फादर के परिवार में कौन सख्त नहीं था? - phaadar ke parivaar mein kaun sakht nahin tha?

फ़ादर की पारिवारिक पृष्ठभूमि और उनका स्वभाव भी किसी सीमा तक उन्हें संन्यासी बनाने में सहायक सिद्ध हुई’–स्पष्ट कीजिए।

फ़ादर के परिवार में उनके माता-पिता, दो भाई और एक बहन थे। उनके पिता व्यवसायी थे। एक भाई बेल्जियम में ही पादरी हो गया था। दूसरा भाई काम करता था, उसका भरा-पूरा परिवार था। उनकी बहन जिद्दी और सख्त थी। उसने । बहुत देर से शादी की। पिता और भाइयों के प्रति फ़ादर के मन में शुरू से ही लगाव न था, पर वे अपनी माँ को बराबर याद किया करते थे। इस तरह उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि और स्वभाव उन्हें संन्यासी बनाने में सहायक सिद्ध हुआ।

Gujarat Board GSEB Std 10 Hindi Textbook Solutions Kshitij Chapter 13 मानवीय करुणा की दिव्य चमक Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf.

GSEB Class 10 Hindi Solutions मानवीय करुणा की दिव्य चमक Textbook Questions and Answers

प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1.
फादर की उपस्थिति देवदार की छाया जैसी क्यों लगती थी?
उत्तर :
पर्वतीय प्रदेशों में देवदारु के वृक्ष होते हैं, जिसकी छाया शीतल और मन को शांत करनेवाली होती है। लेखक और उनके साथियों के साथ फादर बुल्के निलिप्त रूप से हंसी मजाक करते थे। साथ-साथ गोष्ठियों में तर्कपूर्ण एवं गंभीर बहस करते थे। अपने समकालीन रचनाओं पर बेबाक राय देते थे। घरेलू संस्कारों एवं उत्सवों में पुरोहित एवं अग्रज की तरह आशीर्वाद देते थे। इसलिए लेखक को फादर की उपस्थिति देवदार की छाया के समान लगती है।

फादर के परिवार में कौन सख्त नहीं था? - phaadar ke parivaar mein kaun sakht nahin tha?

प्रश्न 2.
फादर बुल्के भारतीय संस्कृति के एक अभिन्न अंग हैं, किस आधार पर ऐसा कहा गया है?
उत्तर :
फादर बुल्के भारतीय संस्कृति के एक अभिन्न अंग हैं। वे भारतीय संस्कृति के रंग में पूरी तरह से रंग गए थे। उनसे अपने देश का नाम पूछने पर वे भारत को ही अपना देश बताते थे। उन्होंने भारतीय संस्कृति के महानायक राम और राम-कथा को अपने शोधप्रबंध का विषय चुना। उन्होंने हिन्दी और संस्कृत दोनों भाषाओं का ज्ञान अजित किया और वे दोनों भाषाओं के विभागाध्यक्ष बने ।

उन्होंने प्रसिद्ध अंग्रेजी-हिन्दी शब्द कोश लिखा । हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने के विषय में प्रयत्नशील रहते थे। इसके लिए वे अकाट्य तर्क देते थे। जो हिन्दी भाषी होकर भी हिन्दी भाषा की उपेक्षा करता तो वे बड़े दुःखी होते थे। ‘परिमल’ के सदस्यों के घर भारतीय उत्सवों और संस्कारों में भाग लेते थे। लेखक के पुत्र का अन्नप्रासन संस्कार उन्हीं के हाथों सम्पन्न हुआ। उपरोक्त बातों को देखते हुए कहा जा सकता है कि फादर बुल्के भारतीय संस्कृति के एक अभिन्न अंग हैं।

प्रश्न 3.
पाठ में आए उन प्रसंगों का उल्लेख कीजिए, जिनसे फादर बुल्के का हिन्दी प्रेम प्रकट होता है ?
उत्तर :
पाठ में ऐसे बहुत से प्रसंगों का उल्लेख हैं, जिनसे फादर बुल्के का हिन्दी प्रेम प्रकट होता है – जैसे –

  1. उन्होंने अपना पोष्ट ग्रेज्युएशन हिन्दी में किया।
  2. उन्होंने अपना शोध प्रबंध हिन्दी भाषा में ही पूर्ण किया। विषय भी हिन्दी भाषा का ही चुना। उनके शोध-प्रबंध का विषय था ‘रामकथा : उत्पत्ति और विकास
  3. उन्होंने अंग्रेजी-हिन्दी शब्दकोश लिखा।
  4. वे यह चाहते थे कि हिन्दी राष्ट्रभाषा बने । इसके लिए वे अकाट्य तर्क प्रस्तुत करते थे।
  5. जब हिन्दीवाले हिन्दी की उपेक्षा करते थे तो वे बहुत दु:खी होते थे।
  6. ‘परिमल’ साहित्यिक संस्था में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की।

प्रश्न 4.
इस पाठ के आधार पर फादर कामिल बुल्के की जो छवि उभरती है उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
फादर बुल्के का व्यक्तित्वं एकदम प्रभावशाली था । गोरा रंग, नीली आंखें, सफेद झाई मारती हुई भूरी दाढ़ी, लंबा कद, सफेद चोगे में सज्ज देवदारू के समान प्रतीत होते थे। वे निष्काम कर्मयोगी थे। वे विदेशी होते हुए भी भारतीय संन्यासी थे। मानवीय करुणा के अवतार थे। उनमें वात्सल्य और ममता की भावनाएं कूट-कूट कर भरी थी।

अपने प्रियजनों के प्रति आत्मीयता का भाव रखते थे। वे समाज में रहकर लोगों के पारिवारिक उत्सवों में शामिल होते, उन्हें आशीर्वाद देते । वे किसी को दुःखी नहीं देख सकते थे, कभी किसी पर क्रोध नहीं करते थे। सदा दूसरों के लिए करुणा और दया का भाव रहता। इस तरह से फादर बुल्के सच में मानवीय करुणा के अवतार थे।

प्रश्न 5.
लेखक ने फादर बुल्के को मानवीय करुणा’ की दिव्य चमक क्यों कहा है?
उत्तर :
फादर बुल्के के हृदय में हर किसी के लिए करुणा का सागर भरा हुआ था। उनके मुख पर एक दिव्य चमक रहती थी। वे सबको बाहें खोल गले लगाने को उत्सुक रहते थे। उनमें अपनत्व, ममत्व, करुणा, प्रेम, वात्सल्य तथा सहृदयता की भावना कूट-कूट कर भरी थी। वे किसी से रिश्ता बनाते तो कभी तोड़ते नहीं थे। दसों साल बाद भी मिलने पर उसी आत्मीयता से मिलते थे।

अपने प्रियजनों से मिलने के लिए गर्मी, सर्दी, बरसात झेलकर भी मिलने चले आते थे। लोगों के दुःख में शरीक होकर सांत्वना देते । उनके सांत्वना के जादू भरे दो शब्द जीवन में एक नई रोशनी भर देती थी। लेखक की पत्नी और पुत्र की मृत्यु पर फादर द्वारा कहे गए शब्दों में असीम शांति भरी थी। इन सभी कारणों से लेखक ने फादर बुल्के को मानवीय करुणा की दिव्य चमक कहा है।

प्रश्न 6.
फादर बुल्के ने संन्यासी की परंपरागत छवि से अलग एक नई छवि प्रस्तुत की है, कैसे?
उत्तर :
फादर बुल्के भारतीय संन्यासी प्रवृत्ति के आधार पर खरे संन्यासी नहीं थे। लेखक के अनुसार वे केवल संकल्प के संन्यासी थे, मन से नहीं। सामान्यतः संन्यासी समाज से कटकर अकेले ही अपने संसार को रचते है, उनमें समाज के प्रति आत्मीयता या लगाव नहीं होता। वे कर्म नहीं करते अपितु भिक्षा मांगकर जीवन-यापन करते हैं।

