रेडियो नाटक में पात्रों की संख्या कम से कम क्यों होनी चाहिए? - rediyo naatak mein paatron kee sankhya kam se kam kyon honee chaahie?

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3.1 कैसे बनता है रेडियो नाक _____ बनता है रेडियो नाटक, , (जमाना था जब रेडियो में आने वाले नाटक टी०वी० धारावाहिकों और टेलीफ़िल्मों कौ कमी को पूरा करते थे। हिंदी, , के तमाम बड़े नाम रेडियो स्टेशनों के लिए नाटक लिखते थे। उस समय यह सम्मान की बात मानी जाती थी।, , हम प्रकाश डालते हैं कि रेडियो नाटक लिखे कैसे जाते हैं। सिनेमा और रंगमंच की तरह रेडियो नाटक में भी चरित्र, , होते हैं, उन चरित्रों के आपसी संवाद होते हैं। इन्हीं संवादों के माध्यम से कहानी आगे बढ़ती है। इसमें विजुअल दृश्य, , देखने को नहीं मिलते। यही सबसे बड़ा अंतर है- रेडियो नाटक तथा सिनेमा या रंगमंच के माध्यम में। रेडियो नाटक, , का लेखन थोड़ा भिन्‍न है क्योंकि यह पूरी तरह श्रव्य माध्यम है। इसमें सब कुछ संवादों तथा ध्वनि प्रभावों के माध्यम, से संग्रेषित करना होता है। इसमें मंच सजाना, वस्त्र सज्जा एवं अभिनयकर्ता की भाव-भंगिमाओं का अभाव होता है।, , , , , , , , , , , , , , 4. नाटक किसे कहते हैं ?, उत्तर नाटक साहित्य कौ समृद्ध विधा है। इस पढ़ने, सुनने, के साथ-साथ देखा भी जा सकता है। नाटक शब्द, की उत्पत्ति 'नट' धातु से मानी जाती है। 'नट' शब्द, का अर्थ अभिनय है, जो अभिनेता से जुड़ा होता, है। इसे रूपक भी कहा जाता है। भारतीय परंपरा में, , । नाटक को दृश्य काव्य की संज्ञा दी गई है।, , | 2, नाठक के अंग लिखिए।, , उत्तर नाटक के प्रमुख अंग हैं, | () समय का बंधन-नाटक का प्रथम अंग समय का, , |. बंधन है। समय का यह बंधन नाटक की रचना पर, , अपना पूरा असर डालता है इसलिए शुरुआत से लेकर, अंत तक एक निश्चित समय सीमा के भीतर नाटक, पूरा होना होता है।, , । (0) शब्ब-शब्द नाटक का दूसरा महत्वपूर्ण अंग है।, नाटक में शब्द अपना एक नया आवरण ग्रहण करता, है। शब्द को नाटक का शरीर माना गया है।, , ै नाटक के तत्व लिखिए।, , त्तर नाटक के प्रमुख तत्व हैं, () कथानक-नाटक के लिए उसका कथानक ज़रूरी, होता है। नाटक में किसी कहानी के रूप को किसी, शिल्प में ढालना होता है।, , ॥) संवाद-नाटक का सबसे महत्वपूर्ण सशक्त माध्यम, उसके संवाद हैं। संवाद जितने सहज और स्वाभाविक, होंगे उतना ही दर्शक के हृदय को प्रभावित करेंगे।, , ८78 11 औ प्रत्यक 2 अंक, , (४) भाषा-भाषा नाटक का प्राण तत्व है। एक अच्छा, नाटक वही होता है जो लिखित से ज़्यादा अलिखित, को प्रकट करे।, , 4. “नाटक स्वयं में एक जीवंत माध्यम है'-इस, कथन के आलोक में नाटक पर प्रकाश डालिए।, उत्तर नाटक एक जीवंत माध्यम है। नाटक में कोई भी, दो चरित्र जब आपस में मिलते हैं तो विचारों के, आदान-प्रदान में मतभेद होना स्वाभाविक है। यही, कारण है कि रंगमंच प्रतिरोध का सबसे सशक्त, माध्यम है। वे कभी भी यथास्थिति को स्वीकार नहीं, करता। इस कारण उसमें अस्वीकार की स्थिति भी., बराबर बनी रहती है। नाटक में छटपटाहट, प्रतिरोध,, संतुष्टि और अधिकार जैसे नकारात्मक तत्वों की, जितनी ज़्यादा उपस्थिति होगी वह नाटक उतना ही, अधिक सशक्त साबित होगा।, 5. रेडियो पर रेडियो नाटक का आरंभ किस प्रकार, , हुआ? ", , उत्तर रेडियो का आरंभ मनोरंजन के साधन के रूप में हुआ, , था। प्रारंभ में इसमें समाचार और ज्ञानवर्धक कार्यक्रम, आते थे। इसके बाद आम जीवन से जुड़ी समस्याओं, के निवारण के लिए भी रेडियो का उपयोग किया, जाने लगा। उसके बाद यह संगीत और खेलों का, आँखों देखा हाल भी प्रसारित करने लगा। धीरे-धीरे, लगा कि रेडियो नाटक के दूवारा ज़्यादा श्रोताओं तक, संदेश पहुँचाया जा सकता है। रेडियो नाटक से हिंदी

