पूर्ण प्रतियोगिता क्या है किन्हीं तीन विशेषताओं की व्याख्या करें? - poorn pratiyogita kya hai kinheen teen visheshataon kee vyaakhya karen?

पूर्ण प्रतियोगिता से हम यह समझते हैं कि उस प्रतियोगिता जिसके अंतर्गत क्रेता तथा विक्रेताओं में प्रतियोगिता होने के कारण संपूर्ण बाजार के मूल्य अधिक हो जाते हैं या मूल्य एक होने की प्रवृत्ति पाई जाती है प्रतियोगिता में क्रेता तथा विक्रेता स्वतंत्रता रूप से अपना कार्य करते हैं पूर्ण प्रतियोगिता में फर्म की संख्या अधिक होने के कारण प्रत्येक फर्म उद्योग में एक बहुत छोटा सा जगह रखी जाती है। जिससे कि वह बाजार अथवा उपयोग द्वारा निर्धारित कीमत को परिवर्तित कर सके पूर्ण प्रतियोगिता में कोई भी फार्म कीमत निर्धारित नहीं कर सकता है क्योंकि बाजार में उपयोग होने वाली पूर्ण दशाओं द्वारा जो कीमत निर्धारित होती है उसे उस उद्योग में कार्य प्रत्येक फार्म मान लिया जाता है।

पूर्ण प्रतियोगिता की परिभाषा

लिफ्ट विच के अनुसार- “हम यह जान सकते हैं कि बाजार की वह स्थिति जिसमें बहुत सी फार्म एक  वस्तु बेचती है जिसके कारण इनमें से किसी भी एक फार्म की यह स्थिति नहीं होती है कि वह बाजार कीमत को प्रभावित कर सकें।”

श्रीमती जान रॉबिंस के अनुसार- “हम यह देख सकते हैं कि प्रतियोगिता तब पाई जाती है जब जिसमें प्रत्येक उत्पादक की उपज के लिए मांग पूर्ण लोचदार हो जाते हैं तब इसके दो अभिप्राय होते हैं पहला विक्रेता की संख्या बहुत अधिक होनी चाहिए दूसरा विभिन्न प्रतियोगी विक्रेताओं के बीच चुनाव करने के संबंध में समाज की दृष्टि से जिस बाजार पूर्व हो जाता है।”

विल्स के अनुसार हम यह देखते हैं कि बाजार की वह अवस्था जिसमें बहुत सी फर्म होती है और सभी फर्म एक समान वस्तु की उत्पादन कर रही होती है इस अवस्था में विक्रेता अपने फर्म की वस्तु को अधिक मूल्य बढ़ा देता है। इस प्रकार पूर्ण प्रतियोगिता को बाजार की एक ऐसी स्थिति माना जाता है जिसमें एक बड़ी संख्या में क्रेता एवं विक्रेता होते हैं एक समान वस्तु का उत्पादन कर क्रेता एवं विक्रेताओं को दोनों बाजारों का पूर्ण ज्ञान होता है फर्म के बाजार में प्रवेश करने एवं बाहर निकलने पर कोई पाबंदी नहीं लगाई गई है।

पूर्ण प्रतियोगिता की विशेषताएं

1. क्रेता एवं विक्रेता की अधिक संख्या हो जाना— पूर्ण प्रतियोगिता के अंतर्गत बाजार में क्रेता एवं विक्रेताओं का संख्या अधिक हो जाना प्रत्येक क्रेता की इच्छा कम खरीदना है और प्रत्येक विक्रेता इतना कम बेचता है कि ना कि कोई क्रेता और ना ही कोई विक्रेता बाजार में प्रचलित कीमत को प्रभावित करने की स्थिति में होता है।

2. बाजार की पूर्ण जानकारी— पूर्ण प्रतियोगिता में  विक्रेता को बाजार की पूर्ण जानकारी होती है प्रत्येक वस्तु के संबंध में सभी बातों को सभी क्रेता पहले से ही जानने अथवा फार्म को प्रचार एवं विज्ञापन पर बेचने की आवश्यकता नहीं पड़ती है।

3. कृत्रिम प्रतिबंधों का अभाव होना— प्रतियोगिता के एक ही विशेषता होती है कि बाजार में वस्तु तथा उत्पादन के साधन की मांग पूर्ति तथा कीमत के ऊपर निर्भर रहती है किसी भी प्रकार की कृत्रिम प्रबंधन नहीं होती है।