फादर बुल्के कर्मनिष्ठ संन्यासी थे। समाज के प्रति उनके मन में करुणा, वात्सल्य प्रेम की भावना थी। वे समाज में रहकर लोगों के पारिवारिक उत्सवों में शामिल होते, उन्हें आशीर्वाद देते । संकट के समय में उन्हें ढाढस देते । इस तरह से फादर बुल्के की छवि परम्परागत संन्यासी से अलग हटकर थी।

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प्रश्न 7.
आशय स्पष्ट कीजिए :
क. नम आखों को गिनना स्याही फैलाना है।
उत्तर :
‘नम आँखों को गिनना स्याही फैलाना है’ ऐसा लेखक ने उस समय कहा जब फादर बुल्के के शरीर को कब में उतारा जा रहा था । लेखक का अनुमान था कि एक विदेशी संन्यासी पर कौन आसू बहायेगा। किन्तु उनका अनुमान गलत निकला। सब फादर बुल्के के जाने पर दुःखी थे। उस समय सभी की आँखों में आंसू थे। फादर बुल्के की मृत्यु पर आंसू बहानेवालों की इतनी भीड़ उमड़ रही थी, जिनको गिनने का प्रयास करना वास्तव में स्याही फैलाने जैसा ही होगा।’

ख. फादर को याद करना एक उदास शांत संगीत को सुनने जैसा है ?
उत्तर :
लेखक का फादर बुल्के से आत्मीय संबंध था। वे उनके बेहद करीब थे। उनके चले जाने पर सबके मन उदासी से भर जाते हैं। फिर भी उनकी
स्मृतियाँ, उनके आशीर्वाद तथा उनके वचन लोगों के मन में शांति पहुंचाते हैं, उनकी वे सब बातें संगीत की तरह गूंजती रहती हैं। स्मृति पटल पर उनका सम्पूर्ण जीवन चरित्र आने लगता है, हृदय अवसाद से भर उठता है।

मन में निस्तब्धता छा जाती है। किसी उदास संगीत को सुनने से जैसी स्थिति उत्पन्न होती है वैसी ही स्थिति फादर बुल्के को याद करने से उत्पन्न होती है। अतः इसलिए लेखक ने कहा कि फादर बुल्के को याद करना एक उदास, शांत, संगीत सुनने जैसा है।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 8.
आपके विचार से फादर बुल्के ने भारत आने का मन क्यों बनाया होगा?
उत्तर :
मेरे विचार से फादर बुल्के भारतीय संस्कृति के विषय में जानते होंगे। वे यह भी जानते होंगे कि भारत सहृदय देश है, यहाँ अतिथियों का सम्मान किया जाता है। वहाँ सहदय जनों के बीच रहकर वहां की संस्कृति से अधिक परिचित हुआ जा सकता है। वहाँ रहकर अपने जीवन-उद्देश्यों को साकार किया जा सकता है। भारत के प्रति प्रेम, हिन्दी भाषा के प्रति प्रेम होने के कारण ही संन्यासी बनने के बाद उन्होंने भारत आने का फैसला लिया होगा।

प्रश्न 9.
‘बहुत सुंदर है मेरी जन्मभूमि- रेम्सचैपल ।’ इस पंक्ति में फादर बुल्के की अपनी जन्मभूमि के प्रति कौन-सी भावनाएं अभिव्यक्त होती हैं ? आप अपनी जन्मभूमि के बारे में क्या सोचते हैं ?
उत्तर :
‘बहुत सुन्दर है मेरी जन्मभूमि’ इस पंक्ति के द्वारा फादर बुल्के का अपनी जन्मभूमि के प्रति प्रेम की भावना प्रकट होती है। वे अपनी जन्मभूमि से बेहद प्यार करते थे। तभी उनके मुंह से यह वाक्य निकला । जन्मभूमि की महक ही निराली होती है जिसके खातिर व्यक्ति अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देता है। मनुष्य कहीं भी रहें, अपनी जन्मभूमि को कभी नहीं भूल सकता । तन-मन-धन से इसकी रक्षा करूंगा। ऐसा कोई कार्य नहीं करूंगा जिससे मेरी जन्मभूमि को अपमानित होना पड़े। मेरी जन्मभूमि ही मेरी आन-बान-शान है।

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प्रश्न 10.
मेरा देश भारत’ पर 200 शब्दों का निबंध लिखिए।
उत्तर :
मेरा दश भारत :
मेरा देश भारत विश्व में सबसे अनोखा है। इस देश में विभिन्न धर्म, जाति, सम्प्रदाय के लोग अपनी विभिन्न बोलियों के साथ एकदूसरे की संस्कृति को जीते हुए एक साथ रहते हैं। विश्व में ऐसा कोई देश नहीं जिसमें इतने धर्म, इतनी भाषा, इतनी सांस्कृतिक विभिन्नता हो। इसी कारण यह विश्व में सबसे अनोखा है। भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था।

वो इसलिए कि प्राचीनकाल से ही भारत समृद्ध देश रहा था। जब विश्व के अन्य देशों का अस्तित्व ही नहीं था उस काल से भारत में वेद और उसकी ऋचाओं की रचना हुई थी। विश्व के देशों से छात्र भारत की प्राचीन गुरुकुल में शिक्षा ग्रहण करने आते थे ये इस बात का परिचायक है कि भारत पहले से ही शान के क्षेत्र में अव्वल रहा है।

प्राकृतिक व भौगोलिक रूप से भी भारत का बहुत महत्त्व है। प्रकृति ने इस पर अपनी अपार कोष लुटाया है। भारत का शिरमौर हिमालय है तो नीचे कन्याकुमारी के पास सागर पग पखारता है। कहीं घने जंगलों का डेरा है तो कहीं धूप में चमचमाती रेगिस्तानी सवेरा है। जयशंकर प्रसाद के शब्दों में कहा जाय तो –

अरूण यह मधुमय देश हमारा
जहां पहुंच अनजान क्षितिज को
मिलता एक सहारा ॥

भारत में अनेक धर्म और सम्प्रदाय के लोग रहते है, उन सबके अलग-अलग त्योहार है । सभी लोग एकदूसरे धर्म के त्योहारों को उत्सुकतापूर्वक, हर्ष, उल्लास से मनाते है। धर्म और भाषा चाहे हमारे अलग हों लेकिन भाव सबका एक रहा है। सब धर्मों के लोग मिलजल कर रहते हैं इसलिए मेरा देश साम्प्रदायिक एकता का प्रतीक है।

यही नहीं मेरा देश अपने ज्ञान, विज्ञान, दर्शन और साहित्य के लिए भी विश्व में विख्यात है। यहाँ गंगा, जमुना, सरस्वती जैसी पवित्र नदियाँ बहती हैं, जो हिमालय से निकल कर देश के भूभागों को हरा-भरा करती हुई सागर से मिल जाती हैं। ऋषियों की तपोभूमि है भारत देश । वेदों की गरिमा, गीता का अमृततत्त्व, राम का पौरुष, नानक का परोपकार, शंकराचार्य का संदेश, गौतमबुद्ध का प्रेम, तुलसी व कबीर की वाणी, आचार्य चाणक्य की ललकार इस देश के कोने-कोने में गूंजती है। इस तरह मेरा भारत देश विश्व में सबसे निराला है।

