राजस्थान का सबसे बड़ा वन मंडल कौन सा है? - raajasthaan ka sabase bada van mandal kaun sa hai?

राजस्थान के वन विभाग की आधिकारिक वेबसाइट

  1. राजस्थान के वन विभाग की आधिकारिक वेबसाइट

    • रेटिंग

    वन विभाग राजस्थान राज्य में वन और वन्य जीवन प्रबंधन के लिए जिम्मेदार है। विभाग द्वारा वन संरक्षण, वन विकास, वन्य जीवन प्रबंधन, मृदा संरक्षण, वन योजना, पारिस्थितिकी पर्यटन गतिविधियों, अनुसंधान और प्रशिक्षण जैसी विभिन्न गतिविधियों के बारे में जानकारी प्रदान की गई है। वन संसाधन, वन्यजीवन, वन संरक्षण अधिनियम, सूचना का अधिकार अधिनियम आदि के बारे में भी जानकारी दी गई है।

    Show

संबंधित लिंक

  1. राजस्थान के जल संसाधन विभाग की वेबसाइट देखें

    • रेटिंग

    राजस्थान के जल संसाधन विभाग का उद्देश्य राज्य के जल संसाधनों के सतत विकास को सुनिश्चित करना है। आप जल संसाधन योजनाओं, जल संसाधन नीति, राष्ट्रीय जल संसाधन नीति, जल संसाधन परियोजनाओं, एवं राज्य जल नीति इत्यादि के बारे में विस्तृत जानकारी यहाँ से प्राप्त कर सकते हैं। आप इससे संबंधी रिपोर्ट, नियमावली, आगे आने वाली परियोजनाओं, एवं वर्षा से संबंधित आंकड़ों इत्यादि की भी जानकारी यहाँ से प्राप्त कर सकते हैं।

  2. राजस्थान के रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान पर जानकारी

    • रेटिंग

    राजस्थान पर्यटन विभाग द्वारा राजस्थान के रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान पर विवरण प्रदान की गई हैं। जलवायु, परिदृश्य, वनस्पति, जीव और रणथंभौर टाइगर रिजर्व के बारे में जानकारी प्राप्त करें। पार्क मौसम, पहुंच, पार्क इतिहास आदि पर विवरण। प्रयोक्‍ता सेव टाइगर मिशन के बारे में भी जानकारी प्राप्‍त कर सकते हैं।

  3. राजस्थान प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की वेबसाइट

    • रेटिंग

    राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1974 की धारा 4 के तहत गठित एक निगमित निकाय है। उपयोगकर्ता बोर्ड के कार्यों, संगठनात्मक संरचना, औद्योगिक दिशा निर्देशों, ध्वनि प्रदूषण, जल प्रदूषण और वायु प्रदूषण आदि से संबंधित विस्तृत जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। परियोजनाओं की मंजूरी के विवरण भी उपलब्ध हैं। पर्यावरण से संबंधित कानूनों की भी जानकारी प्रदान की गई है।

उपलब्धता की दृष्टि से निम्नलिखित में से कौन सा वन (प्रादेशिक) वृत्त छत्तीसगढ़ में सबसे बड़ा है?

  1. बिलासपुर वन मंडल 
  2. सरगुजा वन मंडल 
  3. बस्तर वन मंडल 
  4. रायपुर वन मंडल 

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : बिलासपुर वन मंडल 

Free

History For All PSC Exams (Focus Booster): Mini Mock Test

30 Questions 60 Marks 35 Mins

सही उत्‍तर बिलासपुर वन मंडल है।

राजस्थान का सबसे बड़ा वन मंडल कौन सा है? - raajasthaan ka sabase bada van mandal kaun sa hai?
Key Points

  • छत्तीसगढ़ में बस्तर वन मंडल सबसे बड़ा है।
  • छत्तीसगढ़ में दर्ज वन क्षेत्र 59,772 किमी2 है जो राज्य के भौगोलिक क्षेत्र का 44.21 प्रतिशत है।
  • वनावरण की दृष्टि से यह देश में तीसरे स्थान पर है।
  • छत्तीसगढ़ राज्य के वनों को दो प्रमुख श्रेणियों में बांटा गया है, अर्थात् उष्णकटिबंधीय आर्द्र पर्णपाती वन और उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन।
  • राज्य की दो मुख्य वृक्ष प्रजातियां साल (शोरिया रोबस्टा) और सागौन (टेक्टोना ग्रैंडिस) हैं।
  • कुल वन क्षेत्र में आरक्षित, संरक्षित और अवर्गीकृत वन क्रमशः 43.13 प्रतिशत, 40.21 प्रतिशत और 16.65 प्रतिशत हैं। 
  • जिला-वार वनावरण (2011 आकलन- क्षेत्रफल किमी2 में)
    • बिलासपुर वन मंडल- 2494
    • सरगुजा वन मंडल- 7133
    • बस्तर वन मंडल- 8011
    • रायपुर और धमतरी वन मंडल- 5461

