पर्णकुटी के अंदर कौन बैठा था - parnakutee ke andar kaun baitha tha

“हमारे जीवन की रफ़्तार बढ़ गई है। यहाँ कोई चलता नहीं, बल्कि दौड़ता है। कोई बोलता नहीं, बकता है। हम जब अकेले पड़ते हैं तब अपने आपसे लगातार बड़बड़ाते रहते हैं। ……. अमेरिका से हम प्रतिस्पर्धा करने लगे। एक महीने में पूरा होने वाला काम एक दिन में ही पूरा करने की कोशिश करने लगे। वैसे भी दिमाग की रफ़्तार हमेशा तेज़ ही रहती है। उसे ‘स्पीड’ का इंजन लगाने पर वह हजार गुना अधिक रफ्तार से दौड़ने लगता है। फिर एक क्षण ऐसा आता है जब दिमाग का तनाव बढ़ जाता है और पूरा इंजन टूट जाता है। …… यही कारण है जिससे मानसिक रोग यहाँ बढ़ गए हैं। …. “

 

प्रश्न 1- ‘पतझर में टूटी पत्तियाँ’ पाठ के लेखक कौन है ?

(क)रवीन्द्र केलेकर
(ख) खुशवंत सिंह
(ग) मुंशी प्रेम चंद
(घ) कोई नहीं

 

प्रश्न 2- हमारे जीवन की क्या बढ़ गई है ?

(क) योग्यता

(ख) आवश्यकता   
 (ग) रफ़्तार

(घ) कोई नहीं

 

प्रश्न 3- जापानी किससे प्रतिस्पर्धा करने लगे हैं ?

(क) पाकिस्तान से 
(ख) चीन से  
(ग) अमेरिका से  
(घ) जापान से  

 

प्रश्न 4- स्पीड का इंजन लगाने पर दिमाग कितने गुना रफ्तार से दौडने लगता है?

(क) सौ गुना

(ख) दोगुना

(ग) हज़ार गुना

(घ) पांच गुना

 

प्रश्न 4- झेन की देन में लेखक जापानी लोगों के बारे में क्या कहता है?

(क)जापानी लोगो को मानसिक बीमारियाँ अधिक हैं
(ख) जापानी लोग स्मार्ट हैं
(ग) जापानी लोग गतिवान हैं
(घ) कोई नहीं

 

उत्तर 1- (क)रवीन्द्र केलेकर

उत्तर 2- (ग) रफ़्तार

उत्तर 3- (ग) अमेरिका से  

उत्तर 4- (ग) हज़ार गुना

उत्तर 5- (क)जापानी लोगो को मानसिक बीमारियाँ अधिक हैं

 

 

वह एक छः मंजिली इमारत थी जिसकी छत पर दफ़्ती की दीवारोंवाली और तातामी (चटाई) की ज़मीनवाली एक सुंदर पर्णकुटी थी। बाहर बेढब-सा एक मिट्टी का बर्तन था। उसमें पानी भरा हुआ था। हमने अपने हाथ-पाँव इस पानी से धोए। तौलिए से पोंछे और अंदर गए। अंदर ‘चानीज़’ बैठा था।

              हमें देखकर वह खड़ा हुआ। कमर झुका कर उसने हमें प्रणाम किया। दो….झो…(आइए, तशरीफ़ लाइए) कहकर स्वागत  किया। बैठने की जगह हमें दिखाई। अँगीठी सुलगाई। उस पर चायदानी रखी। बगल के कमरे में जाकर कुछ बरतन ले आया। तौलिए से बरतन साफ किए। सभी क्रियाएँ इतनी गरिमापूर्ण ढंग से कीं कि उसकी हर भंगिमा से लगता था मानो जयजयवंती के सुर गूँज रहे हों। वहाँ का वातावरण इतना शांत था कि चायदानी के पानी का खदबदाना भी सुनाई दे रहा था।  

 

प्रश्न 1- बाहर किस तरह का बर्तन रखा हुआ था ?  

(क) सुंदर –सा
(ख) सोने का  
(ग)  बेढब –सा मिट्टी का  
(घ) बेढब –सा चाँदी का

 

प्रश्न 2- लेखक ने पर्णकुटी में अंदर जाने से पहले क्या किया?

(क) दरवाजा खोला फिर अंदर गए

(ख) बाहर नहाकर फिर अंदर गए

(ग) हाथ पाँव धोकर, तौलिए से पोंछकर अंदर गए

(घ) इनमें से कोई नहीं

 

प्रश्न 3- जापानी विधि से चाय पिलाने वाले को क्या कहते हैं ?   

(क) चा–नो–यू
(ख)  चायवाला
(ग)  दो झो 
(घ)  चाज़ीन

 

प्रश्न 4- लेखक को टी सेरेमनी में कौन लेकर गया था ?

(क) उसका बॉस
(ख) उसका भाई
(ग) उसका दोस्त
(घ) उसका अंकल

 

प्रश्न 5- चाज़ीन ने क्या –क्या काम किया ?

(क) अँगीठी सुलगाई 

(ख)  उस पर चायदानी रखी 

(ग) (क) और (ख) दोनों   

(घ) कोई नहीं

 

प्रश्न 6- लेखक को चाय के पानी के उबलने की आवाज़ स्पष्ट क्यों सुनाई दे रही थी ?