प्रश्न 11.
आपका मित्र हडसन ऑस्ट्रेलिया में रहता है। उसे इस बार गर्मी की छुट्टियों के दौरान भारत के पर्वतीय प्रदेशों के भ्रमण हेतु निमंत्रित करते हुए पत्र लिखिए।
उत्तर :
A-12, ओमकार डुप्लेक्ष,
न्यु नरोडा, अहमदाबाद
10 फरवरी, 2019
प्रिय मित्र हडसन,

नमस्ते।

मैं यहाँ कुशलपूर्वक हूँ। तुम्हारी कुशलता के लिए ईश्वर से प्रतिदिन कामना करता हूँ। आशा है कि तुम और तुम्हारे माता-पिता स्वस्थ और आनंद से होंगे। मुझे तुम्हारी बहुत याद आती है। बार-बार साथ व्यतित किए हुए क्षण मेरी आँखों में कौंध उठते हैं। तुमसे मिलने की तीव्र चाह है। मैं चाहता हूँ कि इस बार की गर्मी की छुट्टियों में भारत आओ ।

यहाँ के रमणीय और मनोहारी पर्वतीय इलाकों को देखों । हिमालय पर्वत के रमणीय इलाकों की छटा तो बस देखते बनती है। बर्फआच्छादित पर्वतीय प्रदेशों की खूबसुरती तुम देखते रह जाओगे। मेरे माता-पिता भी इस यात्रा में हमारे साथ होंगे। हमने पूरी योजना बना ली है। बस तुम आ जाओ मेरे दोस्त । मेरे माता-पिता भी तुमसे मिलने को लालायित हैं। शेष बाते मिलने पर।
अपने माता-पिता को मेरा प्रणाम कहना।

तुम्हारा प्रिय मित्र,
अशोक गहलोत ।

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प्रश्न 12.
निम्नलिखित वाक्यों में से समुच्यबोधक छांटकर अलग कीजिए :
(क) तब भी जब वह इलाहाबाद में थे और तब भी जब वह दिल्ली आते थे।
(ख) माँ ने बचपन में ही घोषित कर दिया था कि लड़का हाथ से गया।
(ग) वे रिश्ता बनाते थे तो तोड़ते नहीं थे।
(घ) उनके मुख से सांत्वना के जादू भरे दो शब्द सुनना एक ऐसी रोशनी से भर देता था जो किसी गहरी तपस्या से जनमती है।
(ड) पिता और भाइयों के लिए बहुत लगाव मन में नहीं था लेकिन वो स्मृति में अक्सर डूब जाते।
उत्तर :
(क) और
(ख) कि
(ग) तो
(घ) जो
(ङ) लेकिन।

Hindi Digest Std 10 GSEB मानवीय करुणा की दिव्य चमक Important Questions and Answers

अतिरिक्त प्रश्नोत्तर

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो-तीन वाक्यों में लिखिए :

प्रश्न 1.
लेखक के अनुसार फादर बुल्के को जहरबाद से क्यों नहीं मरना चाहिए ?
उत्तर :
फादर बुल्के की रगों में दूसरों के लिए मिठास भरे अमृत के अतिरिक्त कुछ और नहीं था। अर्थात् सारा जीवन उन्होंने दूसरों पर अपना प्यार लुटाया । दूसरों की मदद की। दूसरों के लिए ही जीये । ऐसे व्यक्ति की मौत जहरबाद से नहीं होनी चाहिए थी।

प्रश्न 2.
साहित्यिक संस्था ‘परिमल’ से फादर बुल्के किस प्रकार जुड़े थे ?
उत्तर :
फादर बुल्के ‘परिमल’ साहित्यिक संस्था से जुड़े थे। वे गोष्ठियों में गंभीर बहस करते थे, साहित्यिक रचनाओं पर अपनी बेबाक राय देते थे, अपना सुझाव देते थे। ‘परिमल’ के सदस्यों के साथ हसी-मजाक में निलिप्त रूप से शामिल होते थे।

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प्रश्न 3.
लेखक ने फादर बुल्के को बड़ा भाई’ और ‘पुरोहित’ क्यों कहा हैं?
उत्तर :
लेखक और फादर बुल्के के बीच आत्मीय संबंध था। लेखक के घर कोई भी उत्सव या संस्कार हो तो वे अवश्य उपस्थित होते थे और एक बड़े भाई या पुरोहित की तरह अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह करते व अपने आशीर्वाद देते थे। इसलिए लेखक ने उन्होंने बड़ा भाई और पुरोहित कहा

प्रश्न 4.
वात्सल्यमय फादर को देखकर लेखक क्या सोचते थे ?
उत्तर :
वात्सल्यमय फादर को देखकर लेखक सोचने लगते थे कि बेल्जियम में इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष में पहुंचकर उनके मन में संन्यासी बनने की इच्छा कैसे जाग गई जबकि घर भरा-पूरा था – दो भाई, एक बहिन, माँ, पिता सभी थे।

प्रश्न 5.
फादर बुल्के के व्यक्तित्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
फादर बुल्के सफेद चोगा पहनते थे, उनका रंग गोरा था, सफेद झाई मारती भूरी दाढ़ी थी, उनकी आँखें नीली थी। अपनी बाँहों को खोले वे सदैव सबको गले से लगाने को आतुर रहते थे। उनके व्यक्तित्व में ममता और अपनत्व भरा हुआ था।

प्रश्न 6.
फादर बुल्के ने संन्यास लेते समय क्या शर्त रखी और क्यों ?
उत्तर :
फादर बुल्के ने संन्यास लेते समय भारत जाने की शर्त रखीं। क्योंकि उनका मन भारत में आने को करता था।

प्रश्न 7.
फादर बुल्के की जन्मभूमि कहाँ थी? अपनी जन्मभूमि के प्रति उनके क्या भाव थे ?
उत्तर :
फादर बुल्के की जन्मभूमि बेल्जियम के रेम्सचैपल में थी। अपनी जन्मभूमि के प्रति उनके मन में बहुत आदर और सम्मान था। वे अक्सर अपनी जन्मभूमि को याद किया करते थे। जब उनसे उनकी जन्मभूमि के विषय में पूछा जाता तो वे कहते थे – ‘बहुत सुन्दर है मेरी जन्मभूमि रेम्सचैपल ।’ व्यक्ति संसार में कहीं चला जाय, अपनी जन्मभूमि को नहीं भूल सकता।

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प्रश्न 8.
फादर बुल्के की मृत्यु किस रोग से हुई ? लेखक ने उनके रोग पर क्या टिप्पणी की है ?
उत्तर :
फादर बुल्के की मृत्यु जहरबाद से हुई थी। लेखक ने फादर के वात्सल्य व अमृतमय जीवन को देखा था इसलिए उन्होंने टिप्पणी की कि लेखक की मृत्यु ऐसे रोग से नहीं होनी चाहिए।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तारपूर्वक लिखिए :

प्रश्न 1.
फादर कामिल बुल्के की साहित्य-साधना पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :
फादर कामिल बुल्के इंजीनियरिंग के छात्र थे। उन्होंने तीसरे वर्ष में इंजीनियरिंग की पढ़ाई छोड़ दी और भारत आ गए। उन्होंने सन्यास लेकर भारत को अपनी कर्मभूमि बनाया । यहाँ आकर उन्होंने दो वर्ष तक ‘जिसेट संघ’ में रहकर धर्माचार की पढ़ाई की। इसके बाद उन्होंने 9-10 वर्ष दार्जिलिंग में रहकर पढ़ाई की, फिर कोलकाता से बी.ए. और इलाहाबाद से एम.ए, किया ।

