प्राथमिक स्तर पर गणित शिक्षण के उद्देश्य क्या है? - praathamik star par ganit shikshan ke uddeshy kya hai?

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CT 1: Growth and Development - 1

10 Questions 10 Marks 10 Mins

गणित की कक्षा में प्राथमिक स्तर पर छात्रों को सीखने, समस्याओं को हल करने, गणितीय जिज्ञासा को विकसित करने और समस्याओं का विश्लेषण करने और हल करने के लिए गणित का उपयोग करने में आश्वस्त होने का आनंद मिलता है।

प्राथमिक स्तर पर गणित का महत्व (NCF 2005): राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 की अनुशंसा यह है कि प्राथमिक स्तर पर गणित के शिक्षण पर निम्न ध्यान देना चाहिए

  • छात्रों को दैनिक जीवन के साथ कक्षा के शिक्षण को जोड़ने में मदद करना चाहिए
  • बच्चे को गणित से डरने के बजाय गणित को सीखने में आनंद लेना चाहिए
  • बच्चे को अर्थपूर्ण समस्याओं को बताना और उन्हें हल करना चाहिए
  • पर्यावरण से संबंधित व्यावहारिक गतिविधियाँ करनी चाहिए
  • गाने, चित्र अध्ययन, खेल, पहेलियाँ, प्रश्नोत्तरी और घटनाओं का वर्णन करना चाहिए।
  • बच्चे गणित को इस प्रकार देखते हैं जिसके बारे में कुछ बात किये जाये, जिसके माध्यम से बात किया जाये, जिसके बारे में उनके बीच चर्चा हो सके, जिससे वे साथ मिलकर काम कर सके इत्यादि। 

अतः यह उपरोक्त बिंदुओं से स्पष्ट हो जाता है कि प्राथमिक स्तर पर गणित  व्यावहारिक गतिविधियों में बच्चों की भागीदारी के बारे में अधिक है।

Last updated on Dec 28, 2022

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Que : 11. गणित शिक्षण के प्रमुख और गौण उद्देश्यों का वर्णन कीजिये ।

Answer:  गणित शिक्षण के प्रमुख उद्देश्य :

गणित–शिक्षण के निम्न तीन मुख्य उद्देश्यों की जानकारी छात्र एवं अध्यापक को होना जरूरी है–

1. व्यावहारिक उपयोगिता का उद्देश्य– गणित–शिक्षण में व्यावहारिक उपयोगिता के उद्देश्य का महत्वपूर्ण स्थान है। हमारे दैनिक कार्यों में गणित का उपयोग होता है। हम किसी न किसी वस्तु को गिनने, नापने एवं तोलने आदि में इसका उपयोग करते हैं। एक मजदूर, कुली, जूते या साइकिल मरम्मत करने वाला, चिकित्सक, इन्जीनियर, मकान बनाने वाला कारीगर, धोबी आदि सभी को गणित के उपयोग की जरूरत होती है। पैसों का ज्ञान, तोल तथा दूरी के आधार पर हिसाब–किताब गणित के द्वारा ही सही–सही सम्भव है। यह कार्य बालक प्राथमिक स्तर तथा उच्च प्राथमिक स्तर पर विद्यालयों मंक अध्यापक द्वारा अथवा घर एवं समाज के वातावरण में स्वयं के अनुभवों द्वारा ज्ञान प्राप्त कर सकता है। शिक्षित तथा अशिक्षित सभी के लिए गणित का व्यावहारिक ज्ञान होना जरूरी है। एक कृषक को जो अशिक्षित है, उसे गणित के द्वारा ही अपनी निश्चित भूमि में पर्याप्त मात्रा में विभिन्न फसल बोने फसल उत्पादन के बाद उसे तौल के आधार पर विक्रय करने तथा तदनुरूप दर से उचित मूल्य लेने की जानकारी होती है। बैंक में जमा राशि पर ब्याज तथा साहूकार या बैंक से ऋण तथा इस पर लगी ब्याज की जानकारी भी गणित के ज्ञान के द्वारा ही सम्भव है। इस तरह हम कह सकते हैं कि एक नागरिक के सफल जीवनयापन हेतु गणित कितना उपयोगी है।