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के जाने-माने लेखक जुड़ने लगे। रेडियो नाटक लेखन, सम्मान की बात होती थी। नाट्य आंदोलन में रेडियो, नाटकों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। रेडियो नाटक का, आकाशवाणी विभाग आज भी इस दिशा में सक्रिय, , भूमिका निभा रहा है।, 6. रेडियो नाटक कैसे बनता है? ;, उत्तर रेडियो एक श्रव्य माध्यम है। यहाँ दर्शक नहीं श्रोता, होते हैं। सबसे पहले रेडियो नाटक के लिए कहानी, , का चयन किया जाता है। कहानी एक ही घटना पर, , आधारित नहीं होनी चाहिए। अर्थात केवल घटना प्रधान, कहानी न हो। उसमें व्यक्तियों और संवादों का महत्व, होना चाहिए। संवाद और ध्वनि प्रभावों के माध्यम से, ही विचारों को संप्रेषित किया जाता है। कहानी की, शुरुआत, मंध्य और अंत यानी परिचय, दूवंदव और, समाधान, यह सभी आवाज़ के ऊपर निर्भर होता है।, , 7. रेंडियो नाटक की कहानी में किन बातों का ध्यान, , , , | 4. सिनेमा रंगमंच और रेडियो नाटक में क्‍या, समानताएँ हैं?, , उत्तर रेडियो नाटक सिनेमा और रंगमंच से मिलता-जुलता, , है। रेडियो नाटक में सिनेमा और रंगमंच के समान ही, , चरित्र होते हैं, इन चरित्रों के संवाद होते हैं। रेडियो, , नाटक में संवादों के माध्यम से ही कहानी आगे बढ़ाई, , जाती है। सिनेमा रंगमंच की तरह रेडियो नाटक में भी, , एक कंहांनी होती है, जिसमें शुरुआत, उसका मध्य, , और फिर उसका अंत होता है। इसके साथ-साथ रेडियो, , नाटक में भी सिनेमा और रंगमंच के समान ही पात्रों के, दवंदव होते हैं और अंत में समाधान दिया जाता है।, , 2. रेडियो नाटक सिनेमा और रंगमंच से किस प्रकार, अलग है?, उत्तर रेडियो नाटक सिनेमा और रंगमंच से मिलता-जुलता, है परंतु कुछ मायनों में इससे अलग भी है। इसकी, सबसे अलग बांत यह है कि रेडियो में दृश्य नहीं, होते। रेडियो पूरी तरह श्रव्य माध्यम है। जहाँ सिनेमा, और रंगमंच में कहानी को अभिनेताओं की भावनाओं, के द्वारा प्रस्तुत किया जाता है, वहीं रेडियो नाटक में, सब कुछ केवल ध्वनि प्रभाव के माध्यम से ही आगे, संप्रेषित किया जाता है। इसके अतिरिक्त सिनेमा और, रंगमंच में कथा के साथ-साथ मंच सज्ज्ञा और वस्त्र, का भी विशेष महत्व होता है, किंतु रेडियो नाटक में., , छह ७ “'__्््न्‍कक्ि--- 9 स5 >>०० ० ४ _, , 5 3. 32. 124 < +त्ंड, 5 2, , उत्तर रेडियो नाटक की कहानी में संवादों और ध्वनि प्रभावों, को ध्यान में रखना होता है। कहानी का चुनाव करते, समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना ज़रूरी, है- कहानी घटना प्रधानं न हो। रेडियो नाटक की, कहानी केवल एक ही घटना पर आधारित नहीं होनी, चाहिए-जैसे कि अगर पुलिस किसी अपराधी का, पीछा कर रही है तो यह कहानी श्रोताओं में थोड़ी देर, में ही उकताहट पैदा कर देगी। अतः रेडियो नाटक, की कहानी में बहुत सारे संवाद होने चाहिए। दूसरा, उसकी समय सीमा ज़्यादा न हो। किसी भी श्रोता की, एकाग्रता बीस से पच्चीस मिनट तक रह सकती है।, अतः मनुष्य की एकाग्रता का ध्यान रखना चाहिए।, रेडियो नाटक की अवधि अधिक होगी तो श्रोता ऊब, जाएगा। अगर पात्रों की संख्या ज़्यादा होगी तो सभी, की आवाज़ों के साथ याद रखना श्रोता के लिए, मुश्किल होगा। अतः पात्रों की संख्या भी कम होनी, , चाहिए।, , प्रत्यक 3. अक, , ३३, , , , प्रश्नोत्तर, , दृश्य न होने के कारण. इनका कोई महत्व नहीं होता।, पूरा-का-पूरा खेल आवाज़ का ही होता है।, , 3, रेडियो में ध्वनि प्रभाव क्या है ?, उत्तर ध्वनि प्रभाव रेडियो नाटक की सबसे बड़ी ताकत है।, इसके माध्यम से आप किसी दृश्य को जहाँ चाहे ले, जा सकते हैं - दुनिया के किसी भी कोने में घर के, भीतर, रसोई में या आँगन में, बाज़ार में, मेले में या, एकांत में, पहाड़ी-झरने के पास या समुंदर के किनारे।, ज़रूरत प्रमाणिकता या सत्यता की है। यानी ध्वनि, प्रभाव दृश्य के स्थान से मेल खाते हुए होने चाहिए।, जैसे- अगर दृश्य रसोई का है तो पृष्ठभूमि में बरतनों, की खटपट, प्रेशर कुकर की आवाज़ इत्यादि हों तो, दृश्य सटीक लगेगा। :, अगर पक्षियों की आवाज़ें हैं तो यह निश्चित करना, जरूरी है कि पक्षी कहाँ के हैं, क्या वहाँ पाए जाते, हैं जहाँ आपका दृश्य अभिनीत हो रहा है?, इस तरह ट्रैफिक का भी हर देश और हर शहर में 1, - अलग मिजाज होता है। कहीं रिक्शे-ताँगे भी होते है, तो कहीं सिर्फ़ मोटरकारें। कहीं हॉर्न बजते हैं तो कहीं |., बिलकुल नहीं। ध्वनि प्रभात्रों के इस्तेमाल में एक, अहम बात और ध्यान में रखी 52100 है। कि ध्वनि, , ५» प्रभाव दृश्य के खत्म होमे तक पृष्ठभूमि में चलते