Last updated on Dec 16, 2022

The Chhattisgarh Public Service Commission (CGPSC) has released the CGPSC SSE 2022 Prelims Exam Date and has revised the vacancies. A total number of 210 vacancies are released for the recruitment. Applications are accepted from 1st December 2022 to 12th December 2022. CGPSC Selection Process includes Prelims, Mains and Interview. Prelims exam is scheduled on 12th February 2023. The candidates who will be selected finally under CGPSC recruitment, will get a salary range between Rs. 25,300 to Rs. 56,100.

राजस्थान में वन सम्पदा | राजस्थान, भारत के भौगोलिक क्षेत्र के अनुसार, आरक्षित वन क्षेत्र में 15वां स्थान रखता है , वन अभाव वाला राज्य है। प्रदेश में कुल अभिलेखित वन क्षेत्र 32863 वर्ग किमी. हैं, जो राज्य के भौगोलिक क्षेत्रफल का 9.60 प्रतिशत है। राजस्थान वन अधिनियम 1953 के प्रावधानों के अनुरूप वैधानिक दृष्टि से उक्त वन क्षेत्र को आरक्षित वन(12,176 वर्ग कि.मी.), रक्षित वन (18,543 वर्ग कि.मी.) और अवर्गीकृत वन(2144 वर्ग कि.मी.) के रूप में वर्गीकृत किया गया हैं, जो कुल वन क्षेत्र के क्रमशः 37.05, 56.49 और 6.46 प्रतिशत है।

भारतीय वन सर्वेक्षण, देहरादून द्वारा जारी भारत वन स्थिति रिपोर्ट-2021 के अनुसार राज्य का वनावरण (Forest Cover) 16654.96 वर्ग किमी. तथा वृक्षावरण (Tree Cover) 8733 वर्ग किमी. है अर्थात राज्य का कुल वनावरण एवं वृक्षावरण 25387,96 वर्ग किमी है जो कि राज्य के भौगोलिक क्षेत्रफल का 7.42 प्रतिशत है।

चैंपियन एंड सेठ के वन प्रकार वर्गीकरण (1968) के अनुसार, राजस्थान में दो वन प्रकार हैं अर्थातु उष्ण कटिबंधीय शुष्क पर्णपाती तथा उष्ण कटिबंधीय कांटेदार वन जिन्हें आगे 20 वन प्रकारों में विभाजित किया गया है।

राजस्थान में 3 राष्ट्रीय उद्यान, 27 वन्यजीव अभ्यारण्य एवं 16 संरक्षण रिजर्व, संरक्षित क्षेत्र नेटवर्क बनाते हैं | राज्य में 4 बाघ परियोजना (रणथंबोर, सरिस्का, मुकुंद्रा हिल और रामगढ़ विषधारी) और दो रामसर (केलोदेव घाना सेंचुरी और सांबर झील) है।

 प्रदेश का वानिकी परिदृश्य

राज्य का कुल अभिलेखित वन (Recorded forest Area) 32864.62 वर्ग किमी
राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल के सापेक्ष अभिलेखित वन भूमि 9.60 प्रतिशत
राज्य का कुल वनावरण (Forest Cover) 16655 वर्ग किमी
> अभिलेखित वन के अंतर्गत वनावरण 12560 वर्ग किमी
> अभिलेखित वन के बाहर वनावरण 4095 वर्ग किमी
राज्य का वृक्षावरण (Tree Cover) 8733 वर्ग किमी
राज्य का कुल वनावरण एवं वृक्षावरण (Total Forest Cover & Tree Cover) 25388 वर्ग किमी
> राज्य के भौगोलिक क्षेत्रफल का 7.42 प्रतिशत
> प्रति व्यक्ति औसतन वनावरण एवं वृक्षावरण 0.037 हेक्टेयर