2. अनुशासनात्मक उपयोगिता का उद्देश्य– अनुशासनात्मक उद्देश्य का तात्पर्य विद्यार्थियों में मानसिक अनुशासन पैदा करना है। इसके लिए गणित विषय के अध्ययन से ही बालक में तार्किक शक्ति का विकास होता है। उसमें सोचने, विचारने एवं सही निर्णय करने की शक्ति का विकास भी होता है। गणित के शिक्षार्थी में मौलिक चिन्तन तथा क्रमबद्ध विचार पैदा करता है। फलस्वरूप उसमें दृढ़ता, बौद्धिक जागरुकता तथा आत्म–विश्वास जैसे गुण पैदा होते हैं।

आज का जीवन संघर्षमय है, इसमें सफलता लाने के लिए व्यक्ति के विचारों में स्पष्टता, शुद्धता तथा क्रमबद्धता का होना जरूरी है। गणित के अध्ययन द्वारा ही यह सम्भव है, साथ ही उसमें अन्तर्निहित शक्तियों का समुचित विकास भी गणित के पाठन द्वारा किया जा सकता है।

3. सांस्कृतिक उपयोगिता का उद्देश्य– हागवेग के अनुसार, गणित सभ्यता का दर्पण है।' अगर मानव सभ्यता तथा संस्कृति के इतिहास का अवलोकन करें तो हमें ज्ञात होगा कि गणित तथा संस्कृति में परस्पर घनिष्ठ संबंध रहा है। आधुनिक सभ्यता तथा संस्कृति को समझने के लिए भी गणित के ज्ञान की परम जरूरत है। यहाँ गणित के शिक्षक का यह कर्तव्य हो जाता है कि वह छात्रों को मानव सभ्यता के विकास में गणित के सांस्कृतिक मूल्यों को समझने की क्षमता पैदा करे। गणित के शिक्षण द्वारा बालकों में कलात्मक दृष्टिकोण भी विकसित किया जा सकता है।

गणित के गौण उद्देश्य :

1. जीवन में गणित का उपयोग– गणित की मूलभूत क्रियाएँ (योग, व्यवकलन, भाजन तथा गुणन संक्रियाओं) का बोध एवं जटिल प्रश्नों में इनका उपयोग गणित द्वारा ही सम्भव है। सामान का क्रय–विक्रय, ब्याज लेना–देना, मिश्रधन निर्धारण तथा मकान का किराया तय करना आदि दैनिक जीवन में काम आने वाली बातें हैं, जिनका हल गणित के ज्ञान द्वारा ही सम्भव है।

2. वैज्ञानिक दृष्टिकोण का निर्धारण– आधुनिक युग लौह तथा वाष्प का युग है, जिसे कल–कारखानों या विज्ञान का युग भी कहते हैं। वैज्ञानिक प्रगति गणित के आधार पर ही सम्भव हुई है। समस्त वैज्ञानिक शोधों के निष्कर्ष गणित की मदद से ही प्राप्त किये जाते हैं। संबंधित प्रयोगों को सफल अथवा असफल भी घोषित किया जाता है। ऐसी दशा में छात्रों को गणित का ज्ञान इस ढंग से कराया जाना चाहिए कि वे वैज्ञानिक तथ्यों एवं नियमों को आसानी से समझकर उनकी सत्यता प्रमाणित कर सकें।

3. तार्किक शक्ति का विकास होना– गणित सिर्फ भावनाओं तथा कल्पनाओं पर आधारित नहीं होता है। इसका मुख्य आधार सत्य तथा विवेचन है। इस दृष्टि से यह बालकों के दृष्टिकोण को तार्किक बनाने में विशेष मददगार होता है। गणित के किसी भी नियम तथा तथ्यों के बारे में सूक्ष्म चिन्तन एवं उसके अनुरूप तार्किक शक्ति का विकास भी गणित का गौण उद्देश्य है।

4. गति तथा शुद्धता प्रदान करना– गणितीय समस्याओं को हल करने का अध्यास छात्रों में गति तथा उनके जीवन में शुद्धता प्रदान करता है, क्योंकि गणित में कोरी कल्पना तथा अशुद्धता को स्थान नहीं है। समस्याओं का चिन्तन करने, तर्क करने एवं सही परीक्षण कर सही निर्णय लेने की क्षमता का विकास भी गणित का उद्देश्य है।

5. एकाग्रता, धैर्य एवं आत्मम–विश्वास का विकास– कुछ गणित की समस्याएँ इस तरह की होती हैं जिनको हल करने के लिए विद्यार्थियों को विभिन्न तरह के प्रयत्न करने पड़ते हैं। प्रयत्नों द्वारा उसे असफलता अथवा सफलता भी होती रहती है, जिसके कारण उनमें एकाग्रता, धैर्य तथा आत्म–विश्वास भी जाग्रत होता है। गणित में योग्यता प्राप्त करने हेतु आत्म–विश्वास बहुत आवश्यक है। जीवन के लिए भी यह विकास का आधार है।