4. एक फार्म का स्वतंत्र प्रवेश तथा बहिर्गमन— पूर्ण प्रतियोगिता में उद्योग के अंतर्गत फर्म का आगमन एवं बहिर्गमन स्वतंत्रता रूप से किया जाता है दूसरे शब्दों में हम देखेंगे कि कोई भी फर्म जब चाहे उद्योग से अलग हो जा सकता है तब तक भी कोई फार्म उद्योग मैं आना चाहे आ सकता है।

5. उत्पादन साधनों की पूर्ण गतिशीलता होना— पूर्ण प्रतियोगिता का स्वतंत्रता कार्यसील बनाए रखने के लिए उत्पादन के साधनों की पूर्ण गतिविधि सिलता की आवश्यकता होती है उत्पादन के साधन जिस उद्योग का उपयोग लाभदायक के लिए करते हैं उसमें जाने वाली पूर्ण रूप से स्वतंत्र होती है।

6. वस्तु का समरूप अधिक होना— पूर्ण रूप से प्रतियोगिता बाजार की विशेषता यह होती है कि विभिन्न विक्रेताओं द्वारा बेची जाने वाली वस्तु क्रेताओं की दृष्टि से संपूर्ण  होनी चाहिए जिससे कि बेची जाने वाली वस्तु क्रेताओं की दृष्टि से एक दूसरे के पूर्ण स्थान पर होना अति आवश्यक है जहां पर वस्तु की कीमत घट जाती है तो वहां वस्तु की मांग कीमत बढ़ जाती है

7. परिवहन लागते नहीं होनी चाहिए— पूर्णस्पर्धा बाजार का विश्लेषण इस अधिकार से किया जाता है कि उसमें परिवहन संबंधित लागत नहीं होती है यह बाजार इस मान्यता पर आधारित होती है कि प्रश्न ही प्रश्न उठाई जा सके पूर्ण प्रतियोगिता को एक कोरी कल्पना भी कहा जाता है इसका वास्तविक जीवन से कोई संबंध नहीं होता है।

आप सभी बाज़ार (Bazar) की व्यवहारिक जानकारी तो अवश्य ही रखते होंगे। आप यह भी भली भाँति जानते हैं कि क्रेताओं-विक्रेताओं से ही बाज़ार का अस्तित्व है। सच मानो तो क्रेता व विक्रेता के बग़ैर बाज़ार की कल्पना ही असंभव है। आज इस अंक में हम बाज़ार के ही एक प्रकार "पूर्ण प्रतियोगिता बाज़ार" के बारे में अध्ययन करेंगे।



पूर्ण प्रतियोगिता क्या है किन्हीं तीन विशेषताओं की व्याख्या करें? - poorn pratiyogita kya hai kinheen teen visheshataon kee vyaakhya karen?
पूर्ण प्रतियोगिता बाज़ार 


अर्थशास्त्र के अंतर्गत पूर्ण प्रतियोगिता बाज़ार की वह स्थिति है जिसमें किसी वस्तु विशेष के अनेक क्रेता-विक्रेता उस वस्तु का क्रय-विक्रय स्वतंत्रतापूर्वक करते हैं तथा कोई एक क्रेता अथवा विक्रेता वस्तु के मूल्य को प्रभावित करने में असमर्थ रहता है।


पूर्ण प्रतियोगिता की कुछ परिभाषाएं (purn pratiyogita ki paribhasha) -


बोल्डिंग के अनुसार- "पूर्ण प्रतियोगिता बाज़ार की ऐसी स्थिति, जिसमें अत्यधिक संख्या में क्रेता और विक्रेता एक ही प्रकार की वस्तु के क्रय-विक्रय में लगे रहते हैं तथा एक-दूसरे के अत्यधिक निकट संपर्क में रहकर आपस में स्वतन्त्रतापूर्वक वस्तु का क्रय-विक्रय करते हैं।"