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7 एिौाएरिच, , षे, , ६, भे, रै, न, भै, रै, के, |, भें, है, १, षे, पे, १, नै, , रहने चाहिए। हाँ, इस बात का खयाल रहे कि ध्वनि, , भ्रभाव संवादों पर हावी न हो जाएँ।, ५. ध्वनि परिप्रेश्षय की समझ रेडियो नाटक में क्‍यों, * आवश्यक है?, ध्वनि परिप्रेक्य की समझ रेडियो नाटक के हर कुशल, प्रोड्यूसर और अनुभवी कलाकारों को होती है। जैसेअगर दो पात्र एक जगह पास-पास बैठे बातचीत कर, रहे हैं तो जाहिर है दोनों माइक्रोफ़ोन के नजदीक होंगे।, कर्ज़ कीजिए- दोनों में से एक पात्र ज़रा दूरी पर है,, था प्रवेश कर रहा है तो उसकी आवाज्ञ माइक्रोफ़ोन, से दूर होगी। अगर पात्र अपने घर में हैं तो यह, , है कि वे बीच-बीच में उठकर कुछ काम, , कर रहे हैं और काम करते हुए एक-दूसरे से बात, कर रहे हैं। फर्ज कीजिए - वे कार में बैठे हैं, ट्रेन, या हवाई जहाज़ में हैं, बाज़ार या बाग में हैं - ध्वनि, परिप्रेक्ष्य हर जगह अलग-अलग होगा। एक कुशल, निर्देशक और प्रोड्यूसर को सबसे बड़ी चुनौती भी, यही होती है कि वह ध्वनि परिप्रेक्ष्य के माध्यम से, श्रोताओं को यह समझा सके कि पात्र कहाँ हैं क्या कर रहे हैं।, ५. रेडियो नाटक किस प्रकार की विधा है?, , 3, , उत्तर रेंडियो नाटक एक उच्च. कोटि की साहित्यिक विधा ह, , है जिसके दूवारा विभिन्‍न विषयों, व्यक्तियों, घटनाओं,, वातावरण को प्रस्तुत किया जा सकता है। शब्द प्रधान, होने के कारण रेडियो नाटक पूरी तरह एक स्वतंत्र, साहित्यिक विधा है। इस पर रंगमंच नाटक का अंकों, बाला गणित लागू नहीं होता। रेडियो नाटक एकांकी, भी होता है और अनेक अंकों का भी। यह एक दृश्य, का भी हो सकता है और अनेक दृश्यों का भी और, रेडियो नाटक के दृश्यों की लंबाई-चौड़ाई पर भी, कोई बंधन नहीं होता। रेडियोधर्मी सही नाटक स्थान, और काल के बंधन से मुक्त होता है। यदि उसका, एक दृश्य रेडियो नाटक वर्तमान अतीत और भविष्य, की झलक प्रस्तुत कर सकता है। यही रेडियो नाटक, की विशालता का संकेत है।