6. तकनीक तथा कौशल का विकास– गणितीय संक्रियाएँ औसत,प्रतिशत, लाभ–हानि एवं अन्य प्रत्ययों की जानकारी तथा तकनीक का विकास करती है और रेखागणित की रचनाएँ कौशल का विकास करती। गणित की पद्धति को सही रूप में सीखने की कला का भी विकास गणित का गौण उद्देश्य है।

7. मानसिक शक्तियों का विकास– गणित के शिक्षण द्वारा विद्यार्थियों में मानसिक योग्यताओं तथा क्षमताओं का विकास होता है। इसके द्वारा इसमें तर्क, चिन्तन, निरीक्षण, विश्लेषण एवं सही निर्णय लेने की क्षमता को बल मिलता है। इस उद्देश्य के विकास के लिए शिक्षार्थी को शुद्धता, क्रमबद्धता तथा आवश्यकतानुसार गणितीय प्रक्रियाओं की विधिपूर्ण जानकारी और उनका प्रयोग करना जरूरी है।

8. छात्रों को माध्यमिक शिक्षा के लिए तैयार करना– गणित–शिक्षण का गौण उद्देश्य यह भी है कि छात्र प्राथमिक तथा उच्च प्राथमिक स्तर पर कराये गये पाठ्यक्रम को पूर्णतः समझ लें। तभी वह माध्यमिक स्तर पर गणित पढ़ने के लिए तैयार माना जायेगा।

9. चारित्रिक विकास में योग प्रदान करना– चरित्र जीवन की आधारशिला है। शिक्षा के विभिन्न उद्देश्यों में चारित्रिक विकास का उद्देश्य महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इसलिए गणित के माध्यम से विद्यार्थियों के चारित्रिक विकास में भी योग दिया जाना चाहिए। श्रेष्ठ चरित्र के लक्षण हैं– सत्य आचरण, सत्य वचन, नियमित जीवन एवं तर्कपूर्ण तथा विचारशील दृष्टिकोण। गणित के विद्यार्थियों को शुद्ध तथा अशुद्ध के बीच अन्तर करना और सत्य के प्रति निष्ठावान होना सिखाता है। गणित के विद्यार्थी नियमित तथा क्रमबद्ध पदों पर चलकर अपनी समस्याएँ हल करने में सफल होते हैं। इस तरह वे जीवन में योजनाबद्ध ढंग से जीते हुए प्रगति करते हैं।

10. अवकाश के समय का सदुपयोग करना– गणित के प्रभावशाली तथा रोचक शिक्षण द्वारा बालकों को अवकाश के क्षणों का भी सदुपयोग करना सिखाया जाना चाहिए। विद्यार्थी कठिन प्रश्न करने के बाद आनन्दित होता है, इसके कारण उसमें गणित के प्रति रुचि और बढ़ती है एवं वह अवकाश के समय में विभिन्न गणितीय पहेलियों को हल करने में लगा रहता है। इससे उनमें मानसिक दक्षता का विकास भी होता है।

इसलिए उपरोक्त उद्देश्यों के आधार पर हम कह सकते हैं कि प्राथमिक तथा उच्च प्राथमिक स्तर पर गणित–शिक्षण करने के लिए इस तरह की शिक्षण विधियों का चयन तथा प्रयोग करना चाहिए, जिसके द्वारा चयनित उद्देश्यों की प्राप्ति हो सके। अगर ऐसा करने में शिक्षक सफल हो जाता तो वह शिक्षण उद्देश्यों की प्राप्ति तथा देश के लिए सच्चा नागरिक बनाने में सफल हो सकता है। गणित–शिक्षण का विद्यालयी पाठ्यक्रम में विशेष महत्व है, क्योंकि इसके द्वारा ही वह जीवन में व्यावहारिक सफलता प्राप्त करने में समर्थ हो पाता है।

गणित शिक्षण के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए शिक्षक द्वारा प्रयास :

गणित के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए शिक्षक को कक्षा में या बाहर निम्नलिखित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए निम्न प्रयास करना चाहिए–