सन् 1950 में उन्होंने अपना शोधप्रबंध ‘रामकथा : उत्पत्ति और विकास’ पूरा किया। उन्होंने मातरलिंक के प्रसिद्ध नाटक ‘ब्लूबर्ड’ का हिन्दी अनुवाद ‘नीलपंछी’ नाम से किया। बाद में उन्होंने सेंट जेवियर्स कॉलेज में रहकर अपना प्रसिद्ध अंग्रेजी-हिन्दी शब्दकोश तैयार किया। उन्होंने बाईबिल का हिन्दी में अनुवाद किया। इस प्रकार फादर कामिल बुल्के का साहित्य में महत्त्वपूर्ण योगदान है।

प्रश्न 2.
फादर कामिल बुल्के के व्यक्तित्व की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। अथवा फादर कामिल बुल्के के चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
फादर कामिल बुल्के मूल रूप से बेल्जियम के रेम्सचैपल के रहनेवाले थे। उन्होंने इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष की पढ़ाई छोड़कर संन्यासी बनकर भारत आने का निर्णय लिया। फादर बुल्के एक संन्यासी थे, किन्तु, पारम्परिक अर्थों से भिन्न । वे जिससे एक बार रिश्ता बना लेते थे, उसे जिन्दगी भर तोडते नहीं थे। वे अपने हर स्नेहीजनों से मिलने का समय निकाल लेते थे, मौसम चाहे कितनी भी प्रतिकूल क्यों न हों। लोगों के घर-परिवार के बारे में, निजी दुःख-तकलीफ के बारे में पूछना उनका स्वभाव था।

बड़े से बड़े दुःख में सांत्वना के दो शब्द सुनना, सामनेवाले व्यक्ति को एक नई आशा और रोशनी से भर देता था। वे अक्सर अपनी स्नेहमयी माँ को याद करते थे। उनकी कर्मभूमि भले भारत की धरती थी, वे अपनी जन्मभूमि से बेहद प्यार करते थे। उनके मन में अपने देश के लिए आदर और सम्मान के भाव थे। फादर ने भारत आकर अपना सारा जीवन हिन्दी समाज तथा भारत के विकास में समर्पित कर दिया । उन्होंने भारत के प्रति एक सच्चे देशभक्त तथा हिन्दी भाषा-प्रेमी के रूप में अपना धर्म निभाया। फादर बुल्के वास्तव में अविस्मरणीय व्यक्ति थे।

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प्रश्न 3.
फादर बुल्के की अंतिम यात्रा पर उमड़ती हुई भीड़ पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर :
फादर बुल्के की मृत्यु जहरबाद से हुई थी। उन्होंने सारा जीवन दूसरों को स्नेह और वात्सल्य देने में लुटा दिया। सभी स्नेहीजनों के साथ आत्मीय संबंध स्थापित किया। उनको जाननेवाले या मित्रगण उन्हें अपने परिवार का सदस्य मानते थे। अत: उनकी अंतिम यात्रा में असंख्य लोग आए। विदेश से आए इस व्यक्ति के प्रति लोगों में इतना लगाव था कि वे अंतिम दर्शन करने चले आए और सबकी आँखों में आसू थे।

उनकी अंतिम यात्रा मैं जैनेन्द्र, विजयेन्द्र, स्नातक, अजित कुमार, डॉ. निर्मला, डॉ. सत्यप्रकाश, डॉ. रघुवंश जैसे विज्ञ जन उपस्थित थे। स्वयं फादर बुल्के ने भी नहीं सोचा होगा कि उनकी मृत्यु पर इतने लोग आंसू बहाएंगे। फादर बुल्के की अंतिम यात्रा पर उमड़नेवाली भीड़ उनके अपने स्नेहीजन थे जो उनसे बेहद प्रेम करते थे। वे सभी साहित्य प्रेमी थे।

प्रश्न 4.
‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ पाठ के द्वारा लेखक क्या संदेश देना चाहते हैं ?
उत्तर :
फादर कामिल बुल्के जो विदेश के थे भारत में आकर उन्होंने अपनी एक अलग पहचान बनाई। उनके अनुकरणीय चरित्र से परिचय करवाकर लेखक ने मानवीय करुणा, भारतीयता की पहचान, अपनी मातृभूमि के प्रति प्रेम, हिन्दी भाषा के प्रति दायित्व से हमें अवगत करवाया है। वे बताना चाहते हैं कि विदेश से आकर एक व्यक्ति दया, करुणा, ममता का हमें पुन:स्मरण करवाता है, हमारी संस्कृति से हमें अवगत कराता है, हिन्दी भाषा के प्रति अपने कर्तव्यों को निभाता है।

हिन्दी भाषा को राष्ट्रभाषा घोषित करने के लिए प्रयत्न करता है, और हम भारत के होकर अपनी संस्कृति अपनी पहचान को भूल रहे हैं, पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण करने में लगे हैं और पाश्चात्य संस्कृति में पला-बढ़ा व्यक्ति भारतीय संस्कृति को आत्मसात् कर अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। हम अपने कर्तव्यों से दूर होते जा रहे है। एक विदेशी व्यक्ति हिंदी के गौरव का गीत गाता है और हम भारतीय होकर भी हिन्दी की उपेक्षा करते हैं।

लेखक यही संदेश देना चाहते हैं कि हमें अपने देश, अपनी धरती, अपनी मातृभाषा के विकास के लिए सतत प्रयत्नशील रहना चाहिए । लोगों के साथ आत्मीयता व प्रेम तथा भाईचारे के साथ रहना चाहिए । दूसरों की सहायता करनी चाहिए।

अर्थबोध संबंधी प्रश्न

फादर को जहरबाद से नहीं मरना चाहिए था। जिसकी रगों में दूसरों के लिए मिठास भरे अमृत के अतिरिक्त और कुछ नहीं था उसके लिए इस जहर का विधान क्यों हों ? यह सवाल किस ईश्वर से पूछे ? प्रभु की आस्था ही जिसका अस्तित्व था वह देह की इस यातना की परीक्षा उम्र की आखिरी देहरी पर क्यों दें? एक लंबी, पादरी के सफेद चोगे से ढकी आकृति सामने है – गोरा रंग, सफेद झाई मारती भूरी दाढी, नीली आंखें बाहें खोल गले लगाने को आतुर । इतनी ममता, इतना अपनत्व इस साधु में अपने हर एक प्रियजन के लिए उमड़ता रहता था। मैं पैंतीस साल से इसका साक्षी था। तब भी जब वह इलाहाबाद में थे और तब भी जब वह दिल्ली आते थे। आज उन बाँहों का दबाब मैं अपनी छाती पर महसूस करता हूँ।

प्रश्न 1.
फादर बुल्के की मृत्यु का क्या कारण था ?
उत्तर :
फादर बुल्के को पूरे शरीर में जहरबाद हो गया था। जिसके कारण उनकी मृत्यु हो गई।

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प्रश्न 2.
फादर बुल्के का व्यक्तित्व कैसा था ?
उत्तर :
फादर बुल्के ईश्वर के प्रति गहरी आस्था रखते थे। वे पादरी थे। उनका रंग गोरा था, सफेद झाई मारती भूरी दाढ़ी, नीली आँखें थी। वे अपने प्रियजन को बाहें खोल गले लगाने को आतुर रहते थे। मृत्यु के बाद भी वे इसी मुद्रा में थे।

प्रश्न 3.
लेखक पैंतीस साल से किस बात के साक्षी थे ?
उत्तर :
फादर बुल्के अपने हर प्रियजन के लिए ममता और अपनत्व रखते थे। पैंतीस साल से लेखक इस बातके साक्षी थे।

