से भी हो सकती है|

राम जी सुग्रीव के सामने मित्रता का प्रस्ताव रखते है, जिसे सुन सुग्रीव भाव विभोर हो जाते है| वे कहते है कि मैं वानर जाति का छोटा सा प्राणी हूँ लेकिन आप मानवजाति के उच्च प्राणी, फिर भी आप मुझसे मित्रता करना चाहते है तो मेरा हाथ एक पिता की तरह थाम लीजिये| राम सुग्रीव के साथ अग्नि को साक्षी मानकर अपनी दोस्ती की प्रतिज्ञा लेते है| इस तरह दोनों के बीच घनिष्ट मित्रता स्थापित हो जाती है|

लक्ष्मण का भाभी के प्रति सम्मान –

राम सुग्रीव मित्रता के बाद, राम जी सीता के बारे में विस्तार से उन्हें बताते है| तब सुग्रीव को एक बात याद आती है| वे उन्हें बताते है कि एक बार वे पहाड़ पर अपने साथियों के साथ बैठे हुए थे, तब वहां उपर से एक उड़ने वाला विमान निकला था, उसमें एक राक्षस के साथ एक औरत भी थी| उस विमान से एक कपड़े में लपटे हुए कुछ जेवर नीचे गिरते है| राम जी तुरंत उन्हें वो दिखा ने के लिए बोलते है| उन जेवरों को देख राम जी पहचान जाते है कि ये सीता के है| वे ये लक्ष्मण को दिखाते है और उसे पहचानने को बोलते है| लक्ष्मण जी बोलते है कि वे कान के झुमके और गले का हार तो नहीं पहचानते है, लेकिन ये पायल को पहचानते है| ये माता सीता की ही है, वे रोज सीता जी के पैर छुते समय इसे देखते थे|

इस बात से पता चलता है कि लक्ष्मण जी अपनी भाभी को एक माँ के समान दर्जा देते थे| वे इस रिश्ते की मर्यादा को भी जानते थे| इसका मतलब ये नहीं कि उन्होंने सीता जी को देखा ही नहीं था| लक्ष्मण जी बोलते है कि सीता माता के चेहरे पर इतना तेज होता था कि वे उनके चेहरे पर जेवरों को देख ही नहीं पाते थे|

बलि का वध (Bali Vadh) –

सच्ची मित्रता का उदाहरन प्रस्तुत करते हुए, राम सुग्रीव के दुखी मन को जान जाते है| एक सच्चा मित्र दुःख सुख का साथी होता है. राम जी सुग्रीव के बड़े भाई से उसके राज्य किष्किन्धा को वापस लाने का प्रण लेते है| राम जी सुग्रीव के साथ मिलकर वाली को मारते है, और इस तरह सुग्रीव को उनका राज्य और उनकी पत्नी वापस मिल जाती है|

सुग्रीव का मित्रता निभाना –

किशकिन्दा का राजसिंघासन मिलने के बाद सुग्रीव उसे अच्छे से सँभालने लगते है| उस समय बरसात का समय होता है, तो सुग्रीव राम को बोलते है कि इस मौसम के बाद वे लोग सीता माता की खोज में निकलेंगें| इस बीच राम लक्ष्मण के साथ उसी राज्य के पास एक जंगल में कुटिया में रहते है| समय बीतता है, और बारिश का मौसम भी खत्म हो जाता है| लेकिन सुग्रीव की कोई खबर नहीं होती है. लक्ष्मण जो स्वाभाव से थोड़े गुस्सेल थे, राम से बोलते है कि सुग्रीव अपना वचन भूल गया और अपने राज्य में व्यस्त हो गया| राम से पूछकर लक्ष्मण सुग्रीव से मिलने किशकिन्दा राज्य जाते है| वे वहां जाकर सुग्रीव को बहुत बुरा भला कहते है| तब सुग्रीव उन्हें बोलते है कि वे अपना वचन नहीं भूले है, उन्हें याद है, वे जल्द ही राम से आकर मिलेंगें और आगे की योजना बनायेगें| इस बीच वे सीता माता की खोज के लिए, जगह जगह अपनी वानर सेना के सैनिकों को भेजते है| सुग्रीव के सैनिक देश के कोने कोने में फ़ैल जाते है. कुछ समय बाद उनके सैनिक आकर उन्हें खबर देते है कि सीता माता लंकापति रावन के पास लंका में है| तब सुग्रीव राम, लक्ष्मण और अपनी सेना के साथ, माता सीता को बचाने के लिए लंका की ओर प्रस्थान करते है|

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राम और सुग्रीव की मित्रता किस प्रकार हुई इस प्रसंग में सच्चे मित्र के क्या लक्षण बताए?

इस प्रसंग में श्रीराम ने कहा है कि उपकार ही मित्रता का फल है। मित्र एक-दूसरे का भला करते हैं यानी एक-दूसरे पर उपकार करते हैं। मित्र एक-दूसरे को सभी कष्टों से मुक्ति दिलाते हैं। श्रीराम और सुग्रीव अग्नि को साक्षी बनाकर मित्रता करते हैं।

राम और सुग्रीव की मित्रता कैसे हुई थी?

उसने मेरी भार्या को बलपूर्वक बंदी बना रखा है तथा मुझे मार कर भगा दिया है। उसी के डर से मैं यहां रहता हूं। तब प्रभु श्री राम ने बाली का वध करने के बाद सुग्रीव की पत्नी को मुक्त कराने का प्रण लिया और बाली का वध करके सुग्रीव की पत्नी को मुक्त कराया। इसी के साथ सुग्रीव की श्री राम से मित्रता हुई

सुग्रीव के मित्र कौन थे?

से वाल्मीकि रामायण एवं श्री रामचरितमानस दोनों में ही सुग्रीव जी का वर्णन वानरराज के रूप में किया गया है। जब भगवान श्री रामचंद्र जी से उनकी मित्रता हुयी तब वह अपने अग्रज बालि के भय से ऋष्यमूक पर्वत पर अंजनी पुत्र श्री हनुमान जी तथा कुछ अन्य वफ़ादार रीछ (ॠक्ष) (जामवंत) तथा वानर सेनापतियों के साथ रह रहे थे

सुग्रीव ने राम को क्या वचन दिया?

उधर राम सुग्रीव और वानरी सेना की प्रतीक्षा किष्किंधा में कर रहे थे। सुग्रीव ने राम को वचन दिया था कि लंकारोहण तथा सीता की खोज में वह उनकी सहायता करेंगे।