, , 6, रेडियो नाटक 'की सीमाएँ क्या हैं?, उत्तर इसकी पहली सीमा है कि यह सिर्फ़ माइक के भरोसे, जीता है। सिर्फ़ माइक ही इसे व्यक्तित्व और जीवन, देता है। रेडियो की दूसरी सीमा है - यह मात्र श्रवण, को माध्यम बनाता है। एक श्रोता को बाँधकर रखने, के लिए इसके पास शब्दों के अलावा और कोई, , साधन नहीं होता। :तीसरी बात है कि रेडियो सेट से ,, , निरंतर कार्यक्रम चलते हैं। उस बीच नाटक भी आ, जाता है। इसलिए इसके श्रोता सिनेमा के दर्शकों की, तरह टिकट कटाकर एक जगह जमा होकर उसका, इंतज़ार नहीं करते। इसका श्रोता हो सकता है, उस, वक्‍त किसी पारिवारिक काम में फँसा हुआ है। अतः, वह इसे न भी सुन पाए।, 7. रेडियो नाटक की सुविधाओं तथा संभावनाओं पर, प्रकाश डालिए।, उत्तर रेडियो नाटक में बहुत-सी सुविधाएँ हैं। यह स्थान,, काल आदि की सीमाओं में जकड़ा नहीं रहता है। एक, व्यक्ति एक दृश्य में दिल्ली के चाँदनी चौक में टहलता, हुआ दिखलाया जा सकता है तो दूसरे दृश्य में यह, स्वर्ग में धर्ममज से संवाद बोलता हुआ प्रस्तुत किया, “ जा सकता है। रेडियो नाटक के श्रोताओं को मंचीय, नाटक के दर्शकों की तरह रोशनी, पोशाक, सेट 'पर, ध्यान नहीं देना पड़ता है। इसके श्रोता अधिक आत्मीय, होते हैं। यह अपने को अधिक प्रभावी बनाने के लिए, संगीत आदि का सहारा ले सकता है। रेडियो नाटक में, स्मृति, दृश्य, स्व आदि की प्रस्तुति संभव है।, 8. नाटक में चित्रित पात्र कैसे होने चाहिए ?, उत्तर नाटक में पात्रों का बहुत महत्व है नाटक में चित्रित पात्र, निम्नलिखित प्रकार के होते हैं:-(0) पात्र चरित्रवान होने चाहिए।, (४) पात्र आदर्शवादी होने चाहिए।, (४) पात्र अच्छे और बुरे दोनों प्रकार के होने चाहिए।, (00) पात्र जीवंत तथा जीवन से जुड़े होने चाहिए।, (0) पात्र सामाजिक परिवेश से जुड़े होने चाहिए।, (श) पात्र कथानक से संबंधित होने चाहिए।, 9, नाटक की भाषा-शैली कैसी होनी चाहिए ?, उत्तर नाटक की भाषा-शैली निम्नलिखित प्रकार की होनी, , चाहिए :-(0) नाटक की भाषा-शैली सरल और सहज होनी चाहिए।, , (४) इसकी भाषा-शैली स्वाभाविक तथा प्रसंगानुकूल होनी चाहिए।, (४४) इसकी भाषा-शैली पात्रानुकूल होनी चाहिए।, (/) इसकी भाषा-शैली विषयानुकूल होनी चाहिए।, 0) इसकी भाषा-शैली संवादों के अनुकूल होनी चाहिए।, (») इसकी भाषा-शैली सरस होनी चाहिए।, 10, नाटक और साहित्य की अन्य विधाओं में क्या अंतर, है ? संक्षेप में बताइए।, उत्तर साहित्य में कविता, कहानी, उपन्यास, निबंध आदि, विधाएँ आती हैं। नाटक भी साहित्य की एक प्रमुख