2. फादर को याद करना एक उदास शांत संगीत को सुनने जैसा है। उनको देखना करुणा के निर्मल जल में स्नान करने जैसा था और उनसे बात करना कर्म के संकल्प से भरना था। मुझे ‘परिमल’ के वे दिन याद आते हैं जब हम सब एक पारिवारिक रिश्ते में बंधे जैसे थे जिसके बड़े फादर बुल्के थे। हमारे हंसी-मजाक में वह निर्लिप्त शामिल रहते, हमारी गोष्ठियों में वह गंभीर बहस करते, हमारी रचनाओं पर बेबाक राय और सुझाव देते और हमारे घरों के किसी भी उत्सव और संस्कार में वह बड़े भाई और पुरोहित जैसे खड़े हो हमें अपने आशीषों से भर देते । मुझे अपना बच्चा और फादर का उसके मुख में पहली बार अन्न डालना याद आता है और नीली आंखों की चमक में तैरता वात्सल्य भी – जैसे किसी ऊंचाई पर देवदारु की छाया में खड़े हों।

प्रश्न 1.
फादर बुल्के के विषय में लेखक की राय लिखिए।
उत्तर :
फादर बुल्के के विषय में लेखक की राय है कि उन्हें याद करना शांत संगीत सुनने जैसा है, उनको देखना करुणा के निर्मल जल में स्नान करने जैसा है और उनसे बात करना कर्म के संकल्प से भरना था।

प्रश्न 2.
‘परिमल’ जैसी साहित्यिक संस्था में फादर बुल्के का क्या योगदान था ?
उत्तर :
फादर बुल्के का ‘परिमल’ साहित्यिक संस्था में बड़ा योगदान था। वे गोष्ठियों में गंभीर बहस करते थे, लेखक और साथी मित्रों की रचनाओं पर बेबाक राय और सुझाब देते थे। वे सभी के साथ पारिवारिक रिश्ते में बंधे थे।

फादर के परिवार में कौन सख्त नहीं था? - phaadar ke parivaar mein kaun sakht nahin tha?

प्रश्न 3.
‘करुणा’ और ‘पारिवारिक’ शब्द में से प्रत्यय अलग कीजिए।
उत्तर :
करुणा में से ‘आ’ प्रत्यय और पारिवारिक में से ‘इक’ प्रत्यय होगा।

3. “माँ की याद आती है – बहुत याद आती है।” – फिर अकसर माँ की स्मृति में डूब जाते देखा है। उनकी मां की चिट्ठियाँ अक्सर उनके पास आती थीं। अपने अभिन्न मित्र डॉ. रघुवंश को वह उन चिट्ठियों को दिखाते थे। पिता और भाइयों के लिए बहुत लगाव मन में नहीं था। पिता व्यवसायी थे। एक भाई वहीं पादरी हो गया। एक भाई काम करता है, उसका परिवार है। बहन सख्त और जिद्दी थी। बहुत देर से उसने शादी की। फादर को एकाध बार उसकी शादी की चिंता व्यक्त करते उन दिनों देखा था। भारत में बस जाने के बाद दो या तीन बार अपने परिवार से मिलने भारत से बेल्जियम गए थे।

प्रश्न 1.
फादर बुल्के को अपनी माँ से बेहद प्यार था । ऐसा आप कैसे कह सकते हैं ?
उत्तर :
फादर बुल्के को अपनी माँ से बेहद प्यार था। वे अक्सर माँ को स्मृतियों में डूब जाते थे। मां की चिट्ठियाँ आती तो वे अपने अभिन्न मित्र डॉ. रघुवंश को उन चिट्ठियों को दिखाते थे। यह इस बात का परिचायक है कि फादर बुल्के को अपनी मां से बेहद लगाव था।

प्रश्न 2.
फादर बुल्के के परिवार में कौन-कौन था?
उत्तर :
फादर बुल्के के परिवार में उनकी मां थी। पिता और भाइयों से मन में लगाव नहीं था। पिता व्यवसायी थे। एक भाई पादरी था। एक भाई काम करता था, उसका अपना परिवार था। बहन सख्त और जिद्दी थी। उसकी शादी की चिंता फादर बुल्के को थी।

फादर के परिवार में कौन सख्त नहीं था? - phaadar ke parivaar mein kaun sakht nahin tha?

प्रश्न 3.
‘पिता व्यवसायी थे।’ वाक्य का कौन-सा प्रकार है?
उत्तर :
‘पिता व्यवसायी थे।’ यह सरल वाक्य है।

4. “आप सब छोड़कर क्यों चले आए?” “प्रभु की इच्छा थी।” वह बालकों की सी सरलता से मुसकराकर कहते, “माँ ने बचपन में ही घोषित कर दिया था कि लड़का हाथ से गया । और सचमुच इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष की पढ़ाई छोड़ फादर बुल्के संन्यासी होने जब धर्म गुरु के पास गए और कहा कि मैं संन्यास लेना चाहता हूँ तथा एक शर्त रखी (संन्यास लेते समय संन्यास चाहनेवाला शर्त रख सकता है) कि मैं भारत जाऊंगा।”

“भारत जाने की बात क्यों उठी ?” “नहीं जानता, बस मन में यह था।” उनकी शर्त मान ली गई और वह भारत आ गए। पहले ‘जिसेट संघ’ में दो साल पादरियों के बीच धर्माचार की पढ़ाई की फिर 9-10 वर्ष दार्जिलिंग में पढ़ते रहे।

प्रश्न 1.
फादर बुल्के की मां ने बचपन में क्या घोषित कर दिया था?
उत्तर :
फादर बुल्के की माँ ने बचपन में घोषित कर दिया था कि लड़का हाथ से गया। और सच में इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष में धर्मगुरु के पास संन्यासी बनने की इच्छा व्यक्त की।

प्रश्न 2.
संन्यासी बनते समय फादर बुल्के ने क्या इच्छा जाहिर की ?
उत्तर :
संन्यासी बनते समय फादर बुल्के ने भारत जाने की इच्छा जाहिर की। वे मन से भारत में रहना चाहते थे। उनकी इच्छा मान ली गई और वे भारत आ गए।

फादर के परिवार में कौन सख्त नहीं था? - phaadar ke parivaar mein kaun sakht nahin tha?

प्रश्न 3.
‘इच्छा’ तथा ‘संन्यासी’ शब्द का विलोम शब्द लिखिए।
उत्तर :
विलोम शब्द :

  • इच्छा × अनिच्छा
  • संन्यासी × गृहस्थ ।

5. फादर बुल्के संकल्प से संन्यासी थे। कभी-कभी लगता है वह मन से संन्यासी नहीं थे। रिश्ता बनाते थे तो तोड़ते नहीं थे। दसियों साल बाद मिलने के बाद भी उसकी गंध महसूस होती थी। वह जब भी दिल्ली आते जरूर मिलते-खोजकर, समय निकालकर, गर्मी, सर्दी, बरसात झेलकर मिलते, चाहे दो मिनट के लिए ही सही। यह कौन संन्यासी करता है ? उनकी चिंता हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में देखने की थी। हर मंच से इसकी तकलीफ़ बयान करते, इसके लिए अकाट्य तर्क देते।

बस इसी एक सवाल पर उन्हें झुंझलाते देखा है और हिंदीवालों द्वारा ही हिंदी की उपेक्षा पर दुःख करते उन्हें पाया है। घर-परिवार के बारे में, निजी दुःख-तकलीफ़ के बारे में पूछना उनका स्वभाव था और बड़े से बड़े दुःख में उनके मुख से सांत्वना के जादू भरे दो शब्द सुनना एक ऐसी रोशनी से भर देता था जो किसी गहरी तपस्या से जनमती है। हर मौत दिखाती है जीवन को नयी राह।’ मुझे अपनी पत्नी और पुत्र की मृत्यु याद आ रही है और फ़ादर के शब्दों से झरती विरल शांति भी।