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श्रीमती जॉन राबिंसन के अनुसार- "पूर्ण प्रतियोगिता तब पायी जाती है, जब प्रत्येक उत्पादक के उत्पादन के लिए माँग पूर्णतया लोचदार होती है। यानि कि विक्रेताओं की संख्या अधिक होती है। जिससे किसी एक विक्रेता को उत्पादक का उत्पादन उस वस्तु के कुल उत्पादन का एक बहुत ही थोड़ा सा भाग प्राप्त होता है। तथा सभी क्रेता भी इन प्रतियोगी विक्रेताओं के बीच चुनाव कराने की दृष्टि से समान होते हैं अर्थात बराबर संख्या में होते हैं। जिससे कि बाजार पूर्ण हो जाता है।"



पूर्ण प्रतियोगिता की विशेषताएँ (Characteristics of Perfect Competition in hindi)

बाज़ार में पूर्ण प्रतियोगिता (bazar me purn pratiyogita) होने के लिए निम्नलिखित दशाओं या विशेषताओं का पाया जाना आवश्यक है-


(1) क्रेताओं और विक्रेताओं की अधिक संख्या-

किसी भी वस्तु विशेष का बाज़ार पूर्ण प्रतियोगी तभी माना जाता है जब उसमें क्रेताओं एवं विक्रेताओं की संख्या बहुत अधिक हो। यानि कि पूर्ण प्रतियोगिता बाज़ार की स्थिति में क्रेताओं और विक्रेताओं की भारी संख्या होना आवश्यक है।


(2) वस्तुओं का एकरुप होना-

विभिन्न फर्मों द्वारा उत्पादित वस्तुओं में समरूपता का गुण होता है। पूर्ण प्रतियोगिता की दशा में सभी विक्रेता समरूप यानि कि एकरूप वस्तुएँ बेचते हैं। इसका आशय यह है कि इन विक्रेताओं की वस्तुएँ क़िस्म, आकार, गुण, पैकिंग इत्यादि में समान होती हैं। 


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अगर इन विक्रेताओं की वस्तुओं में किसी प्रकार का विशेष अंतर हो तो यह बाज़ार पूर्ण प्रतियोगिता बाज़ार के अंतर्गत नहीं कहलायेगा। वस्तुओं के साथ-साथ यह भी आवश्यक है कि विक्रेता का व्यवहार, स्थान आदि की दृष्टि से भी समान होने चाहिए। 


(3) फर्मों का स्वतंत्र प्रवेश तथा बहिर्गमन-

पूर्ण प्रतियोगिता बाज़ार में फ़र्मों का प्रवेश तथा बहिर्गमन स्वतंत्र होना चाहिए अर्थात उसमें किसी प्रकार की बाधा नहीं होनी चाहिए। कोई भी फर्म अपने विवेक के अनुसार कोई भी निर्णय ले सके इतनी आज़ादी होनी चाहिए। अक्सर कई फर्में, दूसरी फर्मों के लाभ से आकर्षित होकर उद्योग में प्रवेश करना चाहती हैं। और यदि दीर्घकाल में उस फर्म को हानि हो तो वह उस उद्योग से बाहर निकलना चाहती है।


(4) बाज़ार की पूर्ण जानकारी-

पूर्ण बाज़ार में क्रेताओं व विक्रेताओं को बाज़ार की पूर्ण जानकारी होना चाहिए। सीधे शब्दों में कहें तो प्रत्येक क्रेता विक्रेता को इस बात की जानकारी होना चाहिए कि बाज़ार में वस्तुओं का सौदा किस तरह हो रहा है। किस क्वालिटी की वस्तु कितनी क़ीमत पर बेची-ख़रीदी जा रही है। ईन सभी बातों की जानकारी होने से बाज़ार में वस्तुओं की एक विशेष क़ीमत ही प्रचलित होती है।


(5) उत्पत्ति के साधनों की पूर्ण गतिशीलता-

पूर्ण प्रतियोगिता बाज़ार में उत्पत्ति के साधनों का पूर्ण गतिशील होना आवश्यक हो जाता है। उत्पत्ति के साधन किसी एक फर्म से दूसरी फर्म में जाने के लिए स्वतंत्र रूप से गतिशील होना चाहिए। उसमें किसी भी प्रकार की बाधा खड़ी नहीं होनी चाहिए। उत्पत्ति के साधनों में निश्चित तौर पर एक ख़ासियत होती है कि वे उन स्थानों या फ़र्मों की तरफ गतिशील होते हैं जहाँ उनको अपेक्षाकृत ज़्यादा पारिश्रमिक मिलता हो।