राजस्थान में वन नीति

  • भारत में सर्वप्रथम वन नीति 1894 में ब्रिटिश सरकार द्वारा लागू की गई थी।
  • राजस्थान में सर्वप्रथम 1910 में जोधपुर रियासत द्वारा वनों के संरक्षण संबंधी कानून बनाया गया। उसके पश्चात् अलवर रियासत द्वारा 1935 में इस सम्बन्ध में कानून बनाया गया।
  • स्वतंत्र भारत में भारत सरकार द्वारा पहली वन नीति 1952 में बनाई गई थी इसमें संशोधन कर 1988 में राष्ट्रीय वन नीति घोषित की गई इस नीति के अनुसार राज्य के 33% भूभाग पर वन होना अनिवार्य है।
  • राजस्थान सरकार द्वारा सबसे पहले 1953 में वन अधिनियम पारित किया गया था।
  • राजस्थान के क्षेत्रफल के 9.60% क्षेत्र पर वन स्थित हैं जो की 32,863 वर्ग किमी. के बराबर है। जो कि देश के कुल वन क्षेत्र का 4.23% है।
  • राज्य की प्रथम वन नीति 17 फरवरी, 2010 को लागु की गई।
  • 4 मार्च, 2014 से राजस्थान वन (संशोधन) अधिनियम, 2014 लागू किया गया।

राजस्थान का वन क्षेत्र

राजस्थान की प्राकृतिक संरचना के कारण यहाँ भारत के अन्य राज्यों की तुलना में वनों का विस्तार अपेक्षाकृत कम है।

  • राजस्थान, भारत के भौगोलिक क्षेत्र के अनुसार, आरक्षित वन क्षेत्र में 15वां स्थान रखता है |
  • राजस्थान वन रिपोर्ट 2021 के अनुसार राजस्थान में वन क्षेत्र का विस्तार 32,863 वर्ग किलो मीटर के क्षेत्र में है जो राज्य के कुल क्षेत्र का 9.60 प्रतिशत और भारत के वन क्षेत्र का करीब 4.23 प्रतिशत है।
  • राज्य में वन क्षेत्रों के सीमित विस्तार का कारण यहाँ कम वर्षा होना, उच्च तापमान, मरूस्थली क्षेत्रों का अधिक विस्तार, अनियन्त्रित पशुचारण तथा मानव द्वारा किया जाने वाला वनोन्मूलन है।
  • प्रदेश में सर्वाधिक वन क्षेत्र उदयपुर जिले में 2753.39 वर्ग किमी है। उसके बाद अलवर जिले में है जिसका विस्तार 1195.91 वर्ग किमी है। इसके पश्चात् प्रतापगढ़ तथा बारां जिलें है। सबसे कम वन क्षेत्र चूरू जिले में है, जिसका विस्तार 77.69 वर्ग किमी में है।
सर्वाधिक वन क्षेत्र वाला जिला उदयपुर 2753.39 वर्ग किमी.
न्यूनतम वन क्षेत्र वाला जिला चूरू 77.69 वर्ग किमी.
सर्वाधिक प्रतिशत वन क्षेत्र वाला जिला उदयपुर जिले के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 23.49%
न्यूनतम प्रतिशत वन क्षेत्र वाला जिला जोधपुर जिले के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 0.48%

राजस्थान में वनो का वर्गीकरण

राजस्थान में वनो का वर्गीकरण 3 प्रकार से किया गया है :-

  1. प्रशासनिक आधार पर
  2. जलवायु एवं वनस्पति के आधार पर
  3. वृक्षों के वितान के आधार पर

1. प्रशासनिक आधार पर वर्गीकरण:-

राज्य में अभिलिखित वन क्षेत्र 32,863 वर्ग कि.मी. है, जिसका

आरक्षित वन (Reserved Forest)

आरक्षित वनो का क्षेत्रफल 12,176 वर्ग किलोमीटर है जो कुल वनों का 37 प्रतिशत है। इन वनों पर पूर्ण सरकारी नियंत्रण होता है। इनमें किसी भी प्रकार का दोहन वर्जित है। सर्वाधिक आरक्षित वन उदयपुर जिले में है।

सुरक्षित वन (Protected Forest)