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कक 7फहक्‍त..."फा है ।फै।फ।एए/ ्प्््््न्तस्श्ध्श्प्शश्‌ कर फ-+ड5प फार-्श, , विधा है किंतु नाटक तथा अन्य विधाओं में बहुत अंतर है पात्रों की परस्पर बातचीत को संवाद अथवा |, , “जो इस प्रकार है :-- कहते हैं। नाटक में संवाद योजना सहज, कल |, (0) नाटक को दृश्य काव्य कहा जाता है किसी अन्य विधा स्वाभाविक तथा पात्रानुकूल होना चाहिए। ।, को नहीं। (0) अभिनेयता--यह नाटक का महत्वपूर्ण तत्व है। इसे..., 0 कप शक अन्य विधाओं के द्वार ही नाटक का मंच पर अभिनय किया जाता ५, न ५ (१) उददेश्य--साहित्य की अन्य विधाओं के समान नाट३ *, (४) नाटक का अभिनय होता है जबकि अन्य विधाओं का भी एक उद्देश्यपूर्ण रचना है। नाटककार अपने पात्रों के, अभिनय नहीं हो सकता।, , (#) नाटक को पढ़ा, सुना तथा देखा जा सकता है जबकि, , अन्य विधाओं को केवल पढ़ा तथा सुना जा सकता है।, , द्वारा इस उद्देश्य को स्पष्ट करता है।, (४) भाषा-शैली--यह नाटक का महत्वपूर्ण तत्व है सर, , इसके माध्यम से ही नाटककार अपनी संवेदनाओं को, , , , हे 3५ 21067 “॥ शक जे के अभिव्यक्त करता है। नाटक की भाषा-शैली सरल, सहज, , (५) नाटक का संबंध दर्शकों से है जबकि अन्य विधाओं का स्वाभाविक, पात्रानुकूल तथा प्रसंगानुकूल होनी चाहिए।, संबंध पाठकों से है। 12, नाठक में स्वीकार एवं अस्वीकार की अवधारणा से, , (७४). नाटक एक 'दर्शनीय' विधा है. जबकि अन्य पठनीय क्या तात्पर्य है ? ः, विधाएँ हैं। उत्तर नाटक में स्वीकार के स्थान पर अस्वीकार का अधिक, , 41. नाटक के विभिन्न तत्वों पर प्रकाश डालिए।, उत्तर नाटक की रचना में विभिन्‍न तत्वों का महत्वपूर्ण योगदान, है जो निम्नलिखित है :-, “महत्व होता है। नाटक में स्वीकार तत्व के आ जाने|, से नाटक सशक्त हो जांता है। कोई भी दो चत्ि|, जब आपस में मिलते हैं तो विचारों के आदान-प्रदान|, , (0) कथानक / कथावस्तु--नाटक में जो कुछ कहा जाए, उसे कथानक अथवा कथावस्तु कहते हैं। यह नाटक, का सबसे महत्वपूर्ण तत्व है। इसी के आधार पर नाटक, की मध्य और समापन मुख्यतः तीन भागों में बाँटा, जाता है। , (४) पात्र योजना / चरित्र-चित्रण--पात्रों के माध्यम से ही, , में टकराहट पैदा. होना स्वाभाविक है। रंगमंच में|, कभी भी यथास्थिति को स्वीकार नहीं किया जाता।, वर्तमान स्थिति के प्रति असंतुष्टि, छटपटाहट, प्रतिरोध, और अस्वीकार जैसे नकारात्मक तत्वों के समावेश से।, ही नाटक सशक्त बनता है। यही कारण है कि हमोरे, , नाटककार कंथानक को गतिशीलता प्रदान करता है तथा, , नाटक का उद्देश्य स्पष्ट करता है। नाटक में एक प्रमुख, , पात्र तथा अन्य उसके सहायक पात्र होते हैं। प्रमुख पात्र, । को नायक अथवा नायिका कहते हैं।, , (४) संवाद योजना अथवा क्थोपकथन--संवाद . का, शाब्दिक अर्थ है--परस्पर बातचीत अथवा: नाटक में, , 1४5, , विए गए प्रश्नों के उत्तर लीखिए1. हिंदी के कौन-से नाटक प्रारंभ में रेडियो के लिए लिखे गए थे, बाद में वे रंगमंच पर कामयाब रहे?, 2. रेडियो नाटक तथा सिनेमा में सबसे बड़ा अंतर क्‍या है?, 3, रेडियो नाटक में पात्रों की जानकारी कैसे मिलती है?, 4. रेडियो नाटक में पात्रों की संख्या सीमित क्यों होती है?, , नांटककारों को राम की अपेक्षा रावण और प्रहलाद की, अपेक्षा हिरण्यकश्यप का चरित्र अधिक आकर्षित करता, है। इसके विपरीत जब-जब किसी विचार, व्यवस्था या, तात्कालिक समस्या को किसी नाटक में सहज स्वीकार, किया गया हैं, वह नाटक अधिक सशक्त और लोगों के |, आंकर्षण का केंद्र नहीं बन पाया है। |, ,, , , , ._ स्व-मूल्यांकन (5७/॥-4$5९४४७0