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(6) यातायात लागतों का न होना-

पूर्ण प्रतियोगिता बाज़ार के अंतर्गत क्रेता व विक्रेता समीप ही होना चाहिए। जिस कारण यातायात लागतें भी नगण्य अथवा कम होती हैं। यदि उत्पादक या उपभोक्ता एक दूसरे से अधिक दूरियों पर होंगे तो यह स्वाभाविक है कि इन अलग-अलग दूरियों की वजह से अलग-अलग लागतें आयेंगी जिस कारण वस्तुओं की क़ीमतों में भिन्नता होगी। और ऐसी स्थिति में यह प्रतियोगिता, पूर्ण प्रतियोगिता नहीं कहलाएगी।



क्या पूर्ण प्रतियोगिता काल्पनिक है? (Is the full competition imaginary in hindi)

वास्तविक रूप से देखा जाए तो पूर्ण प्रतियोगिता बाज़ार की अवधारणा काल्पनिक है। पूर्ण प्रतियोगिता की यह विशेषताएँ वास्तविक जीवन में देखने नहीं मिलती हैं। कुछ अर्थशास्त्रियों के अनुसार पूर्ण प्रतियोगिता बाज़ार की दशा एक काल्पनिक दशा है। आइये इसे निम्न बिंदुओं के आधार पर स्पष्ट रूप से समझते हैं-


(1) क्रेताओं व विक्रेताओं की बड़ी संख्या काल्पनिक-

पूर्ण प्रतियोगिता बाज़ार की दशा एक ऐसी दशा है जिसमें क्रेताओं व विक्रेताओं की संख्या बहुत ज़्यादा होती है। लेकिन सच में देखा जाए तो वास्तविक जीवन में ऐसा बिल्कुल भी संभव नहीं है। प्रायः यही होता है कि बाज़ार में वस्तुओं के उत्पादक सीमित होते हैं जबकि उपभोक्ताओं की संख्या उत्पादकों की तुलना में बहुत अधिक होती है।


(2) वस्तुओं का एकरूप होना काल्पनिक-

आपने जाना कि पूर्ण प्रतियोगिता में वस्तुओं का एकरूप यानि कि समरूप होना आवश्यक है। किंतु वास्तविक जीवन मे देखा जाए तो बाज़ार की स्थिति बिल्कुल अलग होती है। दरअसल बाज़ार में वस्तुएँ, आकार, गुणों आदि में भिन्न ही होती हैं। प्रत्येक उत्पादक वस्तुओं में विभेद करके अपनी-अपनी वस्तुओं को दूसरी से श्रेष्ठतम बनाने की कोशिश करते रहते हैं और इसी के बल पर अपनी वस्तु को अधिक दामों में बेचने का प्रयास करते हैं।


(3) फ़र्मों का स्वतंत्र प्रवेश व बहिर्गमन काल्पनिक- 

यह माना जाता है कि पूर्ण प्रतियोगिता बाज़ार में फ़र्मों के प्रवेश व बहिर्गमन में स्वतंत्रता होती है। किंतु वास्तव में इस होना कठिन है। क्योंकि सरकारी हस्तक्षेप के कारण फ़र्मों का स्वतंत्र रूप से किसी भी उद्योग में प्रवेश अथवा उद्योग को छोड़ना (बहिर्गमन) बहुत कठिन होता है।


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(4) बाज़ार का पूर्ण ज्ञान होना काल्पनिक-

पूर्ण प्रतियोगिता बाज़ार में यह शर्त दी गयी है कि क्रेताओं-विक्रेताओं के बीच निकट संपर्क और उन्हें बाज़ार की पूर्ण जानकारी होती है। किन्तु व्यवहारिक जीवन में इस तरह की स्थिति नहीं पायी जाती। दरअसल क्रेताओं-विक्रेताओं को इस बात की ज़्यादा जानकारी नहीं होती कि कौन सी वस्तु कहां, किस क़ीमत पर बेची या ख़रीदी जा रही है। जिस वजह से बाज़ार में क़ीमत विभेद की स्थिति पायी जाती है।