सुरक्षित वनो का क्षेत्रफल 18,543 वर्ग किलोमीटर है जो की कुल वनों का 56.4 प्रतिशत है। इन वनों के दोहन के लिए सरकार कुछ नियमों के आधार पर छुट देती है। इनमें लकड़ी काटने, पशुचारण की सीमित सुविधा दी जाती है तथा इनको संरक्षित रखने का भी प्रयत्न किया जाता है।सर्वाधिक रक्षित वन बारां जिले में है।

अवर्गीकृत वन (Unclassified Forest)

राजस्थान में 2144 वर्ग किलोमीटर या 6.5 प्रतिशत क्षेत्र में अवर्गीकृत वन हैं। इन वनो में पेड़ों के कटने और मवेशियों के चरने पर कोई प्रतिबंध नहीं है। इन वनों में सरकार द्वारा निर्धारित शुल्क जमा करवाकर वन सम्पदा का दोहन किया जा सकता है। सर्वाधिक अवर्गीकृत वन बीकानेर जिले में है।

2. जलवायु एवं वनस्पति के आधार पर वर्गीकरण :-

चैंपियन एंड सेठ के वन प्रकार वर्गीकरण (1968) के अनुसार, राजस्थान में दो वन प्रकार हैं अर्थात उष्ण कटिबंधीय कांटेदार वन तथा उष्ण कटिबंधीय शुष्क पर्णपाती जिन्हें, आगे 20 वन प्रकारों में विभाजित किया गया है।

क्र. स.वन प्रकारक्षेत्रफलवनावरण का %
1 5ए/सी 1 ए अत्यंत शुष्क टीक वन 1,052.53 4.92
2 5ए/सी शुष्क टीक वन 45.03 0.22
3 5बी/सी2 उत्तरी शुष्क मिश्रित पर्णपाती वन 8,294.34 38.78
4 5/डीएस 1 शुष्क पर्णपाती झाड़ी 2,335.13 10.92
5 5डीएस/2 शुष्क सावन्ना वन 2.87 0.01
6 5ई/1/डीएस। एनोजीसस पेंडुला वन 3,162.27 14.78
7 5/म1/डीएसएनोजीसस पेंडुला झाड़ी 523.55 2.45
8 5/इ2 बोसवेलिया वन 151.04 0.71
9 5/इ5 बूटिया वन 54.34 0.25
10 5/56 एजल वन 1.69 0.01
11 5/इ8ए फिनिक्स सावन्ना वन 2.03 0.01
12 5/1 एस 1 शुष्क उष्णकटिबंधीय रिवेरियन वन 49.86 0.23
13 5/1 एस2 खैर सिस्सू वन 304.35 1.42
14 6बी/सी1 मरूस्थल कंटीले वन 813.43 3.80
15 6बी/डीएस 1 रेविन कंटीले वन 329.48 1.54
16 6बी/डीएस 1 जिजीफस झाड़ी 164.31 0.77
17 6बी/डीएस2 टापिकल यूफोर्बिया झाड़ी 2.92 0.01
18 6/11 यूफोर्बिया झाड़ी 133.47 0.62
19 6/इ2 अकेसिया सेनेगल वन 46.44 0.22
20 6/1एस1 मरूस्थल डयून झाड़ी 969.52 4.53
उप-योग 18,438.60 86.20
21 रोपण/बा व वृ. 2,950.95 13.80
कुल(वन आवरण और झाड़ियाँ) 21,389.55 100

उष्ण कटिबंधीय कँटीले वन

  • इस प्रकार के वन पश्चिमी राजस्थान के शुष्क एवं अर्द्ध-शष्क प्रदेशों में पाए जाते है।
  • मुख्यतः जैसलमेर , बाड़मेर , पाली , बीकानेर , चुरू , नागौर , सीकर , झुंझुनू आदि जिलों में ये वन पाए जाते है ।
  • इन वनों में काँटेदार वृक्ष एवं झाड़ियाँ प्रमुख होती है। इन पेड़ों व झाड़ीयों की जड़े लंबी होती है तथा पत्तियां कंटीली होती है ।
  • इनमे खेजड़ा, रोहिड़ा, बेर, बबूल, कैर आदि के वृक्ष मिलते है। इनमें खेजड़ा एक बहु-उपयोगी वृक्ष है, जिसे राज्य वृक्ष का दर्जा दिया गया है।
  • फोग , आकड़ा , कैर , लाना , अरणा व झड़बेर इस क्षेत्र की प्रमुख झड़ियाँ है ।
  • यहाँ कई प्रकार की घास भी पाई जाती है जिनमे सेवण व धामण मुख्य है धामण घास दुधारू पशुओं के लिए बहुत ही उपयोगी होती है । जबकि सेवण घास सभी पशुओं के लिए पौष्टिक होती है ।