प्रश्न 1.
फ़ादर बुल्के मन से संन्यासी क्यों नहीं थे ?
उत्तर :
संन्यासी मोहमाया के बंधन में नहीं बंधते । किन्तु फादर बुल्के रिश्ता बनाते तो तोड़ते नहीं थे। दसों साल बाद मिलने पर भी आत्मीयता की गंध आती थी। वे जब भी दिल्ली आते तो लेखक से जरूर मिलने आते थे। खोजकर, समय निलाकर, गर्मी, सर्दी, बरसात झेलकर मिलते, चाहे दो मिनट के लिए ही। इसलिए हम कह सकते हैं कि वे मन से संन्यासी नहीं थे।

प्रश्न 2.
फादर बुल्के का हिन्दी भाषा के प्रति प्रेम को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
फादर बुल्के हिन्दी भाषा से प्रेम करते थे। वे हिन्दी, संस्कृत भाषा के विभागाध्यक्ष थे। वे चाहते थे कि हिन्दी राष्ट्रभाषा बने। हर मंच से वे इस विषय पर बात करते थे। इसके लिए वे अकाट्य तर्क देते, हिन्दीवालों द्वारा जब हिन्दी की उपेक्षा होते देखते तो उन्हें बहुत दुःख होता था।

फादर के परिवार में कौन सख्त नहीं था? - phaadar ke parivaar mein kaun sakht nahin tha?

प्रश्न 3.
‘राष्ट्रभाषा’ और ‘घर-परिवार’ समास का विग्रह करके प्रकार लिखिए।
उत्तर :
समास – विग्रह – प्रकार
राष्ट्रभाषा – राष्ट्र की भाषा – तत्पुरुष समास
घर-परिवार – घर और परिवार – द्वन्द्व समास

6. आज वह नहीं है। दिल्ली में बीमार रहे और पता नहीं चला। बाहें खोलकर इस बार उन्होंने गले नहीं लगाया । जब देखा तब वे बाहें दोनों हाथों की सूजी उँगलियों को उलझाए ताबूत में जिस्म पर पड़ी थीं। जो शांति बरसती थी वह चेहरे पर थिर थी। तरलता जम गई थी। वह 18 अगस्त, 1982 की सुबह दस बजे का समय था ।

दिल्ली में कश्मीरी गेट के निकलसन कब्रगाह में उनका ताबूत एक छोटी-सी नीली गाड़ी में से उतारा गया। कुछ पादरी, रघुवंशजी का बेटा और उनके परिजन राजेश्वरसिंह उसे उतार रहे थे। फिर उसे उठाकर एक लंबी संकरी, उदास पेड़ों की घनी छाहवाली सड़क से कन्नगाह के आखिरी छोर तक ले जाया गया जहाँ धरती की गोद में सुलाने के लिए कन्न अवाक् मुंह खोले लेटी थी। ऊपर करील की घनी छाह थी और चारों ओर करें और तेज धूप के वृत्त ।

जैनेंद्र कुमार, विजयेंद्र स्नातक, अजित कुमार, डॉ. निर्मला जैन और मसीही समुदाय के लोग, पादरीगण, उनके बीच में गैरिक वसन पहने इलहाबाद के प्रसिद्ध विज्ञान-शिक्षक डॉ. सत्यप्रकाश और डॉ. रघुवंश भी जो अकेले उस संकरी सड़क की ठंडी उदासी में बहुत पहले से खामोश दुःख की किन्हीं अपरिचित आहटों से दबे हुए थे, सिमट आए थे कब्र के चारों तरफ ।

प्रश्न 1.
फादर बुल्के से मिलने आए लेखक दुःखी क्यों थे?
उत्तर :
फादर बुल्के और लेखक के बीच घनिष्ट रिश्ता था। फादर जब भी लेखक से मिलते तो बाहें खोलकर आत्मीयता से उनसे मिलते थे। वे दिल्ली में बीमार थे लेखक को इस बात का पता नहीं था। इस बार जब मिले तो फादर इस दुनिया में नहीं थे। बाहें खोलकर इस बार उन्होंने गले नहीं लगाया । इसलिए लेखक दुःखी थे।

फादर के परिवार में कौन सख्त नहीं था? - phaadar ke parivaar mein kaun sakht nahin tha?

प्रश्न 2.
फादर बुल्के का अंतिम संस्कार कब और कहां किया गया?
उत्तर :
फादर बुल्के का अंतिम संस्कार 18 अगस्त, 1982 की सुबह दिल्ली के कश्मीरी गेट के निकलसन कब्रगाह में किया गया। यहीं उनका ताबूत नौली गाड़ी से उतारा गया और उन्हें हमेशा के लिए धरती में गाड़ दिया गया।

7. फादर की देह पहले कब्र के ऊपर लिटाई गई। मसीही विधि से अंतिम संस्कार शुरू हुआ। रांची के फादर पास्कल तोयना के द्वारा । उन्होंने हिंदी में मसीही विधि से प्रार्थना की फिर सेंट जेवियर्स के रेक्टर फादर पास्कल ने उनके जीवन और कर्म पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा ‘फादर बुल्के धरती में जा रहे है । इस धरती से ऐसे रत्ल और पैदा हों।’ डॉ. सत्यप्रकाश ने भी अपनी श्रद्धांजलि में उनके अनुकरणीय जीवन को नमन किया। फिर देह कब्र में उतार दी गई।

मैं नहीं जानता इस संन्यासी ने कभी सोचा था या नहीं कि उसकी मृत्यु पर कोई रोएगा। लेकिन उस क्षण रोनेवालों की कमी नहीं थी। (नम
आँखों को गिनना स्याही फैलाना है।)

प्रश्न 1.
फादर बुल्के का अंतिम संस्कार किस प्रकार किया गया ?
उत्तर :
फादर बुल्के के देह को पहले कब्र के ऊपर लिटाई गई। मसीही विधि से अंतिम संस्कार किया गया। राची के फादर पास्कल तोपना ने यह विधि सम्पन्न की। उन्होंने हिन्दी में मसीही विधि से प्रार्थना की। इस प्रकार उनका अंतिम संस्कार किया गया।

प्रश्न 2.
फादर पास्कल ने फादर बुल्के को कैसे श्रद्धांजलि दी ?
उत्तर :
फादर पास्कल ने फादर बुल्के को पहले मसीही विधि से हिन्दी में प्रार्थना की। फिर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि “फादर बुल्के धरती में जा रहे हैं। इस धरती से ऐसे रत्न और पैदा हों।” इन शब्दों में उन्होंने फादर बुल्के को श्रद्धांजलि दी।

प्रश्न 3.
‘अनुकरणीय’ शब्द में से प्रत्यय अलग करके लिखिए।
उत्तर :
अनुकरणीय शब्द में ‘ईय’ प्रत्यय लगा है। अत: शब्द है अनुकरण व ‘ईय’ प्रत्यय है।

अति लघुत्तरी प्रश्न (विकल्प सहित)

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दिए गए विकल्पों में से सही उत्तर चुनकर लिखिए :

प्रश्न 1.
फादर बुल्के की मृत्यु किस रोग से हुई थी?
(क) केंसर
(ख) जहरबाद
(ग) हैजा
(घ) मलेरिया
उत्तर :
(ख) जहरबाद

फादर के परिवार में कौन सख्त नहीं था? - phaadar ke parivaar mein kaun sakht nahin tha?