(5) उत्पत्ति के साधनों का पूर्ण गतिशील होना काल्पनिक- 

ऐसा माना जाता है कि पूर्ण प्रतियोगिता बाज़ार में उत्पत्ति के साधनों का पूर्ण गतिशील होना आवश्यक है। किन्तु इस तरह की धारणा भी ग़लत है। देखा जाए तो पूर्ण गतिशील साधन तो पूँजी भी नहीं है। इसके अलावा उत्पत्ति के अन्य साधनों के गतिशील होने के लिए अनेक शर्ते बाधक बन जाती हैं। इसलिए वास्तविक जीवन में यह संभव नहीं है।


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आपने देखा कि "पूर्ण प्रतियोगिता काल्पनिक क्यों कहलाती है?" दरअसल पूर्ण प्रतियोगिता की येे उपरोक्त विशेषताएँ वास्तविक जीवन में देखने नहीं मिलतीं। इसीलिये कुछ अर्थशास्त्री पूर्ण प्रतियोगिता की जगह पर विशुद्ध प्रतियोगिता शब्द का इस्तेमाल करना बेहतर समझते हैं। क्योंकि विशुद्ध प्रतियोगिता के लिए पूर्ण प्रतियोगिता की सभी शर्तें आवश्यक नहीं होतीं। विशुद्ध प्रतियोगिता को "परमाणुवादी प्रतियोगिता" भी कहा जाता है।


विशुद्ध प्रतियोगिता में क्रेता-विक्रेता की अधिक संख्या, एकरूप वस्तु तथा फ़र्मों को स्वतंत्र प्रवेश व बहिर्गमन होना ही पर्याप्त माना जाता है। इसीलिये विशुद्ध प्रतियोगिता, पूर्ण प्रतियोगिता की तुलना में अधिक सरल कही जाती है।


उम्मीद है आपको हमारा यह अंक "पूर्ण प्रतियोगिता बाजार का अर्थ व इसकी विशेषताएँ (Meaning and characteristics of Perfect competition in hindi)" आपके अध्ययन में अवश्य ही मददग़ार साबित हुआ होगा।


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पूर्ण प्रतियोगिता की तीन विशेषताएं क्या है?

(1) क्रेता एवं विक्रेताओं की अधिक संख्या का होना, (2) वस्तुएं रूप-रंग, गुण एवं वचन में एक समान होना, (3) बाजार का पूर्ण ज्ञान, (4) फर्मों का स्वतन्त्र प्रवेश तथा बहिगर्मन, (5) उत्पादन के साधनों की पूर्ण गतिशीलता, (6) मूल्य नियन्त्रण की अनुपस्थिति, (7) औसत तथा सीमान्त भाव का बराबर होना, (8) दीर्घकालीन स्थिति में एक ...

पूर्ण प्रतियोगिता क्या है इसकी विशेषताएं लिखिए?

purn pratiyogita ki visheshta;पूर्ण प्रतियोगिता बाजार की वह स्थिति होती है जिसमे एक वस्तु के बहुत अधिक क्रेता तथा विक्रेता होते है व वस्तु के क्रय-विक्रय के लिए उनमे परस्पर इतनी प्रतिस्पर्धा होती है कि संपूर्ण बाजार मे वस्तु का एक ही मूल्य प्रचलित रहता है।

पूर्ण प्रतियोगिता क्या है व्याख्या कीजिए?

पूर्ण प्रतियोगिता एक बाजार का रूप है, जिसमें क्रेता तथा विक्रेताओं की एक बड़ी संख्या होती है, जो समरूप या एक जैसी वस्तुओं का उद्योग द्वारा निर्धारित कीमतों पर क्रय-विक्रय करते हैं। यहां उद्योग ऐसी फर्मों का समूह है, जो एक समान वस्तुओं का उत्पादन करती हैं।

पूर्ण प्रतियोगिता से आप क्या समझते हैं पूर्ण प्रतियोगिता में किस प्रकार मूल्य निर्धारण होता है समझाइए?

पूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति में किसी वस्तु का मूल्य उसके सीमान्त तुष्टिगुण और सीमान्त उत्पादन लागत के मध्य माँग और पूर्ति की सापेक्षिक शक्तियों के द्वारा उस बिन्दु पर निर्धारित होता है। जहाँ वस्तु की माँग और पूर्ति बराबर होती हैं। अत: वस्तु के मूल्य-निर्धारण में माँग और पूर्ति पक्ष दोनों ही महत्त्वपूर्ण हैं