उष्ण कटिबंधीय शुष्क पतझड़ वाले वन

इस प्रकार के वन अरावली पर्वत श्रेणी के उत्तरी और पूर्वी ढालों पर विशेषकर विस्तृत है।इसके अतिरिक्त दक्षिणी एवं दक्षिणी-पूर्वी राजस्थान में भी इन वनों का विस्तार है। इन वनों में धोकड़ा, गूलर, आम, बरगद, पलाश, बांस, आंवला, ओक, थोर, कैर, सेमल आदि मिलते हैं। विभिन्न प्रकार के वृक्षों की विविधता के कारण इन वनों के कई उप प्रकार है : –

शुष्क सागवान वन (Dry Teak Forests)

  • ये वन 250 – 450 मीटर की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में विस्तृत है ।
  • इन वनों का विस्तार मुख्य रूप से उदयपुर ,डूंगरपुर,बांसवाड़ा ,झालावाड़ ,चितौड़गढ़ व बारां जिलों में है।तथा बांसवाड़ा में सर्वाधिक है। 
  • सागवान के अलावा यहाँ तेंदू ,धावड़ा ,गुरजन ,गोंदल ,सिरिस ,हल्दू ,खैर ,सेमल ,रीठा ,बहेड़ा व इमली के वृक्ष भी पाए जाते है ।
  • सागवान अधिक सर्दी व पाला सहन नहीं कर पाता है अतः इन वृक्षों का विस्तार दक्षिणी क्षेत्रों में अधिक है ।
  • सागवान की लकड़ी कृषि औजारों व इमारती कार्यो के लिए बहुत ही उपयोगी है ।

सालर वन

  • इन वनो का विस्तार 450 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले पहाड़ी क्षेत्रों में है ।
  • राज्य में ये वन उदयपुर ,राजसमन्द ,चितौड़गढ़ ,सिरोही ,पाली ,अजमेर ,जयपुर ,अलवर व सीकर जिलों में विस्तृत है ।
  • इन वनों के प्रमुख वृक्ष सालर ,धोक ,कठिरा व धावड़ है ।
  • सालर वृक्ष गोंद का अच्छा स्त्रोत है । इसकी लकड़ी का उपयोग पैकिंग के डिब्बे बनाने में किया जाता है ।

धोकड़ा के वन

  • राज्य के मरुस्थलीय क्षेत्र को अतिरिक्त सभी क्षेत्र इनके लिए अनुकूल है । अतः राज्य में इन वनों का विस्तार सर्वाधिक है ।
  • इनका विस्तार 240 से 760 मीटर की ऊंचाई पर अधिक है ।
  • राज्य के कोटा , बूंदी , सवाई माधोपुर , जयपुर , अलवर , अजमेर , उदयपुर , राजसमन्द व चितौड़गढ़ जिलों में इनकी अधिकता है।
  • धोक / धोकड़ा के अलावा इन वनों में अरुंज , खैर , खिरनी , सालर , गोंदल के वृक्ष भी पाए जाते है ।
  • धोक की लकड़ी मजबूत होती है । इसे जलाकर इसका कोयला बनाया जाता है ।

पलास के वन

  • वानस्पतिक नाम – ब्यूटिया मोनोस्पर्मा
  • सुर्ख लाल एवं पीले रंग के फूलों के कारण इसे जंगल की ज्वाला भी कहा जाता है।
  • ये वन राज्य के कठोर व पथरीले क्षेत्र में फैले है। जहाँ पहाड़ियों के मध्य जल पठारी धरातल है। ऐसे मैदानी क्षेत्र जहाँ मिट्टी अपेक्षाकृत कम है वहाँ भी ये वन मिलते है ।
  • इनका विस्तार मुख्यत अलवर , अजमेर , सिरोही , उदयपुर , पाली , राजसमन्द व चितौड़गढ़ जिलों में है।