1. व्यावहारिक उद्देश्य प्राप्ति– शिक्षक को छात्रों की दैनिक जीवन की समस्याओं के समाधान के लिए उपयोगी ज्ञान पर जोर देना चाहिए। लेखा–जोखा, डाक–बैंक, आय–व्यय से जुड़ी दैनिक जीवन की बातें हमारे क्रय–विक्रय, माप, तौल, जोड़ व्यवकलन आदि गणितीय संक्रियाओं से जुड़ी हैं। गणित जीवकोपार्जन, व्यवसाय संबधित समस्याओं तथा नवीन परिस्थितियों के समाधान का हल पेश करती है।

2. नैतिक तथा चारित्रिक उद्देश्य– संस्कृति हमारे पूर्वजों की धरोहर है जो विरासत में आने वाली पीढ़ी को हस्तान्तरित हो जाती है। गणित को संस्कृति का सृजनकर्ता तथा पोषक कहा जा सकता है। इसलिए गणित शिक्षक को चाहिए कि गणितीय क्षेत्र में गणितज्ञ के योगदान से छात्रों को अवगत कराये ताकि इस गणितीय संस्कृति को अगली पीढ़ी में परिवर्धन तथा शोधन कर प्रस्तुत कर दिया जाये।

3. अनुशासनात्मक उद्देश्य प्राप्ति– गणित अप्रत्यक्ष रूप से मानव में स्वस्थ आदतों (नियमितता एवं विविधता) एवं क्षमताओं का विकास करता है। गणित शिक्षक मौलिक शुद्ध, स्पष्ट तथा समन्वित विचारों के माध्यम से छात्रों में अनुशासनात्मक दृष्टिकोण विकसित कर सकता है।

4. नैतिक तथा चारित्रिक उद्देश्य की प्राप्ति– गणित शिक्षक छात्रों में तार्किक तथा निर्णय शक्ति विकसित करके नेतृत्व की भावना का प्रादुर्भाव करे एवं अपने चरित्र, न्यायपूर्ण एवं भेदभाव रहित संगत निर्णय से प्रभावित कर सकता है। इसके कारण छात्रों में शुद्धता, सत्यता, ईमानदारी, शीघ्रता तथा नियमितता जैसे गुणों का विकास हो सकता है।

5. अवकाश का सदुपयोग के लिए उद्देश्य प्राप्ति– गणित शिक्षक गणितीय पहेलियों, खेल मायावी वन, अंक आश्चर्य आदि के माध्यम से छात्रों में आनन्द तथा मनोरंजनात्मक प्रवृत्ति विकसित कर सकता है ताकि वे अवकाश सदुपयोग आसानी से कर सकें।


प्राथमिक स्तर पर गणित शिक्षण का क्या उद्देश्य है?

गणित की कक्षा में प्राथमिक स्तर पर छात्रों को सीखने, समस्याओं को हल करने, गणितीय जिज्ञासा को विकसित करने और समस्याओं का विश्लेषण करने और हल करने के लिए गणित का उपयोग करने में आश्वस्त होने का आनंद मिलता है। गाने, चित्र अध्ययन, खेल, पहेलियाँ, प्रश्नोत्तरी और घटनाओं का वर्णन करना चाहिए।

गणित शिक्षण के प्रमुख उद्देश्य कौन कौन से है?

गणित शिक्षण के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं- (i) छात्र को नवीनतम ज्ञान व खोजों से अवगत कराना। (ii) छात्र में अन्तर्निहित गुणों तथा योग्यताओं का विकास करना । (iii) छात्र को सौन्दर्य तथा आनन्द की अनुभूति प्रदान करना तथा खाली क्षणों का उपयोग करना सिखाना। (v) छात्र को समाज के लिए उपयोगी नागरिक के रूप में तैयार करना।

प्राथमिक स्तर पर बच्चे गणित कैसे सीखते हैं उल्लेख करें?

प्राथमिक स्तर में सीखने सिखाने की प्रक्रियाएँ-2.
उनके परिवेश को समझना, और ऐसे उदाहरणों और परिपेक्ष्यों पर बात करना.
विचारों को व्यक्त करने के लिए गणितीय भाषा का उपयोग करना.
समस्या हल करने में गणितीय अवधारणाओं का उपयोग करना.

उच्च प्राथमिक स्तर पर गणित का महत्व क्या है?

उच्च प्राथमिक स्तर पर गणित शिक्षण का सर्वोच्च महत्व बच्चे के व्यवहार में वृद्धि करना है। गति, सटीकता, अनुमान जैसे कौशल का विकास। तर्क शक्ति, विश्लेषणात्मक और महत्वपूर्ण सोच का सुधार। परिणामों का आकलन, खोज और सत्यापन जैसे वैज्ञानिक दृष्टिकोण की वृद्धि।