प्रश्न 2.
फादर बुल्के किस देश के रहनेवाले थे?
(क) वियेतनाम
(ख) नाइजीरिया
(ग) बेल्जियम
(घ) पेरिस
उत्तर :
(ग) बैल्जियम

प्रश्न 3.
फादर बुल्के अपनी माँ की चिट्ठियाँ किसे दिखाते थे?
(क) डॉ. रघुवंश
(ख) डॉ. सत्यप्रकाश
(ग) फादर पास्कल
(घ) लेखक
उत्तर :
(क) डॉ. रघुवंश

प्रश्न 4.
फादर बुल्के का निधन कब और कहाँ हुआ?
(क) 20 अगस्त, 1982 दिल्ली
(ख) 18 अगस्त, 1982 पटना
(ग) 18 अगस्त, 1983 इलाहाबाद
(घ) 18 अगस्त, 1982 दिल्ली
उत्तर :
(घ) 18 अगस्त, 1982 दिल्ली

प्रश्न 5.
फादर बुल्के को याद करना किसके जैसा है ?
(क) करुणा के निर्मल जल में स्नान करने जैसा है।
(ख) एक उदास शांत संगीत को सुनने जैसा है।
(ग) कर्म को संकल्प से भरने जैसा है।
(घ) किसी ऊंचाई पर देवदारू की छाया में खड़े होने जैसा है।
उत्तर :
(ख) एक उदास शांत संगीत को सुनने जैसा है।

सविग्रह समास भेद बताइए :

  • जन्मभूमि – जन्म लेने की भूमि (जगह) – तत्पुरुष समास
  • शोधप्रबंध – शोध करके लिखा गया प्रबंध (ग्रंथ) – तत्पुरुष समास
  • राष्ट्रभाषा – राष्ट्र के लिए भाषा – तत्पुरुष समास
  • घर-परिवार – घर और परिवार – द्वंद्व समास
  • आजीवन – जीवन भर – अव्ययीभाव समास
  • श्रद्धानत – श्रद्धा से झुके – तत्पुरुष समास

फादर के परिवार में कौन सख्त नहीं था? - phaadar ke parivaar mein kaun sakht nahin tha?

संधि-विच्छेद कीजिए:

  • निर्लिप्त – नि: + लिप्त
  • संन्यासी – सम् + न्यासी
  • धर्माचार – धर्म + आचार (ण)
  • विभागाध्यक्ष – विभाग + अध्यक्ष
  • विजयेन्द्र – विजय + इंद्र
  • श्रद्धांजलि – श्रद्धा + अंजलि

भाववाचक संज्ञा बनाइए :

  • वत्स – वात्सल्य
  • संन्यासी – संन्यास
  • अपना – अपनत्व
  • मीठा – मिठास
  • सरल – सरलता
  • तरल – तरलता
  • खामोश – खामोशी
  • उदास – उदासी
  • करुण – करुणा
  • स्मरण – स्मृति
  • पवित्र – पवित्रता
  • मुस्कुराना – मुस्कुराहट
  • मानवीय – मानवता
  • आतुर – आतुरता

विलोम शब्द लिखिए :

  1. अपना × पराया
  2. मिठास × कड़वाहट/कडुआहट
  3. निलिप्त × लिप्त
  4. लिप्त × अलिप्त
  5. संन्यासी × गृहस्थ
  6. सरल × कठिन/जटिल
  7. अकाट्य × काट्य
  8. विरल × सघन/घना
  9. तनु × सांद्र
  10. तेज × मद्धिम / मंद
  11. अपरिचित × परिचित
  12. छायादार × छायाहीन
  13. जीवन × मरण
  14. सँकरी × चौड़ी
  15. जन्म × मृत्यु

फादर के परिवार में कौन सख्त नहीं था? - phaadar ke parivaar mein kaun sakht nahin tha?

विशेषण बनाइए:

  • मानव – मानवीय
  • करुणा – कारुणिक
  • तरलता – तरल
  • परिचय – परिचित
  • काटना – काट्य
  • संन्यास – संन्यासी
  • मिठास – मीठा
  • आस्था – आस्थावान
  • आवेश – आवेशित
  • श्रद्धा – श्रद्धेय
  • परिवार – पारिवारिक
  • घर – घरेलू
  • क्रोध – क्रोधी
  • घोषणा – घोषित
  • धर्म – धार्मिक
  • जिस्म – जिस्मानी
  • ठंड – ठंडी
  • खामोशी – खामोश
  • आखिर – आखिरी
  • उदारता – उदार

मानवीय करुणा की दिव्य चमक Summary in Hindi

लेखक – परिचय :

सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का जन्म उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में हुआ था। प्रयाग विश्वविद्यालय से एम.ए. करके इन्होंने अध्यापक के पद पर कार्य किया परन्तु कुछ दिन बाद आकाशवाणी दिल्ली के समाचार विभाग में कार्य करने लगे। उन्होंने बहुत समय तक ‘दिनमान’ साप्ताहिक के सम्पादकीय विभाग में भी कार्य किया। उनके काव्य में चिंतन, विचार और भावना की एकसूत्रता पाई जाती है।

कवि के रूप में उनकी रचनायात्रा का एक सिरा नई कविता के आंदोलन से जुड़ा रहा तो दूसरा सिरा प्रगतिशील जनपक्षधर काव्यांदोलन से । सर्वेश्वर जी नई कविता के प्रमुख कवि है। ये मुख्य रूप से कवि, कहानीकार, उपन्यासकार, निबंधकार और नाटककार के रूप में प्रसिद्ध हैं। इनकी कविताओं में आधुनिक जीवन की विडम्बना, विषम स्थिति में भी व्यक्ति की जिजीविषा का मार्मिक चित्रण मिलता है।

उन्होंने लोकजीवन के सत्-असत् पक्षों का उद्घाटन बड़ी निर्ममता से किया है। सर्वेश्वर की प्रमुख कृतियाँ हैं – ‘काठ की घंटियाँ’, ‘कुआनो नदी’, ‘जंगल का दर्द’, ‘खूटियों पर टगे लोग (कविता-संग्रह)’, ‘पागल कुत्तों का मसीहा’, ‘सोया हुआ जय (उपन्यास)’, ‘लड़ाई (कहानी-संग्रह)’, ‘बकरी (नाटक)’, ‘भी-भी खौ खौं’, ‘बतूता का जूता’, ‘लाख को नाक (बाल साहित्य)’ ‘चरचे और चरखे’ उनके लेखों का संग्रह है। ‘खूटियों पर टगे लोग’ पर उन्हें साहित्य अकादमी का पुरस्कार मिला है।

‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ वास्तव में एक संस्मरण है। जो फादर बुल्के के जीवन पर आधारित है। फादर कामिल बुल्के जन्मे तो बेल्जियम (यूरोप) में किन्तु इन्होंने भारत को अपना कर्मभूमि बनाया । फादर बुल्के एक संन्यासी थे परन्तु पारंपरिक अर्थ में नहीं । सर्वेश्वरजी का फादर बुल्के के साथ आत्मीय संबंध था जिसकी झलक हमें इस संस्मरण में दिखाई देती है। फादर बुल्के को हिन्दी भाषा व बोलियों से भी अगाध प्रेम था। फादर बल्के के विषय में यही कहा जा सकता है कि वे जन्म से तो नहीं किन्तु आत्मा से पूर्णत: भारतीय थे।

फादर के परिवार में कौन सख्त नहीं था? - phaadar ke parivaar mein kaun sakht nahin tha?