उप-उष्ण पर्वतीय वन

  • इस प्रकार के वन राजस्थान में केवल सिरोही जिले के आबू पर्वतीय क्षेत्र में है। इन वनों में सदाबहार एवं अर्द्ध-सदाबहार वनस्पति होती है।यहां वनों की सघनता अधिक है अतः सालभर हरियाली बनी रहती है ।
  • इन वनों में आम ,बांस ,नीम ,सागवान, सिरिस, अम्बरतरी, बेल आदि के वृक्ष पाए जाते है ।
  • इन वनो का क्षेत्रफल राज्य के कुल वन क्षेत्र का मात्र 0.4 प्रतिशत है।

3. वृक्षों के वितान के आधार पर

ISFR 2021 – राजस्थान वन रिपोर्ट 2021 में राजस्थान में वनो का वर्गीकरण, वृक्षों के वितान के आधार पर निम्न प्रकार से किया गया हैं-

श्रेणी क्षेत्रफल भौगोलिक क्षेत्र का प्रतिशत
अत्यधिक सघन वन 78.15 0.02
मध्यम सघन वन 4,368.65 1.28
खुले वन 12,208.16 3.57
कुल 16,654.96 4.87
झाड़ी 4,808.51 1.41

राजस्थान की प्रमुख वन सम्पदा

खेजड़ी (शमी वृक्ष)

  • वानस्पतिक नाम – प्रोसोपिस सिनेरेरिया
  • इसे ‘रेगिस्तान का कल्पवृक्ष’ कहते है। खेजड़ी को 31 अक्टूबर, 1983 को राजस्थान का राज्य वृक्ष घोषित किया गया था।
  • इसकी फली को सांगरी कहते है जिसे सुखाकर सब्जी के रूप में काम में लेते है तथा इसकी पत्तियों को ‘लूम’ कहते है जिसे चारे के रूप में प्रयुक्त किया जाता है।
  • विजयदशमी (दशहरा) के दिन शमी का पूजन किया जाता है।
  • राजस्थान में खेजड़ी वृक्ष का धार्मिक महत्व भी है लोकदेवता गोगाजी व झुंझार बाबा के मन्दिर/थान खेजड़ी वृक्ष के नीचे बने होते हैं।
  • खेजड़ी वृक्ष को पंजाबी व हरियाणवी भाषा में – जांटी, तामिल भाषा में – पेयमेय, कन्नड भाषा में-बन्ना-बन्नी, सिन्धी भाषा में-छोकड़ा, बिश्नोई सम्प्रदाय के द्वारा-शमी, स्थानीय भाषा में-सीमलों कहा जाता है।
  • 12 सितम्बर, 1978 से प्रतिवर्ष 12 सितम्बर को “खेजड़ली दिवस”मनाया जाता है।
  • सन् 1730 ई. में जोधपुर के खेजड़ली गाँव में खेजड़ी वृक्षों को बचाने हेतु अमृता देवी विश्नोई के नेतृत्व में 363 नर-नारियों ने अपने प्राणो की आहुति दे दी थी। इस उपलक्ष्य में प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ला दशमी को खेजड़ली गाँव में विश्व का एकमात्रा वृक्ष मेला भरता है।
  • 1994 ई. में पर्यावरण संरक्षण हेतु “अमृता देवी वन्य जीव” पुरस्कार प्रारम्भ किया गया है। वन्य जीव संरक्षण के लिए दिया जाने वाला यह सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार है।

धोकड़ा

  • वानस्पतिक नाम – एनोजिस पंडूला
  • यह उत्तरी-पूर्वी राजस्थान में सर्वांधिक पाया जाता हैं।
  • अलवर, भरतपुर, करौली, सवांईमाधोपुर, चित्तौड़गढ़, जयपुर आदि जिलों में इनकी अधिकता है।
  • इस वृक्ष से की लकड़ी से कृषि के औजार बनाए जाते हैं तथा इससे लकड़ी का कोयला/काष्ठ कोयला बनाया जाता हैं।

कत्था

  • वानस्पतिक नाम– एकेसिया कैटेचू
  • कत्था खैर/खदिर से प्राप्त होता है। खैर वृक्ष के तने की छाल व टुकड़ों को उबाल कर कत्था प्राप्त किया जाता है।
  • यह वृक्ष मुख्यत उदयपुर, चित्तौड़गढ़, बूंदी, झालावाड़ व जयपुर जिले में मिलता है।
  • खैर के पेड़ से कत्था बनाने में दक्ष कथौड़ी जनजाति उदयपुर व झालावाड़ क्षेत्र मे बसी हुई है।