रेडियो नाटक में पात्रों की संख्या सीमित क्यों होती है?

चूँकि रेडियो नाटक की अवधि सीमित होती है इसलिए पात्रों की संख्या भी सीमित होती है क्योंकि सिर्फ़ आवाज़ के सहारे पात्रों को याद रख पाना मुश्किल होता है।

नाटक में पात्र की संख्या कितनी होनी चाहिए?

नाटक में चरित्र चित्रण नाटक में यों तो पात्रों की संख्या अधिक होती है, किंतु सामान्यतः एक-दो पात्र ही प्रमुख होते हैं । किसी नाटक के प्रधान पुरुष पात्र को नायक और प्रधान अथवा मुख्य स्त्री-पात्र को नायिका कहते हैं।

रेडियो नाटक की अवधि छोटी क्यों होती है?

Solution. रेडियो नाटक की अवधि छोटी इसलिए रखी जाती है, क्योंकि रेडियो पूरी तरह से श्रव्य माध्यम है। रेडियो नाटक का लेखन सिनेमा व रंगमंच के लेखन से थोड़ा भिन्न तथा मुश्किल भी होता है। इसमें संवादों को ध्वनि प्रभावों के माध्यम से संप्रेषित करना होता है।

रेडियो नाटक के लिए किन तीन मुख्य बातों का विचार करना चाहिए और क्यों?

भाषा, संवाद, ध्वनि एवं संगीत का रेडियो नाटक में विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए । पात्रों की सीमित संख्या - रेडियो नाटक में पात्रों की संख्या सीमित होनी चाहिए। इसमें पात्रों की संख्या 5- 6 से अधिक नहीं होनी चाहिए क्योंकि इसमें श्रोता केवल ध्वनि के सहारे ही पात्रों को याद रख पाता है ।