(क) पहाड़ो के कारण
(ख) शांत वातावरण के कारण
(ग) सुनने की मशीन के कारण
(घ) कोई नहीं

 

उत्तर 1- (ग)  बेढब –सा मिट्टी का  

उत्तर 2-(ग) हाथ पाँव धोकर, तौलिए से पोंछकर अंदर गए

उत्तर 3-(घ)  चाज़ीन

उत्तर 4-(ग) उसका दोस्त

उत्तर 5-(ग) (क) और (ख) दोनों   

उत्तर 6-(ख) शांत वातावरण के कारण

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                                      चाय तैयार हुई। उसने वह प्यालों में भरी। फिर वे प्याले हमारे सामने रख दिए गए। वहाँ हम तीन मित्र ही थे। इस विधि में शांति मुख्य बात होती है। इसलिए वहाँ तीन से अधिक आदमियों को प्रवेश नहीं दिया जाता। प्याले में दो घूँट से अधिक चाय नहीं थी। हम ओठों से प्याला लगाकर एक-एक बूँद चाय पीते रहे। करीब डेढ़ घंटे तक चुसकियों का यह सिलसिला चलता रहा। पहले दस-पंद्रह मिनट तो मैं उलझन में पड़ा। फिर देखा दिमाग की रफ़्तार धीरे-धीरे धीमी पड़ती जा रही है। थोड़ी देर में बिलकुल बंद भी हो गई। मुझे लगा, मानो अनंतकाल में मैं जी रहा हूँ। यहाँ तक की सन्नाटा भी मुझे सुनाई देने लगा।

 

प्रश्न 1- टी सेरेमनी में कितने लोगों को प्रवेश दिया जाता है ?

(क)दो लोगों को
(ख) चार लोगों को
(घ) सात लोगों को

 

प्रश्न 2- टी सेरेमनी में केवल तीन लोगों को प्रवेश क्यों दिया जाता है ?

(क) क्योंकि ट्रेंड है
(ख) जगह कम होती है
(ग) ताकि शान्ति भंग न हो
(घ) ताकि बात हो सके

 

प्रश्न 3- चुस्कियों का सिलसिला कितनी देर तक तक चलता रहा ?

(क) दो घंटे तक

(ख) ढ़ाई घंटे तक

(ग) चार घंटे तक

(घ) एक घंटे तक

 

प्रश्न 4-प्यालों में कितनी चाय थी?

(क) दो घूँट से अधिक नहीं थी

(ख) चार घूँट

(ग) प्याले में चाय थी ही नहीं

(घ) प्यारे भरे हुए थे

 

प्रश्न 5- लेखक को क्या लगा और उसे क्या सुनाई दे रहा था ?

(क) वह वर्तमान में जी रहा था और उसे शोर सुनाई दे रहा था

(ख) वह अनंत काल में जी रहा था और उसे सन्नाटा सुनाई दे रहा था

(ग) वह भविष्य में जी रहा था और उसे कुछ सुनाई नहीं दे रहा था

(घ) इनमें से कोई नहीं

 

उत्तर 1-(ग) तीन लोगों को

उत्तर 2-(ग) ताकि शान्ति भंग न हो

उत्तर 3-(ख) ढ़ाई घंटे तक

उत्तर 4-(क) दो घूँट से अधिक नहीं थी

उत्तर 5-(ख) वह अनंत काल में जी रहा था और उसे सन्नाटा सुनाई दे रहा था

 

अकसर हम या तो गुज़रे हुए दिनों की खट्टी-मीठी यादों में उलझे रहते हैं या भविष्य के रंगीन सपने देखते रहते हैं। हम या तो भूतकाल में रहते हैं या भविष्यकाल में। असल में दोनों काल मिथ्या हैं। एक चला गया है, दूसरा आया नहीं है। हमारे सामने जो वर्तमान क्षण है, वही सत्य है। उसी में जीना चाहिए। चाय पीते-पीते उस दिन मेरे दिमाग से भूत-भविष्य दोनों काल उड़ गए थे। केवल वर्तमान क्षण सामने था। और वह अनंतकाल जितना विस्तृत था।

छत पर बनी पर्णकुटी के अंदर कौन बैठा था?

अंदर 'चाजीन' बैठा था । हमें देखकर वह खड़ा हुआ । कमर झुकाकर उसने हमें प्रणाम किया ।

पर्णकुटी के बाहर क्या रखा था?

पीतल का एक, बर्तन जो खाली था। Solution : पर्णकुटी के बाहर मिट्टी का एक बेढब-सा बर्तन रखा था, जिसमें पानी भरा था। लेखक और उसके साथियों ने उस पानी से अपने हाथ पाँव धोए।

पर्णकुटी में कितने आदमियों को प्रवेश दिया जाता था?

Answer: भाग-दौड़ की ज़िदंगी से दूर भूत-भविष्य की चिंता छोड़कर शांतिमय वातावरण में कुछ समय बिताना इस जगह का उद्देश्य होता है। इसलिए इसमें केवल तीन आदमियों को प्रवेश दिया जाता था

लेखक ने पर्णकुटी में अंदर जाने से पहले क्या किया?

टी-सेरेमनी एक पर्णकुटी में पूरी हुई। सर्वप्रथम सभी हाथ-पैर धोकर अंदर गए। वहाँ चाजीन ने सभी का कमर झुकाकर स्वागत किया, प्रणाम किया तथा बैठने की जगह दिखाई। अँगीठी सुलगाकर उसपर चायदानी रखी।