महुआ

  • वानस्पतिक नाम – मधुका लोंगोफोलिया
  • इसे आदिवासियों का कल्पवृक्ष भी कहा जाता हैं।
  • यह राजस्थान के दक्षिणी-पूर्वी जिलों के सीमावर्ती क्षेत्रों में सर्वांधिक पाया जाता हैं। मुख्यत उदयपुर, डूंगरपुर, चितौड़गढ़, झालावाड़ व सिरोही जिलों में पाया जाता है।
  • यह आदिवासीयों का सबसे प्रिय वृक्ष हैं।इसकी पत्तियों, फूल, फल व छाल से देशी शराब बनाई जाती हैं।
  • इसके फल-फूल खाए जाते हैं। तथा फलों का प्रयोग तेल निकालने में होता है।

बांस

  • बांस एक प्रकार की घास हैं
  • यह राजस्थान के दक्षिण में सर्वांधिक पाए जाते हैं। मुख्यत आबूपर्वत, बाँसवाड़ा, उदयपुर व चितौड़गढ़ में पाया जाता है।
  • इसे आदिवासियों का हरा सोना भी कहा जाता है।

रोहिड़ा

  • वानस्पतिक नाम – टिकोमेला अन्डुलेटा
  • अन्य नाम – मरुस्थल का सागवान, मारवाड़ टीक
  • रोहिड़ा को राजस्थान की ‘मरुशोभा’ कहा जाता है।
  • रोहिड़ा को 1983 में राजस्थान का राज्य पुष्प घोषित किया गया था।
  • रोहिड़ा के पेड़ सर्वांधिक जोधपुर में हैं।

आँवल या झाबुई(द्रोण पुष्पी)

  • आँवल झाड़ी की छाल चमड़ा साफ करने (टैनिंग) में प्रयुक्त होती है। इसका निर्यात् किया जाता है।
  • यह झाड़ी मुख्यतः पाली, सिरोही, उदयपुर,राजसमंद, बाँसवाड़ा व जोधपुर जिलों में पाई जाती है।

खस

  • यह एक विशेष प्रकार की सुगन्धित घास होती हैं जिसके बीज का प्रयोग शरबत/ठंडाई व इत्र बनाने में किया जाता है।
  • इसकी जड़ों से तेल प्राप्त होता हैं।
  • यह मुख्य रूप से टोंक, सवाईमाधोपुर व भरतपुर जिलों में पाई जाती है।

तेदुं

  • इसे राजस्थानी भाषा में टिमरू कहते हैं।इसे वागड़ का चीकू भी कहा जाता है।
  • तेंदू वृक्ष का 1974 से राष्ट्रीयकरण कर दिया गया था।
  • तेन्दुपत्ता का प्रयोग बीड़ी बनाने में किया जाता है।
  • इसके पेड़ सर्वांधिक बांसवाड़ा, प्रतापगढ़, उदयपुर, चितौड़गढ़, बारां, कोटा, बूंदी में पाए जाते हैं।

चंदन वन

  • राजस्थान में राजसमंद जिले के हल्दीघाटी (खमनौर) व देलवाड़ा क्षेत्र के वनों में चंदन के पेड़ों की अधिकता होने से चंदन वन के नाम से जाने जाते हैं।

अन्य वन उत्पाद

  • मोम – अलवर, भरतपुर, सिरोही, जोधपुर।
  • गोंद – चौहटन (बाड़मेर) में सर्वाधिक। कदम्ब वृक्ष से गोंद उतारा जाता है।
  • शीशम – गंगानगर हनुमानगढ़।
  • अर्जुन वृक्ष – उदयपुर, डूंगरपुर, बांसवाड़ा में पाये जाते हैं। इस वृक्ष पर रेशम कीट पालन किया जाता हैं।
  • अरडु – सवांई माधोपुर, बांरा, करौली, कोटा में पाया जाता हैं। माचिस, कठपुतलियाँ, गणगौर बनाने में प्रयोग किया जाता हैं।
  • ढ़ाक – टोंक, सवांईमाधोपुर, अलवर, जयपुर, बांरा, झालावाड़ में सर्वांधिक पाए जाते है। इसके पतल बनाए जाते हैं।