पाठ का सार (भाव) :

फादर बुल्के की मृत्यु पर लेखक का अफसोस : लेखक का कहना है कि फादर बुल्के को जहरबाद से नहीं मरना चाहिए था। जिसकी रगों में दूसरों के लिए मिठास भरे अमृत के सिवा और कुछ नहीं था उसके लिए इस जहर का विधान नहीं होना चाहिए था। जिसने इतनी ममता, इतना अपनत्व इस साधु में अपने प्रियजन के प्रति था, ऐसे साधु के लिए इतनी यातनाभरी मौत क्यों? लेखक आज भी फादर की स्नेहमयी बाहों का दवाब अपनी छाती पर महसूस करते हैं।

फादर बूल्के और लेखक के बीच आत्मीय संबंध : लेखक के लिए फादर बुल्के को याद करना शांत संगीत सुनने जैसा लगता था, उनको देखना निर्मल जल में स्नान करने जैसा था और उनसे बातें करना कर्म को संकल्प करने जैसा था। लेखक फादर बुल्के की स्मृतियों में डूब जाते हैं। लेखक के परिवार के साथ उनका आत्मीय संबंध था। वे उल्लेख के साथ हँसी-मजाक में शामिल रहते थे।

गोष्ठियों में गंभीर बहस करते थे। लेखक की रचनाओं पर बेबाक राय और सुझाव देते थे, लेखक के घरों में किसी भी उत्सव और संस्कार में बड़े भाई की तरह खड़े रहते थे और पुरोहितों की तरह आशीष देते थे। लेखक ने उनमें कभी क्रोध नहीं देखा अपितु सदैव ममता और प्यार से लबालब छलकता महसूस किया। उन्हें देखकर लेखक के मन में यह जिज्ञासा सदैव बनी रही कि बेल्जियम में इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष में पहुंचकर उनके मन में संन्यासी बनने की इच्छा कैसे जाग गई।

फादर बुल्के का अपना परिवार : लेखक ने फादर से बातचीत करते हुए पूछ कि उन्हें अपने देश की याद आती है तब फादर बुल्के ने जवाब देते हुए कहा कि अब तो भारत ही उनका देश है किन्तु उन्हें अपनी मां को बहुत याद आती है। पिता और भाई से उन्हें ज्यादा लगाव नहीं था। पिता व्यवसायी थे। एक भाई काम करता है, उसका परिवार है, एक भाई फादर है। बहन सख्त और जिद्दी स्वभाव की हैं। एकाध बार फादर को बहन की शादी कि चिंता व्यक्त करते हुए देखा गया था। भारत में बस जाने के बाद वे दो या तीन बार अपने देश गए थे।

संन्यासी होना प्रभु की इच्छा : लेखक ने फादर बुल्के से प्रश्न किया कि आप सब छोड़कर यहाँ क्यों आए? तब उन्होंने कहा कि यह प्रभु की इच्छा थी। मां ने तो बचपन में ही कह दिया था कि यह लड़का हाथ से गया। सचमुच फादर बुल्के ने इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष में अपनी इच्छा जाहिर की कि वे संन्यासी बनकर भारत जाना चाहते हैं।

उनकी शर्त मान ली गई और वे संन्यासी बनकर भारत आ गए। ‘जिसेट संघ’ में दो साल पादरियों के बीच धर्माचार की पढ़ाई की। फिर 9-10 वर्ष दार्जिलिंग में पढ़ते रहे। कलकत्ता रो बी.ए. किया तथा इलाहाबाद से एम.ए, । प्रयाग विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में रहकर सन् 1950 ई.में ‘रामकथा : उत्पत्ति और विकास’ शोधप्रबंध पूरा किया।

आजीविका एवं साहित्यिक रचनाएं : फादर बुल्के सेंट जेवियर्स कॉलेज, राँचौ में हिन्दी तथा संस्कृत विभाग के विभागाध्यक्ष रहे और यहीं उन्होंने अंग्रेजी-हिंदी शब्द कोश तैयार किया और बाइबिल का अनुवाद किया। मातरलिंक के प्रसिद्ध नाटक ‘ब्लू बर्ड’ का रूपान्तर ‘नीलपंछी’ के नाम से किया। फादर बुल्के वहीं बीमार पड़े, पटना से दिल्ली आए और हमेशा के लिए चले गए। वे 47 वर्ष देश में रहे और 73 वर्ष की जिंदगी जीकर चले गए।

फादर बुल्के संकल्प से संन्यासी : फादर बुल्के कभी संकल्प से संन्यासी लगते थे तो कभी मन से। एक बार रिश्ता बनाकर तोड़ना उनके स्वभाव में नहीं थीं । दसों साल बाद मिलने पर भी वही पुराने अपनत्व की गंध आती थी। वे जब भी दिल्ली आते तो गर्मी, सर्दी, बरसात झेलकर और खोजकर मिलने जरूर आते थे। दो मिनट के लिए ही सही। उन्हें हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में देखने की चिंता थी, जिसके लिए हर मंच पर अपना दुःख प्रकट करते थे। हिन्दीवाले ही जब हिंदी की उपेक्षा करते तो वे इसके लिए दुःख प्रकट करते थे।

आत्मीय स्वभाव के फादर बुल्के : फादर बुल्के जब भी लेखक से मिलते घर-परिवार के बारे में पूछते थे। निजी दुःख तकलीफ के विषय में पूछना उनका स्वभाव था। बड़े-से-बड़े दुःख में उनके मुख से सांत्वना के स्वर सुनकर राहत मिलती थी। लेखक को अपने पुत्र और पत्नी की मृत्यु पर फादर बुल्के के शब्दों में झरती हुई ध्वनि शांति प्रदान कर देती है।

फादर बुल्के का निधन : दिल्ली में फादर बुल्के बीमार रहे, लेखक को इस बात का पता नहीं चला। वे चल बसे । इस बार बाहें खोलकर उन्होंने गले नहीं लगाया । उनका जिस्म एक ताबूत में पड़ा था। 18 अगस्त सन् 1982 की सुबह कश्मीरी गेट के निकलसन कब्रगाह में उनका ताबूत एक छोटीसी नीली गाड़ी में से उतारा गया। उतारनेवालों में कुछ पादरी, रघुवंशजी का बेटा और उनके परिजन थे। इस यात्रा में कब्रगाह तक जानेवालों में शैक्षिक संस्थान से जुड़े बड़े-बड़े विद्वान थे ।

मसीही विधि से उनका अंतिम संस्कार किया गया। हिन्दी में मसीही विधि से प्रार्थना की गई। सेंट जेवियर्स के रेक्टर फादर पास्कल ने उनके जीवन और कर्म पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा – “फादर बुल्के धरती में जा रहे हैं, इस धरती से ऐसे रत्न और पैदा हों।” उनकी देह को कब्र में उतार दिया गया। फादर बुल्के की मृत्यु पर रोनेवालों की कमी नहीं थी। जो उनके निकट थे उन लोगों के हृदय पटल पर उनकी स्मृति आजीवन रहेगी । लेखक उस पवित्र ज्योति की याद में श्रद्धानत हैं।

फादर के परिवार में कौन सख्त नहीं था? - phaadar ke parivaar mein kaun sakht nahin tha?

शब्दार्थ और टिप्पणी :

  • जहरबाद – ग्रीन, एक तरह का जहरीला और कष्ट साध्य फोड़ा
  • रग – नस
  • दिव्य – अलौकिक
  • विधान – तरीका, आस्था-श्रद्धा
  • यातना – पीड़ा
  • देहरी – दहलीज
  • आतुर – अधीर
  • साक्षी – गवाह
  • संकल्प – निश्चय
  • लबालब – ऊपर तक भरा हुआ
  • निलिप्त – आसक्ति रहित
  • आवेश – जोश
  • रूपान्तर – किसी वस्तु का बदला हुआ रूप
  • अकाट्य – जो कट न सके
  • विरल – कम मिलनेवाली
  • ताबूत – शव ले जानेवाला संदूक
  • सांत्वना – ढाढ़स
  • जिस्म – शरीर
  • करील – एक कटीला और बिना पत्ते का पौधा
  • गैरिक वसन – गेरूए वस्त्र, अनुकरणीय – अपनाने योग्य