राजस्थान की प्रमुख घास

सेवण

  • वानस्पतिक नाम – लेसीयरस सिंडीकस (Lasiurus Sindicus)
  • इसका अन्य नाम लीलोण है।
  • यह पश्चिमी राजस्थान के शुष्क क्षेत्रों में पाई जाती है। इसकी मुख्य विशेषता है कि यह रेतीली मिट्टी में आसानी से पनपती है।
  • राजस्थान में जैसलमेर, बाड़मेर, बीकानेर, जोधपुर व चूरु जिले में पाई जाती है।
  • इसको घासों का राजा भी कहते हैं। सेवण घास के सूखे चारे को सेवण की कुत्तर भी कहते हैं।
  • सेवण घास गायों के लिए सबसे उपयुक्त व पौष्टिक घास है गायों के अलावा भैंस व ऊंट भी इस घास को बहुत पसंद करते हैं।
  • जैसलमेर से पोकरण व मोहनगढ़ तक पाकिस्तानी सीमा के सहारे-सहारे एक चौड़ी भूगर्भीय जल पट्टी (60 किमी.) है, जिसे ‘लाठी सीरीज क्षेत्र’ कहा जाता है। वहां यह घास सर्वाधिक पायी जाती है।

अंजन घास

  • वानस्पतिक नाम – सेन्क्रस सिलिएरिस
  • यह शुष्क व अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में पाई जाने वाली रेगिस्तान की एक प्रमुख घास हैं जो बहुत अधिक सूखा सहन कर सकती है।
  • अंजन एक बहुवर्षीय घास है जो राजस्थान में बीकानेर, जैसलमेर, जोधपुर एवं बाड़मेर जिलों में पाई जाती है।
  • इस घास को मुख्यतः काटकर पशुओं को खिलाने के काम में लेते हैं परन्तु चराई के लिए भी यह उपयुक्त है।

गंठिल घास

  • वानस्पतिक नाम – इल्यूसिन फ्लेजिलिफेरा
  • अन्य नाम – गंथिल घास
  • यह छोटी और रेंगकर बढ़ने वाली बहुवर्षीय घास है।
  • यह घास मुख्यतः पश्चिमी राजस्थान के बीकानेर, जैसलमेर, बाड़मेर, सीकर, चुरू, झुन्झुनु व जोधपुर में पाई जाती है।
  • रेगिस्तानी क्षेत्रों में जहां दूसरी घासे नहीं उगती है वहां यह आसानी से उगती है। यह घास ऊंटों व भेड़ों का मुख्य चारा है।

धामन घास

  • राजस्थान में मुख्यत पश्चिमी राजस्थान में पाई जाती है।
  • इस घास से उत्तम गुणों वाला व पौष्टिक सूखा चारा प्राप्त होता है।

आगे पढें:

  • ISFR 2021 – राजस्थान वन रिपोर्ट 2021

राजस्थान में सबसे बड़ा वन मंडल कौन सा है?

राजस्थान में 13 वन मण्डल है। जोधपुर – क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा वन मण्डल है

राज्य का सबसे बड़ा वन मंडल कौन सा है?

सही उत्‍तर बिलासपुर वन मंडल है। छत्तीसगढ़ में बस्तर वन मंडल सबसे बड़ा है। छत्तीसगढ़ में दर्ज वन क्षेत्र 59,772 किमी2 है जो राज्य के भौगोलिक क्षेत्र का 44.21 प्रतिशत है। वनावरण की दृष्टि से यह देश में तीसरे स्थान पर है।

राजस्थान में सर्वाधिक वन कौन से जिले में?

यह वन क्षेत्र राज्य के भौगोलिक क्षेत्र का 9.57% और भारत के वन क्षेत्र का लगभग 4.28% है। राजस्थान में उदयपुर जिले में वनों के अंतर्गत सबसे बड़ा क्षेत्र है।

क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा वन मंडल कौन सा है?

क्षेत्रफल के हिसाब से, मध्य प्रदेश में देश का सबसे बड़ा वन क्षेत्र है। इसके बाद अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा और महाराष्ट्र हैं। कुल भौगोलिक क्षेत्र के प्रतिशत के रूप में वन आवरण के मामले में, शीर्ष पांच राज्य मिजोरम (84.53%), अरुणाचल प्रदेश (79.33%), मेघालय (76.00%), मणिपुर (74.34%) और नगालैंड (73.